"ॐ नमः शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे। शिवस्य हृदयं विष्णु: विष्णोश्च हृदयं शिव:॥"
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मनुष्य की बुद्धि जो ईश्वर की ऊंची से ऊंची परिकल्पना कर सकती है, वह शिव और विष्णु की है। तत्व रूप में दोनों एक हैं। शिव ही विष्णु हैं, और विष्णु ही शिव हैं। अतः हमें ध्यान शिव या विष्णु के विराट रूप का ही करना चाहिए। ध्यान में सफलता के लिए हमारे में इन बातों का होना आवश्यक है:---
(1) भक्ति यानि परम प्रेम।
(2) परमात्मा को उपलब्ध होने की अभीप्सा।
(3) दुष्वृत्तियों का त्याग।
(4) शरणागति और समर्पण।
(5) आसन, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान।
(6) दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन।
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ध्यान हमेशा परमात्मा के अनंत ज्योतिर्मय ब्रह्मरूप और नाद का होता है। हम बह्म-तत्व में विचरण और स्वयं का समर्पण करें, -- यही आध्यात्मिक साधना है। परमात्मा के प्रति परम प्रेम और शरणागति हो तो साधक परमात्मा को स्वतः ही उपलब्ध हो जाता है।
ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२४ अप्रेल २०२१
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