Sunday, 15 December 2024

“तत् त्वं असि" ---

 “तत् त्वं असि" ---

(प्रश्न) क्या मैं वह जानता हूँ जिसे जानने से जो अज्ञात है, वह ज्ञात हो जाता है?
(उत्तर) नहीं। लेकिन उसे जानना मेरा धर्म है।
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एक दिन ध्यान में गुरु महाराज आए। उनका चेहरा भुवन-भास्कर की तरह देदीप्यमान था, आँखें बड़ी तेजस्वी, और देह घनीभूत प्रकाशमय थी। कुछ क्षणों तक उन्होने बड़े ध्यान से मेरी ओर देखा और दो वाक्यों में एक उपदेश देकर अपनी घनीभूत प्रकाशमय देह को परमात्मा के प्रकाश में विलीन कर दिया।
उनका आदेश था कि -- "जो मैं हूँ, तुम भी वही बनो", "सिर्फ मेरे शब्दों को ही समझने से कोई लाभ नहीं होगा।"
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एक बात और बिना कहे ही वे मुझे समझा गए कि मेरे बाहरी आचरण का, और मेरे शब्दों का उनके लिए कोई महत्व नहीं है। महत्व सिर्फ मेरे विचारों, भावों और संकल्पों की दृढ़ता का है। बाहरी आचरण तो उन्हीं का अनुसरण करेगा।
उनके कहने का एक और तात्पर्य था कि शास्त्रों के वचनों, यानि उनके शब्दों के अर्थ मात्र को समझने से कोई लाभ नहीं है। उनकी अभिव्यक्ति, उनका प्राकट्य निज जीवन में करना होगा।
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चेतना या अस्तित्व ही सब कुछ है। इसलिए मैं वही चेतना हूँ = "सोहं"॥
खोज कौन, और किसकी कर रहा है? -- हमारे माध्यम से परमात्मा स्वयं अपनी ही खोज कर रहे हैं। हम वही हैं, जिसकी खोज हम स्वयं कर रहे हैं। साधक और साध्य एक हैं।
मधुमक्खियाँ अनेक पुष्पों से पराग एकत्र कर के मधु बनाती हैं। क्या मधु का एक कण यह बता सकता है कि वह किस पुष्प से संग्रहित है?
उसी तरह विशुद्ध चेतना से एकाकार होते ही हमारी व्यक्तिगत पहिचान समाप्त हो जाती है। महासागर में मिलने के पश्चात जल की एक बूंद अपनी पहिचान खो देती है। परमात्मा की चेतना से ही यह सारा चराचर जगत बना है। उस चेतना में समर्पित होते ही हमारी भी पृथकता समाप्त हो जाती है, और हम परमात्मा के साथ एक हो जाते हैं।
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महादेव महादेव महादेव !! शिवोहं शिवोहं अहंब्रह्मास्मि !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०२२

अपने दम पर तो मैं एक साँस तक नहीं ले सकता, साधना या भक्ति तो बहुत दूर की बात है ---

अपने दम पर तो मैं एक साँस तक नहीं ले सकता, साधना या भक्ति तो बहुत दूर की बात है। यदि मैं यह दावा करता हूँ कि मैं कोई साधना या भक्ति कर रहा हूँ, तो मैं झूठ बोल रहा हूँ। भगवान अपनी भक्ति स्वयं करते हैं, मैं समर्पित होकर अधिक से अधिक एक निमित्त या साक्षी मात्र ही बन सकता हूँ, उससे अधिक कुछ भी नहीं। निराकार और साकार की बातें एक बुद्धि-विलास मात्र है, इस सृष्टि मैं कुछ भी निराकार नहीं है। सम्पूर्ण अस्तित्व स्वयं परमात्मा हैं। वे ही एकमात्र सत्य हैं। भगवान अपना बोध स्वयं कराते हैं, उन्हें जानना या पाना किसी के भी वश की बात नहीं है। . मेरी हर साँस मुझे भगवान से जोड़ती है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड और भगवान स्वयं ये साँसें ले रहे हैं, मैं नहीं। मैं एक साक्षी/निमित्त मात्र हूँ। मनुष्य जीवन की इस उच्चतम उपलब्धि को अनायास ही मैंने प्राप्त किया है। यही मेरा स्वधर्म है, और यही सत्य-सनातन-धर्म है। मेरे चरित्र, आचरण और विचारों में पूर्ण पवित्रता हो। मेरा हर कार्य ईश्वर-प्रदत्त विवेक के प्रकाश में हो। समष्टि में मंगल ही मंगल और शुभ ही शुभ हो। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !! १६ दिसंबर २०२३

कई बातें हैं जो हृदय से बाहर नहीं आतीं ---

 कई बातें हैं जो हृदय से बाहर नहीं आतीं। वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण यहाँ बिराजमान हैं। उनके समक्ष मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। उनके बारे में सोचते सोचते उनसे अन्य अब कुछ भी नहीं रहा है, मैं भी नहीं॥

अब से इस राष्ट्र में जो भी होगा, वह मंगलमय ही होगा। असत्य का अंधकार सदा के लिए दूर होगा, और सत्य की विजय होगी। ॐ ॐ ॐ !!
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"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥"
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"वसुदॆव सुतं दॆवं कंस चाणूर मर्दनम्।
दॆवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दॆ जगद्गुरुम्॥"
"वंशीविभूषित करान्नवनीरदाभात् , पीताम्बरादरूण बिम्बफला धरोष्ठात्।
पूर्णेंदु सुन्दर मुखादरविंदनेत्रात् , कृष्णात्परं किमपि तत्वमहं न जाने॥"
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"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥"
"नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः॥"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्॥"
"कस्तूरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु: करे कंकणम्।
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावली,
गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते, गोपाल चूड़ामणि:॥"
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !! १६ दिसंबर २०२३