Thursday 7 May 2020

सारी आध्यात्मिक साधनायें वैदिक हैं ....

सारी आध्यात्मिक साधनायें वैदिक हैं| कुछ साधनाओं को मैं शैव व शाक्त तंत्रागमों से ली गई मानता था, पर पिछले कुछ दिनों में गुरुकृपा से कुछ प्रामाणिक ग्रन्थों के स्वाध्याय का अवसर मिला जिनसे मेरी अनेक धारणाएँ परिवर्तित हो गईं और एक नई ऊर्जा का संचार हुआ|
.
हमारे व्यक्तित्व में अनेक दोष हैं, हमारे अवचेतन मन में बहुत अधिक तमोगुण भरा हुआ है, प्रारब्ध कर्म तो हमें दुःखी कर ही रहे हैं, संचित कर्म भी पता नहीं कब फल देने लगें| समय बहुत कम है, जीवन बहुत छोटा है, ऐसे में मुक्ति की तो कल्पना ही असंभव है| पर गीता में भगवान श्रीकृष्ण किसी भी परिस्थिति में निराश नहीं होने को कहते हैं| श्रुति भगवती भी आश्वासन देती है कि जीव और ईश्वर में जो भेद है वह यथार्थ नहीं, माया द्वारा कल्पित है| पूर्व जन्मों के गुरु भी मार्गदर्शन, सहायता और रक्षा कर रहे हैं| उनकी कृपा से कोई संदेह नहीं रहा है| फिर भी अनेक व्यक्तित्व दोष हैं जिनका निराकरण हरिःकृपा से हमें करना ही होगा|
.
नित्य नियमित रूप से जब भी समय मिले, खाली पेट, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के किसी एकांत स्थान में ऊनी आसन पर बैठें| कमर को हमेशा सीधी रखें| दृष्टिपथ भ्रूमध्य की ओर रहे| कुछ देर हठयोग के प्राणायाम कर के शरीर को तनावरहित ढीला छोड़ दें| हर आती-जाती साँस के प्रति सजग रहें| पूर्ण श्रद्धा-विश्वास और निष्ठा से भगवान श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना और ध्यान करें|
.
मैं अपनी पूरी निष्ठा और विश्वास से कहता हूँ कि उनकी कृपा निश्चित रूप से होगी और धीरे-धीरे आपके समक्ष अनेक गूढ़ रहस्य अनावृत होंगे| यह सब आपके प्रयासों पर कम, और उन की कृपा पर अधिक निर्भर है| अपना पूर्ण प्रेम उन्हें देंगे तो वे भी निश्चित रूप से कृपा करेंगे| यहाँ मैं और भी अनेक बातें लिखना चाहता था पर उनका आदेश बस इतने के लिए ही है|
.
आप सब परमात्मा की श्रेष्ठतम अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब को नमन|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ मई २०२०

एक पीड़ा .....

अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह लगता है ये सब प्राचीन भारत की बातें हैं| आजकल तो जो दिखाई दे रहा है वह इनसे विपरीत ही है| सत्य तो नारायण (सत्यनारायण) यानि सिर्फ परमात्मा है| उसका यह संसार तो झूठ-कपट से चल रहा है| जो जितनी बड़ी सत्य की बात करता है, पाते हैं कि वह उतना ही बड़ा झूठा है| आजकल कोई भी मंत्र व साधना सिद्ध नहीं होती क्योंकि असत्य-वादन से हमारी वाणी दग्ध हो जाती है, और दग्ध-वाणी से जपा गया कोई भी मंत्र कभी फलीभूत नहीं होता| आजकल राजनीति में, न्यायालयों में, सरकारी कार्यालयों में, हर स्थानों पर असत्य ही असत्य का बोलबाला है|
.
यह संसार नष्ट होकर नए सिरे से दुबारा बसे, तब हो सकता है कि सत्य की प्रतिष्ठा हो, इस समय तो यह असंभव ही लगता है| मनुष्य सिर्फ अपनी मृत्यु से डरता है, अन्य किसी से नहीं| सामने जब मृत्यु को देखता है तभी सत्य उसके मुंह से निकलता है| वर्षों पहिले एक पुस्तक पढ़ी थी जिसमें एक अंग्रेज सैनिक अधिकारी जो मध्य-भारत में एक न्यायाधीश भी रह चुका था, के बारे में लिखा एक लेख था| उस अंग्रेज न्यायाधीश ने लिखा था कि उसके न्यायाधीश रहते हुए समय भारत में उसके सामने ऐसे अनगिनत मुक़दमें आए जिनमें अभियुक्त झूठ बोलकर छूट सकता था पर अभियुक्तों ने दंड यानि सजा पाना स्वीकार किया पर झूठ नहीं बोला|
.
सत्य और असत्य को हमारे शास्त्रों में बहुत अच्छी तरह समझाया गया है| जिन्हें जीवन में परमात्मा चाहिए, सत्य उन्हीं के लिए है| वर्तमान व्यवस्था तो असत्य पर ही आधारित है| अतः यह दुनियाँ अगर मिट भी जाए तो क्या है! पुराने जमाने में भारत में जितने भी विदेशी यात्री आए, प्रायः सभी ने लिखा था कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ कोई असत्य नहीं बोलता| स्वामी विवेकानंद की 'राजयोग' नामक पुस्तक में लिखा है कि कोई अगर चौदह वर्ष तक सत्य ही बोले तो उसकी वाणी में वह शक्ति आ जाती है कि उसकी कही हुई हर बात सत्य हो जाती है| हमारी कोई बात सत्य नहीं होती क्योंकि हमारी वाणी झूठ बोलने से दग्ध हो चुकी है| जिन्हें जीवन में परमात्मा चाहिए वे हिमालय में जाकर तपस्या करे, इस संसार में वे अनुपयुक्त यानि misfit हैं|
.
मैंने जो लिखा है वह मेरी अनुभवजन्य पीड़ा है, कोई कुछ भी कहे, मुझे कितना भी बुरा बताए, मैं अपनी बात पर कायम हूँ| आप सब में परमात्मा को नमन !!
.
पुनश्च :--- कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने ब्रह्मज्ञान सर्वप्रथम अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्व को दिया था| थर्व का अर्थ होता है कुटिलता| जिनके जीवन में कोई कुटिलता नहीं थी वे ब्रह्माजी के ज्येष्ठ पुत्र अथर्व होते थे| अथर्व ने ब्रह्मज्ञान सत्यवाह को दिया| सत्यवाह वे थे जो सत्यनिष्ठ होते थे| फिर आगे यह परंपरा चलती रही| अब सत्यवाह और अथर्व नहीं रहे हैं, अतः ब्रह्मज्ञान का कोई अधिकारी भी नहीं रहा है|
पुनश्च :--- मेरे एक सेवानिवृत प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी मित्र ने मुझे अपनी आँखों देखी पूर्वोत्तर भारत की एक घटना बताई थी| एक दूर दराज के वनवासी क्षेत्र में जहाँ खूब पहाड़ और जंगल थे, जहाँ कभी कोई पुलिस भी नहीं जाती थी, वहाँ एक आदमी ने किसी की हत्या कर दी| हत्या करने के बाद वह आदमी दो दिन पैदल चलकर निकटतम पुलिस स्टेशन आया और खुद के विरुद्ध रिपोर्ट लिखवाई| एक बार तो पुलिस वालों ने उसे धमकाकर भगाने की कौशिस की पर वह अपनी गिरफ़्तारी और सजा की माँग पर अडिग रहा| उससे पूछा गया कि कोई गवाह है? उसका उत्तर था कि सिर्फ परमात्मा ही गवाह है, उसके अलावा किसी भी और ने उसे हत्या करते नहीं देखा| वह अपनी बात पर अडिग रहा और खुद को कुछ न कुछ सजा दिलवा कर ही माना|
कृपा शंकर
३ मई २०२०

आभूषण परिवर्तित होते रहते हैं, पर स्वर्ण यथावत् रहता है ....

आभूषण परिवर्तित होते रहते हैं, पर स्वर्ण यथावत् रहता है ....
---------------------------------------------------------------
हम शरीर के विभिन्न अंगों पर विभिन्न प्रकार के स्वर्णाभूषण पहिनते हैं, जिनके विभिन्न नाम हैं| उन सब का भार और मूल्य भी पृथक-पृथक होता है| जब वे पुराने हो जाते हैं तब सोने को पिंघला कर सुनार नये आभूषण बना देता है| आभूषणों में परिवर्तन होता रहता है, पर सोने में नहीं| वैसे ही सारी सृष्टि निरंतर परिवर्तनशील है, पर सृष्टिकर्ता परमात्मा नहीं| गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्| विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति||१३:२८||"
अर्थात् जो पुरुष समस्त नश्वर भूतों में अनश्वर परमेश्वर को समभाव से स्थित देखता है, वही (वास्तव में) देखता है||
कथन का सार यह है कि हमारी चेतना निरंतर परमात्म तत्व में स्थिर रहे, न कि उनकी परिवर्तनशील सृष्टि में| यह सृष्टि एक दिन टूट कर बिखर जाएगी पर अपरिवर्तनशील परमात्मा यथावत् बने रहेंगे|
.
सब रूपों में परमात्मा ही हमारे समक्ष आते हैं ..... भूख लगती है तो अन्न रूप में, प्यास लगती है तो जल रूप में, रोगी होते हैं तो औषधि रूप में, गर्मी में छाया रूप में, सर्दी में वस्त्र रूप में वे ही आते हैं| स्वर्ग और नर्क रूप में भी वे ही आते हैं| इस जन्म से पूर्व भी वे ही हमारे संग थे, और मृत्यु के उपरांत भी वे ही हमारे संग रहेंगे| उन्हीं का प्रेम हमें माता-पिता, भाई-बहिन, सगे-संबंधी, व शत्रु-मित्रों से मिला|
.
हम स्वयं को यह नश्वर देह मान कर नश्वर वस्तुओं की कामना कराते हैं अतएव वे परमात्मा भी नश्वर रूप धर कर हमारे समक्ष स्वयं को व्यक्त करते हैं| भगवान कहते हैं ....
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्| मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः||४:११||"
अर्थात् जो मुझे जैसे भजते हैं, मैं उन पर वैसे ही अनुग्रह करता हूँ; हे पार्थ सभी मनुष्य सब प्रकार से, मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं||
.
हम निरंतर उनका अनुस्मरण करेंगे तो वे भी अंत समय में हमारा अनुस्मरण करेंगे| हम नहीं भी कर पाएंगे तो भी अंत समय में वे ही हमें स्मरण कर लेंगे|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ मई २०२०

हमारे जीवन में कोई न कोई कमी है ....

