पिछले कई वर्षों से मुझसे कोई पूजा-पाठ नहीं होता ---
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जब से अजपा-जप, ध्यान, और क्रिया साधनाओं का प्रादुर्भाव जीवन में हुआ है, तब से सारे बाहरी पूजा-पाठ छुट गये हैं। हमारे घर में एक बाणलिंग पर नित्य भगवान शिव का अभिषेक होता है वह मेरा पुत्र और मेरी धर्मपत्नी ही करती है। बाणलिंग के साथ साथ गोपनीय रूप से माँ नर्मदा की कृपा से प्राप्त और भी बहुत कुछ है जिसे हर किसी को बताया नहीं जा सकता।
मुझसे कोई पूजा-पाठ अब नहीं हो सकता। गीता और उपनिषदों का स्वाध्याय समय समय पर अवश्य करता रहता हूँ। इससे एक ऊर्जा प्राप्त होती है। वेदों को समझना मेरी बौद्धिक क्षमता से परे है। दर्शन शास्त्रों और ब्रह्मसूत्रों को समझने में मेरी रुचि नहीं है। ध्यान में आँखें बंद करते ही सामने कूटस्थ में भगवान वासुदेव स्वयं पद्मासन में शांभवी-मुद्रा में ध्यानस्थ बैठे हुए दिखाई देते हैं। सारी साधना वे ही करते हैं। मैं तो एक निमित्त मात्र हूँ। उन्हें निहारते-निहारते ही यह सारा जीवन व्यतीत हो जाएगा। आगे की समस्या मेरी नहीं भगवान की है। जो करना है, वह वे ही करेंगे, मैं नहीं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ अगस्त २०२२
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