Thursday 20 April 2017

मेरे भावो की अभिव्यक्तियाँ ......

मेरे भावों की अभिव्यक्तियाँ ........

मेरे द्वारा जो कुछ भी लिखा जाता है वह स्वयं के भावों की ही अभिव्यक्ति मात्र है, अन्य कुछ नहीं| अधिकांशतः मेरा एक ही विषय रहता है .... "परमात्मा से प्रेम", बाकी सब इसी का विस्तार है| पुराने गहरे संस्कारों के कारण कभी कभी हिन्दू राष्ट्रवाद की भावनाएँ भी छलक उठती हैं| इसके अतिरिक्त और कुछ मुझे आता जाता भी नहीं है|

मेरे विचार .....

(१) परमात्मा को हम सीमित नहीं कर सकते, वह साकार भी है और निराकार भी| जो कुछ भी सृष्ट हुआ है वह साकार है| सारे रूप-गुण उसी के हैं|

(२) ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग दोनों एक ही हैं, इनमें कोई अंतर नहीं है| अंतर अपनी अपनी समझ का है| आध्यात्म का कोई भी मार्ग हो, बिना भक्ति के एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ सकते| भक्ति ही सबसे बड़ा गुण है| वास्तविक भक्ति होने पर अन्य सभी गुण स्वतः ही खिंचे चले आते हैं| मार्ग की प्राप्ति प्रारब्ध से होती है| परमात्मा के प्रति परम प्रेम ही भक्ति है|

(३) जो परम ब्रह्म परमात्मा हैं, वे सब नाम-रूपों से परे हैं ..... साकार रूप में वे ही भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम और शिव आदि हैं| ओंकार रूप में भी साकार वे ही हैं, और कूटस्थ ज्योति व प्रणव नाद भी उन्हीं की साकारता है| अपने दिन का प्रारम्भ उनके ध्यान से करें| रात्रि को सोने से पूर्व उनका गहन ध्यान कर के ही सोयें| हर समय उनकी स्मृति बनाए रखें|

(४) सहस्त्रार के मध्य में एक विराट श्वेत ज्योति सदैव बिराजमान रहती है| हमारी चेतना का केंद्र वहीं है|

(५) प्राण तत्व .... मेरु शीर्ष (शिखा स्थान) से देह में प्रवेश कर मेरु-दंड के सभी चक्रों में प्रवेश कर पूरी देह को जीवंत रखता है| समस्त ऊर्जा वहीं से प्राप्त होती है|

(६) अपनी ऊर्जा को फालतू के कार्यों में व्यर्थ न कर चेतना के ऊर्ध्वगमन में ही खर्च करें| अपनी चेतना को निरंतर आज्ञा चक्र और सहस्त्रार के मध्य रखें और प्रणव ध्वनी को सुनते रहें|

(७) परमात्मा के निरंतर चिंतन से स्वयं परमात्मा ही हमारी चिंता करने लगते हैं|
परमात्मा के साकार रूप आप सब को मेरा सादर नमन|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

यह RIP क्या है ? .....

यह RIP क्या है ?
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आजकल शोक संदेशों में RIP लिखने की एक परम्परा सी चल पडी है| मुझे यह समझ में नहीं आ रहा था कि इसका अर्थ क्या है| फिर किसी ने बताया कि RIP = Rest in peace.
पर यह तो उन्हीं पर लागु होता है जिन्हें कब्रों में दफनाया जाता है| वे कयामत तक कब्रों में शांति से आराम करेंगे
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अब्राहमिक मतों के अनुसार जिस दिन कयामत होगी उस दिन पूर्व दिशा में एक नारसिंघा बाजे की सी बड़ी जोर की आवाज़ आएगी| उस आवाज़ को सुनकर कब्रों में शांति से सो रहे इंसान जाग उठेंगे| सबकी पेशी होगी और सब से हिसाब पूछा जाएगा कि उन्होंने ज़िन्दगी में क्या क्या किया| सबको दंड और पुरष्कार मिलेंगे| विधर्मियों को नर्क की अग्नि में अनंत काल के लिए डाल दिया जाएगा| जब से दुनियाँ बनी है तब से अब तक के सारे लोगों का हिसाब होगा| पता नहीं किस का क्रम कब आयेगा| बड़ा शोरगुल होगा| बड़ी अफरा-तफरी होगी|
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पर उनका क्या होगा जिनके दाह संस्कार हुए हैं ?
अतः यह RIP उन लोगों को मत भेजिए जिनके दाह संस्कार हुए हैं|
और भी कई तरह के शोक सन्देश होते हैं| वे भेजिए पर RIP नहीं|
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उर्दू का एक बहुत पुराना शेर याद आया है जिसके अनुसार ऐसे भी लोग हैं जिन्हें क़यामत की चिंता नहीं है, वे अपनी मस्ती में सोये हुए हैं|
"हम सोते ही न रह जाएँ ऐ शोरे-क़यामत !
इस राह से निकलें तो हमको भी जगा देना |"

साधन चतुष्टय ...... क्या आध्यात्मिक साधना सिर्फ भावों से ही हो सकती है ? ......

