Tuesday, 10 December 2024

मनुष्य का जन्म शुभ और अशुभ विभिन्न प्रकार की योनियों में क्यो होता है? ....

 मनुष्य का जन्म शुभ और अशुभ विभिन्न प्रकार की योनियों में क्यो होता है? ....

गीता में भगवान श्रीकृष्ण इस का कारण बताते हैं .....
"पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान्| कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु||१३:२२||
अर्थात प्रकृति में स्थित पुरुष प्रकृति से उत्पन्न गुणों को भोगता है| इन गुणों का संग ही इस पुरुष (जीव) के शुभ और अशुभ योनियों में जन्म लेने का कारण है||
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उपरोक्त श्लोक की व्याख्या करते हुए आचार्य शंकर अपने भाष्य में कहते हैं कि सुख-दुःखों का भोक्तृत्व ही पुरुष का संसारित्व है| जीवात्मा अविद्यारूपा प्रकृति में स्थित है, प्रकृति को अपना स्वरूप मानता है, इसलिये वह प्रकृति से उत्पन्न हुए सुख-दुःख और मोहरूप से प्रकट गुणोंको मैं सुखी हूँ, दुःखी हूँ, मूढ़ हूँ, पण्डित हूँ, इस प्रकार मानता हुआ भोगता है| जन्म का कारण अविद्या है तो भी भोगे जाते हुए सुख-दुःख और मोहरूप गुणों में जो आसक्त हो जाना है -- तद्रूप हो जाना है, वह जन्मरूप संसार का प्रधान कारण है| वह जैसी कामना वाला होता है वैसा ही कर्म करता है| गुणों का सङ्ग ही अर्थात् गुणोंमें जो आसक्ति है वही इस भोक्ता पुरुष के अच्छी-बुरी योनियोंमें जन्म लेनेका कारण है| अच्छी और बुरी योनियों का नाम सदसत् योनि है| उनमें जन्मों का होना सदसद्योनिजन्म है| इन भोग्यरूप सदसद्योनिजन्मों का कारण गुणोंका सङ्ग ही है| अथवा संसारपद का अध्याहार करके यह अर्थ कर लेना चाहिये कि अच्छी और बुरी योनियों में जन्म लेकर गुणों का सङ्ग करना ही इस संसार का कारण है| देवादि योनियाँ सत् योनि हैं और पशु आदि योनियाँ असत् योनि हैं| प्रकरण की सामर्थ्य से मनुष्ययोनियों को भी सत् असत् योनियाँ मानने में (किसी प्रकारका) विरोध नहीं समझना चाहिये| कहनेका तात्पर्य यह है कि प्रकृति में स्थित होना रूप अविद्या और गुणोंका सङ्ग -- आसक्ति ये ही दोनों संसारके कारण हैं और वे छोड़ने के लिये ही बतलाये गये हैं। गीताशास्त्र में इनकी निवृत्ति के साधन संन्यास सहित ज्ञान और वैराग्य प्रसिद्ध हैं|
(साभार: श्री हरिकिशन दास गोयनका द्वारा किए गए हिन्दी में अनुवाद पर आधारित)

"कुंडलिनी महाशक्ति" का "परमशिव" से मिलन ही "योग" है ---

 "कुंडलिनी महाशक्ति" का "परमशिव" से मिलन ही "योग" है ---

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योग मार्ग की साधनाओं में क्रियायोग की साधना सब से अधिक प्रभावशाली है, जिसका रहस्य गीता के निम्न श्लोक में छिपा है ---
"अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे| प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः||४:२९||"
यह एक कूट श्लोक है जिसका वास्तविक अर्थ साधना द्वारा ही समझ में आ सकता है| क्रियायोग एक गुरुमुखी विद्या है जिसे सद्गुरु अपने अपने शिष्य पर अनुग्रह कर, उसे अपने सामने बैठा कर अपनी वाणी से उपदेश देकर ही सिखा सकता है| यह विद्या प्रत्यक्ष गुरु से ही सीखी जा सकती है, अन्यथा नहीं| इसकी सिद्धि भी गुरुकृपा से ही होती है|
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ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान, हंस:योग, और नादानुसंधान भी क्रियायोग साधना के भाग हैं| अंततः यह अद्वैत ब्रह्म की साधना है| थोड़ा सा हठयोग और तंत्र भी इस साधना में है| इस साधना में सबसे बड़ी आवश्यकता भक्ति की है जिसके बिना एक मिलीमीटर भी प्रगति नहीं हो सकती|
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मेरा एक खोजी स्वभाव रहा है जिस में सत्य को जानने की एक अति गहन जिज्ञासा थी| अतः जानबूझ कर बहुत अधिक भटकते हुए खूब सारे अनुभव प्राप्त किए हैं| अंततः पाया कि सुषुम्ना का क्रियायोग मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ है| कुंडलिनी महाशक्ति को जागृत कर, उसका सुषुम्ना की ब्रह्मउपनाड़ी में प्रवेश करा कर, सब चक्रों को भेदते हुए , कूटस्थ में परमशिव को समर्पित हो जाना ही क्रिया का उद्देश्य है| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
११ दिसंबर २०२०

हमें अपने से मिलाने की ज़िम्मेदारी भगवान की है, हमारी नहीं ---

हमें अपने से मिलाने की ज़िम्मेदारी भगवान की है, हमारी नहीं| हमारा काम तो उन्हें अपने हृदय में, और स्वयं को उन के हृदय में बैठाये रखना है| जो भी साधना या जो कुछ भी करना है, वे ही करेंगे| जैसे माता-पिता अपनी संतान के बिना नहीं रह सकते, वैसे ही भगवान भी हमारे बिना नहीं रह सकते|

