मैं साँस नहीं ले रहा, यह समस्त सृष्टि मेरे माध्यम से साँस ले रही है .....
(I am not breathing ....... I am being breathed by the Divine) .....
यह देह साक्षात् परमात्मा का एक उपकरण है| स्वयं परमात्मा इस उपकरण से साँस ले रहे हैं|
मेरा होना ..... यह पृथकता का बोध ..... एक भ्रम मात्र है|
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राग-द्वेष और अहंकार कामना उत्पन्न करते हैं| कामना अवरोधित होने पर क्रोध को जन्म देती है| ये काम और क्रोध दोनों ही नर्क के द्वार हैं जो सारे पाप करवाते हैं| कामनाओं को पूरा न करो .... यह भी एक साधना है, इससे रजोगुण कम होता है|
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सदा ब्राह्मी स्थिति में ही रहने का ही प्रयास करो| एकमात्र कर्ता तो सिर्फ परमात्मा ही हैं| परमात्मा से पृथक कोई कामना नहीं हो|
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यदि यह भाव निरंतर बना रहे कि मैं तो भगवान का एक नौकर यानि दास मात्र हूँ, या मैं उनका परम प्रिय पुत्र हूँ, और जो उनकी इच्छा होगी वह ही करूँगा, या वह ही हो रहा है जो उनकी इच्छा है, तो साधन मार्ग से साधक च्युत नहीं हो सकता| या फिर यह भाव रहे कि 'मै' तो हूँ ही नहीं, जो भी हैं, वे ही हैं, और वे ही सब कुछ कर रहे हैं| यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि साधना की किस उच्च स्थिति में हम हैं| पर परमात्मा का स्मरण सदा बना रहे|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
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