'कर्मन की गति न्यारी' ---
-------------------
मनुष्य देह में ग्यारह छिद्र हैं जिनसे जीवात्मा का मृत्यु के समय शरीर से निकास होता है --- दो आँख, दो कान, दो नाक, एक पायु, एक उपस्थ, एक नाभि, एक मुख और एक मूर्धा|
यह मूर्धा वाला मार्ग अति सूक्ष्म है और पुण्यात्माओं के लिए ही है| इसमें जीवात्मा ब्रह्मरंध्र से निकलती है और उसकी सदगति होती है|
नर्कगामी जीव पायु यानि गुदामार्ग से बाहर निकलता है| उसकी बड़ी दुर्गति होती है|
कामुक व्यक्ति मुत्रेंद्रियों से निकलता है और निकृष्ट योनियों में जाता है|
नाभि से निकलने वाला प्रेत बनता है|
भोजन लोलूप व्यक्ति मुँह से निकलता है, गंध प्रेमी नाक से, संगीत प्रेमी कान से,
और तपस्वी व्यक्ति आँख से निकलता है|
अंत समय में जहाँ जिसकी चेतना है वह उसी मार्ग से निकलता है और सब की अपनी अपनी गतियाँ हैं|
जो ब्राह्मण संकल्प कर के और दक्षिणा लेकर भी यज्ञादि अनुष्ठान विधिपूर्वक नहीं करते/कराते वे ब्रह्मराक्षस बनते हैं|
मद्य, मांस और परस्त्री का भोग करने वाला ब्राह्मण ब्रह्मपिशाच बनता है|
इस तरह कर्मों के अनुसार अनेक गतियाँ हैं| कर्मों का फल सभी को मिलता है, कोई इससे बच नहीं सकता|
.
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अंतकाल में भ्रूमध्य में ओंकार का स्मरण करो, निज चेतना को कूटस्थ में रखो आदि| अनेक महात्मा कहते हैं मूर्धा में ओंकार का निरंतर जप करो| योगी लोग कहते हैं कि आज्ञाचक्र के प्रति सजग रहो और ब्रह्मरंध्र में ओंकार का जप करो| इन सब के पीछे कारण हैं|
.
हमारा हर विचार एक कर्म है जो हमारे खाते में जुड़ जाता है| हम जो कुछ भी हैं, वह अपने प्रारब्ध कर्मों से हैं, और भविष्य में जो कुछ भी बनेंगे, वह अपने संचित कर्मों से बनेंगे| मृत्यु के समय मनुष्य के सारे कर्म उसके सामने आ जाते हैं, और उसके अगले जन्म की भूमिका बन जाती है| अंत समय में जैसी मति होती है वैसी ही गति होती है| कर्मों की गति बड़ी विचित्र होती है|
.
सबसे बुद्धिमानी का कार्य है परमात्मा से परम प्रेम, निरंतर स्मरण का अभ्यास और ध्यान|
सूरदास जी का एक प्रसिद्ध भजन है ---
"ऊधौ, कर्मन की गति न्यारी।
सब नदियाँ जल भरि-भरि रहियाँ सागर केहि बिध खारी॥
उज्ज्वल पंख दिये बगुला को कोयल केहि गुन कारी॥
सुन्दर नयन मृगा को दीन्हे बन-बन फिरत उजारी॥
मूरख-मूरख राजे कीन्हे पंडित फिरत भिखारी॥
सूर श्याम मिलने की आसा छिन-छिन बीतत भारी॥"
.
सभी को शुभ कामनाएँ | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ दिसंबर २०२०