Tuesday, 27 November 2018

क्रीमिया प्रायदीप का वर्तमान विवाद और और उसके कारण :----

क्रीमिया प्रायदीप का वर्तमान विवाद और और उसके कारण :----
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पूर्वी यूरोप में रूस और युक्रेन के मध्य चल रहा विवाद एक ऐसी वास्तविकता है जिस की मेरे लिए कल्पना करना भी बड़ा कठिन है| पूर्व सोवियत संघ में रूस के बाद युक्रेन सबसे बड़ा और उपयोगी घटक था| रूस में उपजाऊ भूमि की बड़ी कमी थी जब कि युक्रेन पूरे सोवियत संघ के लिए एक अन्नदाता गणराज्य था| सोवियत संघ की सेनाओं और प्रशासन में कई बड़े बड़े अधिकारी और कर्मचारी युक्रेन के थे| युक्रेन और रूस के युवक युवतियों में विवाह बहुत सामान्य था| एक दूसरे के यहाँ उनके हजारों परिवार बसे हुए हैं| सोवियत संघ के विघटन के समय क्रीमिया युक्रेन के अधिकार में था जिस पर रूस ने सैनिक हस्तक्षेप के द्वारा नीचे लिखे कारण से अपने अधिकार में ले लिया| तब से कभी परम मित्र रहे दोनों गणराज्य अब एक दूसरे के शत्रु बन गए हैं|
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काला सागर के भीतर ही क्रीमिया प्रायदीप के उत्तर-पूर्व में एक छोटा सा भूमि से घिरा अज़ोव सागर है जिस में जाने का एकमात्र मार्ग "कर्च जलडमरूमध्य" है| उसके पास ही उत्पन्न हुआ एक विवाद बहुत अधिक गहरा गया है| अजोव सागर के उस भाग में जिसे रूस अपना मानता है, रूस द्वारा यूक्रेन के समुद्री जहाज जब्त करने और नाविकों को बंधक बनाने के मामले ने तूल पकड़ लिया है, और रूस की इस कार्रवाई का अमेरिका व यूरोपीय संघ ने विरोध कर चेतावनी दी है| यूक्रेन की संसद ने तनाव को देखते हुए सीमावर्ती इलाकों में मार्शल लॉ लागू किया है| संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई गई है, और अमेरिका ने कार्रवाई की चेतावनी दी है|
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यह क्षेत्र भारत से दूर अवश्य है पर वहाँ वहाँ होने वाली किसी भी घटना का भारत पर प्रभाव अवश्य पड़ता है| सन १८५३ में आरम्भ हुए क्रीमिया के युद्ध में ब्रिटेन का बहुत बुरा हाल हुआ था| इस के पश्चात भारतीयों में विश्वास उत्पन्न हुआ कि ब्रिटेन अजेय नहीँ है, और १८५७ में भारत का प्रथम स्वतंत्रता सग्राम हुआ|
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उस क्षेत्र में रोमानिया, युक्रेन, तुर्की और रूस में मेरा जाना दो-तीन बार हुआ है अतः उस पूरे क्षेत्र का भूगोल मेरे दिमाग में है|
मानचित्र में देखने के लिए निम्न लिंक को दबाएँ .....
https://www.google.com/…/data=!4m5!3m4!1s0x40eac2a37171b3f7…
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क्रीमिया का युद्ध जुलाई १८५३ से सितम्बर १८५५ तक काला सागर (Black Sea) के आसपास हुआ था, जिस में फ्रांस, ब्रिटेन, सारडीनिया, और तुर्की एक तरफ़ थे तथा रूस दूसरी तरफ़ था| क्रीमिया की लड़ाई को इतिहास के सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण तथा अनिर्णायक युद्धों में से एक माना जाता है जिस में बेहद खून खराबे के बाद भी नतीजा कुछ भी नहीं निकला था|
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क्रीमिया का संक्षिप्त वर्तमान इतिहास :--- १०,१०० वर्गमील में फैले क्रीमिया प्रायदीप का महत्त्व पूर्वी यूरोप में बहुत अधिक रहा है| यूनानी, स्किथी, गोथ, हूण, ख़ज़र, बुलगार, तुर्क, मंगोल और बहुत सी जातियों के साम्राज्यों ने समय समय पर क्रीमिया पर अधिकार किया है| कभी तातार मुसलमानों का यह क्षेत्र था जिन में से अधिकाँश को रूसी तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन ने उजाड़ कर बलात् मध्य एशिया के वर्तमान तातारिस्तान गणराज्य में बसा दिया जो अब रूस का भाग है| अब यहाँ की जनसंख्या में १३% तातार मुसलमान हैं, और बाकी ८७% रूसी मूल के ईसाई हैं| क्रीमिया १८ वीं सदी से रूस का भाग था जिसे सन १८५४ में तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को भेंट कर दिया था|
२६ फरवरी २०१४ को सशस्त्र रूसी समर्थकों ने क्रीमिया के सरकारी भवनों पर अधिकार कर के स्वयं को युक्रेन से मुक्त होने की घोषणा कर दी| २ मार्च २०१४ को रूस ने वहाँ अपनी सेना भेज दी जिस से पूरे विश्व में हलचल मच गयी| ६ मार्च २०१४ को क्रीमिया की संसद ने रूसी संघ में शामिल होने का प्रस्ताव पास कर दिया, जिस पर १८ मार्च २०१४ को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हस्ताक्षर कर दिए| इस तरह क्रीमिया रूस का भाग बन गया|
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कृपा शंकर
२७ नवम्बर २०१८
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पुनश्चः :--- भूमध्य सागर से काला सागर में प्रवेश का एकमात्र मार्ग 'बास्फोरस' और 'दर्रा दानियल' है जो तुर्की के अधिकार में है| इस मार्ग को तुर्की बंद नहीं कर सकता क्योंकि बुल्गारिया, रोमानिया, माल्दोवा, युक्रेन, जॉर्जिया और रूस के क्रीमिया सहित क्षेत्र का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार इसी मार्ग से होता है| इस से निकट के अन्य देशों जैसे अज़रबेजान व आर्मेनिया के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर भी इस क्षेत्र का प्रभाव पड़ता है| रूस की काला सागर स्थित नौसेना भी आणविक अस्त्रों से युक्त बहुत शक्तिशाली है| संकट की स्थिति में ये देश अपना पुराना द्वेष भुलाकर रूस के साथ हो जाएँगे क्योंकी तुर्की से इनकी पारंपरिक शत्रुता रही है|