हमारे जीवन में असंतोष, पीड़ा और दुःख है, इसका स्पष्ट अर्थ है कि हमारे जीवन में किसी न किसी तरह की कोई कमी है| पहले तो यह ज्ञात होना चाहिए कि वह कमी क्या है, तभी तो उसे दूर किया जा सकता है| कमी का ज्ञान होगा तभी तो वह दूर होगी| हमारी एकमात्र कमी यह है कि हमें अपनी कमी का ज्ञान नहीं है| जहाँ तक मैं समझता हूँ, हमारी एकमात्र कमी हमारी "अपूर्णता" और "अज्ञान" है| अन्य कोई कमी नहीं है| अब प्रश्न यह है कि उस "अपूर्णता" और "अज्ञान" को दूर कैसे करें? यही हमारी सबसे बड़ी समस्या है| यह अपूर्णता और अज्ञान ही हमारे जीवन में छाए हुए असत्य और अंधकार का कारण है, जिस से सभी दुःख, असंतोष और पीड़ा उत्पन्न हो रही हैं|
.
किसी भी प्रश्न का एक ही उत्तर सभी के लिए नहीं हो सकता| यह हर व्यक्ति की समझ, योग्यता और क्षमता पर निर्भर है कि उसके लिए क्या सही उत्तर है| हमे अपनी कमी का पता भी स्वयं को ही करना होगा, और उसे दूर कैसे किया जाये, इसका पता भी स्वयं को ही करना होगा| भगवान हमारे साथ हैं, वे निश्चित रूप से हमारी सहायता करेंगे|
सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !!
कृपा शंकर
२ मई २०२०
.
पुनश्च :--- यह हमारा सौभाग्य है कि हमने इस धरा पर मानव योनि में जन्म लिया, क्योकि इसी संसार मे हमें मोक्ष मिल सकता है और मोक्ष के साधन भी| इसी धरा पर हम सेवा कर सकते हैं| यदि ईश्वर ने हमे यहां भेजा है तो अवश्य ही कुछ कारण होगा|

जगत मजूरी देत है, क्यों राखें भगवान ----

जगत मजूरी देत है, क्यों राखें भगवान ----
साधू, सावधान !! संभल जा, अन्यथा सामने नर्ककुंड की अग्नि है !
.
१ मई १८८६ को अमेरिका के लाखों मजदूरों ने काम का समय ८ घंटे से अधिक न रखे जाने की मांग की और हड़ताल पर चले गए| वहाँ की पुलिस ने मज़दूरों पर गोली चलाई और ७ मजदूर मर गए| तब से पूरी दुनियाँ में काम की अवधि ८ घंटे हो गई और इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय श्रम-दिवस के रूप में मनाया जाने लगा| १ मई १९२३ को मद्रास (अब चेन्नई) में "भारती मज़दूर किसान पार्टी" के नेता कॉमरेड सिंगरावेलू चेट्यार ने मद्रास हाईकोर्ट के सामने एक बड़ा प्रदर्शन किया| तब से भारत में भी मजदूरों की माँगें मान ली गईं और इस दिवस को मान्यता मिल गई|
१ मई १९६० को बॉम्बे राज्य को तोड़ कर मराठी भाषी व गुजराती भाषी क्षेत्रों को अलग-अलग कर महाराष्ट्र व गुजरात नाम के दो राज्य बनाए गए थे| आज "महाराष्ट्र दिवस" और "गुजरात दिवस" भी है|
.
हम दिन में ८ घंटे श्रम करते हैं तब जाकर महिने के अंत में मजदूरी मिलती है जिस से हमारा गुजारा होता है| भगवान ने हमें हर क्षण यह जीवन और सब कुछ दिया है| हम उनके लिए भी पूरा श्रम करें तो वे स्वयं को ही हमें दे देते हैं| जितना श्रम करेंगे उतनी ही मजदूरी मिलेगी| लानत है हमारे ऊपर की हम २४ घंटों में से उन्हें ढाई घंटे भी नहीं दे पाते|
.
"तुलसी विलंब न कीजिये, भजिये नाम सुजान| जगत मजूरी देत है, क्यों राखें भगवान||"
"तुलसी माया नाथ की, घट घट आन पड़ी| किस किस को समझाइये, कुएँ भांग पड़ी||"
.
मुझे स्वयं पर तरस आता है| जब नौकरी करता था तब नित्य कम से कम आठ-दस घंटों तक काम करना पड़ता था तब जाकर वेतन मिलता था| फिर भी नित्य दो-तीन घंटे भगवान के लिए निकाल ही लिया करता था| पर अब सेवा-निवृति के पश्चात प्रमाद और दीर्घसूत्रता जैसे विकार उत्पन्न हो रहे हैं, जिनसे विक्षेप हो रहा है|
.
अतः साधू, सावधान ! संभल जा, अन्यथा सामने नर्ककुंड की अग्नि है| ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
१ मई २०२०

योग क्या है?

कुंडलिनी शक्ति का जागृत होकर सुषुम्ना मार्ग के सात चक्रों व तीन ग्रंथियों का भेदन कर परमशिव से मिलन "योग" है। यह एक अनुभूति है जिसका वर्णन अनेक सिद्धों ने अनेक प्रकार से किया है।
सुषुम्ना के चक्रों के बीज मन्त्रों का सृष्टि क्रम इस प्रकार है ... "हय वरट् लण्।"
"ह" विशुद्धि, "य" अनाहत, "व" स्वाधिष्ठान, "र" मणिपूर, "ल" मूलाधार। मानसिक रूप से इनका जप हं, यं, रं, वं, लं होता है|
ब्रह्म ग्रंथि का स्थान मूलाधार, विष्णु ग्रंथि का अनाहत और रुद्र ग्रंथि का आज्ञा चक्र है। इनके भेदन के लिए मंत्र जप और सूक्ष्म प्राणायाम विधि एक गोपनीय विद्या है जो गुरु मुख से ही बताई जा सकती है|
ग्रन्थियों के भेदन में सहायक तीन बंध हैं.... मूल बन्ध (मूलाधार), उड्डीयान बन्ध (मणिपूर) और जालन्धर बन्ध (विशुद्धि)।
दुर्गासप्तशती के तीन चरित्र, मुण्डकोपनिषद् के तीन मुण्डक भी तीन ग्रन्थिभेद हैं जो भगवती की कृपा से ज्ञात होते हैं। द्वादशाक्षरी भागवत मंत्र के पीछे भी बहुत बड़ा एक रहस्य है जो हरिःकृपा से ही समझ में आता है| इस मंत्र की क्षमता बहुत अधिक है।
.
अब अनेक नए नए रहस्य सामने आ रहे हैं, जिन का ज्ञान किसी पूर्व जन्म में था, अब वे स्मृति में आ रहे हैं। पूर्व जन्मों में कई सुप्त सांसारिक कामनाएँ थीं जिनके कारण यह जन्म लेना पड़ा जिस में भटकाव ही भटकाव रहा। यह जीवन तो व्यर्थ ही बीत गया, कुछ भी नहीं मिला। पूर्णता के लिए कम से कम एक जन्म तो और लेना पड़ेगा।
.
ॐ श्रीपरमात्माने नमः !! ॐ तत्सत् !!

१ मई २०२० 

हिन्दू कौन है? हिन्दूराष्ट्र क्या है? ....

(१) हिन्दू कौन है?:---- जिस भी व्यक्ति के अन्तःकरण में परमात्मा के प्रति प्रेम और श्रद्धा-विश्वास है, जो आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म, कर्मफलों के सिद्धान्त, व ईश्वर के अवतारों में आस्था रखता है, वह हिन्दू है, चाहे वह विश्व के किसी भी भाग में रहता है, या उसकी राष्ट्रीयता कुछ भी है| हिन्दू माँ-बाप के घर जन्म लेने से ही कोई हिन्दू नहीं होता| हिन्दू होने के लिए किसी दीक्षा की आवश्यकता नहीं है| स्वयं के विचार ही हमें हिन्दू बनाते हैं| आध्यात्मिक रूप से हिन्दू वह है जो हिंसा से दूर है| मनुष्य का लोभ और अहंकार ही हिंसा के जनक हैं| लोभ, और अहंकार से मुक्ति ही परमधर्म "अहिंसा" है| जो इस हिंसा से दूर है वह हिन्दू है|
.
(२) हिन्दू राष्ट्र क्या है :---- हिन्दू राष्ट्र एक विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प और निजी मान्यता है| हिन्दू राष्ट्र ऐसे व्यक्तियों का एक समूह है जो स्वयं को हिन्दू मानते हैं, जिन की चेतना ऊर्ध्वमुखी है, जो निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करना चाहते हैं, चाहे वे विश्व में कहीं भी रहते हों|
.
(३) भारत एक हिन्दू राष्ट्र है क्योंकि यहाँ की संस्कृति हिन्दू है| संस्कृति वह होती है जिसका जन्म संस्कारों से होता है| भारत एक सांस्कृतिक इकाई है| "देश" और "राष्ट्र"..... इन दोनों में बहुत अधिक अन्तर है| "देश" एक भौगोलिक इकाई है, और "राष्ट्र" एक सांस्कृतिक इकाई| भारतीय संस्कृति कोई नाचने-गाने वालों की संस्कृति नहीं है, यह हर दृष्टि से महान आचरण व विचारों वाले व्यक्तियों की संस्कृति है|
ॐ श्री परमात्मने नमः || ॐ तत्सत् ||
३० अप्रेल २०२० 

एक अंधा दूसरे अंधे को मार्ग नहीं दिखा सकता .....

