Thursday, 20 April 2017

साधन चतुष्टय ...... क्या आध्यात्मिक साधना सिर्फ भावों से ही हो सकती है ? ......

क्या आध्यात्मिक साधना सिर्फ भावों से ही हो सकती है ? ......
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कुछ लोग उदधृत करते हैं ..... "मन चंगा तो कठौती में गंगा"|
पर मेरा व्यवहारिक अनुभव तो यही कहता है कि जब तक तमोगुण और रजोगुण हावी हैं, तब तक मन कभी चंगा हो ही नहीं सकता चाहे कोई कितना भी प्रयास करले|
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भगवान ने गीता जी में "साधन चतुष्टय" की बात क्यों कही है? यदि साधना सिर्फ भावना से ही हो जाती तो भगवान को साधन चतुष्टय के बारे में क्यों बताना पड़ा? बिना साधन चतुष्टय पूर्ण किये कोई भी साधना सफल नहीं हो सकती, ऐसा प्रायः सभी महात्माओं का मत है|
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ब्रह्मसूत्र शंकरभाष्य में तथा विवेक चूडामणि ग्रंथ में भगवान शंकराचार्य इसकी चर्चा करते हैं......
चार साधनों के समूह के रूप मे साधन चतुष्टय बतलाए गये हैं ......

(१) नित्यानित्य वस्तु विवेक : अर्थात् , नित्य एवं अनित्य तत्त्व का विवेक ज्ञान|
(२) इहमुत्रार्थ भोगविराग : जागतिक एवं स्वार्गिक दोनों प्रकार के भोग-ऐश्वर्यों से अनासक्ति|
(३) शमदमादि षट् साधन सम्पत् ..... शम, दम, श्रद्धा, समाधान, उपरति, तितिक्षा, आदि छः साधन सम्पत्तियों से युक्त होना|
(४) मुमुक्षत्व – मोक्षानुभूति की उत्कण्ठ अभिलाषा|
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उपरोक्त साधन मोक्ष प्राप्ति में सहायक कहे गये है| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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