Wednesday, 31 August 2022

कूटस्थ में अपने आत्म-सूर्य का निरंतर ध्यान करने की साधना करें ---

 कूटस्थ में अपने आत्म-सूर्य का निरंतर ध्यान करने की साधना करें ---

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बंद आँखों के अंधकार के पीछे -- स्वयं परमात्मा हैं। हम यह हाड़-मांस के शरीर नहीं, सम्पूर्ण अनंत अस्तित्व, और परमात्मा के साथ एक हैं। साधना करते करते एक समय आता है जब बंद आँखों के अंधकार के पीछे आज्ञाचक्र में प्रणव से लिपटी हुई एक ब्रह्मज्योति का प्राकट्य होता है। अभ्यास करते करते शनैः शनैः यह ज्योति एक श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र के रूप में अत्यंत विराट रूप ले लेती है। इसका प्रकाश सहस्त्रों सूर्यों के बराबर, लेकिन शीतल और आनंददायक होता है। गीता में भगवान कहते हैं --
"दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः॥"
इसी को कूटस्थ, ज्योतिर्मय ब्रह्म, पुराण पुरुष और पंचमुखी महादेव आदि कहते हैं। हमारा समर्पण इसी में होता है, और इसी में भगवान का साक्षात्कार होता है। इसी का ध्यान करते करते हम स्वयं ज्योतिर्मय बनें। ये ही सविता देव हैं जिनकी भर्ग: ज्योति का हम ध्यान करते हैं। ध्यान में ही प्रणव-नाद का श्रवण करते-करते चित्त का उसी में लय कर दें। अपनी चेतना को पूरी सृष्टि में और उससे भी परे विस्तृत कर यह भाव करें कि परमात्मा की अनंतता ही हमारी वास्तविक देह है।
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भगवान हर निष्ठावान की निरंतर रक्षा करते हैं, यह उनका आश्वासन है --
"क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥"
भगवान श्रीराम ने भी वचन दिया है --
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं ममः॥"
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अतः निर्भय और निश्चिंत होकर साधना करें। रात्री को सोने से पूर्व भगवान का गहनतम ध्यान कर के ही सोयें, वह भी इस तरह जैसे जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर सो रहे हैं। प्रातः उठते ही लघुशंकादि से निवृत होकर, कुछ प्राणायाम आदि कर के भगवान का ध्यान करें। दिवस का आरंभ सदा भगवान के ध्यान से होना चाहिए। दिन में जब भी समय मिले, भगवान का फिर ध्यान करें। भगवान की स्मृति निरंतर बनी रहे। यह शरीर चाहे टूट कर नष्ट हो जाए, पर परमात्मा की स्मृति कभी न छूटे।
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आप सब परमात्मा के साकार रूप और श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति हैं। आप सब निजात्मगण में परमशिव को नमन !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अगस्त २०२२

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