सनातन-धर्म के अतिरिक्त, अन्य मतों में आध्यात्म नहीं है। पहले देवों और असुरों में आपस में युद्ध होते थे। कभी देवता प्रबल हो जाते थे, कभी असुर। यह सृष्टि अंधकार और प्रकाश से बनी है। सृष्टि को चलाने के लिए दोनों आवश्यक हैं। कभी अंधकार प्रबल हो जाता है, कभी प्रकाश।
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आप अपने विवेक से निर्णय कीजिये कि सत्य और असत्य क्या हैं। सत्य को जानने की प्रबल शाश्वत जिज्ञासा ही धर्म है। भगवान ही एकमात्र सत्य हैं।
ऐसे ही धर्म और अधर्म क्या है? इस पर भी विचार कीजिये। जो हमें भगवान का साक्षात्कार करवा दे, वही धर्म है। जो हमें भगवान से दूर ले जाये वह अधर्म है।
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जो अधर्म हैं, वे एक आसुरी शक्ति के द्वारा चलाये जा रहे हैं, भगवान के द्वारा नहीं। एक असुर है जो असत्य का संचालन कर रहा है। उस असुर का होना भी सृष्टि संचालन के लिए आवश्यक है, लेकिन उसकी प्रबलता न्यूनतम हो।
इस प्रश्न पर विचार कीजिये कि मैं कौन हूँ? उस वास्तविक "मैं" की खोज ही भगवान की खोज है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०२३