Saturday, 7 December 2024

असुरों का शिकार होने से बचें ---

 असुरों का शिकार होने से बचें ---

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सूक्ष्म-जगत में एक आसुरी सत्ता है जो संसार में अपने शिकार ढूंढ़ती रहती है। इसके शिकार सबसे पहिले अहंकारी और आत्म-मुग्ध व्यक्ति होते हैं। ऐसे लोग बहुत शीघ्र स्वयं असुर बन जाते हैं और दूसरों को भी बहुत अधिक हानि पहुंचाते हैं। ऐसे लोगों का मैं नाम नहीं लूँगा क्योंकि इससे मुझे बहुत अधिक हानि हो सकती है, कोई लाभ नहीं। ऐसे लोगों का नाम लेना भी उनको निमंत्रित करना है।
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आत्म मुग्धता (नार्सिसिस्ट पर्सनैलिटी डिसऑर्डर) -- एक मनोरोग और बहुत घातक मानसिक भटकाव है जो हमारी आध्यात्मिक साधना को तुरंत उसी समय बिल्कुल समाप्त कर देता है। इतना ही नहीं यह हमारे से मिलने-जुलने वाले लोगों को एक बार तो प्रभावित करता है, लेकिन बाद में उन को भी बहुत अधिक हानि पहुंचाता है।
आत्म-मुग्ध व्यक्ति की पहिचान यह है कि वह प्रशंसा का बहुत अधिक भूखा होता है, और स्वयं की बहुत अधिक प्रशंसा करता है। उसके लिए दूसरे सब व्यक्ति महत्वहीन होते हैं, और वह स्वयं सब से अधिक महत्वपूर्ण होता है।
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हमारे मन की पाँच अवस्थाएँ होती हैं -- क्षिप्त (विचलित), मूढ़ (सुस्त), विक्षिप्त (आंशिक रूप से केंद्रित), एकाग्र (एक-केंद्रित), और निरुद्ध (पूरी तरह से नियंत्रित)।
जो क्षिप्त, मूढ़ और विक्षिप्त होते हैं, उनसे आसुरी सत्ता बहुत प्रसन्न रहती है, दैवीय सत्ता नहीं। ऐसे लोगों के लिए आध्यात्मिक साधनाएं वर्जित हैं। ऐसे लोग ध्यान साधना न करें। अन्यथा वे असुरों का शिकार हो जाएँगे।
आध्यात्मिक साधना उन्हीं के लिए होती है जो एकाग्र और निरुद्ध होते हैं। इसी लिए योग सूत्रों में यम-नियमों पर इतना ज़ोर दिया गया है।
विस्तारभय से मैं इस विषय पर अधिक नहीं लिखना चाहता। समझदार को एक संकेत ही बहुत है। इस विषय पर अनेक दार्शनिकों ने बहुत कुछ लिखा है। ढूँढने से ऐसा साहित्य भी खूब मिल जाएगा। अन्यथा किसी ब्रहमनिष्ठ संत-महात्मा से मार्ग-दर्शन प्राप्त करें।
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ दिसंबर २०२३

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