परमात्मा का निरंतर चिंतन क्यों आवश्यक है? परमात्मा से दूर हमें कौन ले जाता है? ---
Wednesday, 31 August 2022
परमात्मा का निरंतर चिंतन क्यों आवश्यक है? परमात्मा से दूर हमें कौन ले जाता है? ---
भाद्रपद अमावस्या के दिन मेरा एक विशेष निजी और पारिवारिक पर्व होता है ---
भाद्रपद अमावस्या के दिन मेरा एक विशेष निजी और पारिवारिक पर्व होता है। इस बार भाद्रपद अमावस्या २७ अगस्त को पड़ रही है। लोकयात्रा के लिए उस दिन इस शरीर महाराज का जन्म हुआ था। आप वर्ष मत पूछिए, उसे रहस्य ही रहने दो।
इसी जन्म में मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ---
इसी जन्म में मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, यह संभव है --- पूर्णभक्ति पूर्वक आज्ञाचक्र पर भगवान विष्णु के निरंतर ध्यान से। कालावधि -- दिन में २४ घंटे, सप्ताह में सातों दिन। जब जागो तब सबेरा। जिस समय भी प्रेरणा मिले, उसी समय से आरंभ कर दीजिये। आवश्यकता है सिर्फ श्रद्धा, विश्वास, भक्ति, और दृढ़ संकल्प की। अभ्यास/साधना तो करनी ही पड़ेगी। बहाने कितने भी बनाओ, "किन्तु-परंतु" कितने भी करो, सब समय की बर्बादी ही होगी। संसार में तो रहना ही पड़ेगा, बाहर कहीं जा ही नहीं सकते, लेकिन अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) पूरी तरह भगवान को समर्पित हो। सोते-जागते हर समय भगवान की चेतना बनी रहे। कोरी बातों से काम नहीं चलेगा। भगवान से बड़ा कोई अन्य मार्गदर्शक या गुरु भी नहीं है। इसी जीवन-लीला की समाप्ति से पूर्व ही भगवान की कृपा से आप स्वयं को उनकी गोद में पायेंगे, और लगेगा कि भवसागर तो कब का ही पार हो गया, कुछ पता ही नहीं चला। भगवान विष्णु ही यह सारा विश्व बन गए हैं। उन की भक्ति के समक्ष उनकी माया का प्रभाव नहीं रहता।
परमात्मा से परमप्रेम मेरा स्वभाव है ---
मैं सदा परमात्मा से परमप्रेम की बातें करता हूँ, क्योंकि यह मेरा स्वभाव है। मैं इसे छोड़ नहीं सकता, चाहे मुझे यह शरीर ही छोड़ना पड़े। मैं ऐसे किसी व्यक्ति का मुँह भी नहीं देखना चाहता, जिसके हृदय में परमात्मा के लिए प्रेम नहीं है। किसी को मेरा यह स्वभाव पसंद नहीं है तो वे मुझे छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं, मुझे उनकी कोई आवश्यकता नहीं है।
यह सृष्टि परमात्मा की है, मेरी नहीं ---
यह सृष्टि परमात्मा की है, मेरी नहीं। उनकी प्रकृति अपने नियमों के अनुसार इस सृष्टि को चला रही है। नियमों को न जानना मेरी अज्ञानता है। इस त्रिगुणात्मक सृष्टि को सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण ही संचालित कर रहे हैं। अन्य तथ्यों का मुझे ज्ञान नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार त्रिगुणातीत होकर ही इस के रहस्यों को हम समझ सकते हैं, अन्यथा नहीं। मुझे जो कार्य भगवान ने सौंपा है, वह है ध्यान साधना द्वारा उनके प्रकाश की निरंतर वृद्धि करना। अपने कार्य के लिए मैं सिर्फ परमात्मा और अपनी गुरु-परंपरा के प्रति ही जिम्मेदार हूँ। अन्य किसी के प्रति नहीं। यथासंभव अपनी क्षमतानुसार मैं निमित्त मात्र होकर परमात्मा के प्रति समर्पित भाव से अपना कार्य करूँगा। बाकी जो करना है वह परमात्मा ही करेंगे। मैं उनको नमन करता हूँ ---
भक्ति
भक्ति --- हृदय के गहनतम प्रेम की एक स्वाभाविक गहन अनुभूति और अभिव्यक्ति है। इस प्रेम को हम सम्पूर्ण सृष्टि की अनंतता में जब विस्तृत कर देते हैं, तब वही लौट कर आनंद के रूप में बापस आता है। जो कुछ भी सृष्ट हुआ है वह साकार है। सारा अस्तित्व ही परमात्मा है।
कूटस्थ में अपने आत्म-सूर्य का निरंतर ध्यान करने की साधना करें ---
कूटस्थ में अपने आत्म-सूर्य का निरंतर ध्यान करने की साधना करें ---
वृद्धावस्था -- जीवन की एक कटु वास्तविकता ---
वृद्धावस्था --- जीवन की एक कटु वास्तविकता ---
निर्विकल्प समाधि ---
निर्विकल्प समाधि ---
"भव सागर" एक मानसिक सृष्टि है, भौतिक नहीं ----
"भव सागर" एक मानसिक सृष्टि है, भौतिक नहीं
मेरा कोई कर्तव्य नहीं है, मैं जीवनमुक्त और कृतकृत्य हूँ ---
मेरा कोई कर्तव्य नहीं है, मैं जीवनमुक्त और कृतकृत्य हूँ ---
हमारे लिए हमारा धर्म और राष्ट्र प्रथम है, वासनाओं की पूर्ति नहीं ---
हमारे लिए हमारा धर्म और राष्ट्र प्रथम है, वासनाओं की पूर्ति नहीं ---
पिछले कई वर्षों से मुझसे कोई पूजा-पाठ नहीं होता ---
पिछले कई वर्षों से मुझसे कोई पूजा-पाठ नहीं होता ---