मेरे भावों की अभिव्यक्तियाँ ........
मेरे द्वारा जो कुछ भी लिखा जाता है वह स्वयं के भावों की ही अभिव्यक्ति मात्र है, अन्य कुछ नहीं| अधिकांशतः मेरा एक ही विषय रहता है .... "परमात्मा से प्रेम", बाकी सब इसी का विस्तार है| पुराने गहरे संस्कारों के कारण कभी कभी हिन्दू राष्ट्रवाद की भावनाएँ भी छलक उठती हैं| इसके अतिरिक्त और कुछ मुझे आता जाता भी नहीं है|
मेरे विचार .....
(१) परमात्मा को हम सीमित नहीं कर सकते, वह साकार भी है और निराकार भी| जो कुछ भी सृष्ट हुआ है वह साकार है| सारे रूप-गुण उसी के हैं|
(२) ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग दोनों एक ही हैं, इनमें कोई अंतर नहीं है| अंतर अपनी अपनी समझ का है| आध्यात्म का कोई भी मार्ग हो, बिना भक्ति के एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ सकते| भक्ति ही सबसे बड़ा गुण है| वास्तविक भक्ति होने पर अन्य सभी गुण स्वतः ही खिंचे चले आते हैं| मार्ग की प्राप्ति प्रारब्ध से होती है| परमात्मा के प्रति परम प्रेम ही भक्ति है|
(३) जो परम ब्रह्म परमात्मा हैं, वे सब नाम-रूपों से परे हैं ..... साकार रूप में वे ही भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम और शिव आदि हैं| ओंकार रूप में भी साकार वे ही हैं, और कूटस्थ ज्योति व प्रणव नाद भी उन्हीं की साकारता है| अपने दिन का प्रारम्भ उनके ध्यान से करें| रात्रि को सोने से पूर्व उनका गहन ध्यान कर के ही सोयें| हर समय उनकी स्मृति बनाए रखें|
(४) सहस्त्रार के मध्य में एक विराट श्वेत ज्योति सदैव बिराजमान रहती है| हमारी चेतना का केंद्र वहीं है|
(५) प्राण तत्व .... मेरु शीर्ष (शिखा स्थान) से देह में प्रवेश कर मेरु-दंड के सभी चक्रों में प्रवेश कर पूरी देह को जीवंत रखता है| समस्त ऊर्जा वहीं से प्राप्त होती है|
(६) अपनी ऊर्जा को फालतू के कार्यों में व्यर्थ न कर चेतना के ऊर्ध्वगमन में ही खर्च करें| अपनी चेतना को निरंतर आज्ञा चक्र और सहस्त्रार के मध्य रखें और प्रणव ध्वनी को सुनते रहें|
(७) परमात्मा के निरंतर चिंतन से स्वयं परमात्मा ही हमारी चिंता करने लगते हैं|
परमात्मा के साकार रूप आप सब को मेरा सादर नमन|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
मेरे द्वारा जो कुछ भी लिखा जाता है वह स्वयं के भावों की ही अभिव्यक्ति मात्र है, अन्य कुछ नहीं| अधिकांशतः मेरा एक ही विषय रहता है .... "परमात्मा से प्रेम", बाकी सब इसी का विस्तार है| पुराने गहरे संस्कारों के कारण कभी कभी हिन्दू राष्ट्रवाद की भावनाएँ भी छलक उठती हैं| इसके अतिरिक्त और कुछ मुझे आता जाता भी नहीं है|
मेरे विचार .....
(१) परमात्मा को हम सीमित नहीं कर सकते, वह साकार भी है और निराकार भी| जो कुछ भी सृष्ट हुआ है वह साकार है| सारे रूप-गुण उसी के हैं|
(२) ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग दोनों एक ही हैं, इनमें कोई अंतर नहीं है| अंतर अपनी अपनी समझ का है| आध्यात्म का कोई भी मार्ग हो, बिना भक्ति के एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ सकते| भक्ति ही सबसे बड़ा गुण है| वास्तविक भक्ति होने पर अन्य सभी गुण स्वतः ही खिंचे चले आते हैं| मार्ग की प्राप्ति प्रारब्ध से होती है| परमात्मा के प्रति परम प्रेम ही भक्ति है|
(३) जो परम ब्रह्म परमात्मा हैं, वे सब नाम-रूपों से परे हैं ..... साकार रूप में वे ही भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम और शिव आदि हैं| ओंकार रूप में भी साकार वे ही हैं, और कूटस्थ ज्योति व प्रणव नाद भी उन्हीं की साकारता है| अपने दिन का प्रारम्भ उनके ध्यान से करें| रात्रि को सोने से पूर्व उनका गहन ध्यान कर के ही सोयें| हर समय उनकी स्मृति बनाए रखें|
(४) सहस्त्रार के मध्य में एक विराट श्वेत ज्योति सदैव बिराजमान रहती है| हमारी चेतना का केंद्र वहीं है|
(५) प्राण तत्व .... मेरु शीर्ष (शिखा स्थान) से देह में प्रवेश कर मेरु-दंड के सभी चक्रों में प्रवेश कर पूरी देह को जीवंत रखता है| समस्त ऊर्जा वहीं से प्राप्त होती है|
(६) अपनी ऊर्जा को फालतू के कार्यों में व्यर्थ न कर चेतना के ऊर्ध्वगमन में ही खर्च करें| अपनी चेतना को निरंतर आज्ञा चक्र और सहस्त्रार के मध्य रखें और प्रणव ध्वनी को सुनते रहें|
(७) परमात्मा के निरंतर चिंतन से स्वयं परमात्मा ही हमारी चिंता करने लगते हैं|
परमात्मा के साकार रूप आप सब को मेरा सादर नमन|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर