Thursday 7 May 2020

सिर्फ परमात्मा .....

सिर्फ परमात्मा .....
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जीवन में तृप्ति, संतुष्टि, सुख-शांति और सुरक्षा ..... सिर्फ परमात्मा में ही है, अन्यत्र कहीं भी नहीं| वे ही हमारे प्राण और अस्तित्व हैं| जानने योग्य भी वे ही हैं| उन्हें हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रेम दें| प्रेम करने योग्य भी वे ही हैं, अन्य कुछ भी नहीं|
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"पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः| वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च||९:१७||"
अर्थात् इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ||
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"अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम्‌| एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा||१३:१२||"
निरन्तर आत्म-स्वरूप में स्थित रहने का भाव और तत्व-स्वरूप परमात्मा से साक्षात्कार करने का भाव यह सब तो मेरे द्वारा ज्ञान कहा गया है और इनके अतिरिक्त जो भी है वह अज्ञान है||
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"ज्ञेयं यत्तत्वप्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते| अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ||१३:१३||"
हे अर्जुन! जो जानने योग्य है अब मैं उसके विषय में बतलाऊँगा जिसे जानकर मृत्यु को प्राप्त होने वाला मनुष्य अमृत-तत्व को प्राप्त होता है, जिसका जन्म कभी नही होता है जो कि मेरे अधीन रहने वाला है वह न तो कर्ता है और न ही कारण है, उसे परम-ब्रह्म (परमात्मा) कहा जाता है||
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"सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टोमत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च |
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्‌ ||१५:१५||"
अर्थात् मैं ही समस्त जीवों के हृदय में आत्मा रूप में स्थित हूँ, मेरे द्वारा ही जीव को वास्तविक स्वरूप की स्मृति, विस्मृति और ज्ञान होता है, मैं ही समस्त वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ, मुझसे ही समस्त वेद उत्पन्न होते हैं और मैं ही समस्त वेदों को जानने वाला हूँ||
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हमारा पूर्ण प्रेम स्वीकार करो| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०२०

1 comment:

  1. अन्तर्मन की पीड़ा:-- The spirit is willing, but the flesh is weak.
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    उपरोक्त वाक्य उन जिज्ञासुओं के अन्तर्मन की पीड़ा को दिखाता है जो भगवान की उपासना करना तो चाहते हैं, पर अपने व्यक्तित्व की किसी कमी के कारण आध्यात्म पथ के पथिक नहीं हो पा रहे हैं|

    उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है| अगले जन्मों में उन्हें फिर अवसर मिलेगा| घर-परिवार के लोगों की नकारात्मक सोच, गलत माँ-बाप के यहाँ जन्म, गलत पारिवारिक संस्कार और गलत वातावरण ... उन्हें कोई साधन-भजन नहीं करने देता| घर-परिवार के मोह के कारण ऐसे जिज्ञासु बहुत अधिक दुखी रहते हैं| इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में निश्चित ही उन्हें आध्यात्मिक प्रगति का अवसर मिलेगा|

    यह वाक्य जीसस क्राइस्ट का है जो उन्होनें अपने एक शिष्य के लिए कहा
    "Watch and pray, that ye enter not into temptation: the spirit indeed is willing, but the flesh is weak."
    (Matthew 26:41 KJV)

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