क्या आध्यात्मिक साधना सिर्फ भावों से ही हो सकती है ? ......
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कुछ लोग उदधृत करते हैं ..... "मन चंगा तो कठौती में गंगा"|
पर मेरा व्यवहारिक अनुभव तो यही कहता है कि जब तक तमोगुण और रजोगुण हावी हैं, तब तक मन कभी चंगा हो ही नहीं सकता चाहे कोई कितना भी प्रयास करले|
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भगवान ने गीता जी में "साधन चतुष्टय" की बात क्यों कही है? यदि साधना सिर्फ भावना से ही हो जाती तो भगवान को साधन चतुष्टय के बारे में क्यों बताना पड़ा? बिना साधन चतुष्टय पूर्ण किये कोई भी साधना सफल नहीं हो सकती, ऐसा प्रायः सभी महात्माओं का मत है|
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ब्रह्मसूत्र शंकरभाष्य में तथा विवेक चूडामणि ग्रंथ में भगवान शंकराचार्य इसकी चर्चा करते हैं......
चार साधनों के समूह के रूप मे साधन चतुष्टय बतलाए गये हैं ......

(१) नित्यानित्य वस्तु विवेक : अर्थात् , नित्य एवं अनित्य तत्त्व का विवेक ज्ञान|
(२) इहमुत्रार्थ भोगविराग : जागतिक एवं स्वार्गिक दोनों प्रकार के भोग-ऐश्वर्यों से अनासक्ति|
(३) शमदमादि षट् साधन सम्पत् ..... शम, दम, श्रद्धा, समाधान, उपरति, तितिक्षा, आदि छः साधन सम्पत्तियों से युक्त होना|
(४) मुमुक्षत्व – मोक्षानुभूति की उत्कण्ठ अभिलाषा|
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उपरोक्त साधन मोक्ष प्राप्ति में सहायक कहे गये है| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

निराशा से मुक्ति ........

निराशा से मुक्ति ........
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यह स्वाभाविक है कि हमारी कुछ आकांक्षाएँ, लक्ष्य और अपेक्षाएँ होती हैं जिनकी पूर्ती ना होने से घोर निराशा होती है| कुछ लोग इससे अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर लेते हैं और कुछ लोग दूसरों को आत्महत्या के लिए बाध्य कर देते हैं| इस निराशा से अनेक अपराध भी जन्म लेते हैं|
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पहले भारत में यह बीमारी नहीं थी| पर आजकल कुछ अधिक ही है| दूषित राजनीती भी इसके कारणों में से एक है|
भारत में गरीब किसान, असंगठित क्षेत्र के श्रमिक, और गरीब व्यापारी अधिक उधार में डूब जाने पर आत्महत्या कर लेते हैं| गरीब किसानों के प्रति तो कुछ हमदर्दी राजनीतिक लोगों में है पर गरीब व्यापारी या असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए बिलकुल भी नहीं है|
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हर व्यक्ति साधू संत या आध्यात्मिक नहीं हो सकता| कहने को तो मैं कह सकता हूँ कि पूरा ब्रह्मांड मेरा है, बैंकों में पड़ा सारा धन मेरा है| पर मेरा क्या है यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ|
प्रश्न यह है कि निराशा से मुक्ति कैसे पाई जाय ?
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मैं जहाँ तक सोचता हूँ इसके लिए अभ्यास द्वारा पूरे जीवन की चिंतन धारा ही बदलनी होगी| अपने विचार भी सकारात्मक बनाने होंगे और अपने बच्चों की सोच भी सुधारनी होगी| सर्वप्रथम तो यह बात मन में बैठानी होगी कि अपेक्षाएँ ही सब दुःखों की जननी हैं| यह संसार हमें सुख और आनंद का प्रलोभन देता है, पर मिलती यहाँ सिर्फ निराशा ही है| हम किसी भी भौतिक वस्तु के शाश्वत स्वामी नहीं हो सकते| पर अपेक्षा नहीं होगी तो मनुष्य कुछ काम भी नहीं करेगा|
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निराशा का जन्म आत्म-विश्वास की कमी से होता है| अपरिग्रह की अवधारणा का लुप्त होना और ईश्वर में आस्था का न होना भी निराशा का एक बड़ा कारण है| वर्षों पहिले मैं सोचा करता था कि सिर्फ गरीब लोग ही निराशावश आत्मह्त्या करते हैं| पर सबसे अधिक आत्महत्या तो धनाढ्य लोग करते हैं| निराशा के कारण सबसे अधिक आत्महत्या जापान और अमेरिका में होती हैं| व्यापर में थोड़ा सा घाटा लगा या अपेक्षित लाभ नहीं हुआ तो कर ली आत्महत्या| अमेरिका के एक गायक जिसे लोग सर्वाधिक सफल अमेरिकन मानते थे, ने अधिक पैसे के नशे में आत्महत्या कर ली| उसे अरबों रुपया कमाकर भी सुख शांति नहीं मिली|
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समस्त निराशाओं का मूल कारण हमारी परमात्मा से भिन्नता है| जीवन में मनुष्य चाहता है ..... सुख, शांति और सुरक्षा|
ये हमें भगवान में आस्था लाकर और अपने कर्मफल भगवान को समर्पित कर के ही मिल सकती हैं|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||