बास्फोरस जलडमरूमध्य और दर्रा दानियल एशिया और योरोप को जोड़ते हैं| इस जलडमरूमध्य के दोनों ओर वर्तमान इस्ताम्बूल नगर है जो पहले कुस्तुन्तुनिया के नाम से जाना जाता था| योरोप का भारत से सारा व्यापार कुस्तुन्तुनिया के मार्ग से ही होता था| जब तुर्कों ने इस पर अपना अधिकार कर लिया उसके पश्चात् ही बाध्य होकर योरोप को जलमार्ग से भारत की खोज करनी पड़ी थी|

असुर राज (गुंडा राज) .....

असुर राज (गुंडा राज) .....
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इस पृथ्वी पर एक बहुत बड़ा अदृश्य असुर राज्य करता आया है और अभी भी कर रहा है| उसके साथ अनेक छुटभैया असुर भी हैं| उन सब से बचना ही इस द्वंद्वात्मक जीवन की सार्थकता है| यह असुर ही हमें अपना उपकरण बना कर ..... लोभी, लालची, कामुक और स्वार्थी बनाता है, वासना में धकेलता है, और सारी स्वार्थ और अहंकार की राजनीति करता है| हमें दिग्भ्रमित करने के लिए आजकल झूठे, सनसनीखेज व दुराग्रहपूर्ण समाचार देता है, और घृणा व अधर्म का प्रचार कर के भ्रम फैला रहा है| ये सब अदृश्य असुर और राक्षस ही हैं जो मनुष्यों को अपना उपकरण बना कर वर्त्तमान में "असहिष्णुता" और "खून खराबे" की बातें कर रहे हैं| इनका एकमात्र उद्देश्य भौतिक सत्ता प्राप्त करना है| ये देवत्व को नष्ट करना चाहते हैं| इनमें से कोई सा असुर जब मरता है तो तुरंत कोई दूसरा उसका स्थान ले लेता है|
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इनसे निपटने का एक ही मार्ग है और वह है ..... हम परमात्मा के प्रति खुलें और परमात्मा को भक्ति द्वारा अपने जीवन में प्रवाहित होने दें, और हर कदम पर इस आसुरी शक्ति का विरोध करें|
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रक्षा करो हे प्रभु मैं आपकी शरण में हूँ | रक्षा करो, रक्षा करो |
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते | अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद व्रतं ममः" ||
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सबको शुभ कामनाएँ| ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२७ नवम्बर २०१८

साधना में आने वाली बाधाओं का निवारण .....

साधना में आने वाली बाधाओं का निवारण .....
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साधना में आ रही समस्त बाधाओं का एकमात्र कारण अज्ञान रूपी आवरण व विक्षेप है| इस का तुरंत और एकमात्र समाधान है ..... सत्संग, सत्संग और निरंतर सत्संग| अन्य कोई समाधान नहीं है| परमात्मा से परमप्रेम और उन का निरंतर स्मरण ..... सबसे बड़ा सत्संग है| कर्ताभाव को त्याग दो और बाधादायक किसी भी परिस्थिति को तुरंत नकार दो| एक सात्विक जीवन जीओ और आध्यात्मिक रूप से उन्नत लोगों के साथ रहो| अपने ह्रदय में पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम के साथ अपने अस्तित्व को गुरु व परमात्मा के प्रति समर्पित करने का निरंतर अभ्यास करते रहो|
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हठयोग की कुछ मुद्राएँ, आसन और क्रियाएँ, साधना में बहुत अधिक सहायक हैं जिन्हें किसी दक्ष और अधिकृत योगाचार्य से ही सीखनी चाहिएँ, हर किसी से नहीं| साधना में दो बातें बहुत अधिक आवश्यक हैं ..... एक तो कमर सदा सीधी रहे, यानी मेरुदंड सदा उन्नत रहे, और साधना के समय नाक से सांस चलती रहे| कमर सीधी रहे इसके लिए पश्चिमोत्तानासन जैसे आसनों का अभ्यास है| नाक से सांस चलती रहे, इस के लिए हठयोग में अनेक उपाय हैं जैसे अनुलोम-विलोम प्राणायाम, नासिका से की जाने वाली जलनेति, जलधौती आदि| यदि नाक में कोई एलर्जी आदि की समस्या है तो इसका उपचार किसी अच्छे नाक-कान-गले के शल्य चिकित्सक से करवाएँ| जीभ को सदा ऊपर की ओर मोड़ कर रखने का प्रयास करते रहो| यदि संभव हो तो खेचरी मुद्रा का अभ्यास किसी अधिकृत दक्ष योगाचार्य के निर्देशन में कीजिये| खेचरी मुद्रा सिद्ध होने पर ध्यान खेचरी मुद्रा में ही कीजिये| खेचरी मुद्रा के इतने लाभ हैं कि यहाँ उन्हें बताने के लिए स्थान कम पड़ जाएगा|
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कोई भी साधना करने से पूर्व अपने गुरु और परमात्मा से उनके अनुग्रह के लिए प्रार्थना अवश्य करें| ऊनी कम्बल के आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर बैठें| समय हो तो साधना से पूर्व हठयोग के कुछ आसन और प्राणायाम के अभ्यास अवश्य कर लीजिये| इस से नींद की झपकियाँ नहीं आयेंगी| शुभ कामनाएँ और नमन !
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवम्बर २०१८

सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी सिद्धि :---

सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी सिद्धि :---
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हमारे विचारों और हमारी बातों का दूसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, कोई हमारी बात सुनता नहीं है, इसका एकमात्र कारण हमारी व्यक्तिगत साधना में कमी होना है| हमारी व्यक्तिगत साधना अच्छी होगी तभी हमारे विचारों का प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा, अन्यथा नहीं| हिमालय की कंदराओं में तपस्यारत संतों के सद्विचार और शुभ कामनाएँ मानवता का बहुत कल्याण करती हैं| इसीलिए हमारे यहाँ माना गया है कि आत्मसाक्षात्कार यानि ईश्वर की प्राप्ति ही सबसे बड़ी सेवा है जो हम दूसरों के लिए कर सकते हैं|
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अपने अहं यानि अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का गुरु-तत्व / परमात्मा में पूर्ण समर्पण, सबसे बड़ी साधना है| उनके श्रीचरणों में आश्रय मिलना, सबसे बड़ी सिद्धि है| सहस्त्रार, श्रीगुरू चरणों का स्थान है| वहाँ पर स्थिति, श्रीगुरु चरणों में आश्रय पाना है| यह सबसे बड़ी सिद्धि है जिसके आगे अन्य सब सिद्धियाँ गौण हैं|
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"कृष्णं वन्दे ज्गत्गुरुम्"| साकार रूप में भगवान श्रीकृष्ण इस काल के सबसे बड़े गुरु हैं| वे गुरुओं के भी गुरु हैं| उनसे बड़ा कोई अन्य गुरु नहीं है| गायत्री मन्त्र के सविता देव भी वे ही हैं, भागवत मन्त्र के वासुदेव भी वे ही है, और समाधि में ब्रह्मयोनी कूटस्थ में योगियों को दिखने वाले पंचकोणीय श्वेत नक्षत्र यानि पंचमुखी महादेव भी वे ही हैं|

उस पंचमुखी नक्षत्र का भेदन और उससे परे की स्थिति योगमार्ग की उच्चतम साधना है, जिसके पश्चात जीव स्वयं शिवभाव को प्राप्त होने लगता है और तभी उसे -- शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि --- का बोध होता है|
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जब ह्रदय में एक परम प्रेम जागृत होता है और प्रभु को पाने की अभीप्सा और तड़फ़ पैदा होती है तब भगवान किसी ना किसी सद्गुरु के रूप में निश्चित रूप से आकर मार्गदर्शन करते हैं| आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन !
ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवम्बर २०१८

बाहर के विश्व में परिवर्तन लायेगा कौन ?.....

बाहर के विश्व में परिवर्तन लायेगा कौन ?.....
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कोई नहीं लायेगा| परिवर्तन लाने वाला सिर्फ परमात्मा है| हम निमित्त मात्र बन सकते हैं, कर्ता नहीं| कर्ता सिर्फ जगन्माता हैं| हम उनके उपकरण मात्र बन सकते हैं| हमारे प्रेम और समर्पण में पूर्णता हो, और कुछ भी नहीं चाहिए| जो करना है वह जगन्माता ही करेगी|
हम जंगल में जा रहे हैं और सामने से शेर आ जाए तो हम क्या करेंगे? जो करना है वह शेर ही करेगा, हम कर भी क्या सकते हैं?

शिवलिंग का अर्थ व आत्मलिंग की अनुभूतियाँ ..

