Monday, 19 March 2018

धर्म क्या है ? क्या धर्म परिवर्तनशील है? .....

धर्म क्या है ? क्या धर्म परिवर्तनशील है? .....
.
मेरी अति अल्प और सीमित बुद्धि से मुझे तो यही समझ में आया है कि .... "एकमात्र सत्य परमात्मा है| इस सत्य का जीवन में अवतरण ही धर्म है| जीवन में परमात्मा का न होना ही अधर्म है|" धर्म सिर्फ एक ही है| धर्म अनेक नहीं हो सकते| सबके जीवन में एक ही धर्म है| धर्म सनातन है| उसका निज जीवन में ह्रास हो सकता है पर वह कभी परिवर्तित नहीं हो सकता| धर्म परिवर्तन का विषय नहीं है| पूरी सृष्टि जिन सनातन अपरिवर्तनीय नियमों के अंतर्गत चल रही है, वह धर्म ही है| मनुष्य का स्वभाव परिवर्तित होकर दैवीय या आसुरी हो सकता है, मनुष्य अधर्मी हो सकता है, धर्म-विरुद्ध होकर विधर्मी हो सकता है, पर धर्म परिवर्तित नहीं हो सकता| धर्म की विभिन्न अवस्थाएं हो सकती हैं पर धर्म .... धर्म ही है| वह कभी बदल नहीं सकता|
.
परमात्मा ही सत्य है, जिसका अंश होने से आत्मा भी सत्य है जिसका नाश नहीं हो सकता| आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल गीला नहीं कर सकता, वायु उड़ा नहीं सकती, आकाश अपने में विलय नहीं कर सकता| कोई भी पंचभूत इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते| अतः कोई आत्मा कभी धर्मभ्रष्ट नहीं हो सकती| हो सकता है उस पर अज्ञान का आवरण छा जाए| पर धर्म कभी भ्रष्ट नहीं हो सकता|
.
इस विषय का अधिक ज्ञान तो ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय महात्मा आचार्य ही दे सकते हैं या परमात्मा की प्रत्यक्ष कृपा से ही यह विषय समझा जा सकता है| मैं कोई आचार्य नहीं हूँ, पर जैसा मेरी अल्प व सीमित बुद्धि से समझ में आया वैसा मैंने प्रभु की प्रेरणा से लिख दिया है|
.
जीवन का लक्ष्य कोई इन्द्रीय सुखों कि प्राप्ति नहीं है| इन्द्रीय सुख उस मधु की तरह हैं जिसमें विष घुला हुआ है| जीवन का लक्ष्य कोई स्वर्ग की प्राप्ति भी नहीं है| इन सब में पतन ही पतन है| ये कभी पूर्णता और तृप्ति नहीं दे सकतीं| आत्म-तत्व में स्थित होना ही हमारा एकमात्र परम धर्म है| इसके लिए धर्माचरण करना होगा| धर्माचरण है ... शरणागति द्वारा परमात्मा को पूर्ण समर्पण का निरंतर प्रयास| यही जीवन कि सार्थकता है|
.
मत- मतान्तरों को "धर्म" से न जोड़िये| धर्म इतना व्यापक है कि उसे मत-मतान्तरों में सीमित नहीं किया जा सकता| हम मत को धर्म मान लेते हैं, यहीं से सब समस्याओं का आरम्भ होता है| धर्म एक ही है, अनेक नहीं| कणाद ऋषि ने धर्म को "यथोअभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिसधर्मः" परिभाषित किया है| हम मत-मतान्तरों को ही धर्म मान लेते हैं जो गलत है| हम मनुष्य नहीं बल्कि शाश्वत आत्मा हैं| मनुष्य देह एक वाहन मात्र है लोकयात्रा के लिए| यह एक मोटर साइकिल की तरह है जिस पर कुछ काल के लिए यात्रा कर रहे हैं| मानवतावाद नाम का कोई शब्द हमारे शास्त्रों में नहीं है| समष्टि के कल्याण की बात की गयी है, न कि मनुष्य मात्र के कल्याण की|
.
जीवन में 'धर्म' तभी साकार हो सकता है जब हमारे ह्रदय में परमात्मा हो| मनु ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं:--
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः| धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ||
(धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरङ्ग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ;
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० मार्च २०१६


