भक्ति --- हृदय के गहनतम प्रेम की एक स्वाभाविक गहन अनुभूति और अभिव्यक्ति है। इस प्रेम को हम सम्पूर्ण सृष्टि की अनंतता में जब विस्तृत कर देते हैं, तब वही लौट कर आनंद के रूप में बापस आता है। जो कुछ भी सृष्ट हुआ है वह साकार है। सारा अस्तित्व ही परमात्मा है।
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आज्ञाचक्र के प्रति निरंतर संवेदनशील रहें। आज्ञाचक्र और सहस्त्रारचक्र के मध्य परासुषुम्ना में जीवात्मा का निवास होता है। वहीं सारी सुप्त सिद्धियाँ और विभूतियाँ हैं। परमात्मा की अनुभूतियाँ सर्वप्रथम वहीं होती हैं। परमात्मा पर ध्यान साधना का आरंभ आज्ञाचक्र से करें। कौन क्या कहता है, इसका महत्व नहीं है। महत्व है परमात्मा की उपस्थिती और हमारे प्रेम व समर्पण का।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ अगस्त २०२२
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