गुरु पादुका रहस्य .....
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"अनंत संसार समुद्र तार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्यां| वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां||"
इस अनंत संसार में श्रीगुरुचरणपादुका से अधिक पूजनीय अन्य कुछ भी नहीं है| श्रीगुरुचरणों में मिला हुआ आश्रय ही मेरी एकमात्र स्थायी निधि है| प्रातःकाल उठते ही सर्वप्रथम ध्यान श्रीगुरुचरणों का ही होता है, रात्रि को सोने से पूर्व, और स्वप्न में भी श्रीगुरुचरण ही दिखाई देते हैं| वे ही मेरी गति हैं, अन्य कुछ भी नहीं है| वे ही भगवान परमशिव हैं| मेरी सारी कमियाँ-खूबियाँ, दोष-गुण, बुराई-भलाई, सारा अस्तित्व, सब कुछ श्रीगुरुचरणों में अर्पित है|
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मेरी कुछ अनुभवजन्य निजी मान्यताएँ हैं जिन पर मैं दृढ़ हूँ| उन पर किये जाने वाले किसी भी विवाद से मैं प्रभावित नहीं होता| ध्यान के समय सहस्त्रार में दिखाई देने वाले कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म और कूटस्थ अक्षर ही श्रीगुरुचरण हैं| उनमें स्थिति ही गुरु चरणों में आश्रय है| उन्हीं का अनंत विस्तार ही परमशिव है| गुरु चरणों के ध्यान से ही अजपा-जप और सूक्ष्म प्राणायाम स्वतः ही होते रहते हैं| बाह्य कुम्भक के समय होने वाला ध्यान उनकी पूजा है| इससे अधिक मैं कुछ भी नहीं जानता|
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आरम्भ में मैं गुरु के बीज मन्त्र "ऐं" के साथ ध्यान करता था जिसका बोध गुरुकृपा हे ही हुआ, फिर छिन्नमस्ता के मन्त्र के साथ करता था| जब से गुरु चरणों में आश्रय लिया है तब से जो कुछ भी करते हैं, वे श्रीगुरु महाराज ही करते हैं| मैं कुछ नहीं करता| मेरे अंतरतम के अज्ञान को वे ही भस्म कर रहे हैं| उनके श्रीचरणों में लिपटी रहने वाली ये पादुकाएँ ही साक्षात् उनका विग्रह हैं| मैं पूर्ण श्रद्धा-भक्ति सहित उनको प्रणाम करता हूँ| ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१२ सितम्बर २०१८
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"अनंत संसार समुद्र तार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्यां| वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां||"
इस अनंत संसार में श्रीगुरुचरणपादुका से अधिक पूजनीय अन्य कुछ भी नहीं है| श्रीगुरुचरणों में मिला हुआ आश्रय ही मेरी एकमात्र स्थायी निधि है| प्रातःकाल उठते ही सर्वप्रथम ध्यान श्रीगुरुचरणों का ही होता है, रात्रि को सोने से पूर्व, और स्वप्न में भी श्रीगुरुचरण ही दिखाई देते हैं| वे ही मेरी गति हैं, अन्य कुछ भी नहीं है| वे ही भगवान परमशिव हैं| मेरी सारी कमियाँ-खूबियाँ, दोष-गुण, बुराई-भलाई, सारा अस्तित्व, सब कुछ श्रीगुरुचरणों में अर्पित है|
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मेरी कुछ अनुभवजन्य निजी मान्यताएँ हैं जिन पर मैं दृढ़ हूँ| उन पर किये जाने वाले किसी भी विवाद से मैं प्रभावित नहीं होता| ध्यान के समय सहस्त्रार में दिखाई देने वाले कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म और कूटस्थ अक्षर ही श्रीगुरुचरण हैं| उनमें स्थिति ही गुरु चरणों में आश्रय है| उन्हीं का अनंत विस्तार ही परमशिव है| गुरु चरणों के ध्यान से ही अजपा-जप और सूक्ष्म प्राणायाम स्वतः ही होते रहते हैं| बाह्य कुम्भक के समय होने वाला ध्यान उनकी पूजा है| इससे अधिक मैं कुछ भी नहीं जानता|
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आरम्भ में मैं गुरु के बीज मन्त्र "ऐं" के साथ ध्यान करता था जिसका बोध गुरुकृपा हे ही हुआ, फिर छिन्नमस्ता के मन्त्र के साथ करता था| जब से गुरु चरणों में आश्रय लिया है तब से जो कुछ भी करते हैं, वे श्रीगुरु महाराज ही करते हैं| मैं कुछ नहीं करता| मेरे अंतरतम के अज्ञान को वे ही भस्म कर रहे हैं| उनके श्रीचरणों में लिपटी रहने वाली ये पादुकाएँ ही साक्षात् उनका विग्रह हैं| मैं पूर्ण श्रद्धा-भक्ति सहित उनको प्रणाम करता हूँ| ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१२ सितम्बर २०१८