जहाँ भक्ति और सत्यनिष्ठा होगी, वहाँ परमात्मा की कृपा निश्चित रूप से होगी :---
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जीवन में विवेक के बिना कष्ट ही कष्ट हैं| बिना सत्संग के विवेक नहीं हो सकता| और सत्संग भी राम यानि परमात्मा की कृपा हुये बिना नहीं मिलता| संत तुलसीदास जी ने लिखा है -- "बिन सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई|"
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सत्संग का अर्थ है -- सत्य के साथ सङ्ग| सत्य क्या है? सिर्फ परमात्मा ही सत्य है| भौतिक शास्त्र की दृष्टि से यह भौतिक जगत मिथ्या है| भौतिक जगत हमारे सामूहिक विचारों का ही व्यक्त रूप है| मूल रूप से यह अनेक ऊर्जाखंडों, और उनसे निर्मित अणु-परमाणुओं, का ही निरंतर परिवर्तनशील घनीभूत प्रवाह है| जिनके संकल्प और विचार से इस अनंत विराट जगत की रचना हुई है, वे ही परमात्मा हैं| उन्हीं का सङ्ग -- "सत्संग" है| जो परमात्मा का स्मरण करवा दें, यानि जिनके सङ्ग से परमात्मा की चेतना जागृत हो जाये, वे ही "संत" हैं, अन्यथा वे सामान्य सांसारिक प्राणी हैं|
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अब प्रश्न यह है कि परमात्मा की कृपा कैसे हो? जिन्हें सचमुच ही यह जानने की जिज्ञासा है वे रामायण, महाभारत, भागवत आदि ग्रन्थों का स्वाध्याय करें, और भक्तिभाव को विकसित कर, परमात्मा से उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करें| जहाँ भक्ति और सत्यनिष्ठा होगी, वहाँ परमात्मा की कृपा निश्चित रूप से होगी|
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रामायण में हनुमान जी भगवान श्रीराम को कहते हैं -- "कह हनुमंत विपत्ति प्रभु सोई, जब तब सुमिरन भजन न होई|"
मैं अपने जीवन के पूरे अनुभव के साथ कह सकता हूँ कि भगवान का विस्मरण और उनसे दूरी ही हमारे सब दुःखों का कारण है| भगवान को भूलने से बड़ी पीड़ा, कष्ट, और वेदना, कोई दूसरी नहीं है|
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भगवान ने मुझसे देश-विदेश में खूब भ्रमण करवाया है| अनेक नास्तिक म्लेच्छ देशों में भी भगवान ने मुझसे भ्रमण और निवास करवाया है| वहाँ के निवासियों की मानसिक यंत्रणा को मैंने साक्षात अनुभूत किया है| अतः यह बात मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ कि भगवान से वियोग ही सबसे बड़ी विपत्ति और संकट है| भगवान के स्मरण से बड़ा सुख कोई दूसरा नहीं है|
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भगवान का निरंतर स्मरण ही सत्संग है, और उनका विस्मरण ही कुसंग व सबसे बड़ी विपत्ति है| भगवान की निरंतर कृपा सब पर बनी रहे| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ फरवरी २०२१
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