“तत् त्वं असि" ---
Sunday, 15 December 2024
“तत् त्वं असि" ---
अपने दम पर तो मैं एक साँस तक नहीं ले सकता, साधना या भक्ति तो बहुत दूर की बात है ---
अपने दम पर तो मैं एक साँस तक नहीं ले सकता, साधना या भक्ति तो बहुत दूर की बात है। यदि मैं यह दावा करता हूँ कि मैं कोई साधना या भक्ति कर रहा हूँ, तो मैं झूठ बोल रहा हूँ। भगवान अपनी भक्ति स्वयं करते हैं, मैं समर्पित होकर अधिक से अधिक एक निमित्त या साक्षी मात्र ही बन सकता हूँ, उससे अधिक कुछ भी नहीं। निराकार और साकार की बातें एक बुद्धि-विलास मात्र है, इस सृष्टि मैं कुछ भी निराकार नहीं है। सम्पूर्ण अस्तित्व स्वयं परमात्मा हैं। वे ही एकमात्र सत्य हैं। भगवान अपना बोध स्वयं कराते हैं, उन्हें जानना या पाना किसी के भी वश की बात नहीं है। . मेरी हर साँस मुझे भगवान से जोड़ती है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड और भगवान स्वयं ये साँसें ले रहे हैं, मैं नहीं। मैं एक साक्षी/निमित्त मात्र हूँ। मनुष्य जीवन की इस उच्चतम उपलब्धि को अनायास ही मैंने प्राप्त किया है। यही मेरा स्वधर्म है, और यही सत्य-सनातन-धर्म है। मेरे चरित्र, आचरण और विचारों में पूर्ण पवित्रता हो। मेरा हर कार्य ईश्वर-प्रदत्त विवेक के प्रकाश में हो। समष्टि में मंगल ही मंगल और शुभ ही शुभ हो। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !! १६ दिसंबर २०२३
कई बातें हैं जो हृदय से बाहर नहीं आतीं ---
कई बातें हैं जो हृदय से बाहर नहीं आतीं। वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण यहाँ बिराजमान हैं। उनके समक्ष मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। उनके बारे में सोचते सोचते उनसे अन्य अब कुछ भी नहीं रहा है, मैं भी नहीं॥