एक अंधा दूसरे अंधे को मार्ग नहीं दिखा सकता .....
--------------------------------------------------
"ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्|
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं| भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि||"
.
"ॐ अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं| तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम:||"
जो परम-तत्व सारी सृष्टि में व्याप्त है और सारी सृष्टि जिन से व्याप्त है, उन अखंड अनंत मंडलाकार सर्वव्यापी का बोध जिन्होने करवा दिया है, उन सद्गुरु महाराज को मैं प्रणाम करता हूँ|
बलिहारी है उन गुरु महाराज की जिन्होंने परमपुरुष का बोध निज चैतन्य में करवा दिया है|
.
प्राचीन भारत में बड़े-बड़े तपस्वियों ने अनेक प्रकार के साधन किये, स्वर्ग के सुखों को देखा और पाया कि वहाँ भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, व ईर्ष्या-द्वेष आदि सब तरह की बुराइयाँ हैं| वहाँ भी तभी तक रहने को मिलता है जब तक पुण्यों की कमाई है, बाद में फिर मृत्युलोक में आना पड़ता है| तब उन्हें वैराग्य हो गया| तभी जन्म-मरण के अंतहीन चक्र से मुक्ति, मोक्ष और परमात्मा की प्राप्ति आदि पर विचार आरंभ हुये|
.
फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि "तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्
समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् ||" ( मुण्डकोपनिषद् १-२-१२ ). अर्थात किन्हीं श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष गुरु की शरण में जाना होगा जो मुक्ति का मार्ग दिखा सके| श्रोत्रिय का अर्थ है जिन्हें शास्त्र और वेदों का इतना ज्ञान हो कि हमको समझा सकें| जिन्हें सिर्फ स्वयं के लिए ही ज्ञान हो वैसे गुरु कोई काम नहीं आएंगे, अतः वे ब्रह्मनिष्ठ भी हों, यानि जिन्होने निज जीवन में परमात्मा का साक्षात्कार भी किया हो| "गु" यानि अंधकार(अज्ञान) और "रु" यानि दूर करना| जो अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर परमात्मा का बोध कराता है वही गुरु है|
.
गुरु और अध्यापक में बहुत अंतर है| अध्यापक वह है जो कुछ शुल्क लेकर सांसारिक विषयों को पढ़ाता है जिनसे विद्यार्थी को कोई आजीविका का साधन प्राप्त हो जाये और संसार में उस का निर्वाह हो सके| गुरु वह है जो अंतर के अंधकार को दूर कर परमात्मा का बोध कराता है| स्वामी रामसुखदास जी ने अपने एक प्रवचन में कहा है कि गुरु कभी शिष्य नहीं बनाते| उनके भीतर यह भाव कभी नहीं रहता कि कोई हमारा शिष्य बने| वे तो गुरुओं का ही निर्माण करते हैं| लौकिक अर्थ में माता-पिता भी 'गुरु' शब्द के अंतर्गत ही आाते हैं|
.
"उपाध्याय" का अर्थ है वह अध्यापक जो वेदांग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद तथा ज्योतिष) की शिक्षा विद्यार्थी को अपनी आजीविका के लिए कुछ दक्षिणा लेकर पढ़ाता है|
"आचार्य" उसे कहते हैं जो विद्यार्थी से आचारशास्त्रों के अर्थ तथा बुद्धि का आचयन (ग्रहण) कराता है| वह विद्यार्थी से धर्म का आचयन कराता है| शास्त्रों में आचार्य का अर्थ बड़े विस्तार से बताया हुआ है| आचार्य का स्थान बहुत ऊँचा है|
.
पात्रता होने पर ही सदगुरु मिलते हैं| अन्यथा .....
"सद्गुरु तो मिलते नहीं, मिलते गुरु-घंटाल| पाठ पढ़ायें त्याग का, स्वयं उड़ायें माल||"
जहाँ किसी भी तरह का थोड़ा सा भी लालच होता है, वहाँ ....
"गुरू लोभी चेला लालची, दोनों खेले दाँव| दोनों डूबे बावरे, चढ़ि पत्थर की नाव||"
एक अंधा दूसरे अंधे को मार्ग नहीं दिखा सकता|
आजकल के तथाकथित गुरुओं द्वारा बड़े बड़े उपदेश तो निःस्पृहता के दिये जाते हैं पर उनकी दृष्टि धनाढ्य/मालदार आसामियों की खोज में ही रहती है| पैसा झटकने में वे बिलकुल भी देर नहीं लगाते| उनके द्वारा कहा तो यह जाता है कि किसी साधु का वातानुकूलित भवनों से क्या काम, पर ऐसा कहने वाले स्वयं बिना वातानुकूलित भवनों के रह ही नहीं सकते|
जहाँ झूठ-कपट हो, व कथनी-करनी में अंतर हो, उस स्थान और उस वातावरण का विष की तरह तुरंत त्याग कर देना चाहिए|
.
अब उपरोक्त विषय पर और विचार नहीं करेंगे| जो भी समय मिलेगा उस में भगवान का ही ध्यान करेंगे| ध्यान में उपासक, गुरु और उपास्य में कोई भेद नहीं रहता| सभी एक हो जाते हैं|
ॐ श्री परमात्मने नमः || ॐ तत्सत् || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२९ अप्रेल २०२०

आने वाला समय अच्छा नहीं है .....

आने वाला समय अच्छा नहीं है .....
---------------------------------
समय बहुत कम है| आने वाला समय अच्छा नहीं है| दुर्दांत आतंकियों को भारत में निरंतर प्रवेश कराकर पाकिस्तान ने भारत पर एक अघोषित युद्ध छेड़ रखा है जो कभी भी अति भयानक और विध्वंशक रूप ले सकता है| पाकिस्तान एक विफल देश है जिसका कभी भी अपनी स्वयं की विफलताओं से विखंडन व पतन हो सकता है| पाकिस्तान ने एक नीति बना रखी है कि खत्म होने से पहले वह भारत को भी खत्म कर देगा| अपने आणविक अस्त्रों के प्रहार से उसमें इतनी क्षमता तो है कि वह भारत की आधी जनसंख्या को नष्ट कर सकता है चाहे वह खुद ही राख के ढेर में बदल जाए| उस का भरोसा नहीं कर सकते, वह कभी भी भारत पर आक्रमण कर सकता है|
.
अमेरिका का चीन के साथ युद्ध कभी भी हो सकता है| चीन की महत्वाकांक्षा पूरे विश्व पर राज्य करने की है| चीन ने कोरोना वायरस फैलाकर सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं की हानि की है| प्रशांत महासागर के चीन सागर में युद्ध हुआ तो उसमें जापान, ताईवान, फिलिपाइन्स और वियतनाम भी चीन के विरुद्ध खड़े होंगे|
.
रूस भी अमेरिका से सोवियत संघ के विघटन और अफगानिस्तान में हुई अपनी शर्मनाक पराजय का बदला अवश्य लेगा| रूस ने ऐसे अस्त्र विकसित कर लिए हैं जिन की कोई तोड़ अमेरिका के पास भी नहीं है|
.
पूरा पश्चिमी जगत, पाकिस्तान और चीन, .... भारत की अस्मिता के शत्रु हैं| ये भारत के हितैषी नहीं हैं| अमेरिका व ब्रिटेन के सारे समाचारपत्र भारत के विरुद्ध विष-वमन करते हैं|
.
हम भीतर और बाहर चारों ओर से घिर चुके हैं| हमारी रक्षा हमारा धर्म ही करेगा, यदि हम उसका पालन करेंगे तो| इस विभीषिका से वे ही बचेंगे जिन पर भगवान की कृपा होगी| अतः भगवान की कृपा के लिए उपासना करें| अपने चारों ओर एक रक्षा-कवच का निर्माण करें|
.
अगला विश्वयुद्ध कुछ दिनों का ही होगा| कब हो जाये, यह कोई नहीं कह सकता| आरंभ होने से कुछ दिनों के भीतर-भीतर ही सब कुछ नष्ट हो जाएगा| इसे कोई टाल नहीं सकता|
.
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः| सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्||
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः|| ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
२८ अप्रेल २०२०

हम आध्यात्मिक भुखमरी के शिकार न हों:---

हम आध्यात्मिक भुखमरी के शिकार न हों:---
----------------------------------------------
बड़ा उच्च कोटि का व अति गहन अध्ययन/स्वाध्याय, शास्त्रों का पुस्तकीय ज्ञान, बड़ी ऊँची-ऊँची कल्पनायें, दूसरों को प्रभावित करने के लिए बहुत आकर्षक/प्रभावशाली लिखने व बोलने की कला, ...... पर व्यवहार में कोई भक्ति, साधना/उपासना नहीं, तो उसका सारा शास्त्रीय ज्ञान बेकार है| जैसे भोजन के बारे में सुन-सुनकर कोई अपना पेट नहीं भर सकता, उसे अपनी जठराग्नि को तृप्त करने के लिए कुछ आहार लेना ही पड़ेगा| वैसे ही जो व्यक्ति साधना नहीं करता, वह आध्यात्मिक भुखमरी में ही रहता है| ऐसा व्यक्ति दुनिया को मूर्ख बना सकता है पर भगवान को नहीं| वह अपने अहंकार को ही तृप्त कर रहा है, अपनी आत्मा को नहीं| आत्मा की अभीप्सा परमात्मा के प्रत्यक्ष अनुभव से ही तृप्त होती है, जिस के लिए उपासना/साधना करनी पड़ती है|
.
ऐसा गुरु भी किसी काम का नहीं है जो चेले से उपासना नहीं करा सकता, जो चेले को परमात्मा की अनुभूति नहीं करा सकता| गुरु तो ऐसा हो जो चेले को नर्ककुंड से निकाल कर अमृतकुंड में फेंक दे, चाहे बलप्रयोग ही करना पड़े| अच्छे गुरु का चेला कभी आध्यात्मिक भुखमरी का शिकार नहीं होता|
.
गुरू लोभी चेला लालची, दोनों खेले दाँव|
दोनों डूबे बावरे, चढ़ि पत्थर की नाव||
बँधे को बँधा मिले, छूटे कौन उपाय|
सेवा कर निर्बन्ध की, जो पल में दे छुड़ाय||
.
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ अप्रेल २०२०

भगवान "हैं", यहीं "हैं", इसी समय "हैं", सर्वत्र "हैं", और सर्वदा "हैं"....

भगवान "हैं", यहीं "हैं", इसी समय "हैं", सर्वत्र "हैं", और सर्वदा "हैं"| ॐ ॐ ॐ !!
.
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥
आत्म अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥
सच्चिदानंद कूटस्थ परमब्रह्म ही मेरा स्वरूप हैं| तेलधारा की तरह अविछिन्न भाव से चैतन्य में निरंतर प्रणव ध्वनि के रूप में उन्हीं का नाद गूँज रहा है| हर सांस के साथ "हं" "सः" मंत्र का मानसिक अजपा-जप चल रहा है| कहीं कोई भेद नहीं है| ॐ ॐ ॐ !!
.
ॐ क्लीं !! हे भगवती महाकाली मेरे परम शत्रु इस तमोगुण रूपी महिषासुर का वध करो| यह हर कदम पर मुझे आहत कर रहा है| यह मेरी सर्वोपरि बाधा है| अंततः सभी गुणों से मुक्त कर मुझे वसुदेव (सर्वत्र समभाव में विद्यमान) में आत्मस्थ करो| मैं परमशिव की पूर्णता और उन के साथ एक हूँ| ॐ ॐ ॐ !!
.
जो गोविंद को नमस्कार करते हैं, वे शंकर को ही नमस्कार करते हैं| जो हरिः की अर्चना करते हैं, वे वृषध्वज रुद्र की ही अर्चना करते हैं| जो विरूपाक्ष शिव के प्रति विद्वेष पोषण करते हैं, वे जनार्दन से ही विद्वेष करते हैं| जो रुद्र को नहीं जानते वे केशव को भी नहीं जानते हैं|
.
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०२०

मैमूना बेगम की दास्तान .....

