Saturday, 23 April 2022

स्वास्थ्य और स्वार्थ ---

 स्वास्थ्य और स्वार्थ ---

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हम सब स्वस्थ (स्व+स्थ) यानि परमात्मा में स्थित हों, व स्वार्थी (स्व+अर्थ) यानि परमात्मा से ही मतलब रखने वाले हों। स्वयं को यह भौतिक देह मानना सारे पापों का मूल है। मेरा "स्व" परमात्मा में है, इस भौतिक शरीर में नहीं। इस भौतिक शरीर की तृप्ति के लिए ही मनुष्य सारे पाप करता है। जब कि यह भौतिक शरीर हमारा सबसे बड़ा धोखेबाज़ मित्र है। सिर्फ लोकयात्रा के लिए एक वाहन के रूप में ही यह आवश्यक है।
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ज्योतिर्मय ब्रह्म की छटा ज्योतिषांज्योति के रूप में कूटस्थ में निरंतर पूरी सृष्टि को आलोकित कर रही है। उसके सूर्यमण्डल में स्वयं भगवान पुरुषोत्तम बिराजमान हैं। वे ही परमशिव हैं। हम उनके साथ एक हों, वे ही हमारे माध्यम से निरंतर व्यक्त हो रहे हैं।
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मैं यह कोई उपदेश नहीं दे रहा हूँ, न ही कोई नया लेख लिख रहा हूँ। यह तो परमात्मा का प्रेम है जो अपने आप ही छलक रहा है। मेरे अंतर में परमात्मा के अलावा अन्य कुछ है ही नहीं। उनका प्रेम कूट कूट कर इतना अधिक भरा हुआ है, कि छलके बिना नहीं रह सकता। मेरा अस्तित्व ही परमात्मा का अस्तित्व है। प्रार्थना तो उनसे की जाती है जो कहीं दूर हों। यहाँ तो कोई दूरी है ही नहीं। मैं और मेरे प्रभु एक हैं। अतः किन से प्रार्थना करूँ? कोई अन्य है ही नहीं।
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कई लोग मेरे हितैषी बनकर मुझे संदेश भेजते हैं कि मुझे एक सच्चे सद्गुरु की आवश्यकता है। उनसे मेरा निवेदन है कि मुझे कोई नया सद्गुरु नहीं चाहिए। कई जन्मों से जो मेरे सद्गुरु थे, सूक्ष्म जगत में वे मेरे साथ परमात्मा में एक हैं। उनमें और मुझमें कोई भेद नहीं है। मुझे जो भी मार्गदर्शन मिला है वह सूक्ष्म जगत की महान आत्माओं से मिला है। भौतिक देह में जो मिले, वे मेरे स्वयं के अनुरोध पर ही मिले हैं। मुझे पूर्ण संतुष्टि है। जीवन की उच्चतम उपलब्धि कई बार अनायास स्वतः ही मिल जाती है। आप सब महान आत्माओं को नमन !!
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०२२

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