Wednesday 28 March 2018

क्या हम अपनी इस सृष्टि का रूपांतरण कर सकते हैं ? .....

क्या हम अपनी इस सृष्टि का रूपांतरण कर सकते हैं ? .....
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चारों ओर की सृष्टि जो हमें जैसी भी दिखाई दे रही है वह हम सब के विचारों का ही घनीभूत रूप है| हम सब परमात्मा के अंश हैं, अतः हम जैसी भी कल्पना करते हैं, जैसी भी कामना करते हैं, व जैसे भी विचार रखते हैं, वे ही धीरे धीरे घनीभूत होते हैं, और वैसी ही सृष्टि का निर्माण होने लगता है| किसी के विचार अधिक शक्तिशाली होते हैं, किसी के कम| जिस के विचार अधिक शक्तिशाली होते हैं, वे इस सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया में अपना अधिक योगदान देते हैं|
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हम अपने चारों ओर के घटनाक्रमों, वातावरण और परिस्थितियों से प्रसन्न नहीं हैं और उनका रूपांतरण करना चाहते हैं तो निश्चित रूप से अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने का प्रयास करें| आध्यात्मिक रूप से यह सृष्टि प्रकाश और अन्धकार का खेल है, वैसे ही जैसे सिनेमा के पर्दे पर जो दृश्य दिखाई देते हैं वे प्रकाश और अन्धकार के खेल हैं| अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान हम उस प्रकाश में वृद्धि द्वारा ही कर सकते हैं|
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जब भी जैसा भी समय मिले, एकांत में परमात्मा के सर्वाधिक कल्याणकारी, मंगलमय और प्रियतम रूप का खूब लम्बे समय तक गहनतम ध्यान करें| परमात्मा सर्वव्यापी और अनंत हैं, अतः हम उनकी सर्वव्यापी अनंतता पर ध्यान करें| हम यह नश्वर भौतिक देह नहीं हैं, हम परमात्मा की सर्वव्यापकता और अनंतता हैं| अपनी चेतना का विस्तार करें और उसे परमात्मा की चेतना के साथ संयुक्त कर दें| परमात्मा स्वयं अनिर्वचनीय नित्यनवीन, नित्यासजग, और शाश्वत आनंद हैं| आनंद का मार्ग प्रेम है| हम स्वयं परमप्रेममय बन जाएँ व हमारी चेतना सर्वव्यापी और अनंत हो जाए| यह सबसे बड़ा योगदान है जो हम इस सृष्टि के रूपांतरण के लिए कर सकते हैं|
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फिर समष्टि के कल्याण की प्रार्थना भी करें| समष्टि के कल्याण की कामना स्वयं के कल्याण की ही कामना है| सम्पूर्ण समष्टि ही हमारी देह है, यह नश्वर भौतिक देह नहीं|
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अनेक व्यक्ति एक निश्चित समय पर, अपने दोनों हाथ ऊपर कर के, भ्रूमध्य को अपने दृष्टिपथ में रखते हुए, यदि लोक-कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं तो वह प्रार्थना निश्चित रूप से फलीभूत होती है|
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इस भौतिक देह के अनाहत-चक्र और आज्ञा-चक्र के मध्य में विशुद्धि-चक्र के सामने का स्थान एक अति सूक्ष्म दैवीय गहन चुम्बकीय क्षेत्र है| अपने दोनों हाथ जोड़कर, भ्रूमध्य को दृष्टिपथ में रखते हुए, उस चुम्बकीय क्षेत्र में अपनी हथेलियों का तीव्र घर्षण करने से हमारी अँगुलियों में एक दैवीय ऊर्जा उत्पन्न होती है| उस दैवीय ऊर्जा को अपनी अँगुलियों में एकत्र कर, अपने दोनों हाथ ऊपर की ओर उठाकर, ॐ का उच्चारण करते हुए उस ऊर्जा को सम्पूर्ण ब्रह्मांड में विस्तृत करते हुए छोड़ दें| वह ऊर्जा समष्टि का निश्चित रूप से कल्याण करती है| समष्टि का कल्याण ही हमारा कल्याण है क्योंकि यह समष्टि ही हमारी वास्तविक देह है|
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अपने विचारों को पवित्र और शुद्ध रखें| हमारे सारे संकल्प शिव-संकल्प हों| किसी के अनिष्ट की कामना न करें| किसी के अनिष्ट की कामना से हमारा स्वयं का ही अनिष्ट होता है|
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अपनी चेतना को निरंतर आज्ञा-चक्र और सहस्त्रार के मध्य में रखने की साधना करें| रात्री को सोने से पूर्व परमात्मा का गहनतम ध्यान कर के सोयें, और दिन का प्रारम्भ भी परमात्मा के ध्यान से करें| सारे दिन परमात्मा की स्मृति बनाए रखें| कोई क्या कहता है और क्या सोचता है इसकी चिंता न करें क्योंकि महत्त्व इसी का है कि परमात्मा की दृष्टि में हम क्या हैं|
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इस संसार में हम एक देवता की तरह रहें, नश्वर मनुष्य की तरह नहीं| हम जहाँ भी जाएँ, वहीं हमारे माध्यम से परमात्मा भी प्रत्यक्ष रूप से जायेंगे| हमारा अस्तित्व परमात्मा का अस्तित्व हो, हम परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति बनें| निश्चित रूप से हम स्वयं परमात्मा के साथ एक होकर उनकी इस सृष्टि के रूपांतरण में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सकते हैं| सब कुछ संभव है| हम अपने संकल्प से समय की धारा को भी बदल सकते हैं| हमारा संकल्प परमात्मा का संकल्प है| हमारे विचारों के पीछे परमात्मा की अनंत अथाह शक्ति है|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ मार्च २०१८