परमात्मा के प्रेम से ही हमें संतुष्टि और तृप्ति मिलेगी ---
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अपने स्वाभाविक आध्यात्मिक विचारों को व्यक्त करने के लिए ही मैं फेसबुक पर नौ वर्ष पूर्व आया था| अब मैं पूरी तरह से संतुष्ट और तृप्त हूँ| खूब खुल कर निःसंकोच खूब लिखा| अनेक गलतियाँ भी कीं, पर उन्हें सुधारने वाले और सही मार्ग दिखाने वाले मित्र भी खूब मिले| फेसबुक पर अनेक सज्जनों, व संत-महात्माओं से परिचय और घनिष्ठता हुई| खूब सत्संग भी हुआ| फेसबुक का मैंने शत-प्रतिशत लाभ उठाया| मुझे किसी से किसी भी तरह की कोई शिकायत नहीं है|
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बचपन से ही मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक था| संघ के अनेक अच्छे-अच्छे प्रचारकों से मेरी खूब घनिष्ठता रही है| अतः राष्ट्रभक्ति के विचारों का होना स्वाभाविक था| अपने राष्ट्रभक्ति के विचारों को भी फेसबुक पर खूब खुल कर व्यक्त किया है|
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अब बापस आध्यात्म पर आता हूँ| मेरे पिताजी एक वकील थे जिनके पास आध्यात्मिक और धार्मिक पुस्तकों का बहुत अच्छा और दुर्लभ संग्रह था| अतः बहुत छोटी आयु में ही बहुत कुछ पढ़ने का अवसर मिला| मेरे बड़े भाई साहब एक नेत्र शल्य चिकित्सक थे| उन्हें भी उपनिषद और आगम ग्रन्थों के स्वाध्याय का बहुत अधिक शौक था| वे पुस्तकों को सदा स्वयं खरीद कर पढ़ते थे, किसी से कभी भी मांग कर नहीं| वे भी दुर्लभ पुस्तकों का एक बहुत बड़ा संग्रह छोड़कर गए हैं| मेरी भी आदत थी स्वयं खरीद कर अध्ययन करने की| मेरे पास भी एक हजार से भी अधिक पुस्तकों का संग्रह अपने आप ही हो गया है| किसी को भी पढ़ने के लिए मैं पुस्तकें देता नहीं हूँ, क्योंकि कोई बापस नहीं लौटाता| मेरी अनेक अमुल्य पुस्तकें दूसरों को देने से खो गईं|
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अब मैं काम की बात पर आता हूँ| पुस्तकों के स्वाध्याय से मुझे जानकारियाँ तो खूब मिलीं, लेकिन कोई संतुष्टि व तृप्ति नहीं मिली| संतुष्टि, तृप्ति और ज्ञान मिला तो सिर्फ ध्यान-साधना, भक्ति, और हरिःकृपा से| भक्ति व ध्यान-साधना से जो आध्यात्म के रहस्य अनावृत हुए, वे ग्रन्थों के स्वाध्याय से कभी भी नहीं हो सकते थे| अब इस समय मेरे इस शरीर की आयु लगभग ७३ वर्ष की है| बचा-खुचा समस्त जीवन परमात्मा के स्मरण, भक्ति और ध्यान में ही व्यतीत हो, यही जगन्माता से प्रार्थना है|
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इन पंक्तियाँ को लिखने का मेरा उद्देश्य यही है कि हमारे हृदय में यदि भक्ति है, और परमात्मा को पाने की अभीप्सा है, तो पढ़ें कम, और अपना अधिक से अधिक समय परमात्मा की भक्ति और ध्यान में ही लगाएँ| परमात्मा के प्रेम का खूब विस्तार करें| उसी से तृप्ति और संतुष्टि मिलेगी| आप सब को सप्रेम नमन !!
कृपा शंकर
११ दिसम्बर २०२०
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