शिवलिंग का अर्थ व आत्मलिंग की अनुभूतियाँ ..
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शिव का अर्थ है ..... परम मंगल और परम कल्याणकारी|
लिंग का अर्थ है जिसमें सब का विलय हो जाता है|
शिवलिंग का अर्थ है वह परम मंगल और कल्याणकारी परम चैतन्य जिसमें सब का विलय हो जाता है| सारा अस्तित्व, सारा ब्रह्मांड ही शिव लिंग है| स्थूल जगत का सूक्ष्म जगत में, सूक्ष्म जगत का कारण जगत में और कारण जगत का सभी आयामों से परे .... तुरीय चेतना .... में विलय हो जाता है| उस तुरीय चेतना का प्रतीक हैं .... शिवलिंग, जो साधक के कूटस्थ यानि ब्रह्मयोनी में निरंतर जागृत रहता है| उस पर ध्यान से चेतना ऊर्ध्वमुखी होने लगती है|
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आत्मलिंग की अनुभूतियाँ .....
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आत्मलिंग की अनुभूतियाँ सिद्ध गुरु की परम कृपा से ही होती हैं| इन की एक बार अनुभूतियाँ हों तो पीछे मुड़कर न देखें और ईश्वर की साधना में जुट जाएँ| गुरुकृपा निरंतर हमारा मार्गदर्शन और रक्षा करेगी| यहाँ जो मैं लिख रहा हूँ वह गुरुकृपा से प्राप्त मेरा निजी अनुभव है| जितना लिखने की मुझे अंतर से अनुमति मिल रही है उतना लिखूंगा, उससे आगे मौन हो जाऊंगा|
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(१) हमारी सूक्ष्म देह के मूलाधार से सहस्त्रार तक एक ओंकारमय शिवलिंग है| मेरुदंड में सुषुम्ना के सारे चक्र उसी में हैं| मानसिक रूप से उसी में रहते हुए परमशिव अर्थात ईश्वर की कल्याणकारी ज्योतिर्मय सर्वव्यापकता का ध्यान करें| ध्यान भ्रूमध्य से आरम्भ करते हुए सहस्त्रार पर ले जाएँ और श्रीगुरुचरणों में आश्रय लेते हुए वहीं से करें| इस शिवलिंग में स्थिति सब तरह के विक्षेपों से हमारी रक्षा करती है|
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(२) दूसरा सूक्ष्मतर शिवलिंग आज्ञाचक्र से सहस्त्रार तक उत्तर-सुषुम्ना में है| यह सर्वसिद्धिदायक है| जो उच्चतम साधक हैं वे अपनी चेतना को सदा निरंतर इसी में रखते हैं| इसमें स्थिति सिद्ध गुरु की आज्ञा और कृपा से ही होती है|
आगे और भी बहुत कुछ है पर कुछ निषेधात्मक कारणों मैं उनकी सार्वजनिक चर्चा नहीं कर सकता|
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भगवान परमशिव दुःखतस्कर हैं| तस्कर का अर्थ होता है .... जो दूसरों की वस्तु का हरण कर लेता है| भगवन परमशिव अपने भक्तों के सारे दुःख और कष्ट हर लेते हैं| वे जीवात्मा को संसारजाल, कर्मजाल और मायाजाल से मुक्त कराते हैं| जीवों के स्थूल, सूक्ष्म और कारण देह के तीन पुरों को ध्वंश कर महाचैतन्य में प्रतिष्ठित कराते है अतः वे त्रिपुरारी हैं| वे मेरे परम आराध्य देव हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ नवम्बर २०१८

हिन्दू राष्ट्र का निर्माण हमारी आध्यात्मिक साधना पर निर्भर है .....

हिन्दू राष्ट्र का निर्माण हमारी आध्यात्मिक साधना पर निर्भर है|

भारतवर्ष का हिन्दू राष्ट्र बनना तो सुनिश्चित है पर इसके लिए शारीरिक और वैचारिक क्षमता के साथ साथ आध्यात्मिक शक्ति का होना भी परमावश्यक है| इसके लिए समाज के सभी घटकों को साधना तो करनी ही होगी| हमारी निष्ठापूर्ण साधना में यदि सत्यता होगी तो परमात्मा हम से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करवा ही लेंगे| यह कार्य सिर्फ परमात्मा ही कर सकते हैं| वे ही हमें आवश्यक शक्ति और मार्गदर्शन देंगे और यह कार्य निश्चित रूप से होगा| अतः साधना द्वारा परमात्मा की कृपा प्राप्त करें, बाकी काम वे स्वयं ही करेंगे| हिन्दू राष्ट एक विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प है|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ नबम्बर २०१८

ISKCON (इस्कोन) के पक्ष में .....