April 20,  2015

सारे प्रश्न हमारे सीमित और अशांत मन की उपज हैं .....

सारे प्रश्न हमारे सीमित और अशांत मन की उपज हैं .....
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हमारे बाहर कोई उत्तर नहीं है| सारे उत्तर हमारे भीतर ही हैं|
सारे प्रश्न हमारे सीमित और अशांत मन की उपज हैं| शांत मन में सारे प्रश्न तिरोहित हो जाते हैं|
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मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ है| मेरे में एक अति तीब्र जिज्ञासा वृति थी सत्य को जानने की| जीवन में ऐसे कई मनीषी महात्मा मिले जिनकी उपस्थिति मात्र से मेरा अशांत मन शांत हो जाता, और मन में भरे हुए बहुत सारे प्रश्न उस समय बिलकुल विस्मृत हो जाते| उनके पास से दूर जाते ही वे सब प्रश्न फिर याद आ जाते और मन भी अशांत हो जाता| मैं फिर दुबारा लिखकर बहुत सारे प्रश्न ले जाता कि अब की बार नहीं छोड़ना है, ये सारे प्रश्न पूछने ही हैं| पर उनके पास जाते ही भूल जाता कि कुछ पूछना भी है| मुझे एक ऐसे भी महात्मा मिले हैं जिन्होंने बिना पूछे ही मेरे मन में उत्पन्न हुए सारे प्रश्नों के क्रमशः उत्तर दे दिए|
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अब कोई प्रश्न ही नहीं बचा है| कम से कम आध्यात्मिक क्षेत्र का तो कोई भी प्रश्न, कोई जिज्ञासा या शंका जब होती है तो उसका समाधान भी भीतर से ही तुरंत हो जाता है| आध्यात्मिक क्षेत्र में तो किसी से कुछ पूछने की कोई बात ही नहीं रही है|
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अंततः मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि सारे प्रश्न हमारे सीमित और अशांत मन की उपज हैं| शांत मन में सारे प्रश्न तिरोहित हो जाते हैं| जब मन शांत होता है तो कोई प्रश्न ही उत्पन्न नही होता|
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ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय |

मैं साँस नहीं ले रहा, यह समस्त सृष्टि मेरे माध्यम से साँस ले रही है .....


मैं साँस नहीं ले रहा, यह समस्त सृष्टि मेरे माध्यम से साँस ले रही है  .....
(I am not breathing ....... I am being breathed by the Divine) .....
यह देह साक्षात् परमात्मा का एक उपकरण है| स्वयं परमात्मा इस उपकरण से साँस ले रहे हैं|
मेरा होना ..... यह पृथकता का बोध ..... एक भ्रम मात्र है|
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राग-द्वेष और अहंकार कामना उत्पन्न करते हैं| कामना अवरोधित होने पर क्रोध को जन्म देती है| ये काम और क्रोध दोनों ही नर्क के द्वार हैं जो सारे पाप करवाते हैं| कामनाओं को पूरा न करो .... यह भी एक साधना है, इससे रजोगुण कम होता है|
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सदा ब्राह्मी स्थिति में ही रहने का ही प्रयास करो| एकमात्र कर्ता तो सिर्फ परमात्मा ही हैं| परमात्मा से पृथक कोई कामना नहीं हो|
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यदि यह भाव निरंतर बना रहे कि मैं तो भगवान का एक नौकर यानि दास मात्र हूँ, या मैं उनका परम प्रिय पुत्र हूँ, और जो उनकी इच्छा होगी वह ही करूँगा, या वह ही हो रहा है जो उनकी इच्छा है, तो साधन मार्ग से साधक च्युत नहीं हो सकता| या फिर यह भाव रहे कि 'मै' तो हूँ ही नहीं, जो भी हैं, वे ही हैं, और वे ही सब कुछ कर रहे हैं| यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि साधना की किस उच्च स्थिति में हम हैं| पर परमात्मा का स्मरण सदा बना रहे|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||

कश्मीर की एक वास्तविकता .....

