Tuesday, 10 December 2024

"कुंडलिनी महाशक्ति" का "परमशिव" से मिलन ही "योग" है ---

 "कुंडलिनी महाशक्ति" का "परमशिव" से मिलन ही "योग" है ---

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योग मार्ग की साधनाओं में क्रियायोग की साधना सब से अधिक प्रभावशाली है, जिसका रहस्य गीता के निम्न श्लोक में छिपा है ---
"अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे| प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः||४:२९||"
यह एक कूट श्लोक है जिसका वास्तविक अर्थ साधना द्वारा ही समझ में आ सकता है| क्रियायोग एक गुरुमुखी विद्या है जिसे सद्गुरु अपने अपने शिष्य पर अनुग्रह कर, उसे अपने सामने बैठा कर अपनी वाणी से उपदेश देकर ही सिखा सकता है| यह विद्या प्रत्यक्ष गुरु से ही सीखी जा सकती है, अन्यथा नहीं| इसकी सिद्धि भी गुरुकृपा से ही होती है|
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ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान, हंस:योग, और नादानुसंधान भी क्रियायोग साधना के भाग हैं| अंततः यह अद्वैत ब्रह्म की साधना है| थोड़ा सा हठयोग और तंत्र भी इस साधना में है| इस साधना में सबसे बड़ी आवश्यकता भक्ति की है जिसके बिना एक मिलीमीटर भी प्रगति नहीं हो सकती|
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मेरा एक खोजी स्वभाव रहा है जिस में सत्य को जानने की एक अति गहन जिज्ञासा थी| अतः जानबूझ कर बहुत अधिक भटकते हुए खूब सारे अनुभव प्राप्त किए हैं| अंततः पाया कि सुषुम्ना का क्रियायोग मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ है| कुंडलिनी महाशक्ति को जागृत कर, उसका सुषुम्ना की ब्रह्मउपनाड़ी में प्रवेश करा कर, सब चक्रों को भेदते हुए , कूटस्थ में परमशिव को समर्पित हो जाना ही क्रिया का उद्देश्य है| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
११ दिसंबर २०२०

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