मैमूना बेगम की दास्तान .....
.
"जबानों पर दिलों की बात जब ला ही नहीं सकते,
जफा को फिर वफा की दास्ताँ कहनी ही पड़ती है।
न पूछो क्या गुजरती है दिले-खुद्दार पर अक्सर,
किसी बेमेहर को जब मेहरबाँ कहना ही पड़ता है।। "
.
भूतपूर्व वज़ीर-ए-आजम जवाहर लाल नेहरू के ज़माने में इलाहाबाद में एक बहुत मशहूर व्यापारी हुआ करते थे .... ज़नाब नवाब अली ख़ान साहब| वे इलाहाबाद और प्रतापगढ़ जिलों के शराब के सबसे बड़े ठेकेदार भी थे| नेहरू जी घर में शराब की बड़ी-बड़ी पार्टियां हुआ करती थीं, जिनमें शराब की सप्लाई का काम वे ही करते थे|
उनकी बेगम साहिबा अपने निक़ाह से पहिले एक पारसी परिवार की बेटी थीं जिनका पारिवारिक उपनाम गंधी (Gandhi) था| शादी के समय इस्लाम कबूल कर के वे मुसलमान हो गई थीं|
वहाँ के कब्रिस्तान में उन दोनों की कब्रें भी हैं, पता नहीं वहाँ अक़ीदत के फूल चढ़ाने भी कोई जाता है या नहीं? उनके खानदान में बड़े बड़े मशहूर लोग हुए हैं, जिन्हें सारी दुनिया जानती है|
उन ज़नाब नवाब अली खान साहब के साहबज़ादे का नाम फिरोज़ ख़ान था, जिन से मेमूना बेगम का निकाह हुआ| बाद में दोनों की बनी नहीं, और मेमूना बेगम ने धक्के मारकर उनको घर से बाहर कर दिया और युनूस खान नाम के एक दूसरे शख़्स से निक़ाह कर लिया|
अब तो यह बात बहुत पुरानी हो गई है जिसे भूल जाना चाहिए| पर भूल कर भी भूल नहीं पा रहे हैं|
.
"जिसे रौनक़ तेरे क़दमों ने देकर छीन ली रौनक़।
वो लाख आबाद हों, उस घर की वीरानी नहीं जाती॥"
"अरबाबे-सितम की खिदमत में इतनी ही गुजारिश है मेरी।
दुनिया से कयामत दूर सही दुनिया की कयामत दूर नहीं॥"
(अरबाबे-सितम = सितम (जुल्म) ढाने वाला)
२५ अप्रेल २०२०

नक्सलवाद तो कभी का पूरी तरह समाप्त हो चुका है .....

वर्तमान भारत में नक्सलवाद तो कभी का पूरी तरह समाप्त हो चुका है, जिनको अब हम नक्सलवादी कहते हैं वे और उनके समर्थक सिर्फ "ठग" "बौद्धिक आतंकवादी", "डाकू" और "तस्कर" हैं, इस के अलावा वे कुछ भी अन्य नहीं हैं| उनका एक ही इलाज है, और वह है ...... "बन्दूक की गोली"| इसी की भाषा को वे समझते हैं| वे कोई भटके हुए नौजवान नहीं है, वे कुटिल राष्ट्रद्रोही तस्कर हैं, जिनको बिकी हुई प्रेस, वामपंथियों और राष्ट्र्विरोधियों का समर्थन प्राप्त है| जिस समय नक्सलबाड़ी में चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने नक्सलवादी आन्दोलन का आरम्भ किया था, उस समय चाहे मैं किशोरावस्था में ही था, पर तब से अब तक का सारा घटनाक्रम मुझे याद है|
.
नक्सलवादी आन्दोलन का विचार कानू सान्याल के दिमाग की उपज थी| यह एक रहस्य है कि कानू सान्याल इतना खुराफाती कैसे हुआ| वह एक साधू आदमी था जिसका जीवन बड़ा सात्विक था| उसका जन्म एक सात्विक ब्राह्मण परिवार में हुआ था| उसकी दिनचर्या बड़ी सुव्यवस्थित थी और भगवान ने उसे बहुत अच्छा स्वास्थ्य दिया था| कहते हैं कि उसकी निजी संपत्ति में खाना पकाने के कुछ बर्तन, कुछ पुस्तकों का पोटली में बंधा हुआ एक ढेर, एक चटाई और एक कुर्सी थी| और कुछ भी उसके पास नहीं था| वह एक झोंपड़ी में रहता था| सन १९६२ में वह बंगाल के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री वी.सी.रॉय को काला झंडा दिखा रहा था कि पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जहाँ उसकी भेट चारु मजुमदार से हुई|
.
चारु मजूमदार एक कायस्थ परिवार से था और हृदय रोगी था, जो तेलंगाना के किसान आन्दोलन से जुड़ा हुआ था और जेल में बंदी था| दोनों की भेंट सन १९६२ में जेल में हुई और दोनों मित्र बन गए|
.
सन १९६७ में दोनों ने बंगाल के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से तत्कालीन व्यवस्था के विरुद्ध एक घोर मार्क्सवादी हिंसक आन्दोलन आरम्भ किया जो नक्सलवाद कहलाया| इस आन्दोलन में छोटे-मोटे तो अनेक नेता थे पर इनको दो और प्रभावशाली कर्मठ नेता मिल गए ........ एक तो था नागभूषण पटनायक, और दूसरा था टी.रणदिवे| इन्होनें आँध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम के जंगलों से इस आन्दोलन का विस्तार किया|
.
कालांतर में यह आन्दोलन पथभ्रष्ट हो गया जिससे कानु सान्याल और चारु मजूमदार में मतभेद हो गए और दोनों अलग अलग हो गए| चारु मजुमदार की मृत्यु सन १९७२ में हृदय रोग से हो गयी, और कानु सान्याल को इस आन्दोलन का सूत्रपात करने की इतनी अधिक मानसिक ग्लानि और पश्चाताप हुआ कि २३ मार्च २०१० को उसने आत्महत्या कर ली|
.
जो मूल नक्सलवादी थे उनकी तीन गतियाँ हुईं .......
उनमें से आधे तो पुलिस की गोली का शिकार हो गए| वे अस्तित्वहीन ही हो गए| जो जीवित बचे थे उन में से आधों ने तत्कालीन सरकार से समझौता कर लिया और नक्सलवादी विचारधारा छोड़कर राष्ट्र की मुख्य धारा में बापस आ कर सरकारी नौकरियाँ ग्रहण कर लीं| बाकी बचे हुओं ने इस विचारधारा से तौबा कर ली और इस विचारधारा के घोर विरोधी हो गए| उनमें से कई तो साधु बन गए| अब कोई असली नक्सलवादी नहीं है| जिनको हम नक्सलवादी बताते हैं वे चोर बदमाश हैं जिन्हें उचित दंड मिलना चाहिए|
.
वन्दे मातरं | भारत माता की जय ||
२५ अप्रेल २०२०

सिर्फ मेरे लिए उपदेश सार .....

उपदेश सार >>>>>
-------------
ॐ ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् |
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं | भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ||"
.
अब और कहने को कुछ भी नहीं बचा है| अब तक के सारे जन्म-जन्मांतरों से अर्जित इस हृदय का सारा भाव इस वेदमन्त्र में आ गया है .....
"हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥"
इस से परे अभी इस समय तो कुछ भी अन्य नहीं है| इस जन्म में भगवान ने इतनी बौद्धिक क्षमता नहीं दी है कि श्रुति भगवती को समझ सकूँ| पर गुरु महाराज ने करुणा कर के एक दूसरा मार्ग दिखा दिया है और मेरा लौकिक नाम भी वैसा ही रख दिया है .... "कृपा", जिसका अर्थ है ... करो और पाओ|
.
बिना करे तो कुछ मिलेगा नहीं| ऐसा क्या करें जिस से इस जीवात्मा का कल्याण हो और यह परमशिव को उपलब्ध हो| गुरु महाराज ने मार्ग तो दिखा दिया, सारे संदेह दूर कर दिये, और परमशिव की अनुभूति भी करा दी| पर अब आगे का मार्ग तो स्वयं को ही पूरा करना है|
.
कोई संदेह नहीं है| साकार रूप में भगवान वासुदेव मेरे चैतन्य में हैं, सामने ज्योतिर्मय रूप में भगवान परमशिव और गुरु महाराज स्वयं बिराजमान हैं| वे ही इसे पूरा भी कर देंगे| देने के लिए मेरे पास प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है| सब कुछ तो उन्हीं का है| इस प्रेम पर भी उन्हीं का अधिकार है|
.
उपदेश सार >>>>>
गुरु महाराज ने बताया है कि क्रियायोग का मार्ग ही मेरा मार्ग है| क्रिया ही वेद है, और उसका अभ्यास ही वेदपाठ है| क्रिया की परावस्था ही वेदान्त है|
गुरु महाराज ने बहुत कठोरता से आदेश दिया है .... परमप्रेममय होकर क्रिया और उस की परावस्था ..... इसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी इधर-उधर नहीं देखना है| लक्ष्य सदा सामने रहे| लक्ष्य है .... 'परमशिव'| इस जन्म में ही सब कुछ उपलब्ध करना है|
.
गुरु आज्ञा का पालन करेंगे| सब कुछ तो उन्होने स्पष्ट कर दिया, कोई भी संशय नहीं छोड़ा है|
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||"
.
कृपा शंकर
२४अप्रेल २०२०

वर्तमान उत्तरी कोरिया और वहाँ का तानाशाह .....

