Thursday, 24 November 2016

शिवभाव में शिवत्व की साधना .....

November 24, 2015.
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शिवभाव में शिवत्व की साधना .....
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शिवभाव में स्थित होकर शिवतत्व में स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर देना ही जीवन की सार्थकता है ..... ऐसा मेरा मत है| कोई आवश्यक नहीं है कि कोई अन्य इससे सहमत हों पर मैं अपने संकल्प पर दृढ़ हूँ| जब तक इस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होगी तब तक जन्म लेता रहूँगा| ज्ञान तो बहुत है पर कार्यरूप में परिवर्तित न होने के कारण वह अपूर्ण ही है| इस अल्प जीवन में ईश्वर प्रदत्त मूल्यवान समय का सदुपयोग कम, और दुरुपयोग अधिक हुआ है|
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काल किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। इसलिए वृद्धावस्था में जीने की आशा रखना, भगवत भजन में मन न लगना, सांसारिक प्रपंचों में फंसे रहना मूढ़ता का ही परिचायक है। ज्ञानी और विवेकी वह है, जो भगवान की भक्ति में लगा रहता है।
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कहीं से तो प्रारम्भ होना ही चाहिए| शुरुआत होनी ही चाहिए | पर कोई ग्लानी नहीं है| भगवान हैं, यहीं हैं और सदा मेरे साथ हैं|
मैं सिर्फ उनका हूँ और वे मेरे हैं|
अंततः हम दोनों एक हैं|
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ॐ ॐ ॐ | शिव शिव शिव ||

भारतवर्ष की और मेरे ह्रदय की घनीभूत पीड़ा ...

November 24, 2013.
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भारतवर्ष की और मेरे ह्रदय की घनीभूत पीड़ा .....
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इस राष्ट्र की अस्मिता सनातन हिन्दू धर्म है| हिदुत्व ही इस राष्ट्र की पहिचान है|
सनातन हिन्दू धर्म ही भारत है और भारत ही सनातन हिन्दू धर्म है|
अनगिनत युगों में मिले संस्कारों से यहाँ की संस्कृति का जन्म हुआ है| इस संस्कृति का आधार ही सनातन धर्म है| यदि यह संस्कृति और धर्म ही नष्ट हो गए तो यह राष्ट्र भी नष्ट हो जाएगा|
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जीवन में पूर्णता का सतत प्रयास, अपनी श्रेष्ठतम सम्भावनाओं की अभिव्यक्ति, परम तत्व की खोज, दिव्य अहैतुकी परम प्रेम, भक्ति, करुणा और परमात्मा को समर्पण ये सब भारत की ही संस्कृति है|
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धर्म-निरपेक्षता, सर्वधर्म समभाव और आधुनिकता आदि आदि नामों से हमारी अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं| भारत की शिक्षा और कृषि व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया है| झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है| पशुधन को कत्लखानों में कत्ल कर के विदेशों में भेजा जा रहा है| बाजार में मिलने वाला दूध असली नहीं है| दूध के पाउडर को घोलकर थैलियों में बंद कर असली दूध के नाम से बेचा जा रहा है| संस्कृति के नाम पर फूहड़ नाच गाने परोसे जा रहे हैं| हमारी कोई नाचने गाने वालों की संस्कृति नहीं है| हमारी संस्कृति -- ऋषियों मुनियों, महाप्रतापी धर्म रक्षक वीर राजाओं, ईश्वर के अवतारों, वेद वेदांगों, दर्शनशास्त्रों, धर्मग्रंथों और संस्कृत साहित्य की है| जो कुछ भी भारतीय है उसे हेय दृष्टी से देखा जा रहा है| विदेशी मूल्य थोपे जा रहे हैं| देश को निरंतर खोखला, निर्वीर्य और धर्महीन बनाया जा रहा है|
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परोपकार, सब के सुखी व निरोगी होने और कल्याण की कामना हिन्दू संस्कृति में ही है, अन्यत्र नहीं| अन्य मतावलम्बी सिर्फ अपने मत के अनुयाइयों के कल्याण की ही कामना करते हैं, उससे परे नहीं| औरों के लिए तो उनके मतानुसार अनंत काल तक नर्क की ज्वाला ही है और उनका ईश्वर भी मात्र उनके मतावलंबियों पर ही दयालू है|
उनके ईश्वर की परिकल्पना भी एक ऐसे व्यक्ति की है जो अति भयंकर और डरावना है जो उनके मतावलम्बियों को तो सुख ही सुख देगा और दूसरों को अनंत काल तक नर्क की अग्नि में तड़फा कर आनंदित होगा| पर पीड़ा से आनंदित होने वाले ईश्वर से भय करना व अन्य मतावलंबियों को भयभीत और आतंकित करना ही उनकी संस्कृति है|
समुत्कर्ष, अभ्युदय और नि:श्रेयस की भावना ही सनातन हिदू धर्म का आधार हैं| अन्य संस्कृतियाँ इंद्रीय सुख और दूसरों के शोषण की कामना पर ही आधारित हैं|
इन पंक्तियों के लेखक ने प्रायः पूरे विश्व की यात्राएं की हैं और वहां के जीवन को प्रत्यक्ष देखा है| जो कुछ भी लिख रहा है वह अपने अनुभव से लिख रहा है|
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धर्मनिरपेक्षतावादियों, सर्वधर्मसमभाववादियों और अल्पसन्ख्यकवादियों से से मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि आपकी धर्मनिरपेक्षता, सर्वधर्मसमभाववाद और अल्पसंख्यकवाद तभी तक है जब तक भारत में हिन्दू बहुमत है| हिन्दुओं के अल्पमत में आते ही भारत भारत ना होकर अखंड पकिस्तान हो जाएगा, और आपका वही हाल होगा जो पाकिस्तान और बंगलादेश के हिन्दुओं का हुआ है| यह अनुसंधान का विषय है कि वहाँ के मन्दिर और वहाँ के हिन्दू कहाँ गए| क्या उनको धरती निगल गई? आपके सारे के सारे उपदेश और सीख क्या हिन्दुओं के लिए ही है? यह भी अनुसंधान का विषय है कि भारत के भी देवालय और मंदिर कहाँ गए| यहाँ की तो संस्कृति ही देवालयों और मंदिरों की संस्कृति थी|
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सनातन धर्म ही भारत का भविष्य है| सनातन धर्म ही भारत की राजनीति हो सकती है| भारत का भविष्य ही विश्व का भविष्य है| भारत की संस्कृति और हिन्दू धर्म का नाश ही विश्व के विनाश का कारण होगा| क्या पता उस विनाश का साक्षी होना ही हमारी नियति हो|
जयशंकर प्रसाद जी के शब्दों में --
"हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर,
बैठ शिला की शीतल छाँह|
एक व्यक्ति भीगे नयनों से,
देख रहा था प्रलय अथाह|"
हो सकता है कि उस व्यक्ति की पीड़ा ही हमारी पीड़ा हो, और उसकी नियति ही हमारी नियति हो|
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मेरे ह्रदय की यह पीड़ा समस्त राष्ट्र की पीड़ा है जिसे मैंने व्यक्त किया है| मुझे तो पता है की मुझे क्या करना है, और वह करने का प्रयास कर रहा हूँ| मुझे किसी को और कुछ भी नहीं कहना है| यह मेरे ह्रदय की अभिव्यक्ति मात्र है| किसी से मुझे कुछ भी नहीं लेना देना है| सिर्फ एक प्रार्थना मात्र है आप सब से कि अपने देश भारत के धर्म और संस्कृति की रक्षा करें|
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वन्दे मातरम| भारत माता कीजय|
वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।