मन में अच्छे विचार कहाँ से आते हैं ? .....
----------------------------------------
मेरे अनुभव से अच्छे विचार हमारी बौद्धिकता से नहीं अपितु अन्तर्प्रज्ञा से आते हैं| अन्तर्प्रज्ञा की जागृति ही हमें अच्छा मानव बनाती है, अन्यथा तो हम पाशों में बंधे हुए पशु ही हैं| मस्तिष्क का कौन सा भाग अन्तर्प्रज्ञा को जन्म देता है यह हम नहीं जानते पर यह ज्ञान हमारे प्राचीन भविष्यदृष्टा ऋषियों को था| हमारे मष्तिष्क में लाखों करोड़ों सर्किट्स यानि तंत्र हैं, कौन से सर्किट यानि तंत्र को सक्रिय कैसे किया जाए, और उसके क्या परिणाम होंगे, यह हमारे प्राचीन ऋषि जानते थे|
.
शरीर के किस भाग पर ध्यान दिया जाए, या किस मन्त्र का किस समय जाप किया जाये तो उसके क्या परिणाम होंगे, यह बताने का उन्होंने लोकहित में सदा प्रयास किया था| हम चाहे उन्हें दकियानूसी कह कर उनकी हँसी उड़ाते रहें पर सत्य को हम नहीं बदल सकते|
.
आज्ञा चक्र पर ध्यान करने से अन्तर्प्रज्ञा जागृत होती है, यह अनुभूत सत्य है| इसका तरीका भी बताया गया है कि दृष्टिपथ भ्रूमध्य की ओर रहे व चेतना आज्ञाचक्र से ऊपर रहे| इस से अनेक अनुभूतियाँ हुई हैं| साथ साथ किन बीजमंत्रों के किस विधि से जप से क्या परिणाम होते हैं, व किन गोपनीय सूक्ष्म प्राणायामों से मनुष्य के सहज विकास को बढाया जा सकता है, यह तो अब भी भारत के निष्ठावान साधकों को ज्ञात है|
.
सारे ज्ञान को चार महावाक्यों के पीछे छिपा दिया गया है| सारा ज्ञान उपनिषदों व गीता जैसे ग्रंथों के माध्यम से हमें दिया गया है| इसका ज्ञान सभी को अपने पुरुषार्थ से अर्जित करना चाहिए| आचार्य शंकर और आचार्य रामानुज जैसे आचार्यों ने अपने अपने तरीकों से उनकी व्याख्या की है| संन्यास और वैराग्य की परम्पराओं की स्थापना हुई है क्योंकि घर गृहस्थी में व समाज में रहते हुए आध्यात्म के मार्ग पर अधिक प्रगति करना असंभव सा ही है|
.
जैसे अच्छे विचार अन्तर्प्रज्ञा से आते हैं वैसे ही सारा ज्ञान भी अन्तर्प्रज्ञा से ही प्राप्त होता है| वह कब किस को प्राप्त हो जाए कुछ कह नहीं सकते| २८७ से २१२ वर्ष ईसा पूर्व यूनान में वहाँ के एक गणितज्ञ आर्किमिडीज़ को वहाँ के राजा ने यह पता लगाने को कहा कि जितना सोना उसने अपना मुकुट बनाने के लिए सुनार को दिया था, सुनार ने कहीं मिलावट तो नहीं कर दी है| यह पता लगाने के लिए आर्किमिडीज़ ने एक बाल्टी पानी से लबालब भरकर उसमें मुकुट को डाला, जितना पानी बाहर निकला उसका भार मापा| फिर दुबारा पानी से बाल्टी भरकर उसमें उतने ही वजन का शुद्ध सोना डाला और बाहर निकले पानी का भार मापा| इस प्रयोग से उसे संतुष्टि नहीं हुई तो वह अपने स्नान घर में गया और यह देखने के लिए कि भरे हुए स्नान टब में उसके लेटने से उसके वजन के बराबर ही पानी निकलता है या कम या अधिक| अपने सारे कपडे उतार कर नंगा होकर वह टब में लेट गया| अचानक उसकी अन्तर्प्रज्ञा जागृत हुई और एक विचार उसके मन में आया जिस से आनंदित होकर वह नंगा ही बिना कोई कपड़ा पहिने घर से निकल कर वहाँ की सडकों पर "यूरेका" "यूरेका" "यूरेका" चिल्लाते हुए दौड़ पडा| भौतिक विज्ञान में उसने जलस्थैतिकी, सांख्यिकी और उत्तोलक के सिद्धांत की नींव रखी|
.
पुराणों की, महाभारत और रामायण की रचना ऐसी अन्तर्प्रज्ञा द्वारा हुई है जो परमात्मा की कृपा से ही होती है| याज्ञवल्क्य और वेदव्यास जैसे ऋषियों की प्रतिभा और प्रज्ञा अकल्पनीय है| ऐसा कोई ज्ञान नहीं है जो उन्हें उपलब्ध नहीं था|
.