वर्तमान उत्तरी कोरिया और वहाँ का तानाशाह किम जोंग उन .....
.
ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि उत्तरी कोरिया का तानाशाह किम जोंग उन गंभीर रूप से बीमार है और उसके जीने की आशा भी कम है| मेरी कोई सहानुभूति किम जोंग उन के साथ नहीं है, पर यदि कोरिया का इतिहास निष्पक्ष दृष्टि से पढ़ें तो किसी की भी सहानुभूति एक बार तो उत्तरी कोरिया के साथ ही होगी| अब तो कोरिया की समस्या का एकमात्र समाधान यही है कि पुरानी बातों को भूलकर सम्मानजनक रूप से दोनों देश आपस में मिल कर एक हो जाएँ, वैसे ही जैसे पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी हुए थे| साम्यवाद (मार्क्सवाद) अब एक विफल व्यवस्था हो गई है जिसे सभी कम्युनिष्ट देशों ने त्याग दिया है| साम्यवाद के नाम पर किम परिवार का मुखिया ही आतंक द्वारा उत्तरी कोरिया पर अपना राज्य कायम किए हुए है| पर इसका भी अंत वैसे ही हो सकता है जैसे रोमानिया के कम्युनिष्ट तानाशाह चाउसेस्को का हुआ था| इस समय उत्तरी कोरिया का बहुत बुरा हाल है| क्यूबा में कम्युनिष्ट तानाशाह फिडेल कास्त्रो के मरते ही वहाँ मार्क्सवाद समाप्त हो गया था, हो सकता है किम जोंग उन के मरते ही वैसा ही उत्तरी कोरिया में हो जाये|
.
चीन के मंचू सम्राटों ने १७ वीं शताब्दी में कोरिया पर अधिकार कर लिया था, तभी से कोरिया चीन के अधीन एक प्रदेश माना जाता था| रूस ने भी मंचू शासकों से मंचूरिया छीन कर उसे रूस का एक भाग बना लिया| रूस ने कोरिया पर भी अपना अधिकार करना चाहा तो जापान से यह सहन नहीं हुआ और उसने १९०५ में रूस के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर रूस को पराजित कर मंचूरिया छीन लिया और २२ अगस्त १९१० को कोरिया पर भी अधिकार कर लिया|
.
कोरिया के युद्ध और उसकी भूमिका पर मैंने दो-तीन वर्ष पूर्व एक लेख बड़े विस्तार से लिखा था| अब और नहीं लिखूंगा| कोरिया की त्रासदी के लिए वहाँ पर अगस्त १९१० से द्वीतिय विश्वयुद्ध की समाप्ति तक जापान द्वारा किए गये अवर्णनीय अत्याचार, फिर कोरियाई युद्ध में अमेरिकी जनरल डगलस मेकार्थर द्वारा उत्तरी कोरिया पर की गई भयंकर बमबारी जिस में वहाँ की बीस प्रतिशत निरपराध जनता मारी गई थी, जिम्मेदार है| अमेरिका ने वहाँ की सभी स्कूलों, अस्पतालों और अधिकांश भवनों को अपनी बमबारी से नष्ट कर दिया था| उस समय अमेरिका का राष्ट्रपति Harry Truman था| उसके बाद Dwight D. Eisenhower आया|
.
अब तो उस बात को वर्षों बीत चुके हैं| वर्तमान पीढ़ी को तो उन बातों का पता ही नहीं है| मैं तो यही चाहता हूँ कि कोरिया प्रायदीप एक हो और मार्क्सवाद का यह अंतिम गढ़ ध्वस्त हो| मार्क्सवाद सिर्फ भारत के केरल और बंगाल प्रान्तों में ही बचेगा| भगवान करे भारत से भी मार्क्सवाद पूरी तरह समाप्त हो जाये| ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ अप्रेल २०२०

.
ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि उत्तरी कोरिया का तानाशाह किम जोंग उन गंभीर रूप से बीमार है और उसके जीने की आशा भी कम है| मेरी कोई सहानुभूति किम जोंग उन के साथ नहीं है, पर यदि कोरिया का इतिहास निष्पक्ष दृष्टि से पढ़ें तो किसी की भी सहानुभूति एक बार तो उत्तरी कोरिया के साथ ही होगी| अब तो कोरिया की समस्या का एकमात्र समाधान यही है कि पुरानी बातों को भूलकर सम्मानजनक रूप से दोनों देश आपस में मिल कर एक हो जाएँ, वैसे ही जैसे पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी हुए थे| साम्यवाद (मार्क्सवाद) अब एक विफल व्यवस्था हो गई है जिसे सभी कम्युनिष्ट देशों ने त्याग दिया है| साम्यवाद के नाम पर किम परिवार का मुखिया ही आतंक द्वारा उत्तरी कोरिया पर अपना राज्य कायम किए हुए है| पर इसका भी अंत वैसे ही हो सकता है जैसे रोमानिया के कम्युनिष्ट तानाशाह चाउसेस्को का हुआ था| इस समय उत्तरी कोरिया का बहुत बुरा हाल है| क्यूबा में कम्युनिष्ट तानाशाह फिडेल कास्त्रो के मरते ही वहाँ मार्क्सवाद समाप्त हो गया था, हो सकता है किम जोंग उन के मरते ही वैसा ही उत्तरी कोरिया में हो जाये|
.
चीन के मंचू सम्राटों ने १७ वीं शताब्दी में कोरिया पर अधिकार कर लिया था, तभी से कोरिया चीन के अधीन एक प्रदेश माना जाता था| रूस ने भी मंचू शासकों से मंचूरिया छीन कर उसे रूस का एक भाग बना लिया| रूस ने कोरिया पर भी अपना अधिकार करना चाहा तो जापान से यह सहन नहीं हुआ और उसने १९०५ में रूस के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर रूस को पराजित कर मंचूरिया छीन लिया और २२ अगस्त १९१० को कोरिया पर भी अधिकार कर लिया|
.
कोरिया के युद्ध और उसकी भूमिका पर मैंने दो-तीन वर्ष पूर्व एक लेख बड़े विस्तार से लिखा था| अब और नहीं लिखूंगा| कोरिया की त्रासदी के लिए वहाँ पर अगस्त १९१० से द्वीतिय विश्वयुद्ध की समाप्ति तक जापान द्वारा किए गये अवर्णनीय अत्याचार, फिर कोरियाई युद्ध में अमेरिकी जनरल डगलस मेकार्थर द्वारा उत्तरी कोरिया पर की गई भयंकर बमबारी जिस में वहाँ की बीस प्रतिशत निरपराध जनता मारी गई थी, जिम्मेदार है| अमेरिका ने वहाँ की सभी स्कूलों, अस्पतालों और अधिकांश भवनों को अपनी बमबारी से नष्ट कर दिया था| उस समय अमेरिका का राष्ट्रपति Harry Truman था| उसके बाद Dwight D. Eisenhower आया|
.
अब तो उस बात को वर्षों बीत चुके हैं| वर्तमान पीढ़ी को तो उन बातों का पता ही नहीं है| मैं तो यही चाहता हूँ कि कोरिया प्रायदीप एक हो और मार्क्सवाद का यह अंतिम गढ़ ध्वस्त हो| मार्क्सवाद सिर्फ भारत के केरल और बंगाल प्रान्तों में ही बचेगा| भगवान करे भारत से भी मार्क्सवाद पूरी तरह समाप्त हो जाये| ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ अप्रेल २०२०

हम बुराइयों की ओर आकर्षित होकर बुरे काम क्यों करते हैं?.....

यह एक शाश्वत प्रश्न है जिसका उत्तर व समाधान भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के अध्याय २, ३ व ४ में बहुत अच्छी तरह से समझाया है| हमें हमारे गुण ही हर कर्म करने की प्रेरणा देते हैं| जैसा गुण हमारे में होगा वैसा ही स्वभाव होगा और वैसे ही कर्म होंगे| अतः हम तमोगुण से मुक्त होकर रजोगुण में, रजोगुण से मुक्त होकर सतोगुण में, और अंततः गुणातीत बनें| इसकी विधि भी भगवान ने बताई है| हमारे दुःखों का कारण भी ये गुण ही हैं| अतः हमें दुःखों से मुक्ति के लिए सत्संग, स्वाध्याय और साधना तो करनी ही पड़ेगी| सिर्फ बातों से कुछ लाभ नहीं होगा|
.
एक तो यह जिज्ञासा सदा रहनी चाहिए कि मैं कौन हूँ? दूसरा शरणागति का भाव सदा रहना चाहिए| फिर भगवान निश्चित रूप से हमारी रक्षा करेंगे|
,
हमें अपने स्वयं की कमियों को दूर करना होगा :---
अपना अस्तित्व बचाये रखना है तो हमें अपने स्वयं की व समाज और राष्ट्र की कमियों को दूर करना होगा| स्वयं को सक्षम बनाना होगा| बालिकाओं को आत्म रक्षा करना सिखाएँ, किशोरों को अखाड़ों में जाकर व्यायाम करने व शक्तिशाली बनने की प्रेरणा दें, उन्हें साहसी बनाएँ| अपनी कमी के लिए औरों को दोष मत दें| हम शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक व आध्यात्मिक हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली बनें| बच्चों को हर समय डरा-धमका कर उन्हें डरपोक न बनाएँ| हमारे हर बच्चे में इतना साहस हो कि वह बिना किसी भय के अपने माँ-बाप से अपनी बात कह सके|
.
जिसका स्वभाव ही हिंसक है वह तो निज स्वभाववश दूसरों को हानि पहुँचायेगा ही, पर यदि हम सक्षम और शक्तिशाली होंगें तो किसी का साहस नहीं होगा हमारा अहित करने का| किसी के साथ अन्याय मत करो, निरंतर परोपकार करो, अपनी कमी के लिए औरों को दोष मत दो व भ्रमित करने वाले शब्दजाल में मत फँसो| यदि हम सक्षम हैं तो सिंह की भी हिम्मत नहीं होगी हमारे ऊपर आक्रमण करने की| हमारे सामने कोई हिंसक प्राणी आ जाए और हम पर आक्रमण करे तो उसके सामने घुटने टेक कर हाथ जोड़ कर रो रो कर प्रार्थना करने से कि महाराज मैंने तो कभी चींटी भी नहीं मारी, मैं तो अहिंसा का पुजारी हूँ और किसी का अहित नहीं करता हूँ, मुझे मत मारो तो क्या वह हिंसक प्राणी हमें छोड़ देगा?
.
भ्रमित करने वाले उपदेशों से बचें जिन्होनें समाज में भ्रम फैलाया है| हमें मूर्ख बनाने के लिए कई झूठ सिखाए गए हैं, निज विवेक से उन सभी भ्रमों को दूर करें| हमारा संकल्प हो कि भारत एक परम वैभवशाली, आध्यात्मिक, व शक्तिशाली राष्ट्र बने| भारत माता की जय|
कृपा शंकर
१८ अप्रेल २०२०

जब परमात्मा की अनुभूति होने लगे .....

