जिन्ना विवाद .....
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पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लगाए गए एक चित्र पर विवाद चल रहा है| इसके ऊपर मैं निष्पक्ष रूप से अपने विचार रख रहा हूँ| मेरा किसी से भी कोई विवाद नहीं है| मेरे मन में किसी के भी प्रति कोई दुराग्रह नहीं है|
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इस्लाम में किसी की मूर्ती या फोटो लगाना हराम है| यह तो बुत-परस्ती है, अतः किसी की फोटो होनी ही नहीं चाहिए|
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मोहम्मद अली जिन्ना के जन्म का नाम "महमदअली झीणाभाई" (મહમદઅલી ઝીણાભાઇ) था| वे मिठीबाई और जिन्नाभाई पुँजा की सात सन्तानों में सबसे बड़े थे| उनके पिता जिन्नाभाई एक सम्पन्न गुजराती व्यापारी थे, लेकिन जिन्ना के जन्म के पूर्व वे काठियावाड़ छोड़ सिन्ध में जाकर बस गये थे| मोहम्मद अली जिन्ना मूलतः गुजराती खोजा इस्माइली मुसलमान व आगा खां के अनुयायी थे| बाद में वे शिया बन गए थे| उनके पूर्वज गुजराती हिन्दू राजपूत थे, उनकी पत्नी पारसी थीं| मज़हब का दखल उनके जीवन में नहीं के बराबर था| वे लोकमान्य पं.बाल गंगाधर तिलक के वकील थे और उन को प्रसिद्धि मिलना भी तभी से शुरू हुई| इस्माइली ६ इमामों को मानते हैं जबकि शिया १२ इमामों को मानते हैं| इस्माइली आग़ा खां को फॉलो करते हैं लेकिन जिन्ना उन्हें इमाम के तौर पर फॉलो नहीं करना चाहते थे, ऐसे में उन्होंने ख़ुद को शिया बना लिया|
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जिन्ना के निजी जीवन में मजहब था ही नहीं| उन्होंने भारत को स्थायी रूप से छोड़ दिया था और ब्रिटेन में जाकर बस गए थे| जिन्ना ने कभी क़ुरान नहीं पढ़ा, कभी नमाज़ नहीं पढ़ी, कभी हज यात्रा नहीं की, वे शराब पीते थे, सिगार पीते थे और सूअर का मांस खाते थे, जिसे इस्लाम में हराम माना जाता है| रहन-सहन व आस्था से वे मुस्लिम नहीं थे| मुस्लिम लीग वाले बड़ी मुश्किल से उन्हें मनाकर ब्रिटेन से बापस भारत लाये थे| जिस समय मुस्लिम लीग वाले उन्हें मनाने गए उस समय वे स्कॉच (स्कॉटलैंड में बनी मंहगी शराब) पी रहे थे और पोर्क (सूअर का मांस) सैंडविच खा रहे थे, जिसे उन्होंने तुरंत छिपा लिया|
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मुस्लिम लीग के आग्रह पर वे भारत बापस आये और आने के बाद भी उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि यदि स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधानमंत्री उन्हें बनाया जाए तो वे पकिस्तान नहीं बनने देंगे| यह मांग नहीं मानी गयी तो उन्होंने पाकिस्तान की घोषणा कर दी जिस से लाखों निरपराधों की हत्याएँ हुईं, लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और लाखों परिवार विस्थापित हुए|
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उन्हें "कायदे आज़म" जिसका अर्थ होता है "महान नेता", की उपाधि स्वयं महात्मा गाँधी ने दी थी| १४ अगस्त १९४७ को जिस दिन पाकिस्तान बना था तब रमज़ान का महीना चल रहा था| जिन्ना ने कहा कि ग्रैंड लंच यानी शाही भोज होना चाहिए| उन्हें यह भी नहीं पता था कि रमजान का महीना चल रहा है|
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अतः ऐसे "कायदे आज़म" की फोटो वहाँ नहीं होनी चाहिए| मेरे विचार स्वतंत्र हैं| आगे आप सब के अपने अपने स्वतंत्र विचार हैं| सबको बहुत बहुत धन्यवाद|
