Wednesday, 12 September 2018

गुरु पादुका रहस्य .....

गुरु पादुका रहस्य .....
.
"अनंत संसार समुद्र तार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्यां| वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां||"
इस अनंत संसार में श्रीगुरुचरणपादुका से अधिक पूजनीय अन्य कुछ भी नहीं है| श्रीगुरुचरणों में मिला हुआ आश्रय ही मेरी एकमात्र स्थायी निधि है| प्रातःकाल उठते ही सर्वप्रथम ध्यान श्रीगुरुचरणों का ही होता है, रात्रि को सोने से पूर्व, और स्वप्न में भी श्रीगुरुचरण ही दिखाई देते हैं| वे ही मेरी गति हैं, अन्य कुछ भी नहीं है| वे ही भगवान परमशिव हैं| मेरी सारी कमियाँ-खूबियाँ, दोष-गुण, बुराई-भलाई, सारा अस्तित्व, सब कुछ श्रीगुरुचरणों में अर्पित है|
.
मेरी कुछ अनुभवजन्य निजी मान्यताएँ हैं जिन पर मैं दृढ़ हूँ| उन पर किये जाने वाले किसी भी विवाद से मैं प्रभावित नहीं होता| ध्यान के समय सहस्त्रार में दिखाई देने वाले कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म और कूटस्थ अक्षर ही श्रीगुरुचरण हैं| उनमें स्थिति ही गुरु चरणों में आश्रय है| उन्हीं का अनंत विस्तार ही परमशिव है| गुरु चरणों के ध्यान से ही अजपा-जप और सूक्ष्म प्राणायाम स्वतः ही होते रहते हैं| बाह्य कुम्भक के समय होने वाला ध्यान उनकी पूजा है| इससे अधिक मैं कुछ भी नहीं जानता|
.
आरम्भ में मैं गुरु के बीज मन्त्र "ऐं" के साथ ध्यान करता था जिसका बोध गुरुकृपा हे ही हुआ, फिर छिन्नमस्ता के मन्त्र के साथ करता था| जब से गुरु चरणों में आश्रय लिया है तब से जो कुछ भी करते हैं, वे श्रीगुरु महाराज ही करते हैं| मैं कुछ नहीं करता| मेरे अंतरतम के अज्ञान को वे ही भस्म कर रहे हैं| उनके श्रीचरणों में लिपटी रहने वाली ये पादुकाएँ ही साक्षात् उनका विग्रह हैं| मैं पूर्ण श्रद्धा-भक्ति सहित उनको प्रणाम करता हूँ| ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१२ सितम्बर २०१८

ज्ञानी, भक्त और भगवान कौन हैं ?

ज्ञानी, भक्त और भगवान कौन हैं ?
.
(१) प्रश्न :-- ज्ञानी कौन है ?
उत्तर :-- जो समभाव में स्थित है वह ही ज्ञानी है| विश्व की सारी धन-संपदा मिल जाए तो भी कोई हर्ष न हो, किसी भी तरह का लोभ न हो, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु आदि किसी भी तरह की परिस्थिति में विचलित न हो, वह ही ज्ञानी है|
.
(२) प्रश्न :-- भक्त कौन है ?
उत्तर :-- जिस के हृदय में परम प्रेम है, जो सत्यपरायण है, जिसने कामनाओं व वासनाओं पर विजय पा ली है, वह ही भक्त है| झूठ बोलने वाला व्यक्ति कभी भक्त नहीं हो सकता, उसका भक्ति का दिखावा पाखण्ड है|
.
(३) प्रश्न :-- भगवान कौन हैं ?
उत्तर : भगवान सत्य हैं| एकमात्र सत्य भगवान ही हैं| भगवान सत्यनारायण हैं| यह अनुभूति का विषय है, बौद्धिक नहीं| भगवान ही एकमात्र सत्य हैं| यह बात ध्यान में ही समझ में आती है, अतः इस पर बौद्धिक चर्चा करना व्यर्थ है| विष्णु पूराण के अनुसार "भगवान" शब्द का अर्थ है -----
"ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः|
ज्ञानवैराग्योश्चैव षण्णाम् भग इतीरणा||" –विष्णुपुराण ६ |५ | ७४
सम्पूर्ण ऐश्वर्य धर्म, यश, श्री, ज्ञान, तथा वैराग्य यह छः सम्यक् पूर्ण होने पर `भग` कहे जाते हैं, और इन छः की जिसमें पूर्णता है, वह भगवान है|
.
सभी को नमन ! ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१२ सितम्बर २०१८

नदी-नाव संयोग .....

