Sunday, 22 December 2024

एक काल्पनिक चरित्र ---

जीसस क्राइस्ट (ईसा मसीह) मेरी दृष्टि में एक काल्पनिक चरित्र हैं। उनका न तो कभी जन्म हुआ और न कभी कोई मृत्यु हुई। वे हुये ही नहीं, उनके बारे में प्रचलित सारे किस्से-कहानियाँ झूठे हैं। चर्च/ईसाईयत -- पश्चिमी साम्राज्यवाद की अग्रिम सेना थी। इसका उपयोग पश्चिम ने अपने साम्राज्य के विस्तार और प्रभूत्व के लिए किया। पहले चर्च के पादरी पहुँच कर भोले-भाले लोगों को विश्वास में लेते हैं, फिर उनका बलात् मतांतरण, और न मानने वालों का सामूहिक नर-संहार करते हैं। इस तरह वे अपना साम्राज्य स्थापित करते हैं।
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एक समय था जब मैं जीसस क्राइस्ट का प्रशंसक और प्रेमी था। उनकी प्रशंसा में मैंने अनेक लेख भी लिखे हैं। देश-विदेश के अनेक चर्चों में भी अनेक बार गया हूँ, उनकी प्रार्थना सभाएँ और प्रवचन भी सुने हैं। कनाडा में अनेक पादरी मेरे मित्र थे। इटालियन और अमेरिकन ईसाई मित्रों के साथ क्रिसमस पर केरोल (ईसाई भजन) भी गाये हैं। लेकिन जैसे जैसे परिपक्वता और समझ बढ़ती गई, पाया कि जोशुआ (जीसस) का सारा किस्सा गढ़ा हुआ है। यूरोप और अमेरिका के प्रबुद्ध ईसाई ईसाईत छोड़ रहे हैं। पादरी लोग कह रहे हैं कि ऐतिहासिक जीसस नहीं भी हुआ हो तो क्या, वे हमारे हृदय में तो हैं।
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पश्चिम में जो हिन्दू संत गए, उनका उद्देश्य ईसाईयों के मध्य सनातन हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार करना था। अतः उन्हें अपनी विवशता में जीसस को ईशपुत्र कहना ही पड़ा। वास्तव में ख्रीस्त पन्थ एक भीषण फरेब है। कई निष्ठावान हिन्दू भी भावनात्मक स्तर पर जीसस के भक्त बने हुये हैं, अतः अपनों की मर्यादा का ध्यान रखना पड़ता है।
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मैंने old व चारों new testaments का अध्ययन किया है। उनके अधिकांश प्रवचन -- प्रलाप मात्र दिखते हैं। गिरी-प्रवचन (Sermon on the mount) हिंदुओं की नकल है। कुटिल पादरी, भारत सहित अन्य गैर यूरोपीय देशों में चर्च का धंधा चला रहे हैं। बडी विकट स्थिति है।
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मुझे ईश्वर से एक प्रेरणा/आदेश मिला हुआ है कि अब से जीवन का हरेक कार्य ईश्वर-प्रदत्त विवेक के प्रकाश में ही करना है। जीवन में जो भी पीड़ाएँ सहीं, कष्ट पाये, उनका कारण -- लोभ और अहंकारवश किये हुए विचार, सोच और आचरण था। विचारों पर नियंत्रण पाने में बहुत अधिक सफल रहा हूँ। अतः अब कोई लोभ या अहंकार नहीं कर सकता। जो सत्य है उसे ही सत्य कहूँगा। सत्य ही ईश्वर है। भगवान सत्यनारायण हैं।
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यीशु के जन्म का कोई प्रमाण कभी भी नहीं मिला। अब पश्चिमी जगत के कुछ इतिहासकार भी यह दावा कर रहे हैं कि जीसस क्राइस्ट नाम का कोई व्यक्ति कभी हुआ ही नहीं था। उनके अनुसार सैंट पॉल द्वारा रचित वे एक काल्पनिक चरित्र हैं। २५ दिसंबर का दिन रोमन सम्राट कोंस्टेंटाइन द ग्रेट ने ही क्रिसमस का दिन तय किया था, क्योंकि वह सूर्य उपासक था, और उस जमाने में २५ दिसंबर को बड़ा दिन होता था; आजकल २२ दिसंबर को होता है। रविवार की छुट्टियाँ भी उसी ने तय की थीं। अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए उसने ईसाईयत का भी खूब विस्तार किया।
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कई तरह की बातें लिखी गई हैं, जिनसे मुझे अब कोई मतलब नहीं है। मेरे आदर्श भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण हैं। मैं मूर्तिपूजा को भी मानता हूँ और वेदान्त-दर्शन को भी। सारा मार्गदर्शन मुझे श्रीमद्भगवत गीता और उपनिषदों से मिलता है। मुझ निमित्तमात्र को अपना उपकरण बनाकर भगवान ही सब कुछ कर रहे हैं। समस्त सृष्टिरूप में मैं उनको नमन करता हूँ (वे स्वयं ही सबके माध्यम से स्वयं को ही नमन कर रहे हैं)।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०२२
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पुनश्च: --- भारत का सबसे अधिक अहित जीसस के मतावलंबियों ने किया है। भारत में उनके अनुयायियों ने करोड़ों हिंदुओं की हत्या की। भारत की शिक्षा-व्यवस्था और कृषि-व्यवस्था का उन्होनें समूल नाश कर दिया। मेक्समूलर जैसे वेतनभोगी पादरियों द्वारा उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंथों को प्रक्षिप्त करवाया। गोवा में हजारों हिन्दू ब्राह्मणों की हत्याएँ कीं और हजारों हिन्दू महिलाओं और बच्चों को उन्होंने जीवित जला दिया। गोवा में एक हाथकतरा-खंब है। गोवा के पुर्तगाली ईसाई शासक हिंदुओं को पकड़ कर लाते, और खंबा पकड़ने को कहते। फिर उसे जीसस क्राइस्ट में विश्वास करने और ईसाई बनने को कहते। यदि वह ईसाई नहीं बनता तो उसके हाथ काट देते। वह खंबा अभी भी है।
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उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों के करोड़ों मूल निवासियों की हत्याएँ कर वहाँ उन्होंने यूरोपीय मूल के लोगों को बसा दिया। मानव जाति के इतिहास में उन्होंने सर्वाधिक नृशंस और भयावह अत्याचार किए हैं।
यूरोप में भी उन्होंने कम अत्याचार नहीं किए। करोड़ों महिलाओं को डायन घोषित कर उनकी हत्या बड़ी क्रूरता से की, जिन्हें देखकर लगता है कि यह एक अधर्म है।
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अपने स्वयं के धर्म का ही पालन और उसमें निधन ही भगवान का आदेश है। भगवान कहते हैं --
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३:३५॥"
अर्थात् -- सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है; स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है (किन्तु) परधर्म भय को देने वाला है॥"

