Friday, 6 October 2017

सृष्टिकर्ता परमात्मा कहीं दूर नहीं है .......

सृष्टिकर्ता परमात्मा कहीं दूर नहीं है .......

ये पंक्तियाँ मैं मेरे निज अनुभव से लिख रहा हूँ | संसार को मैंने खूब अच्छी तरह देखा है | बाहरी जीवन में विषमताएँ, और अन्याय ही दिखाई देता है, जिसका कोई समाधान समझ में ही नहीं आता | यह सृष्टि हमारी नहीं, परमात्मा की है | परमात्मा अन्यायी और क्रूर नहीं हो सकता | सृष्टि अपने नियमों के अनुसार चल रही है, उन नियमों को न समझना या न जानना हमारी कमी है | वास्तव में परमात्मा की सृष्टि में कुछ भी गलत नहीं है, सब अन्धकार और प्रकाश का खेल है | इस खेल में अपना भाग ठीक से निभाएँ | 

हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण अवश्य है | जहाँ बुद्धि कार्य नहीं करती वहाँ शास्त्र प्रमाण हैं | उपनिषदों में, गीता में और रामचरितमानस जैसे ग्रंथों में सब कुछ बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है| ये ग्रन्थ भी समझ में नहीं आते तो पूर्ण श्रद्धा से भगवान से प्रार्थना करें, जिसका उत्तर अवश्य मिलता है |

भगवान ने विवेक दिया है उसका उपयोग करें | जीवन में जो भी सर्वश्रेष्ठ हम कर सकते हैं वह करना चाहिए और उसे परमात्मा को समर्पित कर दें | जब माया का आवरण हटेगा तो सृष्टिकर्ता परमात्मा को हम अपने साथ ही पायेंगे | वह कहीं दूर नहीं है |

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

समस्याएँ मन में हैं या परिस्थितियों में ......

समस्याएँ मन में हैं या परिस्थितियों में ......

इस विषय पर बड़े बड़े मनीषियों और मनोवैज्ञानिकों ने बहुत अधिक लेख लिखे हैं पर उनका कोई प्रभाव सामान्य व्यक्ति पर आज तक नहीं पड़ा है|

जब भी कोई समस्या आती है तब हम सब परिस्थितियों को ही दोष देते हैं| हजारों में से कोई एक व्यक्ति ऐसा होता है जो परिस्थितियों से ऊपर उठ पाता है| बाकी सब तो परिस्थितियों के ही शिकार हो जाते हैं|

आदर्श तो यह है कि हम परमात्मा में आस्था रखते हुए हर परिस्थिति का सामना करें| जो होना है सो तो होगा ही, पर भगवान ने जो साहस और मनोबल दिया है, उसका प्रयोग तो कर के देखें|
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दुखी व्यक्ति को सब ठगने का प्रयास करते हैं| धर्म के नाम पर भी सदा से ही बहुत अधिक ठगी होती आई है| यह प्राचीन काल में भी थी और अब भी है| भगवान ने हमें विवेक दिया है, उस विवेक का उपयोग करें| जहाँ भी समझ में आये कि सामने वाला व्यक्ति झूठा है तो उसे विष की तरह त्याग दें|

अपनी पीड़ा सिर्फ भगवान को अकेले में कहें, दुनियाँ के आगे रोने से कोई लाभ नहीं है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

पंचप्राण, दशमहाविद्या और भगवती माँ छिन्नमस्ता ......

पंचप्राण, दशमहाविद्या और भगवती माँ छिन्नमस्ता ......
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बहुत वर्षों पहिले की बात है, अंग्रेजी में "छिन्नमस्ता" नामक एक पुस्तक संयोग से पढने को मिली जिसे भारत में मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन ने छापा था| उस पुस्तक की लेखिका एक अमेरिकी विदुषी महिला थी जिसने कई वर्षों तक भगवती छिन्नमस्ता पर खूब शोध कार्य कर के वह पुस्तक लिखी थी| वह पुस्तक उस समय मुझे बहुत अच्छी लगी और मुझ में भी माँ छिन्नमस्ता की भक्ति और लगन जग उठी| मैनें ढूंढ ढूंढ कर पूरे भारत में माँ छिन्नमस्ता पर जितना भी साहित्य मिल सकता था उस का संकलन और अध्ययन किया| पर उस से संतुष्टि नहीं मिली और भगवती छिन्नमस्ता के किसी सिद्ध साधक की खोज आरम्भ की, पर कहीं भी कोई सिद्ध साधक नहीं मिला| एक सिद्ध तंत्र साधक मिले, उन्होंने बड़ी ईमानदारी से स्पष्ट बता दिया कि उनका माँ छिन्नमस्ता की महाविद्या में कोई अधिकार नहीं है| फिर मैं माँ छिन्नमस्ता का विग्रह सामने रखकर प्रातःकाल उठते ही कमलगट्टे की माला से गुरुमंत्र के साथ साथ भगवती छिन्नमस्ता के मन्त्र का भी जाप करने लगा| यह क्रम लम्बे समय तक चला|
फिर सब तरह के नाम-रूपों से परे वेदान्त की साधना में रूचि जागृत होने पर सब नाम-रूप छूट गए|
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मुझे भगवती छिन्नमस्ता का विग्रह बहुत ही अच्छा लगता है| उन्होंने अपने पैरों के नीचे कामदेव और उनकी पत्नी रति को पटक रखा है और उन पर खड़ी होकर नृत्य कर रही हैं| यह एक स्पष्ट सन्देश है कि जो काम वासनाओं पर विजय प्राप्त न कर सके वह मेरी साधना का अधिकारी नहीं है| फिर अपना ही मस्तक काट कर अपने ही धड़ से निकलती हुई रक्त की मुख्य धारा का पान कर रही हैं| यह अहंकार का नाश, पूर्ण समर्पण, वैराग्य और योगमार्ग की परम सिद्धि का प्रतीक है| रक्त की दो धाराओं का पान उनके साथ खड़ी उनकी दो सखियाँ कर रही हैं| वे भी अपने आप में महाशक्तियाँ हैं| रक्त की तीन धाराएँ इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना की प्रतीक हैं| भगवती के इस रूप की विधिवत् साधना से परम वैराग्य और योग की उच्चतम सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं|
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पंचप्राणों के पांच सौम्य और पाँच उग्र रूप दशमहाविद्याएँ हैं|
भगवान गणेश को हम गणेश, गणपति और गणनायक आदि कहते हैं| पर वे गण कौन से हैं जिन के वे नायक हैं? पंचप्राण (प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान) ही गणेश जी के गण है|
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अभी इतना ही बहुत अधिक है| आप सब को शुभ कामनाएँ| जिन्हें वैराग्य और योगमार्ग की परम सिद्धियाँ चाहियें उन्हें भगवती माँ छिन्नमस्ता की उपासना करनी चाहिए|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


३ अक्तूबर २०१७