नदी-नाव संयोग .....

दोनों आँखें एक-दूसरे को देख नहीं सकतीं, फिर भी साथ साथ देखती हैं, साथ साथ झपकती हैं और साथ साथ रोती हैं| दोनों एक दूसरे का क्या बिगाड़ सकती हैं? साथ रहना उनकी नियति है|
कई बार दाँत जीभ को काट लेते है, फिर भी दाँत और जीभ साथ साथ ही रहते हैं| साथ साथ रहना उनकी भी नियति है|
रेज़र की ब्लेड नुकीली होती है पर पेड़ को नहीं काट सकती| कुल्हाड़ी नुकीली होती है पर दाढ़ी नहीं बना सकती| सूई का काम तलवार नहीं कर सकती, और तलवार का काम सूई नहीं कर सकती| हर व्यक्ति महत्वपूर्ण है| जीवन में न चाहते हुए भी सब के साथ प्रेम से रहना ही पड़ता है|
घर-परिवार और समाज में विवशता की बजाय प्रेम से जीयें तो अधिक अच्छा होगा| कई बार हमें अंधा बनकर आसपास की घटनाओं की उपेक्षा करनी पड़ती है|
ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१२ सितंबर २०१७

मन में अच्छे विचार कहाँ से आते हैं ? .....