जब परमात्मा की अनुभूति होने लगे तब प्रत्यक्ष परमात्मा का ही चिंतन ध्यान आदि करना चाहिए| फिर पुस्तकों के अध्ययन और बाहरी सत्संग से कोई लाभ नहीं है| निरंतर परमात्मा का ही सत्संग करना चाहिए| ज्ञान का स्त्रोत परमात्मा हैं, पुस्तकें नहीं| अगर आप कहीं जा रहे हैं और आप का लक्ष्य आप को दिखाई देना आरंभ हो जाये तो आपको "मार्ग-निर्देशिका" की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती| फिर आपका दृष्टि-पथ आपके लक्ष्य की ओर ही हो जाना चाहिए| आप फिर अपने लक्ष्य को व अपने पथ को ही निहारिए, अन्यत्र कहीं भी नहीं|
.
पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की अंधकारमय रात्री में यदि कोई मुझसे पूछे कि ध्रुवतारा कहाँ है, तो मैं उसे अपनी अंगुली का संकेत कर के ध्रुव तारा और सप्तऋषिमण्डल दिखा दूंगा| एक बार उसने देख लिया और ध्रुवतारे की पहिचान कर ली तो फिर मेरी अंगुली का कोई महत्व नहीं है| यदि मैं यह अपेक्षा करूँ कि वह मेरे अंगुली का भी सदा सम्मान करे तो यह मेरी मूर्खता होगी| उत्तरी गोलार्ध की बात मैंने इस लिए की है क्योंकि ध्रुवतारा और सप्तऋषिमण्डल इस पृथ्वी पर भूमध्य रेखा के उत्तर से ही दिखाई देते हैं, दक्षिण से नहीं| जितना उत्तर में जाओगे उतना ही स्पष्ट यह दिखाई देने लगेगा| भूमध्य रेखा के दक्षिण से ध्रुव तारे व सप्तऋषिमण्डल को नहीं देख सकते|
.
जो बात मैं कहना चाहता था वह तो मैंने कह दी है| एक बार जब परमात्मा की अनुभूति हो जाए तो फिर प्रत्यक्ष परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए जब तक द्वैतभाव समाप्त न हो जाये| समभाव में स्थिति से ही वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति होती है| ज्ञानी व्यक्ति मुक्त होता है, वह किसी नियम से नहीं बंधा होता, उसके लिए कोई नियम नहीं है|
आप सब को नमन ! ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
१६ अप्रेल २०२०

हमारी दृढ़ संकल्प शक्ति ही हमारी प्रार्थना हो .....

हम चाहे जितनी ज्ञान की बातें करें, कितने भी उपदेश दें, उनसे कोई लाभ नहीं है| यह समय की बर्बादी ही है| हर मनुष्य अपने अपने स्वभाव के अनुसार ही चलेगा| किसी से कुछ भी अपेक्षा, निराशाओं को ही जन्म देगी| परमात्मा से जुड़कर ही अपने दृढ़ संकल्प से हम कुछ सकारात्मक कार्य कर सकते हैं, अन्यथा नहीं| यह सृष्टि भी परमात्मा के संकल्प से प्रकृति द्वारा चल रही है| उनके भी कुछ नियम हैं, जिन्हें वे नहीं तोड़ेंगे|
.
हमारी दृढ़ संकल्प शक्ति ही हमारी प्रार्थना हो| प्रचलित प्रार्थनाओं से अब कोई लाभ नहीं है| यह सृष्टि परमात्मा के संकल्प से निर्मित है| इसका संचालन भी उनके संकल्प से उनकी प्रकृति ही कर रही है| इसमें अच्छा-बुरा जो कुछ ही हो रहा है, उसके जिम्मेदार परमात्मा स्वयं ही हैं, हम नहीं|
गीता में भगवान कहते हैं .....
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि| प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति|| ३:३३||
अर्थात् ज्ञानवान् पुरुष भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है| सभी प्राणी अपनी प्रकृति पर ही जाते हैं फिर इनमें (किसी का) निग्रह क्या करेगा|
.
पूर्वजन्मों के संस्कारों से हमारे स्वभाव का निर्माण होता है| हमारा स्वभाव ही हमारी प्रकृति है| जैसी हमारी प्रकृति होगी वैसा ही कार्य हमारे द्वारा संपादित होगा| अपने उपास्य को पूर्णरूपेण समर्पित होकर नित्य नियमित उपासना से ही हम कुछ सार्थक कार्य कर सकते हैं| परमात्मा सब बंधनों से परे हैं और उनमें ही समस्त स्वतन्त्रता है| हम उन के साथ एक हों, कहीं भी कोई भेद नहीं रहे|
शिव शिव शिव !! ॐ तत्सत !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०२०

शत्रु और मित्र व आध्यात्मिक साधना :----

शत्रु और मित्र व आध्यात्मिक साधना :----
----------------------------------------
अब तो सारा जीवन परमात्मा को समर्पित है इस लिए समाज से या किसी भी व्यक्ति से अब किसी भी प्रकार की कोई अपेक्षा नहीं रही है| कोई शिकायत भी किसी से नहीं है| सारे विचार और स्वप्न भी परमात्मा के ही आते हैं| परमात्मा के सिवाय अन्य कोई विचार मन में आता ही नहीं है, इसलिए संसार के लिये किसी भी काम का नहीं रहा हूँ| सामाजिक संपर्क नहीं के बराबर हैं, किसी से मिलने की इच्छा भी नहीं रही है क्योंकि विचारों में समानता नहीं है| हृदय में स्वयं परमात्मा आकर बिराजमान हो गए हैं, इसलिए उनकी खोज के लिए अन्यत्र कहीं जाने की आवश्यकता भी नहीं रही है| सारा अस्तित्व ही वे हैं|
कुछ काम की बातें अपने अनुभव से लिख रहा हूँ| कोई उनको माने तो ठीक, नहीं माने तो भी ठीक|
.
(१) हमारे सबसे बड़े शत्रु :----
---------------------------
मनुष्य के सबसे बड़े दो शत्रु हैं जो उसे परमात्मा से तो दूर करते ही हैं, जीवन को भी दुःखी बना देते हैं| वे हैं .... लोभ और अहंकार| इनसे अधिक बड़ा कोई अन्य शत्रु नहीं है| बाकी की सब बुराइयाँ इन्हीं से जन्म लेती हैं|
हमारा सबसे बड़ा शत्रु वह व्यक्ति है जो अपने स्वयं के लाभ के लिए हमें लालच देकर लालची बनाता है| जहाँ हम लालच में आ गए, वहीं से नर्कगामी हो जाते हैं| वह दूसरा व्यक्ति तो घोर नर्क में जाएगा ही, हमें भी अपने साथ ले जाएगा| किसी भी तरह के लालच में आकर हम कोई भी काम करते हैं, तो वह हमारे पतन का सबसे बड़ा कारण बन जाता है|
हमारा दूसरा सबसे बड़ा शत्रु हमारा अहंकार है| अपने अहंकार की तृप्ति के लिए हम जो भी करते हैं, वहाँ धोखा ही धोखा खाते हैं| अहंकार एक छलावा है, जिस के कारण हमें हर कदम पर धोखा ही धोखा मिलता है| यह प्रकृति का नियम है जिसे कोई टाल नहीं सकता| हम बड़ा बनने के लिए पंजो के बल चलते हैं, यानि या तो झूठा दिखावा करते हैं, या दूसरों को हानि पहुंचाते हैं, तो अंत में ठोकर खाकर ही गिरते हैं| इनसे कुछ भी नहीं मिलता| दूसरों को हानि पहुंचा कर या दूसरों के सिर काटकर कोई बड़ा नहीं बन सकता|
बाकी की अन्य बुराइयाँ .... प्रमाद, दीर्घसूत्रता, क्रोध, और राग-द्वेष हैं, जिन के मूल में भी हमारा लोभ और अहंकार ही है| एक अहंकारी और लालची व्यक्ति हमारा कभी मित्र नहीं हो सकता| वह हर कदम पर हमारे साथ विश्वासघात करेगा, चाहे वह कितना ही हमारे समीप या हमें प्रिय हो|
.
(२) हमारा सबसे बड़ा मित्र :---
------------------------------
हमारा सबसे बड़ा मित्र परमात्मा के प्रति प्रेम है जो सारे सद्गुणों को अपनी ओर खींच कर ले आता है| यही हमें एक अच्छा मनुष्य बनाता है| हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम हो तो आगे का सारा मार्गदर्शन स्वतः ही मिल जाता है| सारे लाभ भी स्वतः ही मिल जाते हैं| फिर इधर-उधर कहीं धक्के खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती|
.
(३) साधना :----
-------------
जैसे पढ़ाई में अलग-अलग कक्षायें होती हैं वैसे ही हर व्यक्ति के क्रमिक विकासानुसार अलग-अलग साधनायें होती हैं| एक बच्चा चौथी में है, एक दसवी में हैं, एक कॉलेज में है और एक पीएचडी कर रहा है, सभी की पढ़ाई अलग-अलग होती है, वैसे ही क्रमिक विकानुसार साधना भी सब की पृथक-पृथक होती है| जब परमात्मा से हमें प्रेम होता है तब हमारा मार्गदर्शन करना उनकी ज़िम्मेदारी होती है जिसे वे वास्तव में निभाते हैं, इस बात को मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ| एक समय था जब मैं पूरी तरह भ्रमित था, कुछ भी आता-जाता नहीं था| मूर्खतावश इधर-उधर जहाँ कहीं भी हाथ-पैर मारे, धोखे के सिवाय कुछ भी नहीं मिला| जब उन से प्रेम हुआ तो कृपा कर के उन्होने इस हृदय का सारा अंधकार दूर कर दिया| किसी भी तरह की कोई शंका या भटकाव अब नहीं है|
सबसे बड़ी साधना यही है कि जहाँ पर और जिस भी स्थिति में हम हैं, निज विवेक के प्रकाश में अपना सर्वश्रेष्ठ और यथासंभव पूर्ण प्रेम परमात्मा को दें| इस से बड़ी अन्य कोई साधना नहीं है|
.
आप सब को शुभ कामनाएँ व नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ अप्रेल २०२०

जो असंभव लगता है वह भी यथार्थ बन जाता है ....

जो असंभव लगता है वह भी यथार्थ बन जाता है ....
.
क्या किसी ने कभी कल्पना भी की थी कि जापान जैसा छोटा सा देश १९०५ में रूस को पराजित कर देगा? द्वीतिय विश्व युद्ध में जापान के पराजय की कल्पना तो अमेरिका ने भी नहीं की थी|
क्या किसी ने कभी सोचा भी था कि रूस में बोल्शेविक क्रांति होगी, सोवियत संघ का घटन होगा, और कालांतर में उसका विघटन भी होगा?
सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) का पतन और विघटन भी सदा अविश्वसनीय रहा|
द्वीतिय विश्वयुद्ध में विश्व की सबसे अधिक शक्तिशाली सेना वाले जर्मनी की कभी हार होगी, यह भी उस समय कल्पना के बाहर था|
जिस ब्रिटिश साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था, उसका पराभव होगा और भारत को स्वतन्त्रता मिलेगी, यह भी आज से सौ वर्ष पूर्व तक कोई सोच भी नहीं सकता था|
विश्व की महाशक्ति अमेरिका ने भी कोरियाई और विएतनाम युद्ध में पराजय का मुंह देखा है| विश्व में अनेक चमत्कारिक घटनाएँ हुई हैं|
कोरोना नाम का परजीवी वायरस रूपी जैविक-अस्त्र चीन से निकल कर विश्व की अर्थ व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर देगा, यह भी आज से दो माह पूर्व तक किसी ने सोचा भी नहीं था|
.
आज जो इस बात पर भरोसा नहीं कर रहे हैं कि भारत एक आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र बनेगा, जहाँ की राजनीति सनातन धर्म होगी, वे पता नहीं तब तक जीवित रहें या न रहें, पर यह एक फलीभूत होने वाला सत्य है| सूक्ष्म जगत की अनेक शक्तियाँ इस कार्य में लग गई हैं, जिन का सामना करने की शक्ति मनुष्य में नहीं है|
.
हमारा यह संकल्प निश्चित रूप से सत्य होगा कि भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी और भारत में असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव होगा|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
१२ अप्रेल २०२० 

हमें परमात्मा की प्राप्ति क्यों नहीं होती ? ....