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जो समय बीत गया सो बीत गया, वह तो बापस आ नहीं सकता| उसे भूल जाओ| जब जागो तभी सबेरा| अब और समय मत नष्ट करो| भगवान श्रीकृष्ण इसी समय यहीं पर बिराजमान हैं| पूर्ण भक्ति के साथ अपना सारा अन्तःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार) उन्हें समर्पित कर दो| हमारे लिए सारी साधना वे स्वयं कर रहे हैं| अपना सब कुछ उन्हें सौंप दो| न कोई राग, न द्वेष, और न अहंकार| हमें कुछ भी नहीं करना है| जो कुछ भी करना है, वे ही करेंगे| बस जाकर उन के हृदय में बैठ जाओ, और भूल से भी बाहर मत निकालो| अब वे ही वे हैं, और कोई नहीं| उनकी बांसुरी की मनमोहक ध्वनि को सुनते रहो, और उन्हें निहारते रहो|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
११ दिसंबर २०२०

परमात्मा के प्रेम से ही हमें संतुष्टि और तृप्ति मिलेगी ---

 परमात्मा के प्रेम से ही हमें संतुष्टि और तृप्ति मिलेगी ---

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अपने स्वाभाविक आध्यात्मिक विचारों को व्यक्त करने के लिए ही मैं फेसबुक पर नौ वर्ष पूर्व आया था| अब मैं पूरी तरह से संतुष्ट और तृप्त हूँ| खूब खुल कर निःसंकोच खूब लिखा| अनेक गलतियाँ भी कीं, पर उन्हें सुधारने वाले और सही मार्ग दिखाने वाले मित्र भी खूब मिले| फेसबुक पर अनेक सज्जनों, व संत-महात्माओं से परिचय और घनिष्ठता हुई| खूब सत्संग भी हुआ| फेसबुक का मैंने शत-प्रतिशत लाभ उठाया| मुझे किसी से किसी भी तरह की कोई शिकायत नहीं है|
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बचपन से ही मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक था| संघ के अनेक अच्छे-अच्छे प्रचारकों से मेरी खूब घनिष्ठता रही है| अतः राष्ट्रभक्ति के विचारों का होना स्वाभाविक था| अपने राष्ट्रभक्ति के विचारों को भी फेसबुक पर खूब खुल कर व्यक्त किया है|
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अब बापस आध्यात्म पर आता हूँ| मेरे पिताजी एक वकील थे जिनके पास आध्यात्मिक और धार्मिक पुस्तकों का बहुत अच्छा और दुर्लभ संग्रह था| अतः बहुत छोटी आयु में ही बहुत कुछ पढ़ने का अवसर मिला| मेरे बड़े भाई साहब एक नेत्र शल्य चिकित्सक थे| उन्हें भी उपनिषद और आगम ग्रन्थों के स्वाध्याय का बहुत अधिक शौक था| वे पुस्तकों को सदा स्वयं खरीद कर पढ़ते थे, किसी से कभी भी मांग कर नहीं| वे भी दुर्लभ पुस्तकों का एक बहुत बड़ा संग्रह छोड़कर गए हैं| मेरी भी आदत थी स्वयं खरीद कर अध्ययन करने की| मेरे पास भी एक हजार से भी अधिक पुस्तकों का संग्रह अपने आप ही हो गया है| किसी को भी पढ़ने के लिए मैं पुस्तकें देता नहीं हूँ, क्योंकि कोई बापस नहीं लौटाता| मेरी अनेक अमुल्य पुस्तकें दूसरों को देने से खो गईं|
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अब मैं काम की बात पर आता हूँ| पुस्तकों के स्वाध्याय से मुझे जानकारियाँ तो खूब मिलीं, लेकिन कोई संतुष्टि व तृप्ति नहीं मिली| संतुष्टि, तृप्ति और ज्ञान मिला तो सिर्फ ध्यान-साधना, भक्ति, और हरिःकृपा से| भक्ति व ध्यान-साधना से जो आध्यात्म के रहस्य अनावृत हुए, वे ग्रन्थों के स्वाध्याय से कभी भी नहीं हो सकते थे| अब इस समय मेरे इस शरीर की आयु लगभग ७३ वर्ष की है| बचा-खुचा समस्त जीवन परमात्मा के स्मरण, भक्ति और ध्यान में ही व्यतीत हो, यही जगन्माता से प्रार्थना है|
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इन पंक्तियाँ को लिखने का मेरा उद्देश्य यही है कि हमारे हृदय में यदि भक्ति है, और परमात्मा को पाने की अभीप्सा है, तो पढ़ें कम, और अपना अधिक से अधिक समय परमात्मा की भक्ति और ध्यान में ही लगाएँ| परमात्मा के प्रेम का खूब विस्तार करें| उसी से तृप्ति और संतुष्टि मिलेगी| आप सब को सप्रेम नमन !!
कृपा शंकर
११ दिसम्बर २०२०

