Saturday, 21 December 2024

अब बुढ़ापे का असर होने लगा है, सब काम छोड़ कर रात-दिन राम का नाम लेने का समय आ गया है ---

अब बुढ़ापे का असर होने लगा है। सब काम छोड़ कर रात-दिन राम का नाम लेने का समय आ गया है। यह बुढ़ापा बहुत खराब चीज है। शरीर ही नहीं, मन और बुद्धि भी ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, चित्त भी अस्थिर रहने लगा है। ज्ञानेंद्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ और उनकी तन्मात्राएँ भी शिथिल हो रही हैं।
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जीवन में आगे की रूपरेखा स्पष्ट है। मेरा स्वभाव आध्यात्मिक है, अतः लक्ष्य भी आध्यात्मिक ही हैं। अन्तःप्रेरणा यही मिल रही है कि बचा-खुचा सारा जीवन परमात्मा के स्मरण, चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान में ही बीत जाये। गीता में भगवान ने जिस वीतरागता, स्थितप्रज्ञता, ब्रह्मचिंतन, और ब्राह्मी-स्थिति की बात की है, वही मेरा आदर्श है। एक प्रबल आकर्षण कैवल्य की ओर खींच रहा है। कोई संशय नहीं है, ईश्वर मेरे साथ हैं।
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"दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी,
हर चीज़ यहाँ की आनी-जानी देखी।
जो आ के न जाए वो बुढ़ापा देखा,
जो जा के न आए वो जवानी देखी॥"
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मैं सभी को नमन करता हूँ। उन सब का आभारी हूँ, जिन्होंने जीवन में मेरा साथ और अपना प्रेम दिया है। ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर

कैवल्य मुक्ति ----

 इस युद्धभूमि में आप हजारों तलवारों के बीच से सुरक्षित निकल सकते हैं, कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता, लेकिन अपने कर्मफलों से नहीं बच सकते। कर्मफलों से बचने का एक ही उपाय है, वह है परमात्मा को पूर्ण समर्पण। अन्य कोई उपाय नहीं है।

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"कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू । आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू ॥
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं । जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥"
"निर्मल मन जन सो मोहि पावा ।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ॥" (रामचरितमानस)
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥१८:७८॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
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धर्म और अधर्म दोनोंको छोड़ कर समभाव से सर्वत्र व्याप्त परमात्मा की शरण लें जिन से अन्य कुछ है ही नहीं। कर्ताभाव से मुक्त होकर तत्त्व रूप से उन्हीं में स्वयं का विलय कर दें, तभी आत्मज्ञान की प्राप्ति होगी जो परम कल्याण का साधन है। आत्म स्वरूप में स्थित हो जाने को ही 'कैवल्य' कहते हैं। यह उच्चतम स्थिति है जिसमें सारे संचित और प्रारब्ध कर्म भस्म हो जाते हैं। परमात्मा की विशेष कृपा से ही यह बात समझ में आ सकती है। सब पर भगवान की विशेष कृपा हो। .
परसों मैने एक दृश्य देखा कि सारा विश्व जलमग्न हो गया है, कहीं कोई अन्य नहीं है। मैं ही अनंत सृष्टि और सम्पूर्ण अस्तित्व हूँ। एक व्यक्ति कहीं दूर तैर रहा था, जो मुझे देखते ही मुझमें समाहित हो गया। केवल मैं ही था जो उस कैवल्य में विलीन हो गया। वह कैवल्य ही परमशिव है, ब्रह्म है, और विष्णु है। उस से परे कुछ भी नहीं है। भगवान एक प्रवाह हैं जो मेरे माध्यम से प्रवाहित हो रहे हैं। सत्य तो यह है कि मैं उनके साथ एक हूँ । मैं शिव हूँ, सत्य हूँ, ब्रह्म हूँ, और अनन्य हूँ।
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'मेरा' कोई अस्तित्व नहीं है, 'मैं' कुछ हूँ ही नहीं। सारी समस्याओं का मूल कारण 'मेरा' कुछ होना है। मैं जब नहीं था तब केवल परमशिव थे। मैं नहीं होता तो केवल परमशिव होते। मैँ नहीं रहूँगा तब केवल परमशिव ही रहेंगे। उनके कैवल्य में मेरा समर्पण पूर्ण हो। किसी भी तरह की आकांक्षा/कामना/इच्छा रूपी पृथकता का जन्म ही न हो।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१२ जनवरी २०२४

