अपने जीवन भर की साधना और स्वाध्याय के उपरांत मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूँ कि जीसस क्राइस्ट एक काल्पनिक चरित्र थे। उनका कभी जन्म नहीं हुआ। सैंट पॉल नाम के एक पादरी के मन की वे एक कल्पना मात्र थे।
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पूरे विश्व के प्रबुद्ध ईसाई विद्वान यह बात मान चुके हैं। सम्पूर्ण प्रबुद्ध यूरोप यह घोषित कर चुका है कि जीसस नाम का कोई व्यक्ति कभी पैदा ही नहीं हुआ था। मृत सागर (Dead Sea) में जो ‘Dead Sea Scrolls’ मिले हैं उनसे यह सिद्ध हुआ है। सैंट पॉल ने स्थानीय किंवदंतियों को संकलित किया और उसे बाइबिल का रूप दे दिया।
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जो हिन्दू महात्मा यूरोप में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए गए, उन्हें परिस्थितिवश जीसस क्राइस्ट का महिमा मंडन करना पड़ा। यह एक परिकल्पना और अनुभूति मात्र हैं। मैंने भारत में और भारत से बाहर क्रिसमस अनेक बार मनाया है। इटालियन और अमेरिकी ईसाई भक्तों के साथ Carols (ईसाई भजन) भी गाये हैं। जीसस क्राइस्ट पर ध्यान भी किया है। जीसस पर अनेक मनीषियों ने ध्यान किया है अतः मनोमय जगत में उनका अस्तित्व हो गया है, जो हमारा ही है।
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मैं दो बार वेनिस गया हूँ और कई बार इटली गया हूँ। यूरोप व अमेरिका के अनेक देशों का भ्रमण किया है। वहाँ के अनेक चर्चों में भी गया हूँ। वहाँ उपस्थिती नगण्य होती है। चर्च ने अपना पूरा ज़ोर भारत में धर्मांतरण पर लगा रखा है।
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भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत मेरे एक विदान परम मित्र थे जिनका कुछ माह पूर्व ही देहांत हुआ है। उन्होने हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया था। उनकी तर्क शक्ति और विद्वता बड़ी प्रबल थी। कालांतर में उन्हे ईसाई मत से बड़ी निराशा मिली, और वे बापस हिन्दू हो गए।
उन्होने सारे पादरियों को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती भी दी थी, लेकिन किसी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। उन्होने मुझे यह पूरी बात समझाई थी, और काफी साहित्य भी उपलब्ध करवाया था।
कृपा शंकर
२२ दिसंबर २०२३
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