Thursday 7 May 2020

शत्रु और मित्र व आध्यात्मिक साधना :----

शत्रु और मित्र व आध्यात्मिक साधना :----
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अब तो सारा जीवन परमात्मा को समर्पित है इस लिए समाज से या किसी भी व्यक्ति से अब किसी भी प्रकार की कोई अपेक्षा नहीं रही है| कोई शिकायत भी किसी से नहीं है| सारे विचार और स्वप्न भी परमात्मा के ही आते हैं| परमात्मा के सिवाय अन्य कोई विचार मन में आता ही नहीं है, इसलिए संसार के लिये किसी भी काम का नहीं रहा हूँ| सामाजिक संपर्क नहीं के बराबर हैं, किसी से मिलने की इच्छा भी नहीं रही है क्योंकि विचारों में समानता नहीं है| हृदय में स्वयं परमात्मा आकर बिराजमान हो गए हैं, इसलिए उनकी खोज के लिए अन्यत्र कहीं जाने की आवश्यकता भी नहीं रही है| सारा अस्तित्व ही वे हैं|
कुछ काम की बातें अपने अनुभव से लिख रहा हूँ| कोई उनको माने तो ठीक, नहीं माने तो भी ठीक|
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(१) हमारे सबसे बड़े शत्रु :----
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मनुष्य के सबसे बड़े दो शत्रु हैं जो उसे परमात्मा से तो दूर करते ही हैं, जीवन को भी दुःखी बना देते हैं| वे हैं .... लोभ और अहंकार| इनसे अधिक बड़ा कोई अन्य शत्रु नहीं है| बाकी की सब बुराइयाँ इन्हीं से जन्म लेती हैं|
हमारा सबसे बड़ा शत्रु वह व्यक्ति है जो अपने स्वयं के लाभ के लिए हमें लालच देकर लालची बनाता है| जहाँ हम लालच में आ गए, वहीं से नर्कगामी हो जाते हैं| वह दूसरा व्यक्ति तो घोर नर्क में जाएगा ही, हमें भी अपने साथ ले जाएगा| किसी भी तरह के लालच में आकर हम कोई भी काम करते हैं, तो वह हमारे पतन का सबसे बड़ा कारण बन जाता है|
हमारा दूसरा सबसे बड़ा शत्रु हमारा अहंकार है| अपने अहंकार की तृप्ति के लिए हम जो भी करते हैं, वहाँ धोखा ही धोखा खाते हैं| अहंकार एक छलावा है, जिस के कारण हमें हर कदम पर धोखा ही धोखा मिलता है| यह प्रकृति का नियम है जिसे कोई टाल नहीं सकता| हम बड़ा बनने के लिए पंजो के बल चलते हैं, यानि या तो झूठा दिखावा करते हैं, या दूसरों को हानि पहुंचाते हैं, तो अंत में ठोकर खाकर ही गिरते हैं| इनसे कुछ भी नहीं मिलता| दूसरों को हानि पहुंचा कर या दूसरों के सिर काटकर कोई बड़ा नहीं बन सकता|
बाकी की अन्य बुराइयाँ .... प्रमाद, दीर्घसूत्रता, क्रोध, और राग-द्वेष हैं, जिन के मूल में भी हमारा लोभ और अहंकार ही है| एक अहंकारी और लालची व्यक्ति हमारा कभी मित्र नहीं हो सकता| वह हर कदम पर हमारे साथ विश्वासघात करेगा, चाहे वह कितना ही हमारे समीप या हमें प्रिय हो|
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(२) हमारा सबसे बड़ा मित्र :---
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हमारा सबसे बड़ा मित्र परमात्मा के प्रति प्रेम है जो सारे सद्गुणों को अपनी ओर खींच कर ले आता है| यही हमें एक अच्छा मनुष्य बनाता है| हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम हो तो आगे का सारा मार्गदर्शन स्वतः ही मिल जाता है| सारे लाभ भी स्वतः ही मिल जाते हैं| फिर इधर-उधर कहीं धक्के खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती|
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(३) साधना :----
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जैसे पढ़ाई में अलग-अलग कक्षायें होती हैं वैसे ही हर व्यक्ति के क्रमिक विकासानुसार अलग-अलग साधनायें होती हैं| एक बच्चा चौथी में है, एक दसवी में हैं, एक कॉलेज में है और एक पीएचडी कर रहा है, सभी की पढ़ाई अलग-अलग होती है, वैसे ही क्रमिक विकानुसार साधना भी सब की पृथक-पृथक होती है| जब परमात्मा से हमें प्रेम होता है तब हमारा मार्गदर्शन करना उनकी ज़िम्मेदारी होती है जिसे वे वास्तव में निभाते हैं, इस बात को मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ| एक समय था जब मैं पूरी तरह भ्रमित था, कुछ भी आता-जाता नहीं था| मूर्खतावश इधर-उधर जहाँ कहीं भी हाथ-पैर मारे, धोखे के सिवाय कुछ भी नहीं मिला| जब उन से प्रेम हुआ तो कृपा कर के उन्होने इस हृदय का सारा अंधकार दूर कर दिया| किसी भी तरह की कोई शंका या भटकाव अब नहीं है|
सबसे बड़ी साधना यही है कि जहाँ पर और जिस भी स्थिति में हम हैं, निज विवेक के प्रकाश में अपना सर्वश्रेष्ठ और यथासंभव पूर्ण प्रेम परमात्मा को दें| इस से बड़ी अन्य कोई साधना नहीं है|
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आप सब को शुभ कामनाएँ व नमन !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ अप्रेल २०२०

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