मन में अच्छे विचार कहाँ से आते हैं ? .....
----------------------------------------
मेरे अनुभव से अच्छे विचार हमारी बौद्धिकता से नहीं अपितु अन्तर्प्रज्ञा से आते हैं| अन्तर्प्रज्ञा की जागृति ही हमें अच्छा मानव बनाती है, अन्यथा तो हम पाशों में बंधे हुए पशु ही हैं| मस्तिष्क का कौन सा भाग अन्तर्प्रज्ञा को जन्म देता है यह हम नहीं जानते पर यह ज्ञान हमारे प्राचीन भविष्यदृष्टा ऋषियों को था| हमारे मष्तिष्क में लाखों करोड़ों सर्किट्स यानि तंत्र हैं, कौन से सर्किट यानि तंत्र को सक्रिय कैसे किया जाए, और उसके क्या परिणाम होंगे, यह हमारे प्राचीन ऋषि जानते थे|
.
शरीर के किस भाग पर ध्यान दिया जाए, या किस मन्त्र का किस समय जाप किया जाये तो उसके क्या परिणाम होंगे, यह बताने का उन्होंने लोकहित में सदा प्रयास किया था| हम चाहे उन्हें दकियानूसी कह कर उनकी हँसी उड़ाते रहें पर सत्य को हम नहीं बदल सकते| 
.
आज्ञा चक्र पर ध्यान करने से अन्तर्प्रज्ञा जागृत होती है, यह अनुभूत सत्य है| इसका तरीका भी बताया गया है कि दृष्टिपथ भ्रूमध्य की ओर रहे व चेतना आज्ञाचक्र से ऊपर रहे| इस से अनेक अनुभूतियाँ हुई हैं| साथ साथ किन बीजमंत्रों के किस विधि से जप से क्या परिणाम होते हैं, व किन गोपनीय सूक्ष्म प्राणायामों से मनुष्य के सहज विकास को बढाया जा सकता है, यह तो अब भी भारत के निष्ठावान साधकों को ज्ञात है| 
.
सारे ज्ञान को चार महावाक्यों के पीछे छिपा दिया गया है| सारा ज्ञान उपनिषदों व गीता जैसे ग्रंथों के माध्यम से हमें दिया गया है| इसका ज्ञान सभी को अपने पुरुषार्थ से अर्जित करना चाहिए| आचार्य शंकर और आचार्य रामानुज जैसे आचार्यों ने अपने अपने तरीकों से उनकी व्याख्या की है| संन्यास और वैराग्य की परम्पराओं की स्थापना हुई है क्योंकि घर गृहस्थी में व समाज में रहते हुए आध्यात्म के मार्ग पर अधिक प्रगति करना असंभव सा ही है|
.
जैसे अच्छे विचार अन्तर्प्रज्ञा से आते हैं वैसे ही सारा ज्ञान भी अन्तर्प्रज्ञा से ही प्राप्त होता है| वह कब किस को प्राप्त हो जाए कुछ कह नहीं सकते| २८७ से २१२ वर्ष ईसा पूर्व यूनान में वहाँ के एक गणितज्ञ आर्किमिडीज़ को वहाँ के राजा ने यह पता लगाने को कहा कि जितना सोना उसने अपना मुकुट बनाने के लिए सुनार को दिया था, सुनार ने कहीं मिलावट तो नहीं कर दी है| यह पता लगाने के लिए आर्किमिडीज़ ने एक बाल्टी पानी से लबालब भरकर उसमें मुकुट को डाला, जितना पानी बाहर निकला उसका भार मापा| फिर दुबारा पानी से बाल्टी भरकर उसमें उतने ही वजन का शुद्ध सोना डाला और बाहर निकले पानी का भार मापा| इस प्रयोग से उसे संतुष्टि नहीं हुई तो वह अपने स्नान घर में गया और यह देखने के लिए कि भरे हुए स्नान टब में उसके लेटने से उसके वजन के बराबर ही पानी निकलता है या कम या अधिक| अपने सारे कपडे उतार कर नंगा होकर वह टब में लेट गया| अचानक उसकी अन्तर्प्रज्ञा जागृत हुई और एक विचार उसके मन में आया जिस से आनंदित होकर वह नंगा ही बिना कोई कपड़ा पहिने घर से निकल कर वहाँ की सडकों पर "यूरेका" "यूरेका" "यूरेका" चिल्लाते हुए दौड़ पडा| भौतिक विज्ञान में उसने जलस्थैतिकी, सांख्यिकी और उत्तोलक के सिद्धांत की नींव रखी| 
.
पुराणों की, महाभारत और रामायण की रचना ऐसी अन्तर्प्रज्ञा द्वारा हुई है जो परमात्मा की कृपा से ही होती है| याज्ञवल्क्य और वेदव्यास जैसे ऋषियों की प्रतिभा और प्रज्ञा अकल्पनीय है| ऐसा कोई ज्ञान नहीं है जो उन्हें उपलब्ध नहीं था| 
.
हमारे जीवन में सदगुरु भी हमें एक दिशा देने के लिए आते हैं| उस दिशा में अग्रसर तो हमें स्वयं को ही होना पड़ता है| हम सब पर निरंतर परमात्मा की कृपा बनी रहे, हमारा विवेक और प्रज्ञा सदा जागृत रहे| जीवन में हमारा एकमात्र लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति ही हो, हम उसी दिशा में अग्रसर रहें| ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर 
१० सितम्बर २०१८

धर्म का उद्देश्य क्या है ?

धर्म का उद्देश्य क्या है ?
विदेशों में यह प्रश्न मैनें अनेक लोगों से पूछा है कि धर्म का उद्देश्य क्या है? प्रायः सभी का इनमें से ही एक उत्तर था ..... (१) एक श्रेष्ठतर मनुष्य बनना, (२) जन्नत यानि स्वर्ग की प्राप्ति, (३) आराम से जीवनयापन यानि सुख, शांति और सुरक्षा|
.
भारत में भी अनेक लोगों से मैनें यह प्रश्न किया है| अधिकाँश लोगों का उत्तर था कि .... बच्चों का पालन पोषण करना, दो समय की रोटी कमाना, कमा कर घर में चार पैसे लाना आदि ही धर्म है| यदि भगवान का नाम लेने से घर में चार पैसे आते हैं तब तो भगवान की सार्थकता है, अन्यथा भगवान बेकार है| अधिकाँश लोगों ने भगवान को एक साधन बताया है जो हमें रुपये पैसे प्राप्त कराने योग्य बनाता है, साध्य तो यह संसार है|
.
भारत के कुछ अति अति अल्पसंख्यक नगण्य लोगों के अनुसार परमात्मा की प्राप्ति यानि परमात्मा को उपलब्ध होना ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य है|
१० सितम्बर २०१८ 

पूर्णता निजात्मा में है, कहीं बाहर नहीं .....

