Wednesday 23 February 2022

क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं? अब तो जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो!

 क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं? अब तो जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो!

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जिस जीवन को मैंने जीया है, उसे दुबारा तो जीना असंभव है| जो समय चला गया, वह लौट कर बापस नहीं आ सकता| उस जीवन में पता नहीं कितनी कमियाँ व भूलें थीं, कितने अवसादों के और कितने उन्मादों के क्षण थे! विपरीततायें ही अधिक, और अनुकूलतायें नगण्य थीं|
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जिस समाज में मेरा जन्म हुआ, वह अपने अस्तित्व को बचाने, यानि अपनी आजीविका के अर्जन के लिए ही संघर्ष कर रहा था| समाज अभावग्रस्त था और समाज में तमोगुण का अंधकार अधिक था| उस तमस से बाहर निकलने और आध्यात्मिक व भौतिक दरिद्रता दूर करने के लिए मुझे बहुत ही अधिक संघर्ष करना पड़ा| भगवान ने भी मुझ अकिंचन पर कुछ अधिक ही कृपा की|
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मेरी आस्था तो यही कहती है कि जो कुछ भी हम हैं, और जिन भी अच्छे-बुरे अनुभवों से हम गुजरते हैं, वे हमारे पूर्व जन्मों के कर्मफल हैं| इनमें किसी अन्य का कोई दोष नहीं है| अब तो सारी बुराइयाँ/अच्छाइयाँ दोष/गुण, बुरा/भला सब कुछ परमात्मा को समर्पित कर दिया है| अब परमात्मा के बोध में ही स्वतन्त्रता अनुभूत करता हूँ| परमात्मा का विस्मरण ही मेरे लिए परतंत्रता है| कोई इच्छा/आकांक्षा अब नहीं है, सिर्फ एक ही तड़प/अभीप्सा है कि अब से जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो|
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जीवन शाश्वत है, मृत्यु मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, सिर्फ यह शरीर छीन सकती है, जो मैं परमात्मा को अर्पित कर चुका हूँ| मेरे साथ तब तक कुछ भी नहीं हो सकता, कोई मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता, जब तक स्वयं परमात्मा की स्वीकृति न हो|
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समस्या एक ही है कि --- "The spirit indeed is willing, but the flesh is weak". अर्थात् आत्मा में तो परमात्मा को पाने की तड़प है, लेकिन यह अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) बहुत अधिक कमजोर है| और कोई समस्या नहीं है| यह समस्या भी भगवान को अर्पित है|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ फरवरी २०२१

परमात्मा से 'प्रेम' एक स्थिति है, कोई क्रिया नहीं, यह हो जाता है, किया नहीं जाता ---

 परमात्मा से 'प्रेम' एक स्थिति है, कोई क्रिया नहीं, यह हो जाता है, किया नहीं जाता ---

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परमात्मा से परमप्रेम -- आत्मसाक्षात्कार का द्वार है| यह सबसे बड़ी सेवा है, जो हम समष्टि के लिए कर सकते हैं| यह उन की परमकृपा है जो हमारा परमकल्याण कर रही है| उन में तन्मयता हमारा जीवन है| उन से प्रेम के विचार ही हमारी तीर्थयात्रा हैं| उन से प्रेम ही सबसे बड़ा तीर्थ है| हम अपना हर कर्म उन की प्रसन्नता के लिए, निमित्त मात्र होकर उन्हें ही कर्ता बनाकर करें|
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गीता में भगवान दो बार कहते हैं -- "मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु"--
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः||९:३४||"
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||
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हम भगवान की चेतना में प्रेममय होकर उनके विवेक के प्रकाश में अपना कर्मयोग करते रहें| किसी से घृणा नहीं करें| घृणा करने वाला व्यक्ति, आसुरी शक्तियों का शिकार हो जाता है| अब मन उन के प्रेम में मग्न हो गया है, और कुछ भी लिखना असंभव है|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
२३ फरवरी २०२१

जहाँ भक्ति और सत्यनिष्ठा होगी, वहाँ परमात्मा की कृपा निश्चित रूप से होगी ----

 जहाँ भक्ति और सत्यनिष्ठा होगी, वहाँ परमात्मा की कृपा निश्चित रूप से होगी :---

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जीवन में विवेक के बिना कष्ट ही कष्ट हैं| बिना सत्संग के विवेक नहीं हो सकता| और सत्संग भी राम यानि परमात्मा की कृपा हुये बिना नहीं मिलता| संत तुलसीदास जी ने लिखा है -- "बिन सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई|"
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सत्संग का अर्थ है -- सत्य के साथ सङ्ग| सत्य क्या है? सिर्फ परमात्मा ही सत्य है| भौतिक शास्त्र की दृष्टि से यह भौतिक जगत मिथ्या है| भौतिक जगत हमारे सामूहिक विचारों का ही व्यक्त रूप है| मूल रूप से यह अनेक ऊर्जाखंडों, और उनसे निर्मित अणु-परमाणुओं, का ही निरंतर परिवर्तनशील घनीभूत प्रवाह है| जिनके संकल्प और विचार से इस अनंत विराट जगत की रचना हुई है, वे ही परमात्मा हैं| उन्हीं का सङ्ग -- "सत्संग" है| जो परमात्मा का स्मरण करवा दें, यानि जिनके सङ्ग से परमात्मा की चेतना जागृत हो जाये, वे ही "संत" हैं, अन्यथा वे सामान्य सांसारिक प्राणी हैं|
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अब प्रश्न यह है कि परमात्मा की कृपा कैसे हो? जिन्हें सचमुच ही यह जानने की जिज्ञासा है वे रामायण, महाभारत, भागवत आदि ग्रन्थों का स्वाध्याय करें, और भक्तिभाव को विकसित कर, परमात्मा से उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करें| जहाँ भक्ति और सत्यनिष्ठा होगी, वहाँ परमात्मा की कृपा निश्चित रूप से होगी|
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रामायण में हनुमान जी भगवान श्रीराम को कहते हैं -- "कह हनुमंत विपत्ति प्रभु सोई, जब तब सुमिरन भजन न होई|"
मैं अपने जीवन के पूरे अनुभव के साथ कह सकता हूँ कि भगवान का विस्मरण और उनसे दूरी ही हमारे सब दुःखों का कारण है| भगवान को भूलने से बड़ी पीड़ा, कष्ट, और वेदना, कोई दूसरी नहीं है|
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भगवान ने मुझसे देश-विदेश में खूब भ्रमण करवाया है| अनेक नास्तिक म्लेच्छ देशों में भी भगवान ने मुझसे भ्रमण और निवास करवाया है| वहाँ के निवासियों की मानसिक यंत्रणा को मैंने साक्षात अनुभूत किया है| अतः यह बात मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ कि भगवान से वियोग ही सबसे बड़ी विपत्ति और संकट है| भगवान के स्मरण से बड़ा सुख कोई दूसरा नहीं है|
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भगवान का निरंतर स्मरण ही सत्संग है, और उनका विस्मरण ही कुसंग व सबसे बड़ी विपत्ति है| भगवान की निरंतर कृपा सब पर बनी रहे| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ फरवरी २०२१