Wednesday, 31 August 2022

परमात्मा का निरंतर चिंतन क्यों आवश्यक है? परमात्मा से दूर हमें कौन ले जाता है? ---

 परमात्मा का निरंतर चिंतन क्यों आवश्यक है? परमात्मा से दूर हमें कौन ले जाता है? ---

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मैं यह बात अपने पूरे अनुभव से कह रहा हूँ कि सिर्फ परमात्मा का चिंतन ही सार्थक है। अन्य सब विचार -- मरुभूमि में बिखरी हुई जल की बूंदों की तरह निरर्थक हैं, अंततः जिनकी कोई सार्थकता नहीं हो सकती।
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हमारे अवचेतन मन में छिपे सूक्ष्म "लोभ" और "अहंकार" -- हमें परमात्मा से दूर ले जाते हैं। मन में छिपे लोभ और अहंकार हमारे समक्ष आसुरी जगत के द्वार खोल देते हैं। इस आसुरी जगत को हर कोई नहीं समझ सकता। हमारी साधना में असुर ही नहीं, देवता भी बाधक हैं। जब हम निरंतर परमात्मा का चिंतन करते हैं, तब कोई भी या कुछ भी हमारा अहित नहीं कर सकता।
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परमात्मा/ईश्वर/भगवान/सच्चिदानंद आदि शब्दों का संस्कृत से अतिरिक्त अन्य किसी भी भाषा में कोई अनुवाद नहीं हो सकता। इनके लिए जिन भी विदेशी शब्दों का प्रयोग हुआ है, वे सब भ्रामक और आसुरी सत्ताएँ हैं।
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सब तरह की कामनाओं, राग-द्वेष, लोभ व अहंकार से मुक्ति ही वीतरागता है, जो सन्मार्ग में प्रथम उपलब्धि है। वीतराग हुए बिना आगे का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता।
सिर्फ सनातन धर्म ही हमें परमात्मा की प्राप्ति का उपदेश और साधन बताता है। अन्य सब मतों में परमात्मा सिर्फ एक माध्यम/साधन है, जिनका लक्ष्य/साध्य संसार की वासनाएं हैं।
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परमात्मा की उपस्थिति का आभास निरंतर चैतन्य में पूर्ण प्रेम के साथ बना रहे। आगे के द्वार स्वतः ही खुलते जाएंगे।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ अगस्त २०२२

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