मन पर नियंत्रण और गीता का कर्मयोग ---

 मन पर नियंत्रण और गीता का कर्मयोग ---

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मेरा ही नहीं, हम सब का 'मन' बड़ा भयंकर उत्पाती (खुराफ़ाती) है, जिसे स्थायी रूप से अब नियंत्रित करना ही होगा। यह कार्य कैसे सम्पन्न करें? इस विषय पर इस लेख में विचार करते है। साथ साथ संक्षेप में यह भी विचार करते हैं कि गीता का कर्मयोग क्या है? क्योंकि कर्मयोग और मन पर नियंत्रण -- दोनों एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुये हैं।
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मन जब तक मेरा स्वामी था, और मैं उसका दास; तब तक मेरे जीवन में उत्पात ही उत्पात (खुराफ़ात) हुये, कोई भला काम नहीं हुआ। अब स्थिति बदल गई है -- मन मेरा दास है और मैं उसका स्वामी हूँ।
इस शरीर की वृद्धावस्था के कारण मुझे स्मृति-दोष होने लगा है। और चाहे कुछ भी भूल जाऊँ, लेकिन परमात्मा को न भूलूँ, इसके लिए भगवान वासुदेव की कृपा से मन को सफलता पूर्वक प्रशिक्षित कर रहा हूँ। श्रीभगवान कहते हैं --
"असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥६:३५॥"
अर्थात् -- "हे महबाहो ! नि:सन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है; परन्तु, हे कुन्तीपुत्र ! उसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वश में किया जा सकता है॥"
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यह बात तो समझी हुई थी कि मन बड़ा चञ्चल और अति कठिनता से वश में होने वाला है। लेकिन भगवान की विशेष कृपा से अब यह समझ में आने लगा है कि अपनी चित्तभूमि में एक समान वृत्ति की बारंबार आवृत्ति करने से, और दृष्ट तथा अदृष्ट प्रिय भोगों में बारंबार दोषदर्शन के अभ्यास द्वारा उत्पन्न हुए अनिच्छा रूप वैराग्य से चित्त के विक्षेप को रोका जा सकता है।
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चित्त का विक्षेप रुक जाएगा तो अज्ञान का आवरण भी दूर हो जाएगा। इसी के लिए ध्यान-साधना की जाती है। पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना (चित्तवृत्तिनिरोधः) योग है, अर्थात् मन को इधर-उधर भटकने न देकर केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना योग है।
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गीता के उपदेश बड़े विलक्षण हैं। गीता में श्रीभगवान कहते हैं --
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥२:४८॥"
अर्थात् -- "हे धनंजय, आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हुये तुम कर्म करो। यह समभाव ही योग कहलाता है॥"
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समभाव की सिद्धि के लिए गीता का कर्मयोग आवश्यक है। ईश्वर मुझ पर प्रसन्न हों -- इस भाव का त्याग कर के, ईश्वर को कर्ता बना कर और स्वयं निमित्त मात्र बन कर, सारे कर्म फलतृष्णारहित सम्पन्न करने को "कर्मयोग" कहते हैं। इस से अन्तःकरण की शुद्धि होती है। अन्तःकरण की शुद्धि से ज्ञान उत्पन्न होता है। ज्ञानप्राप्ति को ही सिद्धि कहते हैं, और ज्ञानप्राप्ति का न होना ही असिद्धि है। ऐसी सिद्धि और असिद्धि में भी सम होकर अर्थात् दोनों को तुल्य समझकर कर्म करना ही समत्व है। भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार इसी को योग कहते हैं।
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मैंने अपने उत्पाती (खुराफ़ाती) मन को आज ही आदेश दिया है कि ब्रह्ममुहूर्त में उठते ही नित्य प्रातः कम से कम दो घंटों तक भगवान का ध्यान कर के दिन का आरंभ करो; और रात्रि को सोने से पूर्व भी कम से कम दो घंटों तक भगवान का ध्यान कर के ही जगन्माता की गोद में एक शिशु की तरह सो जाओ।
मन इस आदेश का पालन करे -- यह सुनिश्चित करना मेरा काम है, जो मुझे करना ही पड़ेगा। कोई विकल्प नहीं है।
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ॐ तत्सत् !! महादेव महादेव महादेव !!
कृपा शंकर
११ दिसंबर २०२२

जब हम साँस लेते हैं तब वास्तव में स्वयं सृष्टिकर्ता परमात्मा ही अपनी सम्पूर्ण सृष्टि के साथ ये साँसें हमारे माध्यम से लेते हैं ---

 जब हम साँस लेते हैं तब वास्तव में स्वयं सृष्टिकर्ता परमात्मा ही अपनी सम्पूर्ण सृष्टि के साथ ये साँसें हमारे माध्यम से लेते हैं। उनसे पृथकता का बोध एक भ्रम है। हम यह मनुष्य देह नहीं, उन की अनंत ज्योतिर्मय सर्वव्यापकता हैं।

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यह देह तो उनका एक उपकरण है जो हमें अपनी लोकयात्रा के लिए मिला हुआ है। भगवान न तो किसी को पुरष्कृत करते हैं, और न दंडित। हम अपने विगत कर्मों का भोग भोगते हैं। सारी व्यवस्था उनकी प्रकृति की है। यह बड़े से बड़ा तंत्र है।
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प्राणऊर्जा के विचरण और स्पंदन की प्रतिक्रिया से ही हमारी साँसे चल रही हैं, जो अपने आप में एक बहुत बड़ा विज्ञान है। जब यह बात समझ में आ जाये तभी से अपना अधिक से अधिक समय परमात्मा के ध्यान में ही बिताना चाहिए।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
११ दिसंबर २०२३