कश्मीर की एक वास्तविकता  .....
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कश्मीर की राजधानी श्रीनगर को सम्राट अशोक ने बसाया था|
जब चीनी यात्री ह्वैंसान्ग भारत आया था तो उसने कश्मीर में ढाई हज़ार से अधिक बौद्ध मठों का होना बताया था|
कश्मीरी शैव दर्शन वास्तविक कश्मीरियत है, इसका जन्म और विकास कश्मीर में ही हुआ|
पूरा कश्मीर अतीत में वैदिक शिक्षा का केंद्र रहा है|
आज से सात सौ वर्ष पूर्व तक कश्मीर में शत प्रतिशत हिन्दू थे| बौद्ध भी हिंदुत्व के ही भाग थे|
जब मंगोलों के आक्रमण मध्य एशिया पर हुए तब मध्य एशिया के अनेक मुसलमान शरणार्थी के रूप में कश्मीर में आये जिन्हें वहाँ के हिन्दू राजाओं ने शरण दी और आगे का इतिहास राजतरंगिनी में लिखा है|
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आज जो कश्मीर के हिन्दुओं पर बीत रही है कल को वैसा ही योरोप में होगा| .
आजकल योरोप में जो शरणार्थी जा रहे हैं वह योरोप पर एक ज़िहादी आक्रमण है| जो भारत के हिन्दू कश्मीरियों पर बीती है वही योरोप के मूल निवासियों पर बीतने वाली है| यह कोई कल्पना नहीं एक वास्तविकता है|
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कश्मीर घाटी के वे लोग जो भारत के विरोध में हर अवसर पर और हर स्थान पर भारत विरोधी नारेबाजी और प्रदर्शन कर रहे हैं, संभवतः पाकिस्तान अधिकृत गुलाम कश्मीर की वास्तविकता से परिचित नहीं है| उन्हें यह भी नहीं पता होगा कि बाकी के पाकिस्तान के क्या हाल हैं| भारत से बाहर मेरा अनेक देशों में अनेक पाकिस्तानियों से मिलना और विचार-विमर्श हुआ है और पाकिस्तान की मानसिकता को मैं खूब अच्छी तरह समझता हूँ| यहाँ मैं कुछ तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूँ|
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पाकिस्तान में पंजाबी पाकिस्तानी सबसे अधिक दबंग और प्रभावशाली हैं| वे अपने सामने अन्य पाकिस्तानियों को कुछ भी नहीं समझते| पाकिस्तान की राजनीति में, सेना में और प्रशासन में उन्हीं का दबदबा है और वे अन्य प्रान्त के लोगों को बड़ी हीन दृष्टी से देखते हैं| आपस की बोलचाल में वे पंजाबी भाषा का ही प्रयोग करते हैं|
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भारत से गए लोगों की वहाँ कोई कद्र नहीं है, उनको मुहाजिर कहा जाता है और बड़ी नीची निगाह से देखा जाता है| पंजाबी लोग तो उन्हें अपने पास बैठाना भी पसंद नहीं करते|
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पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों को पंजाबी पाकिस्तानियों द्वारा आतंकित कर के और बहुत डरा धमका कर रखा हुआ है| वहां के कश्मीरियों के पास अपनी व्यथा व्यक्त करने के लिए कोई मंच नहीं है|
पाकिस्तान के सारे आतंकी प्रशिक्षण केंद्र गुलाम कश्मीर में हैं| उन आतंकी प्रशिक्षण केन्द्रों को चलाने वाले सारे पंजाबी पाकिस्तानी हैं|
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गुलाम कश्मीर में कोई विकास का कार्य नहीं हुआ है| बेरोजगार लोगों के लिए आतंकी बन जाना एक मजबूरी है| कश्मीरी लोग यदि पाकिस्तान में चले भी जाते हैं तो जीवन भर रोयेंगे| उनको यहाँ जो सुख सुविधा मिल रही है वह वहाँ एक दुःस्वप्न मात्र होगी| उनको वहाँ पाकिस्तानी पंजाबियों का गुलाम बनकर जीवन भर रहना होगा|
और भी कई बाते हैं, पर विस्तार भय से अधिक नहीं लिख रहा|
तथाकथित शांतिप्रिय भटके हुए कश्मीरी लोगों को भगवान सद्बुद्धि दे|


इति ||