प्राण-तत्व पर मेरे अनुभूतिजन्य विचार .....
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जगन्माता ही प्राण हैं, वे ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व हैं | परमात्मा के मातृरूप की कृपा से ही यह समस्त सृष्टि जीवंत है | वे जगन्माता ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व के रूप में जड़-चेतन सभी में व्याप्त है | एक जड़ धातु के अणु में भी प्राण हैं, और एक प्राणी की चेतना में भी | प्राण-तत्व की व्याप्तता और अभिव्यक्ति विभिन्न और पृथक पृथक है | एक मनुष्य जैसे जीवंत प्राणी की चेतना में भी जब तक प्राण विचरण कर रहा है, उसकी साँसे चलती हैं | प्राण के निकलते ही उसकी साँसे भी बंद हो जाती हैं | जगन्माता ही प्राण हैं | उन्होंने ही इस सृष्टि को धारण कर रखा है और अपनी विभिन्नताओं में सभी प्राणियों में और सभी अणु-परमाणुओं में स्थित हैं| वे ही ऊर्जा हैं, वे ही विचार हैं, वे ही भक्ति हैं और वे ही हमारी परम गति हैं |
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और भी स्थूल रूप में बात करें तो इस सृष्टि को श्रीराधा जी ने ही धारण कर रखा है, वे ही इस सृष्टि की प्राण हैं | परमप्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति श्रीराधा जी हैं | परमात्मा के प्रेमरूप पर ध्यान करेंगे तो निश्चित रूप से श्री राधा जी के ही दर्शन होंगे |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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जगन्माता ही प्राण हैं, वे ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व हैं | परमात्मा के मातृरूप की कृपा से ही यह समस्त सृष्टि जीवंत है | वे जगन्माता ही प्रकृति हैं, और वे ही प्राण-तत्व के रूप में जड़-चेतन सभी में व्याप्त है | एक जड़ धातु के अणु में भी प्राण हैं, और एक प्राणी की चेतना में भी | प्राण-तत्व की व्याप्तता और अभिव्यक्ति विभिन्न और पृथक पृथक है | एक मनुष्य जैसे जीवंत प्राणी की चेतना में भी जब तक प्राण विचरण कर रहा है, उसकी साँसे चलती हैं | प्राण के निकलते ही उसकी साँसे भी बंद हो जाती हैं | जगन्माता ही प्राण हैं | उन्होंने ही इस सृष्टि को धारण कर रखा है और अपनी विभिन्नताओं में सभी प्राणियों में और सभी अणु-परमाणुओं में स्थित हैं| वे ही ऊर्जा हैं, वे ही विचार हैं, वे ही भक्ति हैं और वे ही हमारी परम गति हैं |
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और भी स्थूल रूप में बात करें तो इस सृष्टि को श्रीराधा जी ने ही धारण कर रखा है, वे ही इस सृष्टि की प्राण हैं | परमप्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति श्रीराधा जी हैं | परमात्मा के प्रेमरूप पर ध्यान करेंगे तो निश्चित रूप से श्री राधा जी के ही दर्शन होंगे |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||