हमारे जीवन में सदगुरु भी हमें एक दिशा देने के लिए आते हैं| उस दिशा में अग्रसर तो हमें स्वयं को ही होना पड़ता है| हम सब पर निरंतर परमात्मा की कृपा बनी रहे, हमारा विवेक और प्रज्ञा सदा जागृत रहे| जीवन में हमारा एकमात्र लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति ही हो, हम उसी दिशा में अग्रसर रहें| ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१० सितम्बर २०१८
----------------------------------------
मेरे अनुभव से अच्छे विचार हमारी बौद्धिकता से नहीं अपितु अन्तर्प्रज्ञा से आते हैं| अन्तर्प्रज्ञा की जागृति ही हमें अच्छा मानव बनाती है, अन्यथा तो हम पाशों में बंधे हुए पशु ही हैं| मस्तिष्क का कौन सा भाग अन्तर्प्रज्ञा को जन्म देता है यह हम नहीं जानते पर यह ज्ञान हमारे प्राचीन भविष्यदृष्टा ऋषियों को था| हमारे मष्तिष्क में लाखों करोड़ों सर्किट्स यानि तंत्र हैं, कौन से सर्किट यानि तंत्र को सक्रिय कैसे किया जाए, और उसके क्या परिणाम होंगे, यह हमारे प्राचीन ऋषि जानते थे|
.
शरीर के किस भाग पर ध्यान दिया जाए, या किस मन्त्र का किस समय जाप किया जाये तो उसके क्या परिणाम होंगे, यह बताने का उन्होंने लोकहित में सदा प्रयास किया था| हम चाहे उन्हें दकियानूसी कह कर उनकी हँसी उड़ाते रहें पर सत्य को हम नहीं बदल सकते|
.
आज्ञा चक्र पर ध्यान करने से अन्तर्प्रज्ञा जागृत होती है, यह अनुभूत सत्य है| इसका तरीका भी बताया गया है कि दृष्टिपथ भ्रूमध्य की ओर रहे व चेतना आज्ञाचक्र से ऊपर रहे| इस से अनेक अनुभूतियाँ हुई हैं| साथ साथ किन बीजमंत्रों के किस विधि से जप से क्या परिणाम होते हैं, व किन गोपनीय सूक्ष्म प्राणायामों से मनुष्य के सहज विकास को बढाया जा सकता है, यह तो अब भी भारत के निष्ठावान साधकों को ज्ञात है|
.
सारे ज्ञान को चार महावाक्यों के पीछे छिपा दिया गया है| सारा ज्ञान उपनिषदों व गीता जैसे ग्रंथों के माध्यम से हमें दिया गया है| इसका ज्ञान सभी को अपने पुरुषार्थ से अर्जित करना चाहिए| आचार्य शंकर और आचार्य रामानुज जैसे आचार्यों ने अपने अपने तरीकों से उनकी व्याख्या की है| संन्यास और वैराग्य की परम्पराओं की स्थापना हुई है क्योंकि घर गृहस्थी में व समाज में रहते हुए आध्यात्म के मार्ग पर अधिक प्रगति करना असंभव सा ही है|
.
जैसे अच्छे विचार अन्तर्प्रज्ञा से आते हैं वैसे ही सारा ज्ञान भी अन्तर्प्रज्ञा से ही प्राप्त होता है| वह कब किस को प्राप्त हो जाए कुछ कह नहीं सकते| २८७ से २१२ वर्ष ईसा पूर्व यूनान में वहाँ के एक गणितज्ञ आर्किमिडीज़ को वहाँ के राजा ने यह पता लगाने को कहा कि जितना सोना उसने अपना मुकुट बनाने के लिए सुनार को दिया था, सुनार ने कहीं मिलावट तो नहीं कर दी है| यह पता लगाने के लिए आर्किमिडीज़ ने एक बाल्टी पानी से लबालब भरकर उसमें मुकुट को डाला, जितना पानी बाहर निकला उसका भार मापा| फिर दुबारा पानी से बाल्टी भरकर उसमें उतने ही वजन का शुद्ध सोना डाला और बाहर निकले पानी का भार मापा| इस प्रयोग से उसे संतुष्टि नहीं हुई तो वह अपने स्नान घर में गया और यह देखने के लिए कि भरे हुए स्नान टब में उसके लेटने से उसके वजन के बराबर ही पानी निकलता है या कम या अधिक| अपने सारे कपडे उतार कर नंगा होकर वह टब में लेट गया| अचानक उसकी अन्तर्प्रज्ञा जागृत हुई और एक विचार उसके मन में आया जिस से आनंदित होकर वह नंगा ही बिना कोई कपड़ा पहिने घर से निकल कर वहाँ की सडकों पर "यूरेका" "यूरेका" "यूरेका" चिल्लाते हुए दौड़ पडा| भौतिक विज्ञान में उसने जलस्थैतिकी, सांख्यिकी और उत्तोलक के सिद्धांत की नींव रखी|
.
पुराणों की, महाभारत और रामायण की रचना ऐसी अन्तर्प्रज्ञा द्वारा हुई है जो परमात्मा की कृपा से ही होती है| याज्ञवल्क्य और वेदव्यास जैसे ऋषियों की प्रतिभा और प्रज्ञा अकल्पनीय है| ऐसा कोई ज्ञान नहीं है जो उन्हें उपलब्ध नहीं था|
.
हमारे जीवन में सदगुरु भी हमें एक दिशा देने के लिए आते हैं| उस दिशा में अग्रसर तो हमें स्वयं को ही होना पड़ता है| हम सब पर निरंतर परमात्मा की कृपा बनी रहे, हमारा विवेक और प्रज्ञा सदा जागृत रहे| जीवन में हमारा एकमात्र लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति ही हो, हम उसी दिशा में अग्रसर रहें| ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१० सितम्बर २०१८
No comments:
Post a Comment