आज २२ दिसंबर का बड़ा दिन, एक उत्सव मनाने का पर्व है ---
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पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध यानि भूमध्य रेखा के उत्तर में, बीता हुआ कल यानि २१ दिसंबर इस वर्ष का सबसे छोटा दिन और सबसे बड़ी रात थी। आज से धीरे धीरे दिन बड़े होने आरंभ हो जाएँगे जो २१ जून २०२२ तक होंगे। इसलिए आज बड़ा दिन है। आज सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत चमक रहा है, और अब उत्तरगामी हो जाएगा।
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दो हज़ार वर्ष पहिले २४ दिसंबर की रात सबसे बड़ी होती थी, इसलिए उस रात को रोमन सम्राट कोंस्टेन्टाइन द ग्रेट के आदेश से ईसाई भजन (Carol) गाकर क्रिसमस मनाई जाने लगी। २५ दिसंबर से दिन बड़े होने आरंभ होते थे इसलिए सूर्योपासक रोमन सम्राट कोंस्टेन्टाइन द ग्रेट के आदेश से इसे ईसा मसीह का जन्मदिन घोषित किया गया।
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उसी सूर्योपासक सम्राट के आदेश से रविबार के दिन को छुट्टी का दिन मनाया जाता है। इस सम्राट ने जो स्वयं ईसाई नहीं, बल्कि एक सूर्योपासक था, ने बाइबल का न्यू टेस्टामेंट संपादित करवाया, और ईसाई मत का उपयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया। कोन्स्टेंटिनोपल (वर्तमान इस्तांबूल) उसी का बसाया नगर है।
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अब पश्चिमी जगत में ईसा मसीह के अस्तित्व को अनेक लोग काल्पनिक मानने लगे हैं। उनका मत है कि यह पादरी सेंट पॉल और रोमन सम्राट कोंस्टेन्टाइन द ग्रेट के दिमाग की उपज है। वास्तविकता क्या है, मुझे पता नहीं। यदि ईसा मसीह का अस्तित्व सचमुच था तो वे भगवान श्रीकृष्ण के ही भक्त थे, और मैं उनको नमन करता हूँ। उनकी मूल शिक्षाएं लुप्त हो गई हैं और वर्तमान चर्चवाद (ईसाईयत) का उनसे कोई संबंध नहीं है।
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भारत का सबसे अधिक अहित उनके मतावलंबियों ने किया है। भारत में उनके अनुयायियों ने करोड़ों हिंदुओं की हत्या की। भारत की शिक्षा-व्यवस्था और कृषि-व्यवस्था का उन्होनें समूल नाश कर दिया। मेक्समूलर जैसे वेतनभोगी पादरियों द्वारा उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंथों को प्रक्षिप्त करवाया। गोवा में हजारों हिन्दू ब्राह्मणों की हत्याएँ कीं और हजारों हिन्दू महिलाओं और बच्चों को उन्होंने जीवित जला दिया।
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उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों के करोड़ों मूल निवासियों की हत्याएँ कर वहाँ उन्होंने यूरोपीय मूल के लोगों को बसा दिया। मानव जाति के इतिहास में उन्होंने सर्वाधिक नृशंस और भयावह अत्याचार किए हैं।
यूरोप में भी उन्होंने कम अत्याचार नहीं किए। करोड़ों महिलाओं को डायन घोषित कर उनकी हत्या बड़ी क्रूरता से की, जिन्हें देखकर लगता है कि यह एक अधर्म है। अपने स्वयं के धर्म का ही पालन और उसमें निधन ही भगवान का आदेश है। भगवान कहते हैं --
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३:३५॥"
अर्थात् -- सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है; स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है (किन्तु) परधर्म भय को देने वाला है॥"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ दिसंबर २०२१
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