Wednesday, 31 August 2022

इसी जन्म में मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ---

 इसी जन्म में मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, यह संभव है --- पूर्णभक्ति पूर्वक आज्ञाचक्र पर भगवान विष्णु के निरंतर ध्यान से। कालावधि -- दिन में २४ घंटे, सप्ताह में सातों दिन। जब जागो तब सबेरा। जिस समय भी प्रेरणा मिले, उसी समय से आरंभ कर दीजिये। आवश्यकता है सिर्फ श्रद्धा, विश्वास, भक्ति, और दृढ़ संकल्प की। अभ्यास/साधना तो करनी ही पड़ेगी। बहाने कितने भी बनाओ, "किन्तु-परंतु" कितने भी करो, सब समय की बर्बादी ही होगी। संसार में तो रहना ही पड़ेगा, बाहर कहीं जा ही नहीं सकते, लेकिन अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) पूरी तरह भगवान को समर्पित हो। सोते-जागते हर समय भगवान की चेतना बनी रहे। कोरी बातों से काम नहीं चलेगा। भगवान से बड़ा कोई अन्य मार्गदर्शक या गुरु भी नहीं है। इसी जीवन-लीला की समाप्ति से पूर्व ही भगवान की कृपा से आप स्वयं को उनकी गोद में पायेंगे, और लगेगा कि भवसागर तो कब का ही पार हो गया, कुछ पता ही नहीं चला। भगवान विष्णु ही यह सारा विश्व बन गए हैं। उन की भक्ति के समक्ष उनकी माया का प्रभाव नहीं रहता।

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जो कुछ भी मैं एक ईश्वरीय प्रेरणावश लिख रहा हूँ, उसे लिखने का मुझे पूरा अधिकार है, अन्यथा कभी नहीं लिख पाता। आज प्रातः लगभग सवा तीन बजे मुझे किसी अज्ञात शक्ति ने नींद से जगा दिया और बड़ी कड़क आवाज में कहा कि -- उठो, इस समय सो क्यों रहे हो? भजन का समय हो गया है। उठकर, लघुशंकादि से निवृत होकर बिस्तर पर ही एक कंबल बिछाकर मैं ध्यानस्थ हो गया। ध्यान के समय सारी चेतना सुषुम्ना मार्ग से सहस्त्रार में आ जाती है। और भी गहराई आने पर ब्रह्मरंध्र से बाहर सूक्ष्म जगत की अनंतता में व्याप्त होकर ध्यान होने लगता है। फिर और भी गहराई आने पर उस अनंतता से भी ऊपर ज्योतिर्मय-ब्रह्म का ध्यान होने लगता है। ज्योतिर्मय ब्रह्म के ध्यान में लगता है जैसे प्रणव की ध्वनि के साथ एक होकर अनंत ब्रह्मांड में तैर रहे हों। हर ओर प्रकाश ही प्रकाश, कहीं कोई अंधकार नहीं। भौतिक शरीर में प्राण रहता है जो उसे जीवित रखता है। जब तक प्रारब्ध बाकी है, कोई मरेगा नहीं। ध्यान के बाद चेतना शरीर में बापस लौट आती है। तब भी चेतना में भगवान की स्मृति निरंतर बनी रहे। आप निमित्त मात्र हैं, कर्ता नहीं।
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और कुछ लिखने की सामर्थ्य नहीं है। जो कुछ भी पूछना है वह प्रत्यक्ष भगवान से ही पूछो, मुझसे नहीं। मैं किसी का गुरु नहीं हूँ। मेरे बात अच्छी लगे तो ठीक है, अन्यथा इसे गल्प समझकर भूल जाना। आप सब निजात्मगण को नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२३ अगस्त २०२२

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