Thursday 7 May 2020

एक पीड़ा .....

अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह लगता है ये सब प्राचीन भारत की बातें हैं| आजकल तो जो दिखाई दे रहा है वह इनसे विपरीत ही है| सत्य तो नारायण (सत्यनारायण) यानि सिर्फ परमात्मा है| उसका यह संसार तो झूठ-कपट से चल रहा है| जो जितनी बड़ी सत्य की बात करता है, पाते हैं कि वह उतना ही बड़ा झूठा है| आजकल कोई भी मंत्र व साधना सिद्ध नहीं होती क्योंकि असत्य-वादन से हमारी वाणी दग्ध हो जाती है, और दग्ध-वाणी से जपा गया कोई भी मंत्र कभी फलीभूत नहीं होता| आजकल राजनीति में, न्यायालयों में, सरकारी कार्यालयों में, हर स्थानों पर असत्य ही असत्य का बोलबाला है|
.
यह संसार नष्ट होकर नए सिरे से दुबारा बसे, तब हो सकता है कि सत्य की प्रतिष्ठा हो, इस समय तो यह असंभव ही लगता है| मनुष्य सिर्फ अपनी मृत्यु से डरता है, अन्य किसी से नहीं| सामने जब मृत्यु को देखता है तभी सत्य उसके मुंह से निकलता है| वर्षों पहिले एक पुस्तक पढ़ी थी जिसमें एक अंग्रेज सैनिक अधिकारी जो मध्य-भारत में एक न्यायाधीश भी रह चुका था, के बारे में लिखा एक लेख था| उस अंग्रेज न्यायाधीश ने लिखा था कि उसके न्यायाधीश रहते हुए समय भारत में उसके सामने ऐसे अनगिनत मुक़दमें आए जिनमें अभियुक्त झूठ बोलकर छूट सकता था पर अभियुक्तों ने दंड यानि सजा पाना स्वीकार किया पर झूठ नहीं बोला|
.
सत्य और असत्य को हमारे शास्त्रों में बहुत अच्छी तरह समझाया गया है| जिन्हें जीवन में परमात्मा चाहिए, सत्य उन्हीं के लिए है| वर्तमान व्यवस्था तो असत्य पर ही आधारित है| अतः यह दुनियाँ अगर मिट भी जाए तो क्या है! पुराने जमाने में भारत में जितने भी विदेशी यात्री आए, प्रायः सभी ने लिखा था कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ कोई असत्य नहीं बोलता| स्वामी विवेकानंद की 'राजयोग' नामक पुस्तक में लिखा है कि कोई अगर चौदह वर्ष तक सत्य ही बोले तो उसकी वाणी में वह शक्ति आ जाती है कि उसकी कही हुई हर बात सत्य हो जाती है| हमारी कोई बात सत्य नहीं होती क्योंकि हमारी वाणी झूठ बोलने से दग्ध हो चुकी है| जिन्हें जीवन में परमात्मा चाहिए वे हिमालय में जाकर तपस्या करे, इस संसार में वे अनुपयुक्त यानि misfit हैं|
.
मैंने जो लिखा है वह मेरी अनुभवजन्य पीड़ा है, कोई कुछ भी कहे, मुझे कितना भी बुरा बताए, मैं अपनी बात पर कायम हूँ| आप सब में परमात्मा को नमन !!
.
पुनश्च :--- कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने ब्रह्मज्ञान सर्वप्रथम अपने ज्येष्ठ पुत्र अथर्व को दिया था| थर्व का अर्थ होता है कुटिलता| जिनके जीवन में कोई कुटिलता नहीं थी वे ब्रह्माजी के ज्येष्ठ पुत्र अथर्व होते थे| अथर्व ने ब्रह्मज्ञान सत्यवाह को दिया| सत्यवाह वे थे जो सत्यनिष्ठ होते थे| फिर आगे यह परंपरा चलती रही| अब सत्यवाह और अथर्व नहीं रहे हैं, अतः ब्रह्मज्ञान का कोई अधिकारी भी नहीं रहा है|
पुनश्च :--- मेरे एक सेवानिवृत प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी मित्र ने मुझे अपनी आँखों देखी पूर्वोत्तर भारत की एक घटना बताई थी| एक दूर दराज के वनवासी क्षेत्र में जहाँ खूब पहाड़ और जंगल थे, जहाँ कभी कोई पुलिस भी नहीं जाती थी, वहाँ एक आदमी ने किसी की हत्या कर दी| हत्या करने के बाद वह आदमी दो दिन पैदल चलकर निकटतम पुलिस स्टेशन आया और खुद के विरुद्ध रिपोर्ट लिखवाई| एक बार तो पुलिस वालों ने उसे धमकाकर भगाने की कौशिस की पर वह अपनी गिरफ़्तारी और सजा की माँग पर अडिग रहा| उससे पूछा गया कि कोई गवाह है? उसका उत्तर था कि सिर्फ परमात्मा ही गवाह है, उसके अलावा किसी भी और ने उसे हत्या करते नहीं देखा| वह अपनी बात पर अडिग रहा और खुद को कुछ न कुछ सजा दिलवा कर ही माना|
कृपा शंकर
३ मई २०२०

No comments:

Post a Comment