Wednesday 12 September 2018

पूर्णता निजात्मा में है, कहीं बाहर नहीं .....

दूसरों के गले काट कर, दूसरों की ह्त्या कर, दूसरों की संपत्ति का विध्वंश कर, दूसरों को लूट कर और अधिकाधिक हानि पहुंचा कर, क्या हम महान और पूर्ण बन सकते हैं ? .....
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अधिकांश मानवता अशांत है, दूसरों के विनाश में ही पूर्णता खोज रही है| पर इतने नरसंहार और विध्वंश के पश्चात भी उसे कहीं सुख शांति नहीं मिल रही है| जो हमारे विचारों से असहमत हैं उन सब का विनाश कर दिया जाता है| इस तरह से सत्ता पाकर सब अपना अहंकार तृप्त करना चाहते हैं| हत्यारों, लुटेरों व अत्याचारियों को ही झूठा इतिहास लिखकर गौरवान्वित किया जा रहा है| कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है, भारत में ही देख लो|
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पूर्णता की खोज में मनुष्य ने पूँजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद, फासीवाद, सेकुलरवाद, जैसे अनेक वाद खोजे, और अनेक कलियुगी मत-मतान्तरों, पंथों व सम्प्रदायों का निर्माण किया| पर किसी से भी मनुष्य को सुख-शांति नहीं मिली| इन सब ने मनुष्यता को कष्ट ही कष्ट दिए हैं| अभी भी जो इतनी भयंकर मार-काट, अन्याय, और हिंसा हो रही है, यह मनुष्य की निराशाजनक रूप से पूर्णता की ही खोज है| मनुष्य सोचता है कि दूसरों के गले काटकर वह बड़ा बन जाएगा, पर सदा असंतुष्ट ही रहता है और आगे भी दूसरोंके गले काटने का अवसर ढूंढता रहता है|
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अंततः हम इस निर्णय पर पहुँचेंगे कि पूर्णता तो निज आत्मा में ही है, कहीं बाहर नहीं| पूर्ण तो सिर्फ परमात्मा है जिस से जुड़ कर ही हम पूर्ण हो सकते हैं, दूसरों के गले काट कर नहीं| पर यह समझ आने तक बहुत अधिक देरी हो जायेगी|
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"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
शांति मन्त्र ......
"ॐ सहनाववतु | सह नौ भुनक्तु | सह वीर्यं करवावहै | तेजस्वि नावधीतमस्तु | मा विद्विषावहै || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||"
कृपा शंकर
१० सितम्बर २०१८

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