खेचरी और शांभवी मुद्रा में ध्यान साधना का महत्व :---

 खेचरी और शांभवी मुद्रा में ध्यान साधना का महत्व :---

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कोई भी आध्यात्मिक साधना, विशेष कर क्रियायोग की साधना यदि खेचरी मुद्रा में की जाये तो उसका कई गुणा अधिक फल मिलता है। खेचरी मुद्रा लगाकर पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर ध्यान मुद्रा में जब ध्यान करते हैं, तब वह शांभवी मुद्रा कहलाती है। ध्यान कूटस्थ में ज्योतिर्मय ब्रह्म और नाद का किया जाता है। ध्यान साधना में सफलता के लिए निम्न छह गुणों का होना आवश्यक है, अन्यथा सफलता नहीं मिलती है --
(१) भक्ति यानि परम प्रेम॥ (२) परमात्मा को उपलब्ध होने की अभीप्सा॥ (३) दुष्वृत्तियों का त्याग॥ (४) शरणागति और समर्पण॥ (५) आसन, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान॥ (६) दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन॥
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वेदिक ऋषियों ने 'खेचरी' मुद्रा को 'विश्वमित्' का नाम दिया है। खेचरी शब्द पौराणिक है जिसे नाथ संप्रदाय के योगियों ने लोकप्रिय बनाया है। 'खेचरी' का अर्थ है -- 'ख' = आकाश, चर = विचरण।
साहित्य में "ख" शब्द का अर्थ आकाश होता है। वेदों में "ख" शब्द का अर्थ ब्रह्म होता है (ॐ खं ब्रह्म)। ब्रह्म की अनुभूति हमें आकाश-तत्व में होती है। आध्यात्मिक रूप से -- जो बह्म तत्व में विचरण करता है वही साधक खेचरी सिद्ध है।
परमात्मा के प्रति परम प्रेम और शरणागति हो तो साधक परमात्मा को स्वतः उपलब्ध हो जाता है, लेकिन प्रगाढ़ ध्यानावस्था में देखा गया है कि साधक की जीभ स्वतः उलट जाती है और खेचरी व शाम्भवी मुद्रा अनायास ही लग जाती है। ध्यान साधना में तीब्र प्रगति के लिए खेचरी मुद्रा की सिद्धि अति आवश्यक है।
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दत्तात्रेय संहिता और शिव संहिता में खेचरी मुद्रा का विस्तृत वर्णन मिलता है। शिव-संहिता में खेचरी की महिमा इस प्रकार है --
"करोति रसनां योगी प्रविष्टाम् विपरीतगाम्।
लम्बिकोरर्ध्वेषु गर्तेषु धृत्वा ध्यानं भयापहम्॥"
अर्थात् - जो योगी अपनी जिह्वा को विपरीतागामी करता है, यानि जीभ की तालुका में जीभ को बिठाकर ध्यान करने बैठता है, उसके हर प्रकार के कर्म बंधनों का भय दूर हो जाता है।
भगवान् दत्तात्रेय के अनुसार --
"अन्तःकपालविवरे जिव्हां व्यावृत्तः बंधयेत्।
भ्रूमध्ये दृष्टिरपोषा मुद्राभवति खेचरी॥"
अर्थात जिह्वा को पलटकर मस्तक-छिद्र के अभ्यंतर में पहुंचाकर भ्रूमध्य में दृष्टी को स्थापित करना खेचरी मुद्रा है।
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योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय खेचरी मुद्रा के लिए कुछ योगियों के सम्प्रदायों में प्रचलित छेदन, दोहन आदि पद्धतियों के सम्पूर्ण विरुद्ध थे। वे एक दूसरी ही पद्धति पर जोर देते थे जिसे "तालब्य क्रिया" कहते हैं। इसमें मुँह बंद कर जीभ को ऊपर के दांतों व तालू से सटाते हुए जितना पीछे ले जा सकते हैं उतना पीछे ले जाते हैं। फिर मुंह खोलकर झटके के साथ जीभ को जितना बाहर फेंक सकते हैं उतना फेंक कर बाहर ही उसको जितना लंबा कर सकते हैं उतना करते हैं। इस क्रिया को नियमित रूप से दिन में कई बार करने से कुछ महीनों पश्चात जिव्हा स्वतः ही लम्बी होने लगती है, और गुरु कृपा से खेचरी मुद्रा स्वतः सिद्ध हो जाती है। योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी जी मजाक में इसे ठोकर क्रिया भी कहते थे। लाहिड़ी महाशय ध्यान करते समय खेचरी मुद्रा पर बल देते थे। जो इसे नहीं कर सकते थे उन्हें भी वे ध्यान करते समय जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालू से सटा कर बिना तनाव के जितना पीछे ले जा सकते हैं उतना पीछे ले जा कर रखने पर बल देते थे। तालब्य क्रिया एक साधना है और खेचरी सिद्ध होना गुरु का प्रसाद है।
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जब योगी को खेचरी मुद्रा सिद्ध हो जाती है तब उसकी गहन ध्यानावस्था में सहस्त्रार से एक रस का क्षरण होने लगता है| सहस्त्रार से टपकते उस रस को जिह्वा के अग्र भाग से पान करने से योगी दीर्घ काल तक समाधी में रह सकता है, उस काल में उसे किसी आहार की आवश्यकता नहीं पड़ती, स्वास्थ्य अच्छा रहता है और अतीन्द्रीय ज्ञान प्राप्त होने लगता है।
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महात्माओं के मुख से खेचरी मुद्रा की एक और वैदिक विधि के बारे में सुना है, लेकिन मैं उसे ठीक से समझ नहीं पाया, अतः मुझे उसका ज्ञान नहीं है। पद्मासन में बैठकर जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर ऋग्वेद के एक विशिष्ट मन्त्र का मानसिक उच्चारण सटीक छंद के अनुसार करना पड़ता है। उस मन्त्र में वर्ण-विन्यास कुछ ऐसा होता है कि उसके सही उच्चारण से जो कम्पन होता है उस उच्चारण और कम्पन के नियमित अभ्यास से खेचरी मुद्रा स्वतः सिद्ध हो जाती है।
मुझे उस मन्त्र का ज्ञान नहीं है अतः उस पर चर्चा नहीं करूंगा|
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यह तो भौतिक स्तर पर की जाने वाली साधना है जो ध्यान योग में तीब्र प्रगति के लिए आवश्यक है। पर आध्यात्मिक रूप से खेचरी सिद्ध वही है जो आकाश अर्थात ज्योतिर्मय ब्रह्म में विचरण करता है। साधना की आरंभिक अवस्था में साधक प्रणव ध्वनी का श्रवण और ब्रह्मज्योति का आभास तो पा लेता है पर वह अस्थायी होता है। उसमें स्थिति के लिए दीर्घ अभ्यास, भक्ति और समर्पण की आवश्यकता होती है।
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भगवान दत्तात्रेय के अनुसार साधक यदि शिवनेत्र होकर यानि दोनों आँखों की पुतलियों को नासिका मूल (भ्रूमध्य) के समीप लाकर, भ्रूमध्य में प्रणव यानि ॐ से लिपटी दिव्य ज्योतिर्मय सर्वव्यापी आत्मा का चिंतन करता है, तो उसके ध्यान में विद्युत् की आभा के समान देदीप्यमान ब्रह्मज्योति प्रकट होती है। अगर ब्रह्मज्योति को ही प्रत्यक्ष कर लिया तो फिर साधना के लिए और क्या बाकी बचा रह जाता है।
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जब ब्रह्मज्योति दिखने लगती हैं, तब शिवभाव में स्थित होकर उस ज्योतिर्मय ब्रह्म के सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान करें।
"ॐ नमः शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे।
शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:॥" (स्कन्द पुराण)
ॐ तत्सत्॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ ॐ नमः शिवाय॥ ॐ श्रीहरिः॥
(उन सब की भी जय हो, जो मेरे लेख पढ़ते हैं)
कृपा शंकर
११ दिसंबर २०२३