ISKCON (इस्कोन) के पक्ष में .....
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मैं सन १९८१ में पहली बार इटली गया था जो कट्टर रोमन कैथोलिक ईसाईयों का देश है| उनके प्रायः हर बड़े नगर में ISKCON द्वारा संचालित FM रेडियो स्टेशन हैं जो दिन में कई बार निश्चित समय पर कृष्ण भजन प्रसारित करते हैं| रोम के वेटिकन में सैंट पीटर्स के बाहर भी मुझे कृष्ण भक्ति का प्रचार करने वाले इस्कोन के सदस्य मिले हैं|
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सन १९८७-८८ की बात है| युक्रेन के ओडेसा नगर में मैं कहीं घूमने गया था| उस समय वहाँ साम्यवादी शासन था और किसी भी धर्म के पालन पर प्रतिबन्ध था| एक पार्क में से महामंत्र (हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे) की आवाज सुनाई दी| वहाँ जा कर देखा तो अनेक युवा लडके-लड़कियाँ साम्यवादी शासन को चुनौती देते हुए बड़े साहस से महामंत्र का जाप कर रहे थे|
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यूरोप के कई नगरों में मुझे इस्कोन के अनुयायी मिले हैं| एक बार मैं कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के एक नगर में था| एक ईसाई पादरी मेरा अच्छा मित्र बन गया था| मैनें उस से मुझे किसी हिन्दू मंदिर में ले चलने का आग्रह किया| अगले दिन मौसम बड़ा खराब था, बर्फ भी गिर रही थी और कुछ कुछ पानी के छींटे भी पड़ रहे थे| नियत समय पर वह पादरी आया और लगभग एक-डेढ़ घंटे कार चलाकर एक हिन्दू मंदिर में ले गया जो इस्कॉन का था| मंदिर की व्यवस्था देखकर वह पादरी बहुत प्रभावित हुआ| वहाँ के रेस्टोरेंट में मैंने उसे शुद्ध शाकाहारी भोजन खिलाया| कुछ दिनों के बाद उस पादरी की चिट्ठी आई| उसने बताया कि उसे शाकाहारी खाना बहुत अच्छा लगा और दुबारा वह अपनी पत्नी के साथ (प्रोटेस्टेंट पादरी विवाह करते हैं) वहाँ खाना खाने गया और दोनों को ही शाकाहारी खाना इतना अच्छा लगा कि वे शाकाहारी हो गए हैं|
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बहुत पहिले मुझे एक रूसी मित्र ने बताया था कि रूस की सरकार सबसे अधिक हरे-कृष्ण वालों से डरती है| उनको जेल में डालती है तो वहाँ वे लोग छूत की बीमारी की तरह फैलते हैं और वहाँ के सारे कैदी हरे कृष्णा हो जाते हैं|
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मेरा सगा भतीजा जो एक बहुत बड़ा इंजिनियर है, अचानक ही इस्कॉन में साधू बन गया| मैं उस से मिलने गया तो पाया कि उस से वरिष्ठ साधू तो बहुत अधिक उच्च शिक्षा प्राप्त इंजिनियर हैं|
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अपने अनुभवों से मैं ISKCON (इस्कॉन) का समर्थक हूँ, हालांकि मैं उनका भाग नहीं हूँ, मेरी स्वाभाविक रूचि वेदांत दर्शन में है|
सभी को धन्यवाद और नमन !
कृपा शंकर
२४ नवम्बर २०१८

सनातन हिंदुत्व की रक्षा करें .....

