Sunday, 21 August 2016

परमात्मा को निरंतर अपने चित्त में, अपने अस्तित्व में प्रवाहित होने दो, सब बातों का सार यही है .....

परमात्मा को निरंतर अपने चित्त में, अपने अस्तित्व में प्रवाहित होने दो,
सब बातों का सार यही है .....
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कई बार मनुष्य कोई जघन्य अपराध जैसे ह्त्या, बलात्कार या अन्य कोई दुष्कर्म कर बैठता है फिर सोचता है कि मेरे होते हुए यह सब कैसे हुआ, मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता था| पर उसे यह नहीं पता होता कि वह किन्हीं आसुरी शक्तियों का शिकार हो गया था जिन्होंने उस पर अधिकार कर के यह दुष्कर्म करवाया|
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सूक्ष्म जगत की आसुरी और पैशाचिक शक्तियाँ निरंतर अपने शिकार ढूँढती रहती हैं| जिसके भी चित्त में वासनाएँ होती हैं उस व्यक्ति पर अपना अधिकार कर वे उसे अपना उपकरण बना लेती हैं और उस से सारे गलत काम करवाती हैं|
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जितना हमारा गलत और वासनात्मक चिंतन होता है, उतना ही हम उन आसुरी शक्तियों को स्वयं पर अधिकार करने के लिए निमंत्रित करते हैं| भौतिक जगत पूर्ण रूप से सूक्ष्म जगत के अंतर्गत है| सूक्ष्म जगत की अच्छी या बुरी शक्तियाँ ही यहाँ अपना कार्य कर रही है|
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अगर हम संसार में कोई अच्छा कार्य करना चाहते हैं उसका एक ही उपाय है कि परमात्मा को निरंतर स्वयं के भीतर प्रवाहित होने दें, उसके उपकरण बन जाएँ|
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वह सदा हमारे साथ है| हमारे ह्रदय में भी वो ही धड़क रहा है, व हमारी हर साँस में वह ही है| उस के प्रति सजग रहो| साकार भी वही है और निराकार भी वही है| साकार ही निराकार का आधार है| साकार की साधना करते करते वह उससे भी परे हो जाता है|
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ध्यान साधना के लिए परमात्मा के दो साकार रूप सर्वश्रेष्ठ हैं -- एक भगवान् नारायण का और दूसरा भगवान् शिव का| इनमें से जो भी हमारा प्रिय रूप हो निरंतर उसे अपने चित्त में रखें| उस के प्रति समर्पित होने का निरंतर प्रयास करते रहें| उसका निरंतर स्मरण करें| उन्हें या सद्गुरु जो अपने भीतर कार्य करने दें, और उन के प्रति समर्पित हो जाएँ, व उन्हें ही अपने जीवन का कर्ता बनाएँ|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

साधना का एक अति गूढ़ तत्व ------ "संधिक्षण" ....

साधना का एक अति गूढ़ तत्व ------ "संधिक्षण" .....
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संधिक्षण में की गयी साधना ही "संध्या" कहलाती है| संधिक्षण दिन में चार बार आता है| यह अति शुभ मुहूर्त होता है| पर यह मात्र एक क्षण का ही होता है| यही समय "संध्या" करने का होता है|
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क्षण, स्थान और काल का महत्व साधना में बहुत महत्वपूर्ण है| किसी भी सिद्धि की प्राप्ति इस तथ्य पर निर्भर करती है कि किस स्थान पर, किस काल में और किस क्षण में साधना सम्पन्न हुई| क्षणों में संधिक्षण का विशेष महत्व है| उस समय मन्त्रचेतना प्रबल होती है और सिद्धि आसानी से मिल जाती है|
आजकल समय का प्रभाव ही ऐसा है कि मनुष्य तपस्यादि की परवाह न कर बाहरी दिखावे और आडम्बर में फंस गया है|
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जब रात्री का अवसान होता है और ऊषा का आगमन होता है ---- तब एक संधिक्षण आता है जिसमें किये हुए जप-तप का विशेष फल होता है| ऐसे ही मध्यान्ह में एक संधिक्षण आता है जो सूर्योदय और सूर्यास्त के समय के बिलकुल मध्य में होता है जिसकी गणना करनी होती है| सायंकाल को भी ऐसे ही दिन की समाप्ति पर रात्री से पूर्व एक संधिक्षण आता है| मध्यरात्री को भी एक महाक्षण आता है जो सूर्यास्त और सूर्योदय के बिल्कुल मध्य में होता है जिसका भी हिसाब लगाना पड़ता है|
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इन शुभ क्षणों में किसी सिद्ध क्षेत्र में, ध्यानासन पर बैठकर किसी सिद्ध मन्त्र की गुरुपरम्परानुसार साधना की जाए तो सिद्धिलाभ अति शीघ्र होता है|
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ब्राह्मणों के लिए द्विकाल यानि प्रातः और सायं की संध्या अनिवार्य है| जिनके पास समय होता है वे त्रिकालसंध्या भी करते हैं| श्रीविद्या के उपासक मध्यरात्रि में तुरीय संध्या करते हैं|
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एक रहस्य और भी है| दो तिथियों के मिलने का समय भी अति पवित्र होता है|
प्रातः और सायंकाल की संध्या तो यथासम्भव अवश्य ही करनी चाहिए|
ॐ नमः शिवाय||

ॐ ॐ ॐ ||

आजकल परमात्मा हम सब को निरंतर कुछ अधिक ही याद कर रहे हैं ....

आजकल परमात्मा हम सब को निरंतर कुछ अधिक ही याद कर रहे हैं ....
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जीवन में आ रही सभी बाधाओं, कठिनाइयों, पीड़ाओं, दुःखों, कष्टों, अभिशापों और सभी प्रकार की विपरीतताओं का स्वागत है| ये सब भगवान की कृपा हैं जो हमें उनकी याद दिलाने के लिए निरंतर आती हैं| इनके बिना सृष्टिकर्ता को कौन याद करेगा ?
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प्रभुकृपा से ये सब तो है हीं, साथ साथ परमात्मा के आशीर्वाद और महती कृपा से बौद्धिक स्तर पर कोई किसी भी तरह की कणमात्र भी शंका या संदेह नहीं है| सोच व विचारों में स्पष्टता है|
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अब एक ही अभीप्सा है ..... बचा-खुचा अवशिष्ट जीवन परमात्मा के ध्यान में ही बिता दिया जाए, और समर्पण में पूर्णता हो| अन्य कोई कामना नहीं है|
भगवान योग-क्षेम का वहन भी करेंगे और निराश्रय की रक्षा भी करेंगे|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!