परमात्मा कोई भय या डरने का विषय नहीं है ---

परमात्मा कोई भय या डरने का विषय नहीं है| जो लोग परमात्मा से डरने की बात कहते हैं वे गलत शिक्षा दे रहे हैं| परमात्मा तो प्रेम का विषय है| जो परमात्मा को प्रेम नही कर सकते वे किसी को भी प्रेम नहीं कर सकते| मेरा प्रत्यक्ष अनुभव तो यही है कि जब हम परमात्मा से प्रेम करते हैं तो प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमें प्रेम करेगी|
हर रात सोने से पूर्व यह प्रार्थना करके सोयें .... "हे जगन्माता, आप मेरी निरंतर रक्षा कर रही हैं, आप सदा मेरे साथ हैं, इस जीवन का समस्त भार आपको समर्पित है| मेरे चैतन्य में आप निरंतर बिराजमान रहो|"
फिर एक बालक की तरह जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर सो जाओ|
कभी कभी जब मैं स्वयं साधना नहीं कर पाता तो भगवान स्वयं ही मेरे स्थान पर मेरे ही माध्यम से साधना करने लगते हैं| उनकी पकड़ में बड़ा आनन्द है| कितना प्रेम है उनके हृदय में मेरे लिए! मुझे भी उन से प्रेम हो गया है| अब जीवन में और कुछ भी नहीं चाहिए| जीवन से पूर्ण संतुष्टि है, कोई शिकायत नहीं है, और आनंद ही आनन्द है| शेष जीवन का उपयोग उनकी ध्यान साधना में ही हो|

१० दिसंबर २०१८

जीवन में सुख, शांति और समृद्धि से भी अधिक महत्वपूर्ण है परमात्मा से परम प्रेम ---

जीवन में सुख, शांति और समृद्धि से भी अधिक महत्वपूर्ण है परमात्मा से परम प्रेम और स्वयं में परमात्मा की अभिव्यक्ति| इसके लिए स्वयं को निरंतर अभ्यास करना होता है| जब कोई कुआँ खोदता है तब प्रचुर जल प्राप्त होने तक जल के सिवा प्राप्त अन्य सब कुछ दूर हटा देता है| सोने की खदान में टनों मिटटी हटाने पर कुछ ग्राम सोना प्राप्त होता है| धैर्य खो देने पर कुछ भी नहीं मिलता| उसी लगन से परमात्मा की खोज हमें करनी होती है| वह तभी होगी जब हमें उस से प्रेम होगा| उस प्रेम को निरंतर समर्पित करते रहो| ॐ ॐ ॐ ||

१० दिसंबर २०१७

ये प्रश्न उन लोगों से है जिन्होंने देश पर छः दशकों से अधिक तक राज्य किया है .......

 ये प्रश्न उन लोगों से है जिन्होंने देश पर छः दशकों से अधिक तक राज्य किया है .......

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(१) जब हम "राम जन्मभूमि" की बात करते थे तो कहा जाता था कि मामला न्यायालय में है| पर अब नेशनल हेराल्ड का मामला क्या न्यायालय में नहीं है जो संसद को नहीं चलने दिया जा रहा है ? यह मुकदमा न्यायालय में तब से चल रहा है जब भाजपा सत्ता में नहीं थी, और माननीय श्री सुब्रमनियम स्वामी भी भाजपा में नहीं थे|
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(२) आज संसद में नारे लगे .... मोदी तेरी तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी ..... | भारत के समझदार लोगों से निवेदन हैं कि वे स्वविवेक से निर्णय करें की तानाशाह कौन कौन थे ?
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(३) जो लोग तानाशाह थे उन्होंने जी हजूरी न करने पर अपने ही सम्माननीय लोगों के साथ क्या व्यवहार किया?
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देश के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद के साथ, और दो बार कार्यकारी प्रधानमन्त्री और बहुत लम्बे समय तक केन्द्रीय मंत्री रहे श्री गुलझारीलाल नंदा के साथ, और अन्य कई सम्माननीय लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया गया ?
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जब 12 वर्षों तक देश के रा्ष्ट्रपति रहने के पश्चात राजेन्द्र बाबू राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के पश्चात् पटना जाकर रहने लगे तो उनके लिए वहाँ पर एक सरकारी आवास तक की व्यवस्था नहीं की.गयी| उनके पास अपना कोई निजी मकान नहीं था| उनके स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखा गया| दिल्ली से पटना पहुंचने पर वे बिहार विद्यापीठ, सदाकत आश्रम के एक सीलनभरे कमरे में रहने लगे थे| उनकी तबीयत पहले से खराब रहती थी जो पटना जाकर ज्यादा खराब रहने लगी| वे दमा के रोगी थे| सीलनभरे कमरे में रहने के बाद उनका दमा ज्यादा बढ़ गया| उनके उपचार की कोई व्यवस्था नहीं की गयी|
जब उनका देहांत हो गया तब देश के तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने उनकी अंत्येष्टि में जाना भी उचित नहीं समझा| डा,संपूर्णानंद ने लिखा था कि उन्हें देश के प्रधानमन्त्री ने डा.राजेंद्र प्रसाद के अंतिम दर्शनों के लिए नहीं जाने दिया| दिल्ली से अन्य नेताओं को भी नहीं जाने दिया गया|
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केंद्र में गृहमंत्री और दो बार कार्यकारी प्रधान मंत्री रह चुके श्री गुलझारी लाल नंदा पद मुक्त होने के पश्चात एक किराये के मकान में रहे जिसका किराया चुकाने के रुपये भी उनके पास नहीं थे| मकान मालिक ने सामान फुटपाथ पर फेंक दिया पर सरकार ने उनकी कोई सुध नहीं ली| अपना इलाज़ कराने के रूपये भी उनके पास नहीं थे|
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देश के प्रधानमंत्री रहे श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु का रहस्य भी अभी नहीं खुला है|
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विचारों से सहमती नहीं होने के कारण अपने ही लोगों के साथ कांग्रेस के नेताओं ने बहुत दुर्व्यवहार किया|
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जब माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस समय कोई भी ऐसा आरोप नहीं है जो उन पर नहीं लगाया गया था, कोई भी ऐसी निंदा नहीं है जो उनकी नहीं की गयी थी, और कोई भी ऐसी जाँच नहीं है जो उनके विरुद्ध नहीं बैठाई गयी थी| उनकी जितनी बुराई की गयी थी उतनी तो स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी की भी नहीं की गयी थी| फिर भी वे विचलित नहीं हुए और हर परिस्थिति का डटकर सामना किया| उन्होंने पलट कर किसी से कुछ नहीं कहा और देवाधिदेव महादेव की तरह चुपचाप विषपान किया| यह उनकी महानता का लक्षण है|
दूसरी ओर न्यायालय के एक सम्मन मात्र से पूर्व राजमाता मैडम एंटोनिया माईनो उर्फ़ सोनिया गांधी विचलित हो गयी हैं| वे ही नहीं उनके राजकुमार और सारे चेले चेलियाँ धुआँ फेंकने लगे हैं| सम्मन तो कोर्ट से मिला है और उत्तर संसद में दे रहे हैं| पूरी कांग्रेस पार्टी ही पागलों की तरह उन्मादग्रस्त हो गयी है|
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भगवन देशवासियों को सद्बुद्ध दे| ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
१० दिसंबर २०१५