इस राष्ट्र की अस्मिता सनातन हिन्दू धर्म है| हिदुत्व ही इस राष्ट्र की पहिचान है|
सनातन हिन्दू धर्म ही भारत है और भारत ही सनातन हिन्दू धर्म है| अनगिनत युगों में मिले संस्कारों से यहाँ की संस्कृति का जन्म हुआ है| इस संस्कृति का आधार ही सनातन धर्म है| यदि यह संस्कृति और धर्म ही नष्ट हो गए तो यह राष्ट्र भी नष्ट हो जाएगा|
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हिंदुत्व क्या है? :----
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सनातन धर्म अपरिभाष्य है| जितना शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं उसके अनुसार ...."जीवन में पूर्णता का सतत प्रयास, अपनी श्रेष्ठतम सम्भावनाओं की अभिव्यक्ति, परम तत्व की खोज, दिव्य अहैतुकी परम प्रेम, भक्ति, करुणा और परमात्मा को समर्पण ये सब सनातन हिन्दू धर्म और भारत की ही संस्कृति है|
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हमारे पर आक्रमण कैसे हो रहे हैं? :----
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धर्म-निरपेक्षता, सर्वधर्म समभाव और आधुनिकता आदि आदि नामों से हमारी अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं| भारत की शिक्षा और कृषि व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया है| झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है| पशुधन को कत्लखानों में कत्ल कर के विदेशों में भेजा जा रहा है| बाजार में मिलने वाला दूध असली नहीं है| दूध के पाउडर को घोलकर थैलियों में बंद कर असली दूध के नाम से बेचा जा रहा है| संस्कृति के नाम पर फूहड़ नाच गाने परोसे जा रहे हैं| हमारी कोई नाचने गाने वालों की संस्कृति नहीं है| हमारी संस्कृति -- ऋषियों मुनियों, महाप्रतापी धर्म रक्षक वीर राजाओं, ईश्वर के अवतारों, वेद वेदांगों, दर्शनशास्त्रों, धर्मग्रंथों और संस्कृत साहित्य की है| जो कुछ भी भारतीय है उसे हेय दृष्टी से देखा जा रहा है| विदेशी मूल्य थोपे जा रहे हैं| देश को निरंतर खोखला, निर्वीर्य और धर्महीन बनाया जा रहा है|
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हिंदुत्व की विशेषता :-----
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परोपकार, सब के सुखी व निरोगी होने और कल्याण की कामना हिन्दू धर्म व संस्कृति में ही है, अन्यत्र नहीं| अन्य मतावलम्बी सिर्फ अपने मत के अनुयाइयों के कल्याण की ही कामना करते हैं, उससे परे नहीं| औरों के लिए तो उनके मतानुसार अनंत काल तक नर्क की ज्वाला ही है और उनका ईश्वर भी मात्र उनके मतावलंबियों पर ही दयालू है| उनके ईश्वर की परिकल्पना भी एक ऐसे व्यक्ति की है जो अति भयंकर और डरावना है जो उनके मतावलम्बियों को तो सुख ही सुख देगा और दूसरों को अनंत काल तक नर्क की अग्नि में तड़फा कर आनंदित होगा| पर पीड़ा से आनंदित होने वाले ईश्वर से भय करना व अन्य मतावलंबियों को भयभीत और आतंकित करना ही उनकी संस्कृति है|
समुत्कर्ष, अभ्युदय और नि:श्रेयस की भावना ही सनातन हिदू धर्म का आधार हैं| अन्य संस्कृतियाँ इंद्रीय सुख और दूसरों के शोषण की कामना पर ही आधारित हैं|
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इन पंक्तियों के लेखक ने प्रायः पूरे विश्व की यात्राएँ की हैं और वहाँ के जीवन को प्रत्यक्ष देखा है| जो कुछ भी लिख रहा है वह अपने अनुभव से लिख रहा है|
धर्मनिरपेक्षतावादियों, सर्वधर्मसमभाववादियों और अल्पसन्ख्यकवादियों से मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि आपकी धर्मनिरपेक्षता, सर्वधर्मसमभाववाद और अल्पसंख्यकवाद तभी तक है जब तक भारत में हिन्दू बहुमत है| हिन्दुओं के अल्पमत में आते ही भारत, भारत ना होकर अखंड पकिस्तान हो जाएगा, और आपका वही हाल होगा जो पाकिस्तान और बंगलादेश के हिन्दुओं का हुआ है| यह अनुसंधान का विषय है कि वहाँ के मन्दिर और वहाँ के हिन्दू कहाँ गए? क्या उनको धरती निगल गई या आसमान खा गया? आपके सारे के सारे उपदेश और सीख क्या हिन्दुओं के लिए ही है? यह भी अनुसंधान का विषय है कि भारत के भी देवालय और मंदिर कहाँ गए? यहाँ की तो संस्कृति ही देवालयों और मंदिरों की संस्कृति थी| सन १९७१ में पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेशी हिन्दुओं को बड़ी हैवानियत के साथ मौत के घाट उतार दिया| तक़रीबन 30 लाख हिन्दुओं को एक महीने में क़त्ल कर दिया| 40 लाख हिन्दू महिलाओं का बलात्कार किया गया| इतना भयावह नरसंहार किया गया जिसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि ५ करोड़ बंगलादेशी हिन्दू अभी तक लापता हैं| सच बात है अगर एक बार मुस्लिम बहुसंख्यक हो गये तो फिर मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं| तब हिन्दुओं का सामूहिक नर-संहार निश्चित है|
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सनातन धर्म ही भारत का भविष्य है| सनातन धर्म ही भारत की राजनीति हो सकती है| भारत का भविष्य ही विश्व का भविष्य है| भारत की संस्कृति और हिन्दू धर्म का नाश ही विश्व के विनाश का कारण होगा| क्या पता उस विनाश का साक्षी होना ही हमारी नियति हो| जयशंकर प्रसाद जी के शब्दों में --
"हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर,
बैठ शिला की शीतल छाँह|
एक व्यक्ति भीगे नयनों से,
देख रहा था प्रलय अथाह|"
हो सकता है कि उस व्यक्ति की पीड़ा ही हमारी पीड़ा हो, और उसकी नियति ही हमारी नियति हो|
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मेरे ह्रदय की यह पीड़ा समस्त राष्ट्र की पीड़ा है जिसे मैंने व्यक्त किया है| मुझे तो पता है की मुझे क्या करना है, और वह करने का प्रयास कर रहा हूँ| मुझे किसी को और कुछ भी नहीं कहना है| यह मेरे ह्रदय की अभिव्यक्ति मात्र है| किसी से मुझे कुछ भी नहीं लेना देना है| सिर्फ एक प्रार्थना मात्र है आप सब से कि अपने देश भारत के धर्म और संस्कृति की रक्षा करें|
वन्दे मातरम| भारत माता कीजय|
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ॐ सहना भवतु, सहनो भुनक्तु सहवीर्यं करवावहै ।
तेजस्वीनावधीतमस्तु माविद्विषावहै ॥ ॐ शांति:! शांति: !! शांति !!
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वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।

वेदों के चार महावाक्य .....

वेदान्त में वेदों के चार महावाक्यों का बड़ा महत्व है .....
(१) 'प्रज्ञानं ब्रह्म' -------- (ऐतरेय उपनिषद) --------- ऋग्वेद,
(२) 'अहम् ब्रह्मास्मि' --- (बृहदारण्यक उपनिषद) --- यजुर्वेद,
(३) 'तत्वमसि' ---------- (छान्दोग्य उपनिषद्) ------- सामवेद,
(४) 'अयमात्माब्रह्म' ----- (मांडूक्य उपनिषद) --------अथर्व-वेद |
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इन के शाब्दिक अर्थ पर मत जाइए, इनका तात्विक अर्थ परमात्मा की कृपा से ही समझ में आ सकता है| इन महावाक्यों को आधार बना कर हमारे महान ऋषियों ने तपस्या की और महान बने| वे महावाक्य हमारे भी जीवन का आधार बनें| इनके दर्शन ऋषियों को गहन समाधि में हुए| इनकी समाधि भाषा है जिसे कोई श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही समझा सकता है|

