"जिनके मन में नन्दलाल बसे, तिन और को नाम लियो न लियो।
जिसने बृंदावन धाम कियो, तिन औनहु धाम कियो न कियो।"
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पिछले कुछ समय में मेरे अनेक प्रियजन, असमय काल-कवलित हुये हैं| तीन माह पूर्व मेरे अतिप्रिय बड़े भाई साहब भी अचानक ही चले गए थे| जीवन का कोई भरोसा नहीं है| पता नहीं कौन सी साँस अंतिम हो| अतः हर समय भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए|
मेरे बाल्यकाल और युवावस्था के मित्रों में से सिर्फ एक ही मित्र जीवित बचा है| वह भी रुग्ण चल रहा है| रामचरितमानस की ये पंक्तियाँ ही सांत्वना देती हैं ---
"सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ |
हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ||"
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गीता में भगवान कहते हैं :--
"जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य| तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि||२:२७||"
अर्थात् जन्मने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है; इसलिए जो अटल है अपरिहार्य - है उसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये||
"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ||२:२२||"
जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है||
जीवात्मा सदा निर्विकार ही रहती है|
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कवि नाथुराम शास्त्री "नम्र" की लिखी यह प्रसिद्ध कविता आज याद आ रही है ---
"क्षणभंगुर - जीवन की कलिका,
कल प्रात को जाने खिली न खिली |
मलयाचल की शुचि शीतल मन्द,
सुगन्ध समीर मिली न मिली ||
कलि काल कुठार लिए फिरता,
तन नम्र से चोट झिली न झिली |
कहले हरिनाम अरी रसना,
फिर अन्त समय में हिली न हिली ||
मुख सूख गया रोते रोते,
फिर अमृत ही बरसाया तो क्या |
जब भव सागर में डूब चुके,
तब नाविक को लाया तो क्या ||
युगलोचन बन्द हमारे हुए,
तब निष्ठुर तू मुस्काया तो क्या |
जब जीवन ही न रहा जग मे,
तब आकर दरश दिखाया तो क्या ||
बली जाऊँ सदा इन नैनन की,
बलिहारी छटा पे में होता रहूँ |
मुझे भूले न नाम तुम्हारा प्रभु,,
जागृत या स्वप्न में सोता रहूँ ||
हरे कृष्ण ही कृष्ण पुकारूँ सदा,
मुख आँसुओ से नित धोता रहूँ |
बृजराज तुम्हारे बियोग में मैं,
बस यूँ ही निरन्तर रोता रहूँ ||
शाम भयी पर श्याम न आये,
श्याम बिना क्यों शाम सुहाये |
व्याकुल मन हर शाम से पूछे,
शाम बता क्यों श्याम न आये ||
शाम ने श्याम का राज बताया,
शाम ने क्योंकर श्याम को पाया |
शाम ने श्याम के रंग में रंग कर,
अपने आप को श्याम बनाया ||
वह पायेगा क्या रस का चस्का,
नहीं कृष्ण से प्रीत लगायेगा जो |
हरे कृष्ण उसे समझेगा वही,
रसिको के समाज में जायेगा जो ||
ब्रज धूरी लपेट कलेवर में,
गुण नित्य किशोर के गायेगा जो |
हँसता हुआ श्याम मिलेगा उसे,
निज प्राणों की बाजी लगायेगा जो ||
मन में बसी बस चाह यही,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ |
बिठला के तुम्हें मन मन्दिर में,
मनमोहिनी रूप निहारा करूँ ||
भर के दृग पात्र में प्रेम का जल,
पद पंकज नाथ पखारा करूँ |
बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभो,
नित आरती भव्य उतारा करूँ ||
जिनके मन में नन्दलाल बसे,
तिन और को नाम लियो न लियो |
जिसने बृंदावन धाम कियो,
तिन औनहु धाम कियो न कियो ||"
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आप अब को सादर सप्रेम नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० दिसंबर २०२०
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