हमें परमात्मा की प्राप्ति क्यों नहीं होती ? ....
.
एक शाश्वत् प्रश्न है कि हमें परमात्मा की प्राप्ति क्यों नहीं होती ? इसका उत्तर मैं अपनी भाषा में यदि सरलतम और स्पष्टतम शब्दों में देना चाहूँ तो इसका एक ही उत्तर है, और वह यह है कि हमारे में निष्ठा यानि ईमानदारी की कमी है| हम स्वयं के प्रति निष्ठावान नहीं हैं, हम स्वयं को ठगना चाहते हैं और स्वयं के द्वारा ही ठगे जा रहे हैं| किसी भी सांसारिक उपलब्धी के लिए तो हम दिन रात एक कर देते हैं, हाडतोड़ परिश्रम करते हैं, पर जो उच्चतम उपलब्धी है वह हम सिर्फ ऊँची ऊँची बातों के शब्दजाल से ही प्राप्त करना चाहते हैं|
.
वास्तविकता तो यह है की हम परमात्मा को प्राप्त करना ही नहीं चाहते| हम सिर्फ सांसारिक सुखों को, सांसारिक उपलब्धियों को और अधिक से अधिक अपने अहंकार की तृप्ति के लिए ही भगवान की विभूतियों को प्राप्त करना चाहते हैं| हमारे लिए भगवान एक माध्यम है, पर लक्ष्य तो संसार है| यानि साध्य तो संसार है और भगवान एक साधन मात्र| कोई दो लाख में से एक व्यक्ति ही ऐसा होता है जो परमात्मा को पाना चाहता है|
.
प्राचीन भारत एक अपवाद था| यहाँ की सनातन संस्कृति ही विकसित हुई परमात्मा यानि ब्रह्म को पाने का ही लक्ष्य बनाकर| यहाँ की संस्कृति में सम्मान हुआ तो ब्रह्मज्ञों का ही हुआ| जीवात्मा का उद्गम जहाँ से हुआ है, वहाँ अपने स्त्रोत में उसे बापस तो जाना ही पड़ेगा चाहे लाखों जन्म और लेने पड़ें| तभी जीवन चक्र पूर्ण होगा| इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, बहुत सारा सद्साहित्य इस विषय पर उपलब्ध है| अनेक संत महात्मा हैं जो निष्ठावान मुमुक्षुओं का मार्गदर्शन करते रहते हैं| अतः और लिखने की आवश्यकता नहीं है| जब ह्रदय में अहैतुकी परम प्रेम और निष्ठा होती है तब भगवान मार्गदर्शन स्वयं ही करते हैं| पात्रता होने पर सद्गुरु का आविर्भाव भी स्वतः ही होता है|
.
जब हम अग्नि के समक्ष बैठते हैं तो ताप की अनुभूति अवश्य होती है| कई बार अनुभूति ना होने पर भी ताप तो मिलता ही है| वैसे ही जब भी हम परमात्मा का स्मरण या ध्यान करते हैं तो उनके अनुग्रह की प्राप्ति अवश्य होती है| परमात्मा को पाने का मार्ग है अहैतुकी (Unconditional) परम प्रेम| प्रेम में कोई माँग नहीं होती, मात्र शरणागति और समर्पण होता है| प्रेम, गहन अभीप्सा और समर्पण हो तो और कुछ भी नहीं चाहिए| सब कुछ अपने आप ही मिल जाता है|
.
अपने प्रेमास्पद का ध्यान निरंतर तेलधारा के सामान होना चाहिए| प्रेम हो तो आगे का सारा ज्ञान स्वतः ही प्राप्त हो जाता है और आगे के सारे द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं| जो लोग सेवानिवृत है उन्हें तो अधिक से अधिक समय नामजप और ध्यान में बिताना चाहिए| सांसारिक नौकरी में अपना वेतन प्राप्त करने के लिए दिन में कम से कम आठ घंटे काम करना पड़ता है| व्यापारी की नौकरी तो चौबीस घंटे की होती है| कुछ समय भगवान की नौकरी भी करनी चाहिए| जब जगत मजदूरी देता है तो भगवान क्यों नहीं देंगे? उनसे मजदूरी तो माँगनी ही नहीं चाहिए| माँगना ही है तो सिर्फ उनका प्रेम; प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं| प्रेम को ही मजदूरी मान लीजिये| एक बात का ध्यान रखें ..... मजदूरी उतनी ही मिलेगी जितनी आप मेहनत करोगे| बिना मेहनत के मजदूरी नहीं मिलेगी| इस सृष्टि में निःशुल्क कुछ भी नहीं है| हर चीज की कीमत चुकानी पडती है|
.
सार : हमें परमात्मा की प्राप्ति इसलिए नहीं होती क्योंकि हम परमात्मा को प्राप्त करना ही नहीं चाहते| हम स्वयं के प्रति निष्ठावान यानि ईमानदार नहीं हैं| अपने अहंकार की तृप्ति के लिए भक्ति का झूठा दिखावा करते हैं| अपनी मानसिक कल्पना से और झूठे शब्द जाल से स्वयं को ठग रहे हैं| हमने परमात्मा को तो साधन बना रखा है, पर साध्य तो संसार ही है|
.
आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को पुनश्चः प्रणाम| आप सब की जय हो|
ॐ तत्सत् ! ॐ श्रीगुरवे नमः ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपाशंकर
११ अप्रेल २०२० 

कर्ताभाव से मुक्त कैसे हों? .....

कर्ताभाव से मुक्त कैसे हों?
अरुणिमा की झलक बता रही है कि सूर्योदय सुनिश्चित है| कर्ताभाव का अहंकार ही एकमात्र अवरोध है, अन्यथा सूर्योदय में विलंब नहीं है| वास्तव में 'कर्ता' तो भगवती स्वयं है जो यज्ञ रूप में सारे कर्मफल परमात्मा को अर्पित करती हैं| वे ही ''उपासना' ;उपासक' और 'उपास्य' हैं| पर हम स्वयं कर्ता बन बैठे हैं|
.
कर्ताभाव से मुक्त कैसे हों? हर चीज की कीमत चुकानी होती है, प्रकृति में कुछ भी निःशुल्क नहीं है| कीमत तो चुकानी ही होगी| वह कीमत है..... हमारा 'चित्त'| भगवान कहते हैं .....
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि||१८:५८||
मुझ में चित्त वाला हो कर तूँ समस्त कठिनाइयों को अर्थात् जन्म-मरण रूप संसार के समस्त कारणों को मेरे अनुग्रहसे तर जायगा ... सबसे पार हो जायगा| परंतु यदि तूँ मेरे कहे हुए वचनों को अहंकार से मैं पण्डित हूँ ऐसा समझ कर नहीं सुनेगा, ग्रहण नहीं करेगा तो नष्ट हो जायगा ... नाशको प्राप्त हो जाएगा|
.
अब शंका किस बात की? तुरंत कमर कस कर उनके प्रेम सागर में डुबकी लगा देनी चाहिए| मोती नहीं मिलते हैं तो दोष सागर का नहीं, डुबकी का है, जिसमें पूर्णता लाओ|
अभीप्सा तीब्रतम हो पर समर्पण में पूर्णता हो| फिर सूर्योदय सुनिश्चित है|
.
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० अप्रेल २०२०

सिर्फ परमात्मा .....

सिर्फ परमात्मा .....
.
जीवन में तृप्ति, संतुष्टि, सुख-शांति और सुरक्षा ..... सिर्फ परमात्मा में ही है, अन्यत्र कहीं भी नहीं| वे ही हमारे प्राण और अस्तित्व हैं| जानने योग्य भी वे ही हैं| उन्हें हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रेम दें| प्रेम करने योग्य भी वे ही हैं, अन्य कुछ भी नहीं|
.
"पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः| वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च||९:१७||"
अर्थात् इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ||
.
"अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम्‌| एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा||१३:१२||"
निरन्तर आत्म-स्वरूप में स्थित रहने का भाव और तत्व-स्वरूप परमात्मा से साक्षात्कार करने का भाव यह सब तो मेरे द्वारा ज्ञान कहा गया है और इनके अतिरिक्त जो भी है वह अज्ञान है||
.
"ज्ञेयं यत्तत्वप्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते| अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ||१३:१३||"
हे अर्जुन! जो जानने योग्य है अब मैं उसके विषय में बतलाऊँगा जिसे जानकर मृत्यु को प्राप्त होने वाला मनुष्य अमृत-तत्व को प्राप्त होता है, जिसका जन्म कभी नही होता है जो कि मेरे अधीन रहने वाला है वह न तो कर्ता है और न ही कारण है, उसे परम-ब्रह्म (परमात्मा) कहा जाता है||
.
"सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टोमत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च |
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्‌ ||१५:१५||"
अर्थात् मैं ही समस्त जीवों के हृदय में आत्मा रूप में स्थित हूँ, मेरे द्वारा ही जीव को वास्तविक स्वरूप की स्मृति, विस्मृति और ज्ञान होता है, मैं ही समस्त वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ, मुझसे ही समस्त वेद उत्पन्न होते हैं और मैं ही समस्त वेदों को जानने वाला हूँ||
.
हमारा पूर्ण प्रेम स्वीकार करो| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०२०

रक्तबीज, महिषासुर व रावण अमर हैं .....