भारतवर्ष और सनातन/हिन्दू धर्म रक्षार्थ अब धर्माचरण और धर्मजागरण अति आवश्यक है ----

 भारतवर्ष और सनातन/हिन्दू धर्म रक्षार्थ

अब धर्माचरण और धर्मजागरण अति आवश्यक है ----
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परम दानव आसुरी शक्तियों द्वारा सनातन हिन्दू धर्म और संस्कृति पर योजनाबद्ध रूप से वर्तमान में जितने मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं उससे हमारे भावी अस्तित्व पर एक प्रश्नचिह्न लगता दिखाई दे रहा है| हिन्दुओं को अपने धर्म का ज्ञान भी बढ़ाना होगा और कट्टर (जो कट कर भी ना टरे) बन कर उस पर आचरण भी करना पडेगा| साथ साथ दैवीय शक्तियों का जागरण भी करना होगा|
हमें अपनी संख्या भी बढ़ानी होगी क्योंकि हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने पर अब पाकिस्तान नहीं बल्कि खुरासान नाम से इराक बनेगा| फिर भारत में यज़ीदियों के स्थान पर हिन्दू होंगे और वो ही घटनाक्रम दोहराया जाएगा जो वर्तमान में इराक में हो रहा है और विगत में भारत में होता रहा है|
खुल कर डंके की चोट हिन्दू संगठनों को 'घर वापसी' का कार्यक्रम करना चाहिए| कोई अपराध बोध नही होना चाहिए| अन्यथा न संविधान होगा न पार्लियामेंट , तब सिर्फ एक ऐसा कानून होगा जिसमे संशोधन का सवाल ही नही और हिन्दुओं के लिए के लिए उसमे मृत्यु के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नही होगा|
कुछ बिछुड़े हुए भाइयों की घर वापसी पर रुदन प्रलाप करने वाले उस समय कहाँ मर जाते हैं जब ईसाई मिशनरियां आदिवासी क्षेत्रों में हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन करती हैं| अब हिन्दू चुप नहीं बैठेगा| यह परिवर्तन नहीं परावर्तन है| पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू कहाँ लुप्त हो गए? उन्हें आसमान खा गया या धरती निगल गयी?
निकट भविष्य में देवासुर संग्राम निश्चित है ..सही समय की प्रतीक्षा है|
वैसे भी अत्यधिक लोभ के कारण विनाश मंडरा रहा है| जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग से उत्पन्न वैश्विक उष्णता से ध्रुवों की बर्फ पिघल कर पृथ्वी को अस्थिर कर रही है| अकाल और प्रलय का खतरा मंडरा रहा है| तीसरा विश्व युद्ध भी अवश्यम्भावी है|
पर एक बात निश्चित है कि सनातन धर्म ही भारत का भविष्य है, भारत का भविष्य ही इस पृथ्वी का भविष्य है, और इस पृथ्वी का भविष्य ही इस सृष्टि का भविष्य है| यदि सनातन हिन्दू धर्म ही नष्ट हो गया तो यह सृष्टि भी नष्ट हो जायेगी| फिर नई सृष्टि ही बसेगी|
धर्म का आचरण ही धर्म की रक्षा है| भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि थोड़ी-बहुत अल्प मात्रा में भी धर्म का आचरण महा भय से हमारी रक्षा करता है| हमारे सब कष्टों का कारण धर्म का आचरण नहीं करना ही है| हम धर्म का आचरण करेंगे तभी भगवान हमारी रक्षा करेंगे, अन्यथा विनाश के लिए तैयार रहें|
ॐ नमः शिवाय| जय श्रीराम| ॐ ॐ ॐ ||
१० दिसंबर २०१४

"हिन्दू स्वयंसेवक संघ" के प्रमुख माननीय श्री रविकुमार जी से भेंट ---

आज वयोवृद्ध माननीय श्री रवि कुमार जी से बहुत अच्छा सत्संग हुआ| आप हिन्दुत्व के एक अंतर्राष्ट्रीय चिंतक, प्रखर तपस्वी विद्वान और लेखक हैं| मूल रूप से आप तमिलनाडु से हैं पर आपका हिन्दी का ज्ञान अनुपम है| भारत से बाहर के 40 देशों में जा कर वहाँ रहने वाले हिंदुओं को संगठित करने हेतु पूरे विश्व में 1500 के लगभग इकाइयाँ खोलने में आपका बहुत बड़ा योगदान है| आप रा.स्व.संघ के पूर्णकालिक प्रचारक हैं जिन का कार्य विदेशों में "हिन्दू स्वयंसेवक संघ" के नाम से प्रवासी भारतीय हिंदुओं को संगठित करना था| वर्तमान में आप संघ के प्रखर विचारकों में से एक हैं जिनका कार्य देश के प्रबुद्ध लोगों से मिलकर उन्हें संगठित करना है| .

