Saturday, 4 January 2025

सदगुरुदेव से प्रार्थना ---

ॐ हे प्रेममय ज्योतिर्मय गुरुरूप कूटस्थ ब्रह्म, अपने इस बालक के ह्रदय को इतना पवित्र कर दो कि श्वेत कमल भी उसे देख कर शरमा जाए| तुम इस नौका के कर्णधार हो जिसे द्वैत से परे ले चलो| इसके अतिरिक्त इस बालक की अन्य कोई अभीप्सा नहीं है|

तुम सब नाम और रूपों से परे हो| तुम्हारा निवास कूटस्थ में है जहाँ तुम सदा मेरे साथ हो| तुम स्वयं कूटस्थ ब्रह्म हो| जब तुम साथ में हो तब मुझे अब और कुछ भी नहीं चाहिए| तुम्हारे विराट महासागर में मैं एक कण था जो तुम्हारे में विलीन होकर तुम्हारा ही एक प्रवाह बन गया हूँ| मैं तुम्हारे साथ एक हूँ और सदा एक ही रहूँगा |
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5 जनवरी का दिन मेरे लिए एक विशेष दिन है| १२३ वर्ष पूर्व योगिराज श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय के आशीर्वाद से उनके शिष्यों श्री भगवती चरण घोष और श्रीमती ज्ञानप्रभा घोष के यहाँ गोरखपुर में ५ जनवरी सन १८९३ ई. को एक दिव्य विलक्षण बालक का जन्म हुआ जिसका नाम मुकुंद लाल घोष रखा गया| श्री श्री लाहिड़ी महाशय ने बालक को आशीर्वाद देते समय कहा था कि यह बालक बड़ा होकर एक आध्यात्मिक इंजन की तरह असंख्य लोगों को परमात्मा के राज्य में ले जाएगा| यही बालक बड़े होकर परमहंस योगानंद के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुए| उन्हें उनके गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरी ने प्रशिक्षित कर महावातार बाबाजी के आदेश से सनातन धर्म के प्रचार प्रसार हेतु अमेरिका भेजा| बाबाजी ने स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरी को कहा था कि पश्चिम में अनेक दिव्य आत्माएं ईश्वर प्राप्ति के लिए व्याकुल हैं, जिन्हें अब और अन्धकार में नहीं रखा जा सकता| उनके मार्गदर्शन के लिए मैं एक बालक को तुम्हारे पास भेजूंगा जिसे प्रशिक्षित कर तुम्हें अमेरिका भेजना होगा|
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अपने जीवन काल में और उसके पश्चात भी योगानंद जी ने लाखों लोगों को परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग बताया| अभी भी उनकी सत्ता सूक्ष्म जगत में है जहाँ से वे निरंतर श्रद्धालु शिष्यों का मार्ग दर्शन करते हैं| उनकी मुझ अकिंचन पर भी अपार कृपा रही है और मैं जो कुछ भी हूँ वह उनका आशीर्वाद मात्र है| मेरी कोई महिमा नहीं है, सब महिमा उन्हीं की है|
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चार और पाँच जनवरी के दो दिन उनके विशेष ध्यान और साधनाओं में निकलेंगे|
गुरु महाराज की सभी पर कृपा हो| ॐ ॐ ॐ || कृपा शंकर
४ जनवरी २०१६

पाकिस्तान के दिवंगत (कर्नल) शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का मैं समर्थक नहीं हूँ ---

पाकिस्तान के दिवंगत (कर्नल) शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (فیض احمد فیض‎) (१९११ - १९८४) (फौज में कर्नल के पद से १९४८ में इस्तीफा देकर सेवानिवृत) का मैं समर्थक नहीं हूँ| उनकी शायरी चाहे कितनी भी दमदार रही हो पर उनके जीवन का एक काला अध्याय भी है जिसे बताया नहीं जाता| सन १९७१ के भारत-पाकिस्तान के युद्ध से पूर्व उन्होने पाकिस्तानी फौज द्वारा वर्तमान बांग्लादेश में किए गए वीभत्स नर-संहार का समर्थन किया था और बांग्ला भाषा को उर्दू से हीन बताया था|

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पाकिस्तानी फौज ने १९७१ से पूर्व बांग्लादेश में लगभग २० से २५ लाख हिंदुओं की हत्या की थी| इसके अतिरिक्त लाखों बांग्लाभाषी मुसलमानों की भी हत्याएँ की| लाखों महिलाओं के साथ वहाँ पाकिस्तानी फौज द्वारा बलात्कार हुआ और अनगिनत बच्चों की हत्याएँ भी| वहाँ की अल-बदर नाम की एक संस्था के लोग रात में हिंदुओं के घरों के बाहर एक निशान लगा आते और दूसरे दिन पाकिस्तानी फौज वहाँ जाकर घर के सब पुरुषों को गोली मार देती और महिलाओं व बच्चों को उठा ले जाती| सड़कों पर अचानक सभी पुरुषों को रोक कर उनकी लूँगी खुलाकर चेकिंग होती और जिस भी पुरुष की खतना नहीं हुई होती उसे वहीं गोली मार दी जाती|
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ऐसी हालत थी वहाँ के लोगों की जिसमें भुट्टो के साथ इन्होने ढाका में जाकर बंगाली लोगों से पाकिस्तान के समर्थन की अपील की थी| यह बात दूसरी है कि वहाँ इन की बात किसी ने भी नहीं सुनी| इनकी बीबी एक अंग्रेज़ महिला थी| इन्होने पाकिस्तानी फौज द्वारा किए गए जुल्मों व नर-संहार का कभी विरोध नहीं किया| ये खुद एक पूर्व पाकिस्तानी फौजी कर्नल थे, और लियाकत अली ख़ाँ की सरकार के तख़्तापलट की साजिश रचने के जुर्म में वे १९५१ से १९५५ तक पाकिस्तान में सजायाफ़्ता भी रहे थे| भारत के साथ १९६५ के पाकिस्तान से युद्ध के समय वे पाकिस्तान के सूचना मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारी थे|
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सन १९७१ की सारी घटनाएँ मुझे अभी तक याद हैं| मैंने भी उस युद्ध में भाग लिया था| उस समय की बातें मैं नहीं करता| अनेक लोगों से भी मेरा मिलना हुआ था जो वहाँ की हालत के प्रत्यक्षदर्शी थे| वहाँ के बारे बहुत कुछ जानता हूँ| वे एक अच्छे कवि थे यह बात दूसरी है पर साथ साथ एक कट्टर जिहादी भी थे| उनका मार्क्सवाद एक दिखावा था|