दूसरों के गले काट कर, दूसरों की ह्त्या कर, दूसरों की संपत्ति का विध्वंश कर, दूसरों को लूट कर और अधिकाधिक हानि पहुंचा कर, क्या हम महान और पूर्ण बन सकते हैं ? .....
.
अधिकांश मानवता अशांत है, दूसरों के विनाश में ही पूर्णता खोज रही है| पर इतने नरसंहार और विध्वंश के पश्चात भी उसे कहीं सुख शांति नहीं मिल रही है| जो हमारे विचारों से असहमत हैं उन सब का विनाश कर दिया जाता है| इस तरह से सत्ता पाकर सब अपना अहंकार तृप्त करना चाहते हैं| हत्यारों, लुटेरों व अत्याचारियों को ही झूठा इतिहास लिखकर गौरवान्वित किया जा रहा है| कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है, भारत में ही देख लो|
.
पूर्णता की खोज में मनुष्य ने पूँजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद, फासीवाद, सेकुलरवाद, जैसे अनेक वाद खोजे, और अनेक कलियुगी मत-मतान्तरों, पंथों व सम्प्रदायों का निर्माण किया| पर किसी से भी मनुष्य को सुख-शांति नहीं मिली| इन सब ने मनुष्यता को कष्ट ही कष्ट दिए हैं| अभी भी जो इतनी भयंकर मार-काट, अन्याय, और हिंसा हो रही है, यह मनुष्य की निराशाजनक रूप से पूर्णता की ही खोज है| मनुष्य सोचता है कि दूसरों के गले काटकर वह बड़ा बन जाएगा, पर सदा असंतुष्ट ही रहता है और आगे भी दूसरोंके गले काटने का अवसर ढूंढता रहता है|
.
अंततः हम इस निर्णय पर पहुँचेंगे कि पूर्णता तो निज आत्मा में ही है, कहीं बाहर नहीं| पूर्ण तो सिर्फ परमात्मा है जिस से जुड़ कर ही हम पूर्ण हो सकते हैं, दूसरों के गले काट कर नहीं| पर यह समझ आने तक बहुत अधिक देरी हो जायेगी|
.
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
शांति मन्त्र ......
"ॐ सहनाववतु | सह नौ भुनक्तु | सह वीर्यं करवावहै | तेजस्वि नावधीतमस्तु | मा विद्विषावहै || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
कृपा शंकर
१० सितम्बर २०१८

माँ भगवती .....

माँ भगवती .....
अनंत काल से पता नहीं कितने अज्ञात जन्मों में उनकी ममतामयी गोद में सदा हमारी रक्षा हुई है| हम उनकी अनंत, पूर्ण और सर्वव्यापक बाहों में पूर्णतः सुरक्षित हैं| अच्छा या बुरा, हमारे साथ कभी कुछ भी नहीं हो सकता, जब तक उनकी सहमति न हो| नष्ट होते हुए विश्व व टूटते हुए ब्रह्मांडों के मध्य भी हम सुरक्षित हैं, कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, हमें छू भी नहीं सकता, जब तक वे हमारे हृदय में हैं| उनकी ममतामयी गोद में हम पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं| उनका प्रेमसिन्धु इतना विराट है जिसमें हमारी हिमालय जैसी भूलें भी एक कंकर-पत्थर से अधिक नहीं हैं|
.
लक्ष्य और अनुभव ........
अनंत कोटि सूर्यों की ज्योति से भी अधिक आभासित हमारा लक्ष्य निरंतर हमारे समक्ष रहे| इधर-उधर दायें-बाएँ कहीं अन्यत्र कुछ है ही नहीं| सर्वत्र वही ज्योति है| वह ज्योतिषांज्योति हम स्वयं हैं| ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
९ सितम्बर २०१८