रक्तबीज, महिषासुर व रावण अमर हैं और जब तक सृष्टि है तब तक इन का अस्तित्व बना रहेगा| उनके बिना सृष्टि चल नहीं सकती| हमें ही अपने चेतना में उन से मुक्त होना पड़ेगा| ये हमारे अवचेतन मन में छिपे हैं और चित्त की वृत्तियों (वासनाओं) के रूप में निरंतर प्रकट हो रहे हैं| जितना इनका दमन करते हैं, उतना ही इनका विस्तार होता है| सारे दुःखों, कष्टों, पीड़ाओं, दरिद्रता और दुर्गति के मूल में ये ही हैं|
परस्त्री/पुरुष व पराये धन की कामना, अन्याय/अधर्म द्वारा धन पाने की इच्छा, परपीड़ा, अधर्माचरण, मिथ्या अहंकार, प्रमाद यानि आलस्य, काम को आगे टालने की प्रवृत्ति और तमोगुण ही इन असुरों की अभिव्यक्ति है|
निज प्रयास से इनका नाश नहीं हो सकता| अपनी चेतना में परमात्मा को प्रकट कर के ही इन से मुक्त हो सकते हैं| उस के लिए हमें साधना/उपासना करनी होगी|

८ अप्रेल २०२० 

जन्नत से फालतू और घटिया दूसरी कोई जगह है ही नहीं ....

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है (- मिर्ज़ा ग़ालिब)
.
जन्नत से फालतू और घटिया दूसरी कोई जगह है ही नहीं| यह छठी शताब्दी की एक अरब फंटाशी है, उस से अधिक कुछ भी नहीं| यह अत्यधिक कामुक और हिंसक लोगों की मनोविकृत झूठी सोच है| वहाँ कुछ भी नहीं मिलता| वहाँ जाकर स्त्री और पुरुष दोनों ही अनंत काल के लिए रोबोट की तरह एक नॉन-स्टॉप २४ घंटे सेक्स करने की मशीन बन जाते हैं| इस का एक चक्र बत्तीस वर्ष में पूरा होता है| फिर दूसरा चक्र शुरू हो जाता है| वह मेकेनिकल सेक्स चौबीस घंटे नॉन-स्टॉप चलता रहता है| वहाँ न तो कुछ खाने को भोजन मिलता है और न पीने को पानी| साँस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती| सिंगल माल्ट स्कॉच व्हिस्की की तरह की किसी उम्दा शराब की नदियाँ वहाँ बहती रहती हैं| पर वह प्राणी उस शराब को भी तरस जाता है क्योंकि चौबीस घंटे के नॉन स्टॉप मेकेनिकल सेक्स से ही मुक्ति नहीं मिलती| दम घुट जाता है|
.
कोई ऊँचा विचार या आध्यात्मिक उपलब्धि वहाँ है ही नहीं| कोई वहाँ से मुक्त होकर निकलना चाहे तो निकल भी नहीं सकता, पर अपने सौ साथियों को वहाँ बुला सकता है| यह भी एक तरह की कैद है| कोई स्वतन्त्रता नहीं है, बस एक मशीन बन जाओ और मशीन चलती रहे| एक सेकंड के लिए भी आराम नहीं मिलता|
.
वास्तव में जो लोग इस जन्नत की कामना से पूरे जीवन दूसरों का गला काटते रहते हैं या दूसरों को आतंकित करते रहते हैं, से सब अति कष्टमय पिशाच या प्रेत योनी मे जाते हैं और कहीं लटके हुए इस जन्नत का स्वप्न देखते रहते हैं| फिर बार-बार कहीं एक निरीह पशु बनते हैं जिन्हें हिंसक प्राणी अपना शिकार बना कर तड़पा तड़पा कर जिंदा ही खाते रहते हैं|
.
यह जन्नत और जहन्नुम एक कल्पना मात्र हैं, जिनका कोई अस्तित्व नहीं है| इस जन्नत की कामना ने इस धरा पर विनाश ही विनाश किया है, कोई अच्छा काम नहीं किया है|
जो और कुछ हो तेरी दीद के सिवा मंज़ूर
तो मुझ पे ख़्वाहिश-ए-जन्नत हराम हो जाए (- हसरत मोहानी)
हमें पीने से मतलब है जगह की क़ैद क्या 'बेख़ुद'
उसी का नाम जन्नत रख दिया बोतल जहाँ रख दी (- बेख़ुद देहलवी)
फिर न आया ख़याल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा (- सुदर्शन फ़ाख़िर)
उनकी गली नहीं है न उनका हरीम है
जन्नत भी मेरे वास्ते जन्नत नहीं रही (- नादिर शाहजहाँ पुरी)
ख़्वाब हाय दिल नशीं का इक जहाँ आबाद हो
तकिया जन्नत भी उठा लाए अगर इरशाद हो (- मुजतबा हुसैन)
अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
कूचा-ए-यार में चल देख ले जन्नत मेरी (- फ़ानी बदायुनी)
हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदों तुमको
ख़ुदा ने क्या तुम्हारे हाथ जन्नत बेच डाली है (- दाग़ देहलवी)
जन्नत से जी लरज़ने लगा जब से ये सुना
अहल-ए-जहाँ वहाँ भी मिलेंगे यहाँ के बाद (- अज्ञात)
मयख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना
दुनिया यही कहेगी कि जन्नत में घर बना (- रियाज़ ख़ैराबादी)
इसी दुनिया में दिखा दें तुम्हें जन्नत की बहार
शैख़ जी तुम भी ज़रा कू-ए-बुताँ तक आओ (- अली सरदार जाफ़री)
गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद
यहीं कहीं तेरी जन्नत भी पाई जाती है (- जिगर मुरादाबादी)
हूरों से न होगी ये मुदारात किसी की
याद आएगी जन्नत में मुलाक़ात किसी की (- बेख़ुद देहलवी)
रौशनी वालों ने दोज़ख़ में बुलाया है मुझे
मेरी जन्नत के अँधेरों मेरा दामन पकड़ो (- अख़्तर जावेद)
गली में उस की न फिर आते हम तो क्या करते
तबीअत अपनी न जन्नत के दरमियान लगी (- मोमिन ख़ाँ मोमिन)
जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई (- दाग़ देहलवी)

अंतरतम भाव कभी व्यक्त नहीं हो सकते....

शब्दों की भी एक सीमा होती है, अंतरतम भाव कभी व्यक्त नहीं हो सकते....
.
भगवान के पास सब कुछ है पर एक ही चीज की कमी है, वह है हमारा प्रेम| उसके लिए वे भी व्याकुल हो जाते हैं| कई भाव, कई विचार हमें भगवान की परम कृपा से अनुभूत होते हैं| यह उन का एक आंतरिक आश्वासन हैं कि वे हमें भूले नहीं हैं, और वे भी हमारे प्यार के लिए हम से अधिक व्याकुल हैं| एक बार हमें परमात्मा की अनंतता और उस से परे की दिव्यता का आभास हो जाये तो पीछे मुड़ कर देखना असम्भव हो जाता है| वेदान्त में जो परम ब्रह्म हैं वे ही 'परमशिव' हैं जिन से परे अन्य कुछ भी नहीं है| वे ही मेरे उपास्य देव हैं| वे इस जीवन में पूर्णतः व्यक्त हों|
उनके बारे में श्रुति भगवती कहती है .....
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः| तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति||"
गीता में भगवान कहते हैं.....
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः| यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम||"
गायत्री मंत्र के सविता देव भी वे ही हैं, जिन की भर्गः ज्योति का हम ध्यान करते हैं| उनकी उपमा सूर्य से नहीं कर सकते| हजारों करोड़ सूर्य और यह सारा ब्रह्मांड उन्हीं के प्रकाश से ज्योतिर्मय हैं| आरंभ में अवश्य हम सूर्य मण्डल में परम-पुरुष का ध्यान करते हैं| पर धीरे-धीरे वे परम-पुरुष हमारी चेतना को सूर्य मण्डल से भी परे ले जाते हैं|
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च|
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व|
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः||"
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०२०

घर-परिवार में प्रेम और एकता कैसे बनी रहे? ....

घर-परिवार में प्रेम और एकता कैसे बनी रहे?
------------------------------------------------
इसके लिए मैं सौ प्रतिशत गारंटी वाले दो अचूक उपाय बताता हूँ जो कभी विफल नहीं हो सकते, पर घर-परिवार के सभी सदस्यों को इसे मानना होगा|
.
(१) परिवार के सभी सदस्य एक निश्चित समय पर साथ-साथ बैठकर ही भोजन ग्रहण करें| अपना प्रातः का कलेवा (Breakfast), मध्याह्न का भोजन (Lunch) और सायंकालीन भोजन (Dinner), यहाँ तक कि चायपान (Tea) भी एक निश्चित स्थान पर साथ-साथ बैठकर ही करें|
.
(२) दिन में कम से कम एक बार परिवार के सभी सदस्य साथ-साथ बैठकर ईश्वर की नियमित आराधना करें| "हनुमान चालीसा" का या "सुंदर कांड" का, या "गायत्री मंत्र" का या अपने "इष्ट देव की स्तुति" का पाठ, या सामूहिक ध्यान, ...... एक निश्चित स्थान पर एक साथ करें|
.
उपरोक्त दोनों उपाय अचूक हैं जो कभी असफल नहीं हो सकते| सौ प्रतिशत गारंटी है|


४ अप्रेल २०२० 

"आत्माराम" सब कर्तव्यों से परे है .....

"आत्माराम" सब कर्तव्यों से परे है, उसका संसार में कोई कर्तव्य नहीं है ---
गीता में भगवान कहते हैं .....
"यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः | आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते ||१३:१७||"
"नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन | न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः||३:१८||"
अर्थात् जो मनुष्य आत्मा में ही रमने वाला आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो उसके लिये कोई कर्तव्य नहीं रहता||
इस जगत् में उस पुरुष का कृत और अकृत से कोई प्रयोजन नहीं है और न वह किसी वस्तु के लिये भूतमात्र पर आश्रित होता है||
.
ऐसा व्यक्ति जीवनमुक्त होता है| उसमें कोई कर्ताभाव या कोई कामना नहीं होती| आत्मवेत्ता के लिये कोई कर्तव्य नही बचता, वह सब कर्मों से परे है| 'नारद भक्ति सूत्र' के प्रथम अध्याय का छठा सूत्र भक्त की तीन अवस्थाओं के बारे में बताता है ....
"यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति|"
यानि उस परम प्रेम रूपी परमात्मा को जानकर यानि पाकर भक्त प्रेमी पहिले तो मत्त हो जाता है, फिर स्तब्ध हो जाता है और अंत में आत्माराम हो जाता है, यानि आत्मा में रमण करने लगता है|
.
सबसे अच्छी गति आत्माराम की है| हम आत्माराम बनें, यानि आत्मा में ही रमण करें| यही जीवनमुक्त की स्थिति है| यह बात कहने में बड़ी सरल है पर इसकी सिद्धि में कई जन्म लग जाते हैं| अनेक जन्मों के अच्छे कर्मों व तपस्या के पश्चात हरिःकृपा से व्यक्ति को आत्म-तत्व का बोध होता है, तब वह आत्माराम हो पाता है| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अप्रेल २०२०