साधन चतुष्टय :-----

साधन चतुष्टय :-----
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'ब्रह्मसूत्र शंकरभाष्य' में तथा 'विवेक चूडामणि' ग्रंथ में आचार्य शंकर इन की चर्चा करते हैं| वेदान्त दर्शन में प्रवेश के लिए इन चारों साधनों की योग्यता होनी अनिवार्य है| किसी भी मार्ग के साधक हों, इनकी योग्यता के बिना मार्ग प्रशस्त नहीं होता| ये चारों साधन हैं .....
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(१) नित्यानित्य वस्तु विवेक : --- अर्थात् नित्य एवं अनित्य तत्त्व का विवेक ज्ञान| सबसे पहले साधक अपने से अधिक उन्नत सज्जन पुरुषों व महात्माओं का सत्संग करे| 'बिनु सत्संग विवेक न होई| राम कृपा बिनु सुलभ न सोई||' अर्थात बिना सत्संग के विवेक नही मिलता, प्रभु कृपा के बिना सत्संग नही मिलता| सज्जन पुरुषों का सत्संग करने से पाप नष्ट होता है, कुसंस्कार नष्ट होता है, उत्तम संस्कार प्राप्त होता है, और नित्य-अनित्य का विवेक मिलता है| सत्संग के द्वारा ही विवेक प्राप्त होता है, यह विवेक मनुष्य की पहली योग्यता है|
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(२) इहमुत्रार्थ भोगविराग :--- जागतिक एवं स्वार्गिक दोनों प्रकार के भोग-ऐश्वर्यों से अनासक्ति| जब मनुष्य की विवेक शक्ति पूर्ण रूप से जागृत हो जाती है तब उसे संसार से वैराग्य हो जाता है, और संसार के विषय भोगों की आसक्ति नष्ट हो जाती है, तब मनुष्य संसार के विषय भोगों में लिप्त नही होता, निष्काम भाव से कर्म करता है और कर्म-फल के बंधन से मुक्त हो जाता है| यह वैराग्य मनुष्य की दूसरी योग्यता है|
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(३) शमदमादि षट् साधन सम्पत् :----
शम, दम, श्रद्धा, समाधान, उपरति, तितिक्षा, ये छः साधन हैं| वैराग्य होने के बाद शम, दम, श्रद्धा, समाधान, उपरति और तितिक्षा .... इन छः गुणों का होना बड़ा आवश्यक है| मैं यहाँ विस्तार से संमझा नहीं पाऊंगा| किसी विद्वान् महात्मा से इनको समझ लें|
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(४) मुमुक्षत्व :--–
मोक्षानुभूति की उत्कण्ठ अभिलाषा| ही मुमुक्षत्व है| जब साधक शम दमादि षट सम्पत्तियों के द्वारा जितेंद्रिय हो जाता है, तब मुमुक्षुत्व मिलता है|
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उपरोक्त चारों साधन .... "साधन-चतुष्टय" कहलाते हैं| ये चारों साधन ही साधक को वेदान्त दर्शन का अधिकारी बनाते हैं| इस छोटे से लेख में इनको ठीक से समझा पाना असंभव है| मुमुक्षु को चाहिए कि वह विद्वान् संत-महात्माओं का सत्संग करे और उन से ही इस विषय का ज्ञान प्राप्त करे| सभी को धन्यवाद !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२३ नवम्बर २०१८

आध्यात्मिक साधनाओं का आरम्भ .....

आध्यात्मिक साधनाओं का आरम्भ .....
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हे विश्व के अमृत पुत्रो, श्रुति भगवती हमें "शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः" कह कर संबोधित करती है| हम सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं|
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सारी आध्यात्मिक साधनाओं का आरम्भ कृष्ण यजुर्वेद से होता है| तत्पश्चात तो उसका सिर्फ विस्तार ही विस्तार है| कृष्ण यजुर्वेद के श्वेताश्वतरोपनिषद में सनातन हिन्दू धर्म का सारा साधना पक्ष और ज्ञानयोग दिया हुआ है| इस उपनिषद् के छओं अध्यायों में जगत के मूल कारण, ॐकार-साधना, परमात्म-तत्व से साक्षात्कार, ध्यानयोग, प्राणायाम, जगत की उत्पत्ति, जगत के संचालन और विलय का कारण, विद्या-अविद्या, जीव की नाना योनियों से मुक्ति के उपाय, और परमात्मा की सर्वव्यापकता का वर्णन किया गया है| सारी आध्यात्मिक साधनाएँ यहीं से आरम्भ होती हैं| यह उपनिषद् अपने दूसरे अध्याय में हम सब को अमृत पुत्र कहता है| हम सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं|
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स्वयं को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है| जो भी शिक्षा हमें जन्म से पापी होना सिखाती है वह वेदविरुद्ध होने के कारण विष के समान त्याज्य है| सिर्फ वेद ही प्रमाण हैं| कोई भी पौराणिक या आगम शास्त्रों की शिक्षा भी यदि वेदविरुद्ध है तो वह त्याज्य है| कुछ मंदिरों में आरती के बाद " पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसंभवः" जैसा अभद्र मंत्रपाठ करते हैं, मैं उस पर ध्यान नहीं देता क्योंकि मेरी दृष्टी में यह मन्त्र वेदविरुद्ध है|
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ईसाईयत यानि ईसाई पंथ का मुख्य आधार मूल-पाप यानि Original Sin का सिद्धांत है अतः वह वेदविरुद्ध, अमान्य और त्याज्य है| सारी ईसाईयत Original Sin के सिद्धांत पर खड़ी है जो खोखला और झूठा सिद्धांत है| ईसाई पंथ दो सिद्धांतों पर एक खडा है .... पहला तो है Original Sin, और दूसरा है Resurrection| इनके बिना यह पंथ आधारहीन है| दोनों ही झूठे हैं|
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श्रुति भगवती तो ऋग्वेद में कहती है ..... "अहं इन्द्रो न पराजिग्ये" अर्थात मैं इंद्र हूँ, मेरा पराभव नहीं हो सकता| वेदों के चार महावाक्य हैं ....
(१) प्रज्ञानं ब्रह्म --- (ऐतरेय उपनिषद) --- ऋग्वेद,
(२) अहम् ब्रह्मास्मि --- (बृहदारण्यक उपनिषद) --- यजुर्वेद,
(३) तत्वमसि --- (छान्दोग्य उपनिषद्) --- सामवेद,
(४) अयमात्माब्रह्म --- (मांडूक्य उपनिषद) ---अथर्व-वेद |
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हम महान ऋषियों की संतानें हैं, अतः जिन महावाक्यों को आधार बना कर हमारे हमारे महान ऋषियों ने तपस्या की और महान बने वे महावाक्य हमारे भी जीवन का आधार बनें| इन्हें परमात्मा की कृपा द्वारा ही समझा जा सकता है क्योंकि इनके दर्शन ऋषियों को गहन समाधि में हुए| इनकी समाधि भाषा है| इन्हें कोई श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही समझा सकता है|
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सारे उपनिषद् हमें प्रणव यानि ओंकार पर ध्यान करने का आदेश देते हैं| गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण का भी यही आदेश और उपदेश है| हमारे शास्त्रों में कहीं भी मनुष्य को जन्म से पापी नहीं कहा गया है| अतः हम स्वधर्म पर अडिग रहें और स्वधर्म का पालन करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ नवम्बर २०१८