तुलसी विलम्ब न कीजिए भजिये नाम सुजान, जगत मजूरी देत है क्यों राखे भगवान् ---

 "तुलसी विलम्ब न कीजिए भजिये नाम सुजान| जगत मजूरी देत है क्यों राखे भगवान् ||"

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कमाई खुद की ही काम आयेगी, दूसरों की नहीं| जितना परिश्रम करोगे, परमात्मा से उतना ही अधिक पारिश्रमिक मिलेगा| बिना परिश्रम के कुछ भी नहीं मिलेगा| परमात्मा भी अपना अनुग्रह यानी कृपा उसी पर करते हैं जो परमप्रेममय होकर उनके लिए परिश्रम करता है| मेहनत करोगे तो मजदूरी भी मिलेगी| संसार भी हमें मेहनत के बदले मजदूरी देता है, तो फिर भगवान क्यों नहीं देंगे?
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अधिकांश लोग साधुओं व महात्माओं के पीछे पीछे इसलिए भागते हैं कि संभवतः संत-महात्मा अपनी कमाई में से कुछ दे देंगे| पर ऐसा होता नहीं है| संत-महात्मा अधिक से अधिक हमें प्रेरणा दे सकते हैं, मार्गदर्शन कर सकते हैं, और सहायता कर सकते हैं| वे अपनी कमाई किसी को क्यों देंगे? मेहनत तो खुद को ही करनी होगी और मजदूरी भी खुद ही कमानी होगी, क्योंकि खुद की कमाई ही काम आयेगी, दूसरे की नहीं|
२१ दिसंबर २०२१

चारों ओर छाये हुए असत्य के अंधकार को कैसे दूर करें ? ---

 पहली बात तो यह है कि ईश्वर की सृष्टि में कहीं कोई अंधकार नहीं है। गहन से गहन अंधकार के पीछे भी एक प्रकाश है, जो मुझे दृष्टिगत हो रहा है। जहां असत्य है, वहीं अंधकार है। एकमात्र सत्य -- परमात्मा हैं, जो परम ज्योतिर्मय हैं। परमात्मा के प्रकाश का अभाव ही अंधकार है। असत्य हमारी चेतना में है, तभी हमें अंधकार प्रतीत हो रहा है। हम परमात्मा के प्रकाश का निरंतर विस्तार करें।

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परमात्मा की अनंतता का ध्यान करें। सारी बातें समझ में आ जायेंगी। परमात्मा की चेतना में निरंतर हर समय बने रहो। यही सबसे बड़ी सेवा है जो हम समष्टि के लिए कर सकते हैं। हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ दिसंबर २०२४

शब्दातीत अनुभूति ---

कुछ गूढ बातें ऐसी भी होती हैं जिनके लिए वाणी में कोई शब्द नहीं होते। वे शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकतीं। वे केवल मनोभूमि में ही दिखाई देती हैं, और वहीं पर उनमें वैचारिक मंथन होता है। क्या उन्हें ही परा और पश्यंती कहते हैं ?

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गूढ़ से गूढ़ आध्यात्मिक सत्य शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकते। वे भावों में ही अनुभूत होते हैं। वे अनुभूतियाँ ही वास्तविक आनंद हैं। अब उनसे और नीचे उतरना संभव नहीं है।
धन्य है वेदों के रचेता, जिन्होंने उनके दर्शन भी किये, सुना भी, और हमारे ज्ञान लाभ के लिए श्रुतियों में शब्द रूप में व्यक्त भी कर गये।
हरिः ॐ तत्सत् !!
२० दिसंबर २०२४

हमारा साप्ताहिक अवकाश रविवार को ही क्यों होता है?// क्रिसमस का त्योहार २४ व २५ दिसंबर को ही क्यों मनाते है?//यह सांता क्लॉज (फादर क्रिसमस) नाम का पादरी कौन है?