आध्यात्मिक रंगों से होली .....
.
बचपन से आज तक हमारे परिवार में हम लोग तो होली के दिन भगवान नृसिंह की पूजा और भक्त प्रहलाद कि जय जयकार करते आये हैं| पर एक आध्यात्मिक रंगों की होली भी है जिसका आनंद हमें लेना चाहिए|
फागुन के दिन चार रे
होली खेलो मना रे
बिन करताल पखावज बाजे
रोम रोम रमिकार रे
बिन सुरताल छतिसौं गाँवे
अनहद की झंकार रे
होली खेलो मना रे
.
होली का त्योहार वास्तव में भक्ति का पर्व है| यह भक्त प्रहलाद की आस्था के विजय का दिन है| होलिका ... अभक्ति की, और प्रहलाद ... भक्ति के प्रतीक हैं|
होलिका- दहन .... काम-दहन (काम वासनाओं का दहन) है| अपने अंतर में होली की अग्नि जलाकर उसमें क्षुद्र सांसारिक वासनाओं का दमन, आध्यत्मिक उन्नति के पथ पर बढ़ना है| बाहर का होलिका दहन तो मात्र प्रतीकात्मक है|
.
भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से जिस तरह से कामदेव को भस्म कर दिया था, उसी तरह से अपने अंतर की वासनाओं को नष्ट कर, झूठे अहंकार और शत्रुता को भुलाकर हमें एक-दुसरे को गले लगाना चाहिए| यह प्रेम कि अभिव्यक्ति है|
.
होली के बारे में एक किंवदन्ती है कि होलिका नाम की राक्षसी किसी गाँव में घुसकर मासूम बच्चों को आतंकित करती थी अतः सब ने अग्नि जलाकर उसे गाँव से बाहर खदेड़ दिया| धूलपूजन (धुलंडी) देवताओं की मारक शक्ति का आवाहन है|
.
हमें (जीव को) अपने आध्यात्मिक रंगों से (यानि पूर्ण भक्ति से) ठाकुर जी (परमात्मा) के साथ ही होली खेनी चाहिए|

आप सब को आने वाले होली के पर्व की अभी से शुभ कामनाएँ|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० मार्च २०१६

भगवान किसी की जागीर नहीं है .....

भगवान किसी की जागीर नहीं है .....
.
कोई भी मत, सिद्धांत, मजहब, Religion या विचारधारा हो, वह खुदा, God यानि परमात्मा को अपनी जागीर नहीं बना सकती| परमात्मा सर्वव्यापी और सर्वस्व है| मनुष्य की अल्प और सीमित बुद्धि उस असीम को नहीं समझ सकती| हम परमात्मा के बारे में भी अपनी कल्पनाएँ कर बैठते हैं और सब पर अपने विचार थोपने की भरपूर चेष्टा करते हैं, और कहते हैं कि फलाँ फलाँ महापुरुष ने ऐसा कहा अतः उसकी बात ही सत्य है| अपनी बात मनवाने के लिए ही यानि मज़हब के नाम पर ही आज तक के प्रायः सभी युद्ध हुए हैं, करोड़ों लोगों की निर्मम हत्याएँ हुई है, और अनेक राष्ट्र और सभ्यताएँ नष्ट कर दी गयी हैं|
.
मुझे बहुत ही अल्प ज्ञान जो सूफी विचारधारा पर है उस पर कुछ चर्चा कर रहा हूँ| मैंने मौलाना रूमी को पढ़ा है| उनके विचार अद्वैत वेदान्त से मिलते हैं| शम्स तवरेज़, हसन, अबू हाशिम, बायजीद बिस्तामी आदि मनीषी विचारकों को भी मैं पढना चाहता था पर अवसर नहीं मिला| अब इस आयु में उतना अध्ययन संभव भी नहीं है| पर इतना पता है कि इन विचारकों को इस्लाम की मुख्य धारा ने कभी स्वीकार नहीं किया और ऐसे स्वतंत्र विचारकों की हत्याएँ कर दी गईं| अब उनके जैसे महान विचारों के लोग मिलते ही नहीं हैं| अनेक लोग स्वयं को सूफी कहते हैं पर उनके विचारों में एकेश्वरवाद है ही नहीं| सूफ़ी विचारकों ने तौहीद (Monotheism/एकेश्वरवाद) को एक क्रांतिकारी रूप दिया| उनके सिद्धांत में प्रेमी और प्रेमिका यानि भक्त और भगवान दोनों एक हो गए| उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि .... जो भी ईश्वर के प्रेम में डूब कर फना (मिट) हो गया वही ईश्वर है|
.
ईरान में एक बहुत प्रसिद्ध मनीषी विचारक .... हुसैन बिन मंसूर अल-हल्लाज हुए, जिन्हें मंसूर के नाम से ही जाना जाता है| उन्होंने उन शब्दों का प्रयोग किया जो उनकी मौत के कारण बन गए| उन्होंने केवल ..... "अन-हल-हक" .... बस सिर्फ इतना ही कहा जिसका अर्थ है .... "मैं परम सत्य हूँ", यानि वेदान्त वाक्य ... अहं ब्रह्मास्मि| उनको कारागृह में डालकर यातनाएँ दी गईं, तौबा करने को भी कहा गया| वे तो शरीर को मिथ्या मान चुके अतः सूली पर चढना स्वीकार किया पर अपने विचारों पर दृढ़ रहे| उन्होंने पूर्ण मानव का विचार प्रस्तुत किया जिसे भारत के योगी मानते थे| उन्होंने ..... "मैं खुदा हूँ" यानि "मैं ईश्वर हूँ" कहने का साहस किया| इब्न अरबी नाम के एक विचारक ने तो यहाँ तक कह दिया कि कोई भी मज़हब खुदा को अपनी जागीर नहीं बना सकता| इब्न अरबी ने कहा कि लोग खुदा के बारे में भिन्न-भिन्न मत रखते हैं, लेकिन मैं सबको ठीक समझता हूँ, जिस पर उनका विश्वास है|
.
आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को प्रणाम !
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० मार्च २०१६

सिंजारे और गणगौर पर्व पर समस्त मातृशक्ति मेरा अभिनन्दन स्वीकार करे ...

