सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी सिद्धि :---
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हमारे विचारों और हमारी बातों का दूसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, कोई हमारी बात सुनता नहीं है, इसका एकमात्र कारण हमारी व्यक्तिगत साधना में कमी होना है| हमारी व्यक्तिगत साधना अच्छी होगी तभी हमारे विचारों का प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा, अन्यथा नहीं| हिमालय की कंदराओं में तपस्यारत संतों के सद्विचार और शुभ कामनाएँ मानवता का बहुत कल्याण करती हैं| इसीलिए हमारे यहाँ माना गया है कि आत्मसाक्षात्कार यानि ईश्वर की प्राप्ति ही सबसे बड़ी सेवा है जो हम दूसरों के लिए कर सकते हैं|
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अपने अहं यानि अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का गुरु-तत्व / परमात्मा में पूर्ण समर्पण, सबसे बड़ी साधना है| उनके श्रीचरणों में आश्रय मिलना, सबसे बड़ी सिद्धि है| सहस्त्रार, श्रीगुरू चरणों का स्थान है| वहाँ पर स्थिति, श्रीगुरु चरणों में आश्रय पाना है| यह सबसे बड़ी सिद्धि है जिसके आगे अन्य सब सिद्धियाँ गौण हैं|
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"कृष्णं वन्दे ज्गत्गुरुम्"| साकार रूप में भगवान श्रीकृष्ण इस काल के सबसे बड़े गुरु हैं| वे गुरुओं के भी गुरु हैं| उनसे बड़ा कोई अन्य गुरु नहीं है| गायत्री मन्त्र के सविता देव भी वे ही हैं, भागवत मन्त्र के वासुदेव भी वे ही है, और समाधि में ब्रह्मयोनी कूटस्थ में योगियों को दिखने वाले पंचकोणीय श्वेत नक्षत्र यानि पंचमुखी महादेव भी वे ही हैं|
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हमारे विचारों और हमारी बातों का दूसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, कोई हमारी बात सुनता नहीं है, इसका एकमात्र कारण हमारी व्यक्तिगत साधना में कमी होना है| हमारी व्यक्तिगत साधना अच्छी होगी तभी हमारे विचारों का प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा, अन्यथा नहीं| हिमालय की कंदराओं में तपस्यारत संतों के सद्विचार और शुभ कामनाएँ मानवता का बहुत कल्याण करती हैं| इसीलिए हमारे यहाँ माना गया है कि आत्मसाक्षात्कार यानि ईश्वर की प्राप्ति ही सबसे बड़ी सेवा है जो हम दूसरों के लिए कर सकते हैं|
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अपने अहं यानि अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का गुरु-तत्व / परमात्मा में पूर्ण समर्पण, सबसे बड़ी साधना है| उनके श्रीचरणों में आश्रय मिलना, सबसे बड़ी सिद्धि है| सहस्त्रार, श्रीगुरू चरणों का स्थान है| वहाँ पर स्थिति, श्रीगुरु चरणों में आश्रय पाना है| यह सबसे बड़ी सिद्धि है जिसके आगे अन्य सब सिद्धियाँ गौण हैं|
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"कृष्णं वन्दे ज्गत्गुरुम्"| साकार रूप में भगवान श्रीकृष्ण इस काल के सबसे बड़े गुरु हैं| वे गुरुओं के भी गुरु हैं| उनसे बड़ा कोई अन्य गुरु नहीं है| गायत्री मन्त्र के सविता देव भी वे ही हैं, भागवत मन्त्र के वासुदेव भी वे ही है, और समाधि में ब्रह्मयोनी कूटस्थ में योगियों को दिखने वाले पंचकोणीय श्वेत नक्षत्र यानि पंचमुखी महादेव भी वे ही हैं|
उस
पंचमुखी नक्षत्र का भेदन और उससे परे की स्थिति योगमार्ग की उच्चतम साधना
है, जिसके पश्चात जीव स्वयं शिवभाव को प्राप्त होने लगता है और तभी उसे --
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि --- का बोध होता है|
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जब ह्रदय में एक परम प्रेम जागृत होता है और प्रभु को पाने की अभीप्सा और तड़फ़ पैदा होती है तब भगवान किसी ना किसी सद्गुरु के रूप में निश्चित रूप से आकर मार्गदर्शन करते हैं| आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन !
ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवम्बर २०१८
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जब ह्रदय में एक परम प्रेम जागृत होता है और प्रभु को पाने की अभीप्सा और तड़फ़ पैदा होती है तब भगवान किसी ना किसी सद्गुरु के रूप में निश्चित रूप से आकर मार्गदर्शन करते हैं| आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन !
ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवम्बर २०१८
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