दूसरा सत्संग अरविंदाश्रम के श्री चंद्रप्रकाश जी खेतान से हुआ जो अब तो पूर्णतः अति उच्च कोटि के एक आध्यात्मिक साधक हैं, पर कभी अर्थशास्त्री के रूप में कनाडा सरकार के आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं| .
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक श्री हनुमान प्रसाद जी से भी प्रकृति के प्रदूषण आदि विषयों पर आज अच्छी चर्चा हुईं| कृपा शंकर
10 दिसंबर 2019

हमारा अन्नदाता कौन है?

कृषि एक व्यवसाय है जो कृषक का धर्म है, कोई समाजसेवा नहीं| कृषक खेती कर के अन्न का उत्पादन करता है, अपने स्वयं का और अपने परिवार का पेट भरने के लिए| अतिरिक्त अन्न को बेचकर वह अपनी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करता है|

जिस काम के बदले में हमें धन मिलता है, वह व्यापार है, समाजसेवा नहीं| यह किसान-अन्नदाता, किसान-अन्नदाता का ढकोसला अब समाप्त होना चाहिए| किसान -- भगवान है क्या? अगर किसान पेट भरता है तो पिछले आठ-नौ महीनों से कोविड-१९ महामारी के काल में सरकार गरीबों को मुफ्त में राशन क्यों बाँट रही है? अन्नदाता यदि किसान है तो वह स्वयं अन्न क्यों नहीं बाँट रहा?
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यदि किसान भगवान है तो जुलाहे, बुनकर और दर्जी भी भगवान हैं| ये अपना धर्म नहीं निभाते तो हम क्या नंगे घूमते? जिसने बर्तन बनाए वह भी भगवान है, अन्यथा हम खाना किस में बनाते और खाते? जिसने बिजली बनाई, सड़कें बनाईं, और अन्य सब कुछ बनाया, वे सब भी फिर भगवान ही हैं| जिसने दवाइयाँ बनाईं, कागज, कलम आदि बनाए, वे भी भगवान हैं| मेडिकल, शिक्षा, सफाई आदि से जुड़े सभी व्यवसायों के लोग भी भगवान ही हैं, सिर्फ किसान ही क्यों? सृष्टि में हर कार्य का अपना-अपना महत्व है| जब धरती पर खेती-बाडी़ नहीं होती थी तब भी लोग जीवित थे|
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सृष्टि का पेट भगवान भरता है जिसने यह सृष्टि बनाई है| मेरे लिए तो मेरी अन्नदाता, माँ भगवती अन्नपूर्णा है| वे ही इस सृष्टि का पालन-पोषण कर रही हैं| जगन्माता के सब रूप उन्हीं के हैं| मैं तो उन्हीं का भिक्षान्न खाता हूँ|
"भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी||"
सार की बात :--- हम सभी का अन्नदाता स्वयं परमात्मा है, जिस ने इस सृष्टि की रचना की है और सभी प्राणियों का पालन-पोषण कर रहा है|
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पुनश्च: --- तैत्तिरीयोपनिषद् में अन्न को ब्रह्म बताया गया है ---
"सः अन्नं ब्रह्म इति व्यजानात् हि |"
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१० दिसंबर २०२० > पुनश्च: ---
1― बीज खरीदने के लिए सब्सिडी।
2― कृषि उपकरण खरीदने के लिए सब्सिडी।
3― यूरिया (खाद) खरीदने के लिए सब्सिडी।
4― ट्रेक्टर ट्रोली खरीदने पर सब्सिडी।
5― पशुधन खरीदने पर सब्सिडी।
6― खेती पर लगने वाले अन्य खर्च के लिए सब्सिडी युक्त कर्ज।
7― किसान क्रेडिट कार्ड से कर्ज।
8― जैविक खेती करने पर सब्सिडी।
9― खेत में डिग्गी बनाने हेतू सब्सिडी।
10― फसल प्रदर्शन हेतू सब्सिडी।
11― फसल का बीमा।
12― सिंचाई पाईप लाईन हेतू सब्सिडी।
13― स्वचालित कृषि पद्धति अपनाने वाले किसानों को सब्सिडी।
14― जैव उर्वरक खरीदने पर सब्सिडी।
15― नई तरह की खेती करने वालो को फ्री प्रशिक्षण।
16― कृषि विषय पर पढ़ने वाले बच्चों को अनुदान।
17― सोलर एनर्जी के लिए सब्सिडी।
18― बागवानी के लिए सब्सिडी।
19― पंप चलाने हेतु डीजल में सब्सिडी।
20― खेतो में बिजली उपयोग पर सब्सिडी।
इसके अलावा
21― सूखा आए तो मुआवजा।
22― बाढ़ आए तो मुआवजा।
23― टिड्डी-कीट जैसे आपदा पर मुआवजा।
24― सरकार बदलते ही सभी तरह के कर्ज माफी।
25― सरकार ने किसानों को आत्मनिर्भर व सशक्त बनाने के लिए अनेकों और तरह की योजनाएं बनाई है, जिसमें डेयरी उत्पाद मत्स्य पालन बागवानी फल व सब्जी पर भी अनेकों प्रकार की सब्सिडी दे रही है।
और इसके अलावा
26― इन्हीं से 20 रुपए किलो गेहूं खरीद कर 2 रुपए किलो में इन्हें दिया जा रहा है।
27― पक्के मकान बनाने के लिए 3 लाख रुपए तक सब्सिडी दी जा रही है।
28― शौचालय निर्माण फ्री में किया जा रहा है।
29― घर पर गंदा पानी की निकासी के लिए होद फ्री में बनवाई जा रही है।
30― साफ पीने का पानी फ्री में दिया जा रहा है।
31― बच्चों को पढ़ने खेलने व अन्य तरह के प्रशिक्षण फ्री में करवाए जा रहे हैं।
32― साल के 6000 रुपए खाते में फ्री में आ रहे हैं।
33― तरह-तरह की पेंशन वगैरा आ रही है।
34― मनरेगा में बिना कार्य किए रुपए दिए जा रहे हैं।
अगर उसके बावजूद भी इस देश के किसानों को सरकार से अपना हक नहीं मिल रहा तो शायद कभी नहीं मिलेगा।
एक निगाह उन मजदूरों, छोटे रेहड़ी वालों, छोटे व्यवसायियों दुकानदार, वकीलों, डॉक्टर, ड्राइवर, सुरक्षा बल, pvt नौकरी वाले, पढ़े-लिखे बेरोजगारों, कचरा बीन कर पेट पालने वालों पर डालो।
रोज नई नई समस्या से जूझते हैं, रोज रोज मरते हैं परन्तु कभी भीड इकट्ठा कर क़ानून को बंधक नही बनाया ।