सिंजारे और गणगौर पर्व पर समस्त मातृशक्ति मेरा अभिनन्दन स्वीकार करे ...
.
आज पूरे राजस्थान में महिलाओं का एक विशेष पर्व था जिसे गणगौर पूर्व का सिंजारा कहते हैं| कल गणगौर है| सिंजारे पर नवविवाहिताओं और सगाई हो चुकी युवतियों के घर ससुराल पक्ष की ओर से सिंजारा (सुहाग से जुड़ा सामान और मिठाई) पहुंचाया जाता है| विवाहित महिलाओं को भी ससुराल में उनकी मनपसंद के व्यंजन और उपहार दिए जाते हैं| इस दिन महिलाऐं मेंहदी रचाती हैं|
 .
कल मंगलवार को प्रदेशभर में गणगौर की सवारी निकलेगी और मेले के आयोजन होंगे| गणगौर का पर्व वास्तव में शिव और पार्वती की आराधना का पर्व है| कुंआरी कन्याएँ यह पर्व अपने मनपसंद वर की प्राप्ति के लिए और विवाहित महिलाऐं अपने सौभाग्य के लिए मनाती हैं| होली के दूसरे दिन से यह आराधना आरम्भ हो जाती है जो सौलह दिन ...चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक ... चलती है|
.
पुनश्चः सभी माताओं, बहिनों और बेटियों को मेरा अभिनन्दन और मंगल कामनाएँ |
 .
ॐ तत्सत् !ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ मार्च २०१८

माता पिता को प्रणाम करने का सिद्ध बीज मंत्र .....

माता पिता को प्रणाम करने का सिद्ध बीज मंत्र .....
.
यह एक सिद्ध संत का दिया हुआ प्रसाद है| अपने माता पिता के सामने नित्य नियमित रूप से भूमि पर घुटने टेक कर उनके चरणों पर इस मन्त्र के साथ सिर झुका कर प्रणाम करने से, और इस मन्त्र के साथ उनकी वन्दना करने से आपके पितृ प्रसन्न होते हैं और आपको आशीर्वाद देते हैं| यदि आपके माता-पिता दिवंगत हो गए हैं तो मानसिक रूप से इस विधि को करें|
.
श्रुति कहती है ---- मातृदेवो भव, पितृदेवो भव|
माता पिता के समान गुरु नहीं होते| माता-पिता प्रत्यक्ष देवता हैं| यदि आप उनकी उपेक्षा करके अन्य किसी भी देवी देवता की उपासना करते हैं तो आपकी साधना सफल नहीं हो सकती|
यदि आपके माता-पिता सन्मार्ग में आपके बाधक है तो भी वे आपके लिए पूजनीय है| आप उनका भूल से भी अपमान नहीं करोगे|
.
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, महातेजस्वी श्रीपरशुराम, महाराज पुरु, महारथी भीष्म पितामह आदि सब महान पितृभक्त थे| विनता-नंदन गरुड़, बालक लव-कुश, वभ्रूवाहन, दुर्योधन और सत्यकाम आदि महान मातृभक्त थे| कोई भी ऐसा महान व्यक्ति आज तक नहीं हुआ जिसने अपने माता-पिता की सेवा नहीं की हो| "पितरी प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्व देवता|" श्री और श्रीपति, शिव और शक्ति ------- वे ही इस स्थूल जगत में माता-पिता के रूप में प्रकट होते हैं| उन प्रत्यक्ष देवी-देवता के श्री चरणों में प्रणाम करने का महा मन्त्र है ---

"ॐ ऐं ह्रीं"|
------------
यह मन्त्र स्वतः चिन्मय है| इस प्रयोजन हेतु अन्य किसी विधि को अपनाने की आवश्यकता नहीं है|
- "ॐ" तो प्रत्यक्ष परमात्मा का वाचक है|
- "ऐं" पूर्ण ब्रह्मविद्या स्वरुप है| यह वाग्भव बीज मन्त्र है महासरस्वती और गुरु को प्रणाम करने का| गुरु रूप में पिता को प्रणाम करने से इसका अर्थ होता है -- हे पितृदेव मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|
- "ह्रीं" यह माया, महालक्ष्मी और माँ भुवनेश्वरी का बीज मन्त्र है जिनका पूर्ण
प्रकाश स्नेहमयी माता के चरणों में प्रकट होता है|
.
अब और आगे इसकी महिमा नहीं लिख सकता क्योंकि अब मेरी वाणी और भाव माँ के परम प्रेम से अवरुद्ध हो गए है| अब आगे जो भी है वह आप स्वयं ही समझ लीजिये| वह मेरी क्षमता से परे है| ॐ मातृपितृ चरण कमलेभ्यो नम:|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० मार्च २०१३