Thursday, 21 October 2021

श्रीमद्भगवद्गीता का सार जैसा मुझे भगवान की कृपा से समझ में आया है ---

 श्रीमद्भगवद्गीता का सार जैसा मुझे भगवान की कृपा से समझ में आया है ---

.
जिसमें जैसे गुण होते हैं, वैसी ही गीता उसे समझ में आती है। जिसमें सतोगुण प्रधान है, उसे ज्ञान और भक्ति की बातें ही समझ में आयेंगी। जिसमें रजोगुण प्रधान है, उसे कर्मयोग ही समझ में आयेगा। जिसमें तमोगुण प्रधान है, उसे कुछ भी समझ में नहीं आयेगा। गीता, सनातन-धर्म के सभी ग्रन्थों का सार है| इसे भगवान श्रीकृष्ण की परम कृपा से ही समझ सकते हैं| अब इसमें भी यदि हम सार की बात करें, तो मुझे अपनी अल्प और सीमित बुद्धि से चार ही बातें समझ में आई हैं| ये चारों बिन्दु सनातन धर्म के स्तम्भ हैं, जिन्हें मैं अति संक्षेप में लिखने का दुःसाहस कर रहा हूँ| भूल-चूक क्षमा करें|
.
(१) आत्मा शाश्वत है, इसे कोई नष्ट नहीं कर सकता| हम यह भौतिक देह नहीं, सनातन, शाश्वत, अमर आत्मा हैं, और परमात्मा के अंश हैं|
.
(२) हर आत्मा, कर्म करने को स्वतंत्र है| हमारे विचार और भाव ही हमारे कर्म हैं| हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, अतः हम अपने कर्मों का फल भोगने को भी बाध्य हैं| कर्ताभाव से मुक्त होकर परमात्मा की चेतना में किये हुये निष्काम कर्म ही हमें बंधन में नहीं बाँधते|
.
(३) कर्मफल भोगने के लिए पुनर्जन्म भी लेना पड़ता है| विगत कर्मों के अनुसार ही हमें दुःख-सुख भोगने पड़ते हैं|
.
(४) सब तरह के दुःखों और कष्टों से मुक्ति का एकमात्र उपाय 'भक्ति' और 'समर्पण' है| भगवान हमें अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति, शरणागति, व समर्पण का उपदेश देते हैं| सारे योग, सारी साधनायें व ज्ञान की बातें ... भक्ति में ही समाहित हैं| समत्व में स्थिति को ही भगवान ने ज्ञान बताया है| अंत समय में जैसी हमारी मति होती है, वैसी ही गति होती है| अपने हृदय का पूर्ण प्रेम हम परमात्मा को दें|
.
एक ही वाक्य में कहें तो .... परमप्रेम, शरणागति द्वारा समर्पण, व समभाव ही गीता का सार है| गीता के ज्ञान को हम सीमाओं में नहीं बाँध सकते| हमारी बुद्धि ही अत्यल्प और अति सीमित है|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ अक्टूबर २०२०