2 comments:

  1. Sharma Mudgal Guruji
    सत्य है । सम्पूर्ण ईसाईयत सेंट पाल की अपराधबोध से उपजी कल्पना ही है । न्यू टेस्टामेंट पाल की कल्पना है जिसमें युहन्ना, मैथ्यू, मार्क्स ओर लूकास ये चारों ही टैस्टीमनी ईसा का चरित्र अलग अलग बताती हैं । वास्तव में चर्च, वेदी या अलटार ओर साप्ताहिक प्रार्थना ये यहूदी धर्म में पहले से ही है । पाल यहूदी नहीं था । इसलिए यहूदियों ने उसकी बात नहीं मानी । इसलिए उसने एलियंस यानि नोन ज्यूज में अपने मत का प्रचार किया । जिसका यहूदियों ने फिर विरोध किया ओर रोमन गवर्नर को उसकी शिकायत की क्योंकि रोमन साम्राज्य में यहूदियों को धार्मिक स्वतंत्रता थी । रोमन नागरिकों का अंतिम न्याय रोमन सम्राट ही करता था । इसलिए गवर्नर ने निर्दोष होते हुये भी पाल को पानी के जहाज से रोम भेज दिया । उस समुद्री यात्रा में तूफान आदि के कारण कई महीने लगे ओर जहाज को कई जगह टापुओं पर रूकना पड़ा । रोमन साम्राज्य में इस समय भयानक अव्यवस्था थी ओर नागरिक त्रस्त ते । इस दौरान पाल ने उपदेश जारी रखे ओर जहाज के यात्री ओर चालक ओर सभी टापुओं के निवासी उसके सरल उपदेशों को मानकर ईसाई होते चले गये । लगभग सभी टापुओं के रोमन गवर्नर भी ईसाई धर्म मानने लग गये । वास्तव में साप्ताहिक सामूहिक ,सबाथ प्रार्थना ओर ईश्वर की गीत संगीत से प्रार्थना ओर सब का लाया भोजन जिसमें अखमीरी रोटी रहती थी जिसे इंग्लिश में अनलीवंड ब्रैड भी रहती थी यहूदी धर्म ओर फलस्तीनी या इजरायली समाज में पहले से ही थी । रोम पहूंचने के बाद भी पाल को सम्राट के सामने पेश करने में बहुत महीने लगे । तब भी उसके उपदेश जारी रहे ओर सभी नागरिक ईसाई बनते चले गये । तब रोमन अधिकारियों ने ईसाइयों में राज आज्ञा पालन का तत्व देखकर उसे बढावा देना शुरू कर दिया ।

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  2. आज २५ दिसंबर यानि क्रिसमस का दिन है। आज के दिन समर्थवान ईसाई लोग टर्की नाम की प्रजाति के मुर्गे (एक ऐसा पक्षी जिसके गले के नीचे मांस की लाल झालर होती है) का मांस खाते हैं, और मंहगी से मंहगी शराब पीते हैं। भगवान के नाम पर मांसाहार करना और शराब पीकर नाचना-गाना -- पुर्तगाल और स्पेन की संस्कृति है जो आजकल सारे विश्व में फैल चुकी है। भारत भी इस से अछूता नहीं है।
    मेरी दृष्टि में यह गलत है। शुद्ध शाकाहारी सात्विक भोजन करें, व एकांत में या सामूहिक रूप से भगवान का ध्यान/भजन/पूजन करें। यही ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ उपासना हो सकती है। सभी को धन्यवाद और नमन !!

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