ॐ हे प्रेममय ज्योतिर्मय गुरुरूप कूटस्थ ब्रह्म, अपने इस बालक के ह्रदय को इतना पवित्र कर दो कि श्वेत कमल भी उसे देख कर शरमा जाए| तुम इस नौका के कर्णधार हो जिसे द्वैत से परे ले चलो| इसके अतिरिक्त इस बालक की अन्य कोई अभीप्सा नहीं है|
तुम सब नाम और रूपों से परे हो| तुम्हारा निवास कूटस्थ में है जहाँ तुम सदा मेरे साथ हो| तुम स्वयं कूटस्थ ब्रह्म हो| जब तुम साथ में हो तब मुझे अब और कुछ भी नहीं चाहिए| तुम्हारे विराट महासागर में मैं एक कण था जो तुम्हारे में विलीन होकर तुम्हारा ही एक प्रवाह बन गया हूँ| मैं तुम्हारे साथ एक हूँ और सदा एक ही रहूँगा |
.
5 जनवरी का दिन मेरे लिए एक विशेष दिन है| १२३ वर्ष पूर्व योगिराज श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय के आशीर्वाद से उनके शिष्यों श्री भगवती चरण घोष और श्रीमती ज्ञानप्रभा घोष के यहाँ गोरखपुर में ५ जनवरी सन १८९३ ई. को एक दिव्य विलक्षण बालक का जन्म हुआ जिसका नाम मुकुंद लाल घोष रखा गया| श्री श्री लाहिड़ी महाशय ने बालक को आशीर्वाद देते समय कहा था कि यह बालक बड़ा होकर एक आध्यात्मिक इंजन की तरह असंख्य लोगों को परमात्मा के राज्य में ले जाएगा| यही बालक बड़े होकर परमहंस योगानंद के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुए| उन्हें उनके गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरी ने प्रशिक्षित कर महावातार बाबाजी के आदेश से सनातन धर्म के प्रचार प्रसार हेतु अमेरिका भेजा| बाबाजी ने स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरी को कहा था कि पश्चिम में अनेक दिव्य आत्माएं ईश्वर प्राप्ति के लिए व्याकुल हैं, जिन्हें अब और अन्धकार में नहीं रखा जा सकता| उनके मार्गदर्शन के लिए मैं एक बालक को तुम्हारे पास भेजूंगा जिसे प्रशिक्षित कर तुम्हें अमेरिका भेजना होगा|
.
अपने जीवन काल में और उसके पश्चात भी योगानंद जी ने लाखों लोगों को परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग बताया| अभी भी उनकी सत्ता सूक्ष्म जगत में है जहाँ से वे निरंतर श्रद्धालु शिष्यों का मार्ग दर्शन करते हैं| उनकी मुझ अकिंचन पर भी अपार कृपा रही है और मैं जो कुछ भी हूँ वह उनका आशीर्वाद मात्र है| मेरी कोई महिमा नहीं है, सब महिमा उन्हीं की है|
.
चार और पाँच जनवरी के दो दिन उनके विशेष ध्यान और साधनाओं में निकलेंगे|
गुरु महाराज की सभी पर कृपा हो| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
४ जनवरी २०१६
हे गुरुदेव, तुम को भी नमन और मुझ को भी नमन !
ReplyDeleteतुम्हारे साथ तो इतना जुड़ गया हूँ कि अब कोई भेद ही नहीं रहा है |
दोनों को नमन !
तुम और मैं दोनों ही अब परमात्मा में एक हैं |
हम दोनों ही सच्चिदानंद परमात्मा में मिल गए हैं |
हम 'उसी' की अभिव्यक्ति थे और 'उसी' को अभिव्यक्त कर रहे हैं |
अब ना तो तुम हो और ना मैं हूँ |
सच्चिदानंद के सिवा अब और कुछ भी नहीं है |
सच्चिदानंद भगवान की जय |
ॐ नमः शिवाय | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
उनके उपदेशों का सार यही है की आप यह देह नहीं अपितु परमात्मा की सर्वव्यापी चेतना हो| उनका स्वभाव 'प्रेम' था और वे स्वयं साक्षात दिव्य प्रभु प्रेम की पूर्ण अभिव्यक्ति थे|
ReplyDeleteप्राचीन काल में कहते हैं कि एक ऐसा पत्थर पाया जाता था जिसके स्पर्श से लोहा सोना हो जाता था| पता नहीं इसमें कितनी सच्चाई है| पर मुझे सचमुच एक पारस पत्थर अड़तीस वर्ष पूर्व मिला था जो मिटटी से सोना बना देता है| मैं वास्तव में बहुत अधिक भाग्यशाली हूँ| उस पारस पत्थर ने मुझे निहाल कर दिया है|
ReplyDelete.
मेरे सद् गुरु महाराज ही वह पारस पत्थर हैं जिन्होनें मुझे मिटटी से सोना बना दिया है| उन्होंने मेरी अनेक बुराइयों को प्रभु-प्रेम में रूपांतरित कर दिया है| उनकी शक्ति इससे भी अधिक है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता| उन्होंने अपनी कृपादृष्टि से अनेक शिष्यों को पारस पत्थर बनाया है|
.
सूक्ष्म जगत से वे निरंतर मुझ पर अपनी दृष्टी रखे हुए हैं| मैं उनकी दृष्टी में हूँ अतः मुझे और क्या चाहिए? कुछ भी नहीं| उनकी एक नज़र ही काफी है, वह जिस पर पड़ जाती है वह निहाल हो जाता है|
.
मैं उनके प्रेम का एक अनंत सागर हूँ जो स्वयं में तैरते हुए इस अहंकार को देख रहा है| कितनी मधुरता है उनके इस प्रेम में !!!