अब बुढ़ापे का असर होने लगा है। सब काम छोड़ कर रात-दिन राम का नाम लेने का समय आ गया है। यह बुढ़ापा बहुत खराब चीज है। शरीर ही नहीं, मन और बुद्धि भी ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, चित्त भी अस्थिर रहने लगा है। ज्ञानेंद्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ और उनकी तन्मात्राएँ भी शिथिल हो रही हैं।
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जीवन में आगे की रूपरेखा स्पष्ट है। मेरा स्वभाव आध्यात्मिक है, अतः लक्ष्य भी आध्यात्मिक ही हैं। अन्तःप्रेरणा यही मिल रही है कि बचा-खुचा सारा जीवन परमात्मा के स्मरण, चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान में ही बीत जाये। गीता में भगवान ने जिस वीतरागता, स्थितप्रज्ञता, ब्रह्मचिंतन, और ब्राह्मी-स्थिति की बात की है, वही मेरा आदर्श है। एक प्रबल आकर्षण कैवल्य की ओर खींच रहा है। कोई संशय नहीं है, ईश्वर मेरे साथ हैं।
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"दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी,
हर चीज़ यहाँ की आनी-जानी देखी।
जो आ के न जाए वो बुढ़ापा देखा,
जो जा के न आए वो जवानी देखी॥"
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मैं सभी को नमन करता हूँ। उन सब का आभारी हूँ, जिन्होंने जीवन में मेरा साथ और अपना प्रेम दिया है। ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
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