आज २१ दिसंबर २०२४ का दिन अपनी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में इस वर्ष का सबसे छोटा दिन है। सूर्य अपनी पृथ्वी के दक्षिणतम बिन्दु पर आज मध्याह्न के दो बजकर ५१ मिनट पर (14.51 IST) पर होगा। कल से दिन बड़े होने आरंभ हो जाएँगे।

आज तीन प्रश्नों पर विचार करते हैं जिनके उत्तर भी प्रश्नों में ही समाहित हैं। सत्य को जानने की अभीप्सा सभी के हृदयों में जागृत होनी चाहिए। सत्य ही परमात्मा है, भगवान सत्यनारायण हैं।
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(प्रश्न १) : हमारा साप्ताहिक अवकाश रविवार को ही क्यों होता है?
(उत्तर १) : अंग्रेजों के रिलीजन के अनुसार God ने पहले तीन दिन में पृथ्वी को बनाया, तीसरे व चौथे दिन सूरज व चाँद बनाये और बाकी दो दिन में पूरी सृष्टि बनाई। सातवें दिन आराम किया जिसे Holy Day कहा जाता था। यह अब Holiday कहलाने लगा है। भारत में अंग्रेजों के आने से पूर्व महीने में केवल एक ही दिन अमावस्या को छुट्टी होती थी। अंग्रेजों ने महीने में चार सप्ताह बनाए और जिस दिन उनके God ने आराम किया था उस Holy Day को Holiday घोषित कर दिया।
लेकिन वास्तविकता यह है कि ईसाईयत का उपयोग व प्रचार-प्रसार रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया था जो स्वयं कभी भी ईसाई नहीं बना। वह सूर्य का उपासक था। सूर्य के उपासकों को पर्याप्त समय मिले इसलिए रविवार यानि Sunday को आदेश देकर उसने छुट्टी घोषित करवा दिया जो अभी तक प्रचलित है। अतः रविवार की छुट्टी अभी तक रोमन सम्राट के आदेश से ही होती है। केवल मुस्लिम देशों में शुक्रवार को छुट्टी का दिन होता है।
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(प्रश्न २) : क्रिसमस का त्योहार २४ व २५ दिसंबर को ही क्यों मनाते है?
(उत्तर २) : पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में दो हजार वर्ष पूर्व २४ दिसंबर की रात सबसे अधिक लंबी होती थी, और दिन सबसे अधिक छोटा। २५ दिसंबर से दिन बड़े होने आरंभ हो जाते थे। इसलिए रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट के आदेश से उसे जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन यानि क्रिसमस और बड़ा दिन घोषित किया गया।आजकल २१ दिसंबर का दिन सबसे अधिक छोटा, व रात सबसे अधिक लंबी होती है। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट पूरे जीवन भर सूर्य-उपासक था, लेकिन जब वह मर रहा था तब पादरियों ने जबर्दस्ती उसका बप्तीस्मा (To Baptize) कर दिया था। कुछ इतिहासकार उसके बप्तीस्मा वाली बात को नहीं मानते।
जैसे मुसलमानों में खतना होता है वैसे ही यहूदियों में भी खतना होता है। ईसा मसीह एक यहूदी था, जब वह थोड़ा बड़ा हो गया तो १ जनवरी को उसका खतना हुआ था। उसके खतना-दिवस को हम नव-वर्ष के रूप में मनाते हैं। असली बात को छिपा दिया गया है।
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(प्रश्न ३) : यह सांता क्लॉज (फादर क्रिसमस) नाम का पादरी कौन है, जो रैनडियर नामक बारहसींगे द्वारा खींची जाने वाली बर्फ में ही चलने वाली स्लेज गाड़ी पर बैठकर क्रिसमस से एक दिन पूर्व वह रात को आता है और सभी बच्चों को खिलौने देता है, व टॉफी, केंडी और चॉकलेट खिलाता है?
(उत्तर ३) : सांता क्लॉज़ की कहानी ईसा की चौथी शताब्दी में सैंट निकोलस नाम के एक ग्रीक पादरी ने ठण्ड से पीड़ित यूरोप के ईसाई बच्चों के मन को बहलाने के लिए लिखी थी।
भारत में इसकी लोकप्रियता का कारण बाजारवाद और भारतियों की आत्म-हीनता व हीन-भावना का होना है। यह एक फूहड़पन और सांस्कृतिक पतन है। अपने बच्चों को इस सांस्कृतिक पतन से बचायें। अगर किसी स्कूल में यह मनाते हैं तो अपने बच्चों को मना कर दें कि वे इसमें भाग न लें।
धन्यवाद !!
२१ दिसंबर २०२४