Thursday 24 November 2016

शिवभाव में शिवत्व की साधना .....

November 24, 2015.
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शिवभाव में शिवत्व की साधना .....
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शिवभाव में स्थित होकर शिवतत्व में स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर देना ही जीवन की सार्थकता है ..... ऐसा मेरा मत है| कोई आवश्यक नहीं है कि कोई अन्य इससे सहमत हों पर मैं अपने संकल्प पर दृढ़ हूँ| जब तक इस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होगी तब तक जन्म लेता रहूँगा| ज्ञान तो बहुत है पर कार्यरूप में परिवर्तित न होने के कारण वह अपूर्ण ही है| इस अल्प जीवन में ईश्वर प्रदत्त मूल्यवान समय का सदुपयोग कम, और दुरुपयोग अधिक हुआ है|
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काल किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। इसलिए वृद्धावस्था में जीने की आशा रखना, भगवत भजन में मन न लगना, सांसारिक प्रपंचों में फंसे रहना मूढ़ता का ही परिचायक है। ज्ञानी और विवेकी वह है, जो भगवान की भक्ति में लगा रहता है।
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कहीं से तो प्रारम्भ होना ही चाहिए| शुरुआत होनी ही चाहिए | पर कोई ग्लानी नहीं है| भगवान हैं, यहीं हैं और सदा मेरे साथ हैं|
मैं सिर्फ उनका हूँ और वे मेरे हैं|
अंततः हम दोनों एक हैं|
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ॐ ॐ ॐ | शिव शिव शिव ||

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