Thursday 7 May 2020

अंतरतम भाव कभी व्यक्त नहीं हो सकते....

शब्दों की भी एक सीमा होती है, अंतरतम भाव कभी व्यक्त नहीं हो सकते....
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भगवान के पास सब कुछ है पर एक ही चीज की कमी है, वह है हमारा प्रेम| उसके लिए वे भी व्याकुल हो जाते हैं| कई भाव, कई विचार हमें भगवान की परम कृपा से अनुभूत होते हैं| यह उन का एक आंतरिक आश्वासन हैं कि वे हमें भूले नहीं हैं, और वे भी हमारे प्यार के लिए हम से अधिक व्याकुल हैं| एक बार हमें परमात्मा की अनंतता और उस से परे की दिव्यता का आभास हो जाये तो पीछे मुड़ कर देखना असम्भव हो जाता है| वेदान्त में जो परम ब्रह्म हैं वे ही 'परमशिव' हैं जिन से परे अन्य कुछ भी नहीं है| वे ही मेरे उपास्य देव हैं| वे इस जीवन में पूर्णतः व्यक्त हों|
उनके बारे में श्रुति भगवती कहती है .....
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः| तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति||"
गीता में भगवान कहते हैं.....
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः| यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम||"
गायत्री मंत्र के सविता देव भी वे ही हैं, जिन की भर्गः ज्योति का हम ध्यान करते हैं| उनकी उपमा सूर्य से नहीं कर सकते| हजारों करोड़ सूर्य और यह सारा ब्रह्मांड उन्हीं के प्रकाश से ज्योतिर्मय हैं| आरंभ में अवश्य हम सूर्य मण्डल में परम-पुरुष का ध्यान करते हैं| पर धीरे-धीरे वे परम-पुरुष हमारी चेतना को सूर्य मण्डल से भी परे ले जाते हैं|
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च|
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व|
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः||"
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०२०

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