मृत देह का अंतिम संस्कार और आगे के सारे कर्मकांड बहुत अधिक मंहगे होते हैं ....

जब कोई भी प्रारब्धवश या अपना समय आने पर अपनी देह का त्याग करता है, सांसारिक भाषा में कहें तो .... मरता है, तब उसके परिवार जनों को बहुत अधिक कष्ट होता है| मृत देह का अंतिम संस्कार और आगे के सारे कर्मकांड बहुत अधिक मंहगे होते हैं| गरीब लोगों को तो बहुत अधिक कष्ट होता है| वे कहीं से भी रुपया लेकर कर्मकांड करते हैं और कर्ज के नीचे दब जाते हैं| इस का कोई न कोई समाधान तो अवश्य हो सकता ही है| वह क्या हो सकता है इस पर समाज के कर्णधारों को विचार करना चाहिए|
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देहरादून के ब्रह्मलीन स्वामी ज्ञानानंद गिरी महाराज ने मुझे अपने एक गुजराती साधक मित्र के बारे में बताया था जो गुजरात के जूनागढ़ जिले के एक छोटे से गाँव में रहते थे| उन्होंने जब देहत्याग किया तब स्वतः ही उनकी मृत देह बिस्तर पर ही जल कर भस्म हो गयी और राख में परिवर्तित हो गयी| न तो बिस्तर जला और चद्दर पर कोई निशान तक नहीं पड़ा| कहते हैं कि कबीर जब मरे तो उनकी मृत देह फूलों में परिवर्तित हो गयी थी|
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भौतिक विज्ञान में सिद्धांत रूप से यह संभव है यदि हम किसी विद्या से अणुओं की संरचना को परिवर्तित कर सकें| हर पदार्थ अणुओं से बना है, एक पदार्थ की दूसरे पदार्थ से भिन्नता इसी पर निर्भर है कि उस के अणु में कितने इलेक्ट्रान हैं| अंततः अणु भी ऊर्जा से ही निर्मित हैं| इस ऊर्जा के पीछे भी परमात्मा का एक विचार और संकल्प है| परमात्मा के उस विचार यानी संकल्प से जुड़ कर किसी भी भौतिक रचना को परिवर्तित किया जा सकता है| वाराणसी में स्वामी विशुद्धानंद सरस्वती नाम के संत हुए हैं जिनमें यह सिद्धि थी कि वे सूर्य की किरणों से एक पदार्थ को दूसरे पदार्थ में परिवर्तित कर दिया करते थे| वे गंधबाबा के नाम से प्रसिद्ध थे, जिसको भी आशीर्वाद देते उसके हाथों में मनचाहे फूलों की गंध आने लगती थी| परमहंस योगानंद ने अपनी विश्वप्रसिद्ध पुस्तक 'योगी कथामृत' में उनके ऊपर एक पूरा अध्याय ही लिखा है| गंधबाबा के बारे में महामहोपाध्याय पंडित गोपीनाथ कविराज ने, और अँगरेज़ पत्रकार पॉल ब्रंटन ने भी अपनी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक "इन सर्च ऑफ़ सीक्रेट इंडिया" में खूब लिखा है|
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मेरे यह सब लिखने का अभिप्राय यह है कि ऐसी कोई विद्या अवश्य ही होगी जिसका प्रयोग करने पर व्यक्ति अपनी मृत देह के अणुओं की संरचना को विखंडित कर सके ताकि उसके परिवार जनों को कोई आर्थिक कष्ट न हो|
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सभी को धन्यवाद ! ॐ नमो नारायण !
कृपा शंकर
२२ नवम्बर २०१८