उपरोक्त तीनों प्रश्नों के उत्तर एक ही हैं| रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट (२७ फरवरी २७२ - २२ मई ३३७) ने ही यह तय किया था कि जीसस क्राइस्ट का जन्म २५ दिसंबर को ही मनाया जाये| उसी के समय से २५ दिसंबर को बड़ा दिन मनाते हैं, और उसी के आदेश से रविबार की छुट्टी आरंभ हुई|
(भारत में अंग्रेज़ी राज्य से पहिले महीने में सिर्फ एक दिन अमावस्या की छुट्टी होती थी| अंग्रेजों ने इसे बदल कर सप्ताह में एक दिन, यानि महीने में चार छुट्टियाँ आरंभ कर दीं|)
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कोन्स्टेंटिनोपल (कुस्तुंतुनिया) (वर्तमान इस्तांबूल) नगर उसी ने बसाया था जहाँ का सैंट सोफिया (हागिया सोफिया) केथेड्रल, पूरे विश्व के ईसाइयों की वेटिकन के बाद दूसरी सबसे बड़ी गद्दी थी|
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अपने व्यक्तिगत जीवन में और अपने विचारों से वह सूर्य का उपासक था, ईसाई नहीं| ईसाई मत का उपयोग उसने एक सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था (Socio-political system) के रूप में अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया| उस के समय से ही ईसाई मत सबसे अधिक फैलने लगा|
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दो हज़ार वर्ष पूर्व उन दिनों पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में शीतकालीन अयनांत (Winter Solstice) २४ दिसंबर को होता था| आजकल २१ दिसंबर को होता है| इस दिन सूर्य सीधा पृथ्वी की मकर रेखा पर होता है, और उत्तरी गोलार्ध में सबसे अधिक छोटा दिन होता है| आजकल २२ दिसंबर से दिन बड़े होने शुरू हो जाते हैं, उन दिनों २५ दिसंबर से होते थे| अतः उस समय के रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट ने यह आदेश दिया कि २५ दिसंबर को ही जीसस क्राइस्ट का जन्म दिन और बड़ा दिन मनाया जाये| चूंकि वह सूर्य का उपासक था, अतः उसने रविबार को ही छुट्टी मनाने की परंपरा शुरू कर दी|
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सन २००३ में Dan Brown की लिखी एक पुस्तक "The Da Vinci Code" बाज़ार में आई थी जिसने विश्व के करोड़ों ईसाईयों की आस्था को हिला दिया था| भारत में यह पुस्तक प्रतिबंधित थी, फिर भी चोरी-चोरी किसी फर्जी प्रकाशक द्वारा छप कर बड़े नगरों के फुटपाथों पर खूब बिकी| उस के अनुसार रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट जब मर रहा था और असहाय था तब पादरियों ने बलात् उसका बपतीस्मा कर के उसे ईसाई बना दिया था, अन्यथा वह बुत-परस्त Pagan था|
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सभी आस्थावानों को शुभ कामनायें !!
23 दिसंबर 2020
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