६ मई २०१८
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पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लगाए गए एक चित्र पर विवाद चल रहा है| इसके ऊपर मैं निष्पक्ष रूप से अपने विचार रख रहा हूँ| मेरा किसी से भी कोई विवाद नहीं है| मेरे मन में किसी के भी प्रति कोई दुराग्रह नहीं है|
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इस्लाम में किसी की मूर्ती या फोटो लगाना हराम है| यह तो बुत-परस्ती है, अतः किसी की फोटो होनी ही नहीं चाहिए|
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मोहम्मद अली जिन्ना के जन्म का नाम "महमदअली झीणाभाई" (મહમદઅલી ઝીણાભાઇ) था| वे मिठीबाई और जिन्नाभाई पुँजा की सात सन्तानों में सबसे बड़े थे| उनके पिता जिन्नाभाई एक सम्पन्न गुजराती व्यापारी थे, लेकिन जिन्ना के जन्म के पूर्व वे काठियावाड़ छोड़ सिन्ध में जाकर बस गये थे| मोहम्मद अली जिन्ना मूलतः गुजराती खोजा इस्माइली मुसलमान व आगा खां के अनुयायी थे| बाद में वे शिया बन गए थे| उनके पूर्वज गुजराती हिन्दू राजपूत थे, उनकी पत्नी पारसी थीं| मज़हब का दखल उनके जीवन में नहीं के बराबर था| वे लोकमान्य पं.बाल गंगाधर तिलक के वकील थे और उन को प्रसिद्धि मिलना भी तभी से शुरू हुई| इस्माइली ६ इमामों को मानते हैं जबकि शिया १२ इमामों को मानते हैं| इस्माइली आग़ा खां को फॉलो करते हैं लेकिन जिन्ना उन्हें इमाम के तौर पर फॉलो नहीं करना चाहते थे, ऐसे में उन्होंने ख़ुद को शिया बना लिया|
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जिन्ना के निजी जीवन में मजहब था ही नहीं| उन्होंने भारत को स्थायी रूप से छोड़ दिया था और ब्रिटेन में जाकर बस गए थे| जिन्ना ने कभी क़ुरान नहीं पढ़ा, कभी नमाज़ नहीं पढ़ी, कभी हज यात्रा नहीं की, वे शराब पीते थे, सिगार पीते थे और सूअर का मांस खाते थे, जिसे इस्लाम में हराम माना जाता है| रहन-सहन व आस्था से वे मुस्लिम नहीं थे| मुस्लिम लीग वाले बड़ी मुश्किल से उन्हें मनाकर ब्रिटेन से बापस भारत लाये थे| जिस समय मुस्लिम लीग वाले उन्हें मनाने गए उस समय वे स्कॉच (स्कॉटलैंड में बनी मंहगी शराब) पी रहे थे और पोर्क (सूअर का मांस) सैंडविच खा रहे थे, जिसे उन्होंने तुरंत छिपा लिया|
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मुस्लिम लीग के आग्रह पर वे भारत बापस आये और आने के बाद भी उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि यदि स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रधानमंत्री उन्हें बनाया जाए तो वे पकिस्तान नहीं बनने देंगे| यह मांग नहीं मानी गयी तो उन्होंने पाकिस्तान की घोषणा कर दी जिस से लाखों निरपराधों की हत्याएँ हुईं, लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और लाखों परिवार विस्थापित हुए|
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उन्हें "कायदे आज़म" जिसका अर्थ होता है "महान नेता", की उपाधि स्वयं महात्मा गाँधी ने दी थी| १४ अगस्त १९४७ को जिस दिन पाकिस्तान बना था तब रमज़ान का महीना चल रहा था| जिन्ना ने कहा कि ग्रैंड लंच यानी शाही भोज होना चाहिए| उन्हें यह भी नहीं पता था कि रमजान का महीना चल रहा है|
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अतः ऐसे "कायदे आज़म" की फोटो वहाँ नहीं होनी चाहिए| मेरे विचार स्वतंत्र हैं| आगे आप सब के अपने अपने स्वतंत्र विचार हैं| सबको बहुत बहुत धन्यवाद|
