मेरे लिए 'कृपा' शब्द का अर्थ है -- कुछ करो और पाओ। बिना करे तो कुछ मिलेगा नहीं। ऐसा क्या करें जिस से इस जीवात्मा का कल्याण हो, और यह परमशिव को उपलब्ध हो?
Saturday, 23 April 2022
मेरे लिए 'कृपा' शब्द का अर्थ है -- कुछ करो और पाओ ---
अज़ान का उद्देश्य और अर्थ ---
शिव ही विष्णु हैं, और विष्णु ही शिव हैं ---
"ॐ नमः शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे। शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:॥"
विद्वता का अहंकार -- हमारा सबसे बड़ा आंतरिक शत्रु है ---
विद्वता का अहंकार -- हमारा सबसे बड़ा आंतरिक शत्रु है, जो हमारी शांति को छीन कर हमें निरंतर भटकाता है। इसे तुरंत भगवान को समर्पित कर देना चाहिये। गीता में भगवान हमें निष्काम, निःस्पृह, निर्मम, और निरहंकार होने का उपदेश देते हैं --
जिसका हम ध्यान करते हैं, वही हम बन जाते हैं ---
जिसका हम ध्यान करते हैं, वही हम बन जाते हैं। परमात्मा हमें प्राप्त नहीं होते, बल्कि समर्पण के द्वारा हम स्वयं ही परमात्मा को प्राप्त होते हैं। कुछ पाने का लालच -- माया का एक बहुत बड़ा अस्त्र है। जीवन का सार कुछ होने में है, न कि कुछ पाने में। जब सब कुछ परमात्मा ही हैं, तो प्राप्त करने को बचा ही क्या है? आत्मा की एक अभीप्सा होती है, उसे परमात्मा का विरह एक क्षण के लिए भी स्वीकार्य नहीं है। इसी को परमप्रेम या भक्ति कहते हैं।
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त्रिगुणातीत होना ही मुक्ति है ---
उपासना की गहनता और दीर्घता दोनों को ही बढ़ाना पड़ेगा ---
उपासना की गहनता और दीर्घता दोनों को ही बढ़ाना पड़ेगा ---
त्रिगुणातीत वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण पद्मासन में शांभवी मुद्रा में ध्यानस्थ हैं ---
मेरे में हिमालय से भी बड़ी बड़ी लाखों कमियाँ और लाखों असफलताएँ हैं। लेकिन परमप्रिय परमात्मा के महासागर में वे एक छोटे-मोटे कंकर-पत्थर से अधिक बड़ी नहीं हैं। वे वहाँ भी शोभा दे रही हैं। जब से उनसे प्रेम हुआ है, सारी कमियाँ और असफलताएँ महत्वहीन हो गई हैं। परमात्मा अनंत हैं, उनके अनंत रूप हैं, लेकिन आजकल परमात्मा का एक ही रूप सदा सामने आता है --
हमारी उपासना तेलधारा की तरह अखंड निरंतर बनी रहे ---
गुरुकृपा से हमारी उपासना तेलधारा की तरह अखंड निरंतर बनी रहे। उसके टूटते ही बहुत अधिक हानि हो जाएगी, जिसका पता भी तुरंत नहीं चलेगा।
सत्य-सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण कब होगा? ---
सत्य-सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण कब होगा? ---
मैं साँस नहीं ले रहा, यह समस्त सृष्टि मेरे माध्यम से साँस ले रही है ---
मैं साँस नहीं ले रहा, यह समस्त सृष्टि मेरे माध्यम से साँस ले रही है। यह देह साक्षात् परमात्मा का एक उपकरण है। स्वयं परमात्मा इस उपकरण से साँस ले रहे हैं। मेरा होना, और यह पृथकता का बोध एक भ्रम मात्र है। जो कुछ भी इस ब्रह्मांड में और उससे परे, सृष्ट और असृष्ट है, वह मैं हूँ। मुझ से परे अन्य कुछ भी नहीं है। मैं यह देह नहीं, परमात्मा की सर्वव्यापकता और पूर्णता हूँ।
परमात्मा की सर्वव्यापकता पर ध्यान करने से कामनाओं का ह्रास होने लगता है ---
परमात्मा की सर्वव्यापकता पर ध्यान करने से कामनाओं का ह्रास होने लगता है ---
दरिद्रता एक बहुत बड़ा अभिशाप है, लेकिन अधर्म से पैसा बनाना तो सब से बड़ा "पापों का पाप" है ---
दरिद्रता एक बहुत बड़ा अभिशाप है, लेकिन अधर्म से पैसा बनाना तो सब से बड़ा "पापों का पाप" है ---
भगवान का कार्य तो करना ही पड़ेगा, कोई विकल्प नहीं है ---
भगवान का कार्य तो करना ही पड़ेगा, कोई विकल्प नहीं है ---
हे प्रभु, अब इसी समय मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता है ---
हे प्रभु, अब इसी समय मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता है। कुछ परेशानियों में फंस कर असहाय हो गया हूँ। अन्य कोई है भी नहीं, जो मेरी सहायता कर सके। मेरी माँगें आपको माननी ही पड़ेंगी (आप वचनबद्ध हैं) ---
हम मानसिक दास क्यों बन जाते हैं? ---
हम मानसिक दास क्यों बन जाते हैं? मानसिक दासता एक बड़ी दुःखद स्थिति है, जिसका कारण -- राग और द्वेष हैं। गीता में इस विषय पर बड़ा स्पष्ट मार्गदर्शन है। भगवान हमें वीतराग होकर स्थितप्रज्ञ और निःस्पृह होने का उपदेश और आदेश देते हैं।
निकट भविष्य में भारत एक अखंड धर्मनिष्ठ राष्ट्र होगा, जिसकी राजनीति सत्य-सनातन-धर्म होगी ---
निकट भविष्य में भारत एक अखंड धर्मनिष्ठ राष्ट्र होगा, जिसकी राजनीति सत्य-सनातन-धर्म होगी ---
पृथ्वी का भार बहुत अधिक बढ़ गया है, महाप्रलय की संभावना है ---
पृथ्वी का भार बहुत अधिक बढ़ गया है, महाप्रलय की संभावना है ---
धर्म एक ही है जो हमारा स्वधर्म है, अन्य सब परधर्म (अधर्म) हैं ---
धर्म एक ही है जो हमारा स्वधर्म है, अन्य सब परधर्म (अधर्म) हैं, जो बड़े भयावह हैं; हमारा स्वधर्म ही हमारी रक्षा करेगा ---