जिनके मन में नन्दलाल बसे, तिन और को नाम लियो न लियो ---

"जिनके मन में नन्दलाल बसे, तिन और को नाम लियो न लियो।

जिसने बृंदावन धाम कियो, तिन औनहु धाम कियो न कियो।" 🌹🌹🌹
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पिछले कुछ समय में मेरे अनेक प्रियजन, असमय काल-कवलित हुये हैं| तीन माह पूर्व मेरे अतिप्रिय बड़े भाई साहब भी अचानक ही चले गए थे| जीवन का कोई भरोसा नहीं है| पता नहीं कौन सी साँस अंतिम हो| अतः हर समय भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए|
मेरे बाल्यकाल और युवावस्था के मित्रों में से सिर्फ एक ही मित्र जीवित बचा है| वह भी रुग्ण चल रहा है| रामचरितमानस की ये पंक्तियाँ ही सांत्वना देती हैं ---
"सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ |
हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ||"
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गीता में भगवान कहते हैं :--
"जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य| तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि||२:२७||"
अर्थात् जन्मने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है; इसलिए जो अटल है अपरिहार्य - है उसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये||
"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ||२:२२||"
जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है||
जीवात्मा सदा निर्विकार ही रहती है|
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कवि नाथुराम शास्त्री "नम्र" की लिखी यह प्रसिद्ध कविता आज याद आ रही है ---
"क्षणभंगुर - जीवन की कलिका,
कल प्रात को जाने खिली न खिली |
मलयाचल की शुचि शीतल मन्द,
सुगन्ध समीर मिली न मिली || 🌹🙏🌹
कलि काल कुठार लिए फिरता,
तन नम्र से चोट झिली न झिली |
कहले हरिनाम अरी रसना,
फिर अन्त समय में हिली न हिली || 🌹🙏🌹
मुख सूख गया रोते रोते,
फिर अमृत ही बरसाया तो क्या |
जब भव सागर में डूब चुके,
तब नाविक को लाया तो क्या || 🌹🙏🌹
युगलोचन बन्द हमारे हुए,
तब निष्ठुर तू मुस्काया तो क्या |
जब जीवन ही न रहा जग मे,
तब आकर दरश दिखाया तो क्या || 🌹🙏🌹
बली जाऊँ सदा इन नैनन की,
बलिहारी छटा पे में होता रहूँ |
मुझे भूले न नाम तुम्हारा प्रभु,,
जागृत या स्वप्न में सोता रहूँ || 🌹🙏🌹
हरे कृष्ण ही कृष्ण पुकारूँ सदा,
मुख आँसुओ से नित धोता रहूँ |
बृजराज तुम्हारे बियोग में मैं,
बस यूँ ही निरन्तर रोता रहूँ || 🌹🙏🌹
शाम भयी पर श्याम न आये,
श्याम बिना क्यों शाम सुहाये |
व्याकुल मन हर शाम से पूछे,
शाम बता क्यों श्याम न आये || 🌹🙏🌹
शाम ने श्याम का राज बताया,
शाम ने क्योंकर श्याम को पाया |
शाम ने श्याम के रंग में रंग कर,
अपने आप को श्याम बनाया || 🌹🙏🌹
वह पायेगा क्या रस का चस्का,
नहीं कृष्ण से प्रीत लगायेगा जो |
हरे कृष्ण उसे समझेगा वही,
रसिको के समाज में जायेगा जो || 🌹🙏🌹
ब्रज धूरी लपेट कलेवर में,
गुण नित्य किशोर के गायेगा जो |
हँसता हुआ श्याम मिलेगा उसे,
निज प्राणों की बाजी लगायेगा जो || 🌹🙏🌹
मन में बसी बस चाह यही,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ |
बिठला के तुम्हें मन मन्दिर में,
मनमोहिनी रूप निहारा करूँ ||🌹🙏🌹
भर के दृग पात्र में प्रेम का जल,
पद पंकज नाथ पखारा करूँ |
बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभो,
नित आरती भव्य उतारा करूँ || 🌹🙏🌹
जिनके मन में नन्दलाल बसे,
तिन और को नाम लियो न लियो |
जिसने बृंदावन धाम कियो,
तिन औनहु धाम कियो न कियो ||" 🌹🙏🌹
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आप अब को सादर सप्रेम नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !! 🌹🙏🌹
कृपा शंकर
१० दिसंबर २०२०