६ मई २०१८
मोहनदास गाँधी, जवाहर लाल नेहरु, और मोहम्मद अली जिन्ना ... ये सब एक समान थे| अंतर इतना ही था कि जहां जिन्ना सूअर का मांस खाता था, वहाँ नेहरू गाय का मांस खाता था, और गाँधी जी बुढापे में युवा स्त्रियों के साथ नग्न होकर सोते थे| दुर्भाग्य से ये सब हमारे महान नेता थे |
ReplyDeleteगाँधी का सबसे बड़ा अपराध यह है कि उन्होंने नेहरू जैसे अयोग्य, विलासी और पश्चिमी मानसिकता वाले व्यक्ति को प्रधानमंत्री के रूप में देश पर थोप दिया। ऐसा करके गाँधी ने अपनी तानाशाही प्रवृत्ति का परिचय दिया। 16 कांग्रेस कमेटियों में से किसी ने भी नेहरू के नाम का प्रस्ताव प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं किया था। 13 कमेटियों ने सरदार पटेल के नाम का प्रस्ताव दिया था, जो इस पद के लिए सर्वाधिक योग्य थे और निर्विवाद रूप से देशभक्त थे। जब नेहरू को पता लगा कि किसी ने भी उनके नाम का प्रस्ताव नहीं किया है और सरदार पटेल प्रधानमंत्री बन सकते हैं, तो वे गाँधी के सामने जाकर गिड़गिड़ाये और एक प्रकार से धमकाया भी। इससे गाँधी डर गये और कांग्रेस को नेहरू का नाम स्वीकार करने पर अड़ गये। सरदार पटेल, डा. राजेन्द्र प्रसाद तथा अन्य नेता गाँधी का बहुत सम्मान करते थे, इसलिए उन्होंने गाँधी की बात मान ली और पीछे हट गये। गाँधी ने नेहरू को प्रधानमंत्री बनने का कारण यह बताया था कि यदि उनको प्रधानमंत्री न बनाया गया, तो वे रूठकर कांग्रेस से अलग हो सकते हैं और कांग्रेस और देश का नुकसान कर सकते हैं। इससे स्पष्ट है कि वास्तव में नेहरू ने गाँधी और कांग्रेस को ब्लैकमेल किया था। अब जरा देखा जाये कि देश की आजादी के आंदोलन में नेहरू का क्या योगदान था। कांग्रेस के आन्दोलनों का इतिहास बताता है कि हर आन्दोलन में नेहरू सबसे आगे रहकर सबसे पहले जेल चले जाते थे। बस यही उनका योगदान था। वे सबसे पहले जेल जाकर हीरो बन जाते थे। जेल में वे ए क्लास की सुविधायें भोगते थे और पार्टी के बाकी लोग अंग्रेजों की लाठियाँ और अत्याचार सहन करते थे। नेहरू के लिए जेल यात्रा पिकनिक से कम नहीं थी। उन्होंने आजादी के लिए कभी कोई कष्ट सहन नहीं किया, लेकिन सौदेबाजी करने और सत्ता की मलाई चाटने में सबसे आगे रहे। लेडी माउंटबेटन से उनका प्रेम प्रसंग था। उनके माध्यम से उनका लार्ड माउंटबेटन पर प्रभाव था, जिसका उन्होंने पूरा फायदा उठाया और सफल सौदेबाजी में सत्ता हथिया ली। नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने के बाद देश का जो बेड़ा गर्क किया, उसे सब जानते हैं। उनकी ‘योग्यता’ का सबसे बड़ा सबूत कश्मीर आज भी हमारा सिरदर्द बना हुआ है। सरदार पटेल ने 542 रियासतों को एक कर डाला, लेकिन केवल एक मामला (कश्मीर का) नेहरू ने जबर्दस्ती अपने हाथ में रखा, और उनकी नालायकी देखिए कि वही लटक गया और आज तक लटका हुआ है। अगर कश्मीर का मामला भी सरदार पटेल के हाथ में होता, तो कब का हल हो गया होता। नेहरू ने अपनी मूर्खतापूर्ण नीतियों से देश का जो अपमान कराया और विकास के नाम पर विनाश का बीज बोया, मूर्खात्मा गाँधी ने पोंगा पंडित नेहरू जैसे अयोग्य व्यक्ति को बलपूर्वक प्रधानमंत्री बनाकर देश की जो कुसेवा की, उसका फल हम आज तक भोग रहे हैं और कौन जानता है कब तक भोगेंगे
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