Tuesday 27 November 2018

साधन चतुष्टय :-----

साधन चतुष्टय :-----
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'ब्रह्मसूत्र शंकरभाष्य' में तथा 'विवेक चूडामणि' ग्रंथ में आचार्य शंकर इन की चर्चा करते हैं| वेदान्त दर्शन में प्रवेश के लिए इन चारों साधनों की योग्यता होनी अनिवार्य है| किसी भी मार्ग के साधक हों, इनकी योग्यता के बिना मार्ग प्रशस्त नहीं होता| ये चारों साधन हैं .....
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(१) नित्यानित्य वस्तु विवेक : --- अर्थात् नित्य एवं अनित्य तत्त्व का विवेक ज्ञान| सबसे पहले साधक अपने से अधिक उन्नत सज्जन पुरुषों व महात्माओं का सत्संग करे| 'बिनु सत्संग विवेक न होई| राम कृपा बिनु सुलभ न सोई||' अर्थात बिना सत्संग के विवेक नही मिलता, प्रभु कृपा के बिना सत्संग नही मिलता| सज्जन पुरुषों का सत्संग करने से पाप नष्ट होता है, कुसंस्कार नष्ट होता है, उत्तम संस्कार प्राप्त होता है, और नित्य-अनित्य का विवेक मिलता है| सत्संग के द्वारा ही विवेक प्राप्त होता है, यह विवेक मनुष्य की पहली योग्यता है|
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(२) इहमुत्रार्थ भोगविराग :--- जागतिक एवं स्वार्गिक दोनों प्रकार के भोग-ऐश्वर्यों से अनासक्ति| जब मनुष्य की विवेक शक्ति पूर्ण रूप से जागृत हो जाती है तब उसे संसार से वैराग्य हो जाता है, और संसार के विषय भोगों की आसक्ति नष्ट हो जाती है, तब मनुष्य संसार के विषय भोगों में लिप्त नही होता, निष्काम भाव से कर्म करता है और कर्म-फल के बंधन से मुक्त हो जाता है| यह वैराग्य मनुष्य की दूसरी योग्यता है|
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(३) शमदमादि षट् साधन सम्पत् :----
शम, दम, श्रद्धा, समाधान, उपरति, तितिक्षा, ये छः साधन हैं| वैराग्य होने के बाद शम, दम, श्रद्धा, समाधान, उपरति और तितिक्षा .... इन छः गुणों का होना बड़ा आवश्यक है| मैं यहाँ विस्तार से संमझा नहीं पाऊंगा| किसी विद्वान् महात्मा से इनको समझ लें|
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(४) मुमुक्षत्व :--–
मोक्षानुभूति की उत्कण्ठ अभिलाषा| ही मुमुक्षत्व है| जब साधक शम दमादि षट सम्पत्तियों के द्वारा जितेंद्रिय हो जाता है, तब मुमुक्षुत्व मिलता है|
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उपरोक्त चारों साधन .... "साधन-चतुष्टय" कहलाते हैं| ये चारों साधन ही साधक को वेदान्त दर्शन का अधिकारी बनाते हैं| इस छोटे से लेख में इनको ठीक से समझा पाना असंभव है| मुमुक्षु को चाहिए कि वह विद्वान् संत-महात्माओं का सत्संग करे और उन से ही इस विषय का ज्ञान प्राप्त करे| सभी को धन्